Friday 25 May 2012

नेत्रहीन व्यक्तियों के लिए डिवाइस



नेत्रहीन व्यक्तियों के लिए सबसे खुशी की बात क्या हो सकती है? यही कि वो इस दुनिया की खूबसूरती को देख सकें. अपने दोस्तों और करीबियों को देख सकें. उनकी यह इच्छा अब जल्द ही पूरी हो सकती है. हममें से कई यह कह सकते हैं कि आंखों के प्रत्यर्पण से यह संभव हो सकता है. लेकिन, हम इस बात से भी वाकिफ हैं कि दुनिया में नेत्रहीन लोगों की तादाद काफी अधिक है और सभी के लिए आंखों का प्रत्यर्पण संभव नहीं है. इसके बावजूद उन्हें हताश या निराश होने की जरूरत नहीं है. दरअसल, हिब्रयू यूनिवर्सिटी ऑफ येरुशलम ने एक ऐसे डिवाइस को विकसित किया है, जिसके जरिये नेत्रहीनों का देखना संभव हो सकता है. संवेदक प्रतिस्थापन डिवाइस (एसएसडी) के प्रयोग के जरिए नेत्रहीनता के लिए निर्धारित किये गये अंतराष्ट्रीय मानक से भी छोटे अक्षरों को पढ.ा जा सकता है. इसके लिए नेत्रहीनों को प्रशिक्षण भी दिया जाता है. हिब्रयू यूनिवर्सिटी ऑफ येरुशलम में आठ नेत्रहीन व्यक्तियों पर इस डिवाइस की जांच की गयी और वे सभी विश्‍व स्वास्थ्य संगठन द्वारा नेत्रहीनता के निर्धारित मानक से छोटे अक्षर को पढ.ने में सफल रहे. इसके लिए स्नेलन जांच की मदद ली गयी. यह ऐसी जांच है, जिसका इस्तेमाल चिकित्सक नेत्र जांच में करते हैं. इसमें अलग-अलग दिशाओं और आकार में लिखे अक्षरों को पढ.ने के लिए कहा जाता है. हिब्रयू यूनिवर्सिटी ऑफ येरुशलम के वैज्ञानिकों का कहना है कि यह डिवाइस छोटे अक्षरों को साउंड स्केप्स में बदल देता है. इस प्रक्रिया में कलन गणित (अल्गेरिद्म) की मदद ली जाती है. यह डिवाइस उपयोगकर्ता को अक्षरों को सुनने और उसे दृश्य सूचना में व्याख्या करने में मदद करता है.

Thursday 24 May 2012

वो फेसबुक, हमने तराशा है जिसे

वो फेसबुक, हमने तराशा है जिसे
हरजिंदर, एसोशिएट एडीटर, हिन्दुस्तान

मार्क जकरबर्ग ने क्या किया? दुनिया भर के लोगों को दोस्ती बढ़ाने, रिश्ते बनाने, शेखी बघारने और भड़ास निकालने की थोड़ी-सी जमीन दी और अपने लिए पूरा आसमान जीत लिया। उनकी कंपनी फेसबुक ने शेयर बाजार में उछाल भरने के बाद भले ही बहुत बड़ा तीर न मारा हो, लेकिन उसकी हैसियत का आकलन 104 अरब डॉलर किए जाने से सब हैरत में तो हैं ही। न्यूयॉर्क के इस 28 वर्षीय नौजवान की आठ साल पुरानी कंपनी ने मीडिया व्यवसाय की परंपरागत कंपनियों को बहुत पीछे छोड़ दिया है। फेसबुक के इस वैल्युएशन के सामने टाइम वार्नर जैसी मीडिया की परंपरागत धुरंधर भी बौनी दिखने लग गई हैं।
फेसबुक में ऐसा क्या है? फेसबुक कोई तकनीकी कंपनी नहीं है। हालांकि वह इंटरनेट पर मौजूद आधुनिकतम सोशल नेटवर्किग साइटों में से एक है, लेकिन उसके पास कोई बहुत बड़ी तकनीक नहीं है। वह जिस तकनीक का इस्तेमाल कर रही है, वह पहले से ही मौजूद थी और हो सकता कि कुछ कंपनियां उससे भी बेहतर तकनीक या सॉफ्टवेयर कोड से अपनी वेबसाइट बना रही हों। फिर ऐसा क्या है फेसबुक के पास, जो उसे सौ अरब डॉलर से बड़ी बाजार हैसियत वाली कंपनी बनाता है? फेसबुक बस एक मंच है, जिसके पास अपना कुछ नहीं है। फेसबुक में ढेर सारी सामग्री है, लेकिन वह मार्क जकरबर्ग और उनकी कंपनी में काम करने वाले लोगों ने न तो तैयार की है और न वह उनकी है। फेसबुक में जो कुछ भी है, वह हमारे-आपके जैसे लोगों का ही है। वहां रवीश की उलटबांसियां हैं, अंबरीश की यात्राए हैं, सतीश की भावनाएं हैं, महेश का गुस्सा है, रमेश के सरोकार हैं, चंचल के चित्र हैं, मंगल के मित्र हैं, किसी की कविताएं हैं, किसी की मंत्रणाएं हैं, स्टेटस हैं, अपडेट हैं- और इन्हीं सब ने मिलकर फेसबुक की बाजार हैसियत को सौ अरब डॉलर से भी ऊपर पंहुचा दिया है। अब इसे देखने के हमारे पास दो तरीके हैं।
पहला तरीका यह है कि हम यह मान लें कि हमारी इन्हीं सब चीजों से मार्क जकरबर्ग ने अपनी दुकान सजा ली और अब दुनिया के 29वें सबसे अमीर व्यक्ति बन बैठे हैं। इस धंधे में लगी उनकी अपनी पूंजी कोई बहुत ज्यादा नहीं है और उनकी मेहनत पर शक न भी किया जाए, तो कुल जमा आठ साल की ही मेहनत उसमें है। लेकिन इसे दूसरे नजरिये से भी देखना होगा। महेश, रमेश, सुरेश वगैरह ने अभी तक जो भी सामग्री फेसबुक पर डाली है, अगर उसे वे लेकर परंपरागत मीडिया के पास जाएं, तो हो सकता है कि वहां कोई उसकी कीमत कौड़ियों के भाव भी न लगाए, लेकिन वही सामग्री जब फेसबुक पर आती है, तो फेसबुक के वैल्युएशन को सौ अरब डॉलर के ऊपर पहुंचा देती है। फेसबुक जो कुछ भी है, उस मार्क जकरबर्ग के फितरती दिमाग की एक उपज है, जो हॉर्वर्ड यूनिवर्सिटी की पढ़ाई भी पूरी नहीं कर सका था। जकरबर्ग ने हमें एक भरोसेमंद मंच दिया है, लेकिन इससे हमारी-आपकी सामग्री की भूमिका कम नहीं होती, क्योंकि अंत में हमने ही फेसबुक को आगे बढ़ाया और महत्वपूर्ण बनाया है। यह मीडिया का नया चेहरा है, जिसे यूजर्स जेनरेटेड कंटेंट के नाम से जाना जाता है। यानी ऐसा मीडिया, जहां पाठक एक पाठक भी होता है और साथ ही लेखक भी। आप दूसरों का लिखा पढ़ते हैं और आप जो लिखते हैं, उसे दूसरे पढ़ते हैं। सिर्फ लिखना-पढ़ना ही नहीं, गीत-संगीत, चित्र, फोटोग्राफी और फिल्म तक के लिए इसमें जगह है। आप चाहें, तो इसे सहकारी मीडिया भी कह सकते हैं। फेसबुक ऐसे मीडिया का पहला उदाहरण नहीं है। इसका ज्यादा सफल और ज्यादा महत्वपूर्ण उदाहरण विकीपीडिया है। फर्क सिर्फ इतना है कि विकीपीडिया ने किसी कारोबार की शक्ल नहीं ली और वह दान पर चलने वाली एक वेबसाइट भर बनकर रह गई। यह बात अलग है कि इस कोशिश में उसने छपे हुए एनसाइक्लोपीडिया के पूरे कारोबार को इतिहास की एक चीज बनाकर रख दिया। फेसबुक ने कारोबार का रास्ता अपनाया और बाजार में झंडे गाड़ दिए। फिलहाल असल मुद्दा फेसबुक में हुआ भारी निवेश है। फेसबुक को लेकर पिछले दिनों निवेशकों में जो उत्साह दिखा, वह परंपरागत मीडिया को हैरत में डालने वाला था। आखिर निवेशकों ने इस छोटी-सी कंपनी में ऐसा क्या देखा- उस कंपनी में, जिसने एक बड़ा ब्रांड भले ही बनाया हो, लेकिन अभी कोई बहुत ज्यादा मुनाफा कमाना भी शुरू नहीं किया? वैसे शेयर बाजार आम तौर पर किसी कंपनी के कारोबार पर कम, उसकी संभावनाओं पर ज्यादा दांव लगाता है। पश्चिम के बाजार और वहां की कंपनियों की इस समय जो स्थिति है, उसमें कोई आश्चर्य नहीं कि निवेशकों को इस समय सबसे ज्यादा संभावनाओं वाली कंपनी फेसबुक ही लग रही हो। लेकिन सवाल यह है कि फेसबुक की संभावनाएं क्या हो सकती हैं? पाठकों की जिस सामग्री की बात हम कर रहे हैं, फेसबुक की सारी संभावनाएं दरअसल इसी में निहित हैं। इस सामग्री का विश्लेषण कर हमारी पसंद-नापसंद, हमारी चाहत, हमारी खुशी, हमारे गम और हमारे गुस्से का एक बहुत बड़ा डाटाबेस तैयार हो सकता है। मसलन, अगर एक कार बनाने वाली कंपनी यह जानना चाहे कि आजकल लोग किस तरह की कार पसंद कर रहे हैं या लोग किस तरह की कार खरीदने की चाहत रखते हैं, तो उसके लिए यह डाटाबेस बहुत काम का हो सकता है। और इससे भी बढ़कर अगर वह कंपनी उन सब लोगों के नाम और ई-मेल चाहे, जो कार खरीदने की बात करते हैं, या कारों की चर्चा करते हैं, या कार कंपनियों की साइटों पर जाते रहते हैं, तो यह डाटाबेस उसकी काफी मदद कर सकता है। अभी तक फेसबुक ने अपने उपयोगकर्ताओं की प्राइवेसी का आम तौर पर खयाल ही रखा है, उनके आंकड़े बाजार में बेचे गए हों,  ऐसे बहुत ज्यादा आरोप नहीं हैं। लेकिन अब जितना बड़ा निवेश फेसबुक में गया है, उस अनुपात में उस पर मुनाफा कमाने का दबाव भी बढ़ेगा ही। आने वाले वक्त में सोशल नेटवर्किग का भविष्य इससे तय होगा कि फेसबुक इस दबाव का मुकाबला किस तरह से करता है। अगर वह चाहता है कि उपयोगकर्ताओं की प्राइवेसी के कारोबार की नौबत न आए, तो उसे अपनी कमाई के तरीके खोजने होंगे। उसे नए रेवेन्यू मॉडल विकसित करने होंगे, जो अभी उसके पास बहुत कम हैं, क्योंकि प्राइवेसी बेचकर फेसबुक अपनी वह साख खो देगा, जिसने उसके वैल्युएशन को सौ अरब डॉलर तक पहुंचा दिया है। फिलहाल तो यही फेसबुक का स्टेटस अपडेट है, इसे आप लाइक करें, शेयर करें या फिर अपने कमेंट से नवाजें।

पृ थ्वी का दो-तिहाई हिस्सा पानी से भरा है. इसके बावजूद लोगों को पीने के पानी की समस्या से दो-चार होना पड़ता है. इसकी बड़ी वजह है कि समुद्र का पानी खारा यानी लवणयुक्त होता है, जिसे हम नहीं पी सकते. लेकिन, अब समुद्र के इस लवणयुक्त पानी में साफ बदलाव देखने को मिल रहा है. राष्ट्रमंडल वैज्ञानिक और औद्योगिक शोध संगठन एवं लॉरेंस लिवरमोर राष्ट्रीय प्रयोगशाला ने अपने शोध में यह पाया है. इस शोध के मुताबिक, पिछले 50 वर्षों में समुद्र के खारे में पानी बदलाव आया है. इसके पीछे जलवायु परिवर्तन को बड़ी वजह माना जा रहा है. इसशोध के दौरान जलवायु पैटर्न में पानी की लवणता, वर्षा और वाष्पीकरण के बीच संबंधों का अध्ययन किया गया. इस अध्ययन में यह निष्कर्ष निकला कि 1950 से 2000 के दौरान जल चक्र में चार फीसदी की मजबूती आयी है. यह जितना आकलन किया गया था, उससे दो गुना है. शोधकर्ताओं का कहना है कि इससे साबित होता है कि जलवायु और वैश्‍विक जल चक्र बदल चुके हैं. इन बदलावों से यह निष्कर्ष निकलता है कि पृथ्वी पर जो क्षेत्र सूखे हैं, वे और सूखे बन चुके हैं और गीले क्षेत्र (पानी वाले क्षेत्र) में अधिक वर्षा होती है. गौरतलब है कि इस सदी के अंत तक वैश्‍विक तापमान में तीन डिग्री सेल्सियस तक की बढ.ोतरी का अनुमान लगाया गया है. ऐसे में शोधकर्ताओं का कहना है कि जल चक्र में 24 फीसदी तक की वृद्धि हो सकती है. वैज्ञानिक भू-आधारित आंकड़ों से जल चक्र में परिवर्तन का पता लगाने की असफल रहे हैं, लेकिन नयी शोध से नयी तसवीर सामने आयी है.

निजी अंतरिक्षयान

अं तरिक्ष और तारों की दुनिया के बीच सफर की फिल्मी कहानी बहुत जल्द ही हकीकत में बदल सकती है. अब तक सिर्फ अंतरिक्षयात्री ही विशेष अभियान के तहत चांद सहित अंतरिक्ष की दुनिया में जाते थे. अब रूसी और अमेरिकी अंतरिक्ष एजेंसियों के अलावा निजी कंपनियां भी अंतरिक्ष के क्षेत्र में कदम रखरही हैं. 22 मई को अमेरिका के कैलिफोर्निया से निजी कंपनी स्पेस-एक्स का मानवरहित यान अंतरराष्ट्रीय अंतरिक्ष स्टेशन के लिए भेजा गया. अंतरिक्ष में किसी निजी कंपनी की यह पहली उड़ान है. स्पेस-एक्स के जरिए ड्रैगन को अंतरिक्ष स्टेशन भेजा गया है. अब इसे स्टेशन पर पहुंचने में दो दिनों का समय लगेगा.

क्या हैं इस कदम के मायने

अंतरिक्ष में निजी क्षेत्र के हस्तक्षेप का अगर एक पहलू देखें तो इसका फायदा यह हो सकता है कि उन्हें इन अभियानों के लिए भारी-भरकम रकम खर्च नहीं करनी प.डेगी. नासा बचे हुए पैसे का इस्तेमाल धरती से अलग अंतरिक्ष पर चल रहे दूसरे शोध में लगाया जा सकता है, जिसमें मंगल ग्रह भी शामिल है.गौरतलब है कि नासा द्वारा स्पेस एक्स और एक अन्य कंपनी ऑरबाइटल साइंसेज कॉर्प को अंतरिक्ष स्टेशन पर भोजन सामग्रियां और उपकरण आदि पहुंचाने के लिए अरबों डॉलर का ठेका दिया गया है. दूसरी कंपनी इस साल बाद में अपने ऐन्टारेस रॉकेट से साइग्नस नामक यान को अंतरिक्ष स्टेशन भेजने की तैयारी कर रही है.

मंगल ग्रह पर भी निजी अंतरिक्षयान

स्पेस एक्स के संस्थापक और मुख्य कार्यकारी एलन मस्क का कहना है कि हम काफी समय से मंगल पर जीवन की तलाशकर रहे हैं और इनसान मंगल ग्रह पर जाने की चाहत रखता भी है. मंगल पर अपने अभियान की शुरुआत के बारे में उनका मानना है कि उनकी कंपनी कम-से-कम दस वर्षों या फिर 15 साल के अंदर निश्‍चित तौर पर मंगल ग्रह पर इनसानों को भेजने में सफल हो जायेगी. मंगल ग्रह पर लोगों को भेजने की अपनी इस योजना पर वे कहते हैं कि इसे वे अमेरिकी अंतरिक्ष एजेंसी नासा की मदद से या उसकी मदद के बगैर किसी भी तरह करेंगे. हालांकि, इस योजना में कई चुनौतियां भी हैं. मसलन, अभी अंतरराष्ट्रीय अंतरिक्ष स्टेशन पर लोगों को भेजने की योजना है, जो कुछ सौ मील दूर है. लेकिन मंगल ग्रह पृथ्वी से हजारों मील दूर है. हालांकि मस्क का आकलन है कि एकबार अगर अभियान शुरू हो गया तो फिर इस भी काम किया जा सकता है. इसके बाद मंगल ग्रह भी एक अंतरिक्ष यात्रा के लिए सामान्य जगह बन जायेगा. फिर वहां जाने की लागत भी कम हो जायेगी, क्योंकि कई कंपनियां इस क्षेत्र में आ जायेंगी. गौरतलब है कि रूस नासा के एक अंतरिक्ष यात्री को स्पेस स्टेशन तक ले जाने के लिए 6 करोड़ डॉलर लेता है.



Wednesday 23 May 2012

सौर लपट से झुलसेगी नहीं पृथ्वी


मैक्सिको और दक्षिण अमेरिका की प्राचीन माया सभ्यता द्वारा अपनाया गया कैलेंडर 5126 वर्ष लम्बा युग पूरा करने के बाद 21 दिसम्बर, 2012 को समाप्त हो रहा है। कुछ खुराफाती किस्म के लोग इस तारीख को पृथ्वी के लिए अशुभ संकेत मान रहे हैं और उन्होंने पृथ्वी पर महाविनाश की तरह-तरह की भविष्यवाणियां भी की हैं। उन्होंने यह सोचना भी शुरू कर दिया है कि कौन सी खगोलीय चीज पृथ्वी पर कहर ढा सकती है। सर्वाधिक चर्चा सूरज की गतिविधियों को लेकर है। कहा जा रहा है कि सूरज की एक विशाल ज्वाला अगले वर्ष पृथ्वी को तबाह कर देगी। सूरज पर प्रचंड चुंबकीय ऊर्जा के आकस्मिक विस्फोट को सौर ज्वाला कहा जाता है।

नासा के अधिकारियों ने प्रलय की भविष्यवाणियों को पूरी तरह से खारिज कर दिया है। उनका कहना है कि सूरज इतनी शक्तिशाली लपट छोड़ने में समर्थ नहीं है कि पूरी पृथ्वी ही उसमें भस्म हो जाए। यह सही है कि सूरज अपने 11-वर्षीय चक्र के उत्कर्ष पर पहुंच रहा है, लेकिन यह उत्कर्ष अगले साल नहीं, 2013 या 2014 में आएगा। सूरज की अधिकतम गतिविधियों के अनगिनत दौर आ चुके हैं, लेकिन हम सब और हमारी पृथ्वी सही सलामत है। असली मुद्दा यह है कि क्या सूरज की विनाशकारी ऊष्मा धरती तक पहुंच सकती है?

सूरज पर होने वाली उथल-पुथल से पृथ्वी पर असर जरूर पड़ता है। मसलन सौर लपटें पृथ्वी के ऊपरी वायुमंडल को अस्थायी तौर पर प्रभावित कर सकती हैं। इससे उपग्रह संचार प्रणाली गड़बड़ा सकती है। सौर ऊर्जा कणों का तूफान इससे भी ज्यादा मुसीबत खड़ी कर सकता है। पृथ्वी पर प्रहार करने वाले सौर ऊर्जा कण विद्युत ग्रिड, जीपीएस सिग्नल और रेडियो संचार को छिन्न-भिन्न कर सकते हैं। ऊर्जा कणों का बहुत ही शक्तिशाली तूफान टेक्नोलॉजी पर निर्भर हमारे समाज को काफी नुकसान पहुंचा सकता है, लेकिन इससे हमारी पृथ्वी या मानव जाति का सफाया नहीं हो सकता।

कुछ लोग प्रलयदूत के रूप में प्लेनेट-एक्स या नाइबीरू का भी नाम ले रहे हैं। उनका कहना है कि पृथ्वी से चार गुना बड़ा यह आवारा खगोलीय पिंड अगले साल हमारी पृथ्वी से टकरा कर समस्त जीवन का सफाया कर देगा। आखिर यह नाइबीरू है कहां। विशेषज्ञों का कहना है कि यह ग्रह सिर्फ कुछ लोगों की कल्पना में बसता है। इसका कोई अस्तित्व नहीं है। नासा के एक अधिकारी, डान योमंस का कहना है कि नाइबीरू का कोई प्रमाण नहीं है। न तो कोई प्लेनेट-एक्स है और न ही कोई वस्तु हमारी तरफ आ रही है। नाइबीरू का विचार सबसे पहले अमेरिका में रहने वाली एक महिला नेंसी लाइडर ने रखा था। वह दावा करती हैं कि जेटा नामक परग्रही जीवों ने बचपन में उससे संपर्क किया था और उन्होंने उसके दिमाग में एक संचार उपकरण फिट कर दिया था। उसका यह भी दावा है कि इस उपकरण के जरिये वह परग्रही जीवों के सम्पर्क में रहती है। लाइडर ने अपने विचारों को प्रचारित करने के लिए 1995 में जेटाटाक के नाम से एक वेबसाइट भी स्थापित की थी।

नाइबीरू के अलावा एलेनिन धूमकेतु का नाम लेकर भी डराने की कोशिश की गई। यह प्रचार किया गया कि यह धूमकेतु बड़ेे भूकम्पों और सुनामियों का कारण बनेगा। वैज्ञानिकों ने कभी इसे पृथ्वी के लिए खतरा नहीं माना और अभी हाल ही में सूरज के बगल से गुजरने के बाद यह मलबे में तब्दील हो गया था। पिछले अक्टूबर में धूमकेतु के अवशेष पृथ्वी के नजदीक से भी गुजरे थे। रूसी खगोल शास्त्री लियोनिद एलेनिन ने पिछले साल दिसम्बर में ही इस धूमकेतु की खोज की थी। तभी से इस धूमकेतु को लेकर भ्रामक और विवादास्पद बातें कही जा रही थीं। कुछ लोग इसे सम्भावित प्रलयदूत के रूप में पेश करने लगे थे।

भविष्य के कम्प्यूटर



सन् 2030 अथवा उसके आसपास आपके डेस्क पर रखा हुआ कम्प्यूटर ट्रांजिस्टरों और चिपों के स्थान पर द्रव से भरा हो सकता है। यह क्वांटम कम्प्यूटर होगा। यह भौतिक नियमों के द्वारा संचालित नहीं होगा। आपका यह कम्प्यूटर अपने ऑपरेशंस के लिए क्वांटम यांत्रिकी (Quantum Mechanics) का प्रयोग करेगा। क्वांटम यांत्रिकी ही टेलीपोर्टेशन (किसी वस्तु को एक स्थान से दूसरे स्थान पर बिना स्थान परिवर्तन के पहुँचाना) और सामानांतर ब्रह्मड (Parallel universe) जैसी सैद्धांतिक संकल्पनाओं का आधार है।

आपका यह क्वांटम कम्प्यूटर एक डाटा रॉकेट होगा। यह शायद पेन्टियम III पर्सनल कम्प्यूटर से 1 अरब गुना ज्यादा तेजी से गणना करने में सक्षम होगा। यह सन् 2030 में पलक झपकते ही पूरे इंटरनेट को खँगाल सकने में सक्षम होगा और सबसे एडवांस सिक्योरिटी कोड को आसानी से तोड़ देगा। यह कोई साइंस फिक्शन नहीं है बल्कि आने वाले कुछ वर्षों में सच्चाई की दुनिया में संभव होने वाला है।

क्वांटम कम्प्यूटर, कम्प्यूटर चिपों के स्थान पर परमाणुओं का प्रयोग गणना के लिए करते हैं।प्रारंभिक क्वांटम कम्प्यूटर काफी पुरातन, खर्चीले और परीक्षण के स्तर पर ही हैं। किंतु उनके निर्माण ने सिद्ध कर दिया है कि आने वाला समय इन्हीं कम्प्यूटरों का है। मैसाचुसेट्स इंस्टीट्यूट ऑफ टेक्नोलॉजी और ऑक्सफोर्ड यूनीवर्सिटी की प्रयोगशालाओं में क्वांटम कम्प्यूटर से सम्बंधित प्रोजेक्टों पर जोर-शोर से कार्य जारी है। अमेरिकी सरकार ने लॉस अलामॉस नेशनल प्रयोगशाला में क्वांटम कम्प्यूटिंग लैब की स्थापना की है।

मगर यहां पर एक समस्या है कि सैद्धांतिक और व्यावहारिक दृष्टिकोण से क्वांटम कम्प्यूटिंग काफी कठिन कार्य है। व्यावहारिक रूप से ऐसी परिस्थिति पैदा करना जहाँ परमाणु गणना कर सकें और उनसे परिणाम प्राप्त हो, यह वैज्ञानिकों के लिए बड़ी चुनौती है। सिद्धांत के दृष्टिïकोण से क्वांटम यांत्रिकी उन क्षेत्रों में डुबकी लगाती है जो सोचने के दायरे से लगभग बाहर हैं। उदाहरण के लिए यह संभव है कि क्वांटम कम्प्यूटर के पास अनंत संख्याओं वाले समानांतर ब्रह्मडों के लिए अनंत संख्या के सही उत्तर हों। आप जिस ब्रह्मïांड में इस समय हैं  क्वांटम कम्प्यूटर उसके लिए सही उत्तर दे सकता है। दुनिया के सबसे विख्यात क्वांटम कम्प्यूटिंग वैज्ञानिक आई बी एम के चाल्र्स बेनेट का इस बारे में कहना है कि इन चीजों को स्वीकार करने के लिए काफी साहस की जरूरत है। यदि आप इन चीजों में विश्वास करते हैं तो आपको कई विचित्र चीजों पर विश्वास करना होगा।

इसका परिणाम है कि व्यावहारिक क्वांटम कम्प्यूटिंग अभी भी दशकों दूर है। वर्तमान में वैज्ञानिकों के क्वांटम कम्प्यूटिंग प्रयास उसी तरह के हैं जैसे विद्युत के सिद्धांतों के परीक्षण के लिए बेंजामिन फ्रैंकलीन ने कड़कती बिजली में पतंग उड़ाई थी। प्रयोगशालाओं में कार्यरत् वैज्ञानिकों के लिए अगला चरण इस अविश्वसनीय शक्ति को नियंत्रित और उपयोग करने का है।

क्वांटम कम्प्यूटर के मूलभूत सिद्धांत
किसी गैर वैज्ञानिक व्यक्ति के लिए क्वांटम कम्प्यूटिंग की कार्य-प्रणाली को समझना काफी कठिन कार्य है। क्वांटम कम्प्यूटिंग का ख्याल वैज्ञानिकों के दिमाग में उस वक्त आया जब उन्होंने समझा कि परमाणु प्राकृतिक रूप से सूक्ष्म कैल्कुलेटर हैं। इस बारे में एमआईटी के नील गेर्शेनफेल्ड का कहना है कि ''प्रकृति को गणना करना मालूम है। गेर्शेनफेल्ड ने आई बी एम के आइज़क चुआँग के साथ मिलकर अभी तक के सबसे सफल क्वांटम कम्प्यूटर का निर्माण किया है।

परमाणुओं का एक प्राकृतिक चक्रण (Spin) अथवा ओरिएन्टेशन (orientation) होता है, जिस तरह से किसी दिक् सूचक (compass) में सुई का एक ओरिएन्टेशन होता है। यह चक्रण अप (ऊपर) या डाउन (नीचे) हो सकता है। यह डिजीटल तकनीक के साथ खूब मेल खाता है, जो प्रत्येक चीज को 1 या 0 की श्रेणी में निरूपित करती है। किसी परमाणु में ऊपर की ओर निर्देशित करने वाला चक्रण 1 हो सकता है; नीचे की ओर निर्देशित करने वाला चक्रण 0 हो सकता है। चक्रण को ऊपर या नीचे करना किसी सूक्ष्म ट्रांजिस्टर पर स्विच को ऑन या ऑफ करने के समान है (अथवा 1 और 0 के बीच)। एक परमाणु जो नँगी आँखों से दिखाई नहीं देता है, जब तक आप उसका मापन करें एक ही समय में ऊपर या नीचे दोनों जगह हो सकता है। यह अत्यन्त ही विस्मयकारी है। यह क्वांटम यांत्रिकी का हिस्सा है जो आइंस्टीन के सापेक्षता के सिद्धांत की तरह नियमों का समुच्चय है- जिससे ब्रह्मïांड की कार्य प्रणाली समझी जा सकती है। क्वांटम यांत्रिकी के द्वारा सूक्ष्म अर्थात् अणु, परमाणु, क्वार्क इत्यादि के संसार को समझा जा सकता है। इसके नियम इतने विचित्र हैं कि उनको समझना आसान नहीं है। लेकिन उन्हें बार-बार सिद्ध किया जा चुका है। क्योंकि किसी परमाणु का चक्रण एक ही समय में ऊपर या नीचे दोनों हो सकता है, इसलिए ये पारम्परिक कम्प्यूटर के एक बिट के बराबर नहीं होता है। यह कुछ अलग है। वैज्ञानिक इसे क्यूबिट (Qubit) कहते हैं। यदि आप क्यूबिट्स के एक समूह को एक साथ रखें तो वे वर्तमान कम्प्यूटरों की तरह एकरेखीय (linear) गणनाएं नहीं करते हैं। वे एक ही समय में सभी संभावित गणनाएँ करते हैं। एक तरह से वे सभी संभावित उत्तरों की छानबीन करते हैं। क्यूबिट्स के मापन का कार्य गणना प्रक्रिया को रोक देता है और उन्हें एक विशेष उत्तर को चुनने पर मजबूर करता है।

चालीस क्यूबिट्स वाले क्वांटम कम्प्यूटर की गणना शक्ति वर्तमान के सुपर कम्प्यूटरों के बराबर होगी। वर्तमान का कोई भी सुपर कम्प्यूटर विश्व की सभी फोन बुकों के डाटाबेस से एक नम्बर ढूंढने में एक माह का वक्त लेगा, जबकि भविष्य के क्वांटम कम्प्यूटर इस कार्य को मात्र 27 मिनट में सम्पन्न कर देंगे।

विभिन्न प्रकार के चक्रण
क्वांटम यांत्रिकी का एक अन्य पहलू कम्प्यूटिंग के लिए काफी महत्वपूर्ण है। इसे इंटेंगलमेंट (Entanglement) कहते हैं। दो परमाणुओं पर लगने वाला बाह्यबल उन दोनों को एक दूसरे में फंसा अथवा उलझा सकता है। इसे ही इंटेंगलमेंट कहते हैं। वे दो परमाणु ब्रह्मïांड में चाहे कई प्रकाशवर्ष दूर ही क्यों न स्थित हों, आपस में उलझे ही रहेंगे। उनके चक्रण एक ही समय में सभी स्थितियों में होंगे। लेकिन जिस क्षण उलझे हुए कण का अवलोकन किया जाता है, उसका चक्रण एक तरफ दिखाई देता है। उसी क्षण दूसरे कण का चक्रण विपरीत दिशा में होता है।

एक तरह से यह सँचार (communication) है। यदि आप किसी उलझे हुए कण के चक्रण को एक तरफ ऊपर की स्थिति में देखें, तो आप अपने आप जान जाएंगे कि दूसरी ओर इसका चक्रण नीचे की ओर है। यह घटना तत्कालिक रूप से घटती है इसलिए यह प्रकाश की गति  के नियमों का उल्लंघन करती हुआ दिखाई देती है। इंटेंगलमेंट के सिद्धांतों से वैज्ञानिकों को विश्वास हो गया है कि इससे गणना की गति को बढ़ाया जा सकता है। वर्तमान के कम्प्यूटरों के साथ यह समस्या है कि उनकी गति प्रकाश की गति से निर्धारित होती है। चाहे वह क्वांटम या पारम्परिक कम्प्यूटर हों, इंटेंगलमेंट इस गति सीमा को पार कर सकता है।

क्वांटम कम्प्यूटर के लिए सॉफ्टवेयर प्रोग्रामिंग की संकल्पना भी काफी अजूबी है। क्वांटम कम्प्यूटर के लिए प्रोग्रामिंग करने के लिए वर्तमान कम्प्यूटरों के कदम-दर-कदम तर्क का प्रयोग नहीं किया जा सकता है। इसके लिए क्यूबिट्स के विशिष्टï गुणों का प्रयोग करने वाले तर्क की जरूरत है। इसी कार्य को एटीएंड टी बेल लैब्ज़ के लव ग्रोवर ने किया जब उन्होंने एक विधि-विशेष (algorithm) अथवा गणितीय प्रोग्राम का आविष्कार किया जो डाटाबेस को सर्च करने के लिए क्वांटम कम्प्यूटिंग का प्रयोग करता है। वे इस तथ्य की तालाब में कई कंकड़ एक साथ गिराने से तुलना करते हैं जिससे तरंगें एक विशेष तरीके से एक-दूसरे को काटती हैं व असर डालती हैं। ग्रोवर की विधि-विशेष से गणना के बहुमार्गों की स्थापना होती है, जिससे सभी एक दूसरे के लिए व्यतिकारी (interferring) हो जाते हैं। ग्रोवर का कहना है, ''सही उत्तर रचनात्मक रूप से व्यक्तिकरण (interferrence) करते हैं और जुड़ जाते हैं।" यह एक प्रकार की पश्च गणन (backward computing) है। इसमें आप मान लेते हैं कि कम्प्यूटर सभी संभावित उत्तरों को जानता है और इसे उचित उत्तर ढूंढना है।

1990
के दशक के दौरान ग्रोवर, बेनेट और गेर्शेनफेल्ड मात्र सिद्धांत के स्तर पर ही हाथ-पैर मारते रहे। लेकिन अहम प्रश्न है कि कैसे कार्यशील क्वांटम कम्प्यूटर का निर्माण किया जाए? हाल के वर्षों में इसके कुछ उत्तर मिले हैं। गेर्शेनफेल्ड-चुआँग द्वारा निर्मित क्वांटम कम्प्यूटर पारम्परिक कम्प्यूटरों की भांति बिल्कुल नहीं लगता है। यह एक न्यूक्लियर टोस्टर (Nuclear toaster) ज्यादा लगता है। क्वांटम कम्प्यूटिंग की सबसे बड़ी समस्या है कि गणना करने वाले परमाणुओं को उनके चारों ओर के वातावरण से पूर्णतया पृथक करना होता है। किसी अन्य परमाणु अथवा प्रकाश के कण के साथ किसी भी प्रकार का संबंध उपकरण के परमाणु के चक्रण की दिशा पर प्रभाव डालता है, जिससे गणना पर प्रभाव पड़ता है। फिर भी यदि क्वांटम कम्प्यूटर की प्रोग्रामिंग करना है तो ऐसा होना असंभव है।

क्लोरोफॉर्म के परमाणु
कुछ समय पूर्व गेर्शेनफेल्ड और चुआँग ने ब्रेन स्कैन के लिए प्रयोग किए जाने वाली न्यूक्लियर मेग्नेटिक रेज़ोनेंस मशीन (NMR) का प्रयोग क्वांटम कम्प्यूटर के निर्माण के लिए किया। उन्होंने एक टेस्ट ट्यूब को क्लोरोफॉर्म द्रव से भरा। क्लोरोफॉर्म का निर्माण कार्बन और हाईड्रोजन परमाणुओं से होता है। फिर उन्होंने इस टेस्ट ट्यूब को नियंत्रित चुम्बकीय स्पंदन उत्सर्जित करने वाले मेग्नेटिक क्वायल के पास रखा। क्लोरोफॉर्म परमाणुओं की विशेषता होती है कि वे अपने चक्रण के साथ नाचते हैं। ऐसा प्राकृतिक है। न्यूक्लियर मेग्नेटिक रेज़ोनेंस द्वारा उत्सर्जित स्पंदन क्लोरोफार्म परमाणुओं के नृत्य के दौरान कुछ परमाणुओं को धक्का देते हैं, जिससे अप्रत्यक्ष रूप से अन्य परमाणुओं के चक्रण प्रभावित होते हैं। इस तरह से बिना किसी संपर्क के कार्बन परमाणु के चक्रणों को प्रोग्राम किया जा सकता है, जिससे वे क्वांटम कम्प्यूटरों की तरह कार्य करते हैं। नर्तन से चुम्बकीय क्षेत्र में हल्का कूजन (slight warbling) उत्पन्न होती है। इस कूजन के मापन से वैज्ञानिक क्वांटम गणनाओं के परिणाम को पढ़ सकते हैं। एनएमआर चक्रणों को निश्चित अंतराल में धक्का लगाता है। चुआँग के अनुसार ''उछालों (flips) के अनुक्रम (sequence) ही प्रोग्राम हैं।"
प्रोग्राम में ग्रोवर की विधि विशेष समाहित है। उन्होंने साधारण सर्च किया, उन्होंने एक चरण में चार में से एक आइटम ढूंढा (एक पारम्परिक कम्प्यूटर तीन या चार कोशिशें करेगा)। इस तरह से गेर्शेनफेल्ड और चुआँग ने प्रथम 2-क्यूबिट क्वांटम कम्प्यूटर का निर्माण करने में सफलता प्राप्त की। इस पर लगभग 10 लाख अमेरिकी डॉलर खर्च आया। तब से उन्होंने एक 3-क्यूबिट क्वांटम कम्प्यूटर के निर्माण में भी सफलता प्राप्त की है।

क्वांटम कम्प्यूटर बनाने के और भी कई तरीके हैं। ऑस्ट्रेलिया में एक वैज्ञानिक ग्रुप ऐसा क्वांटम कम्प्यूटर बनाने की कोशिश कर रहा है जिसमें द्रव का प्रयोग नहीं किया जाएगा। एक अन्य वैज्ञानिक ग्रुप ने 'आयन ट्रैप्स' (ion traps) का प्रयोग किया है, जो एक समय में एक क्वांटम कम्प्यूटिंग कण का निर्माण करता है।
कम्प्यूटर कंपनियाँ भी क्वांटम कम्प्यूटर के निर्माण में काफी दिलचस्पी दिखाती हैं। इस बारे में गेर्शेनफेल्ड का कहना है कि यदि ट्रांजिस्टर पर लगे कम्प्यूटर चिप इसी तरह छोटे होते गए तो लगभग 2020 के आसपास कम्प्यूटर चिप पर लगे तार की मोटाई परमाणु की मोटाई के बराबर हो जाएगी। ऐसे में वर्तमान चिप डिजाइन प्रयोग करने वाले कम्प्यूटर और अधिक तेज रफ्तार के नहीं किए जा सकेंगे। इसके लिए कोई विकल्प आवश्यक है। ऐसे में क्वांटम कम्प्यूटर ही एकमात्र आकर्षक विकल्प दिखाई देता है। क्वांटम कम्प्यूटर के लिए सिलिकॉन की अपेक्षा सप्लाई मैटीरियल की मात्रा भी अक्षय है।

क्वांटम कम्प्यूटरों के लिए प्रोग्रामिंग लैंग्वेज का विकास
क्वांटम कम्प्यूटर जो समान्तर में बहुत सी गणना करने के लिए क्वांटम यांत्रिकी (Quantum Mechanics) के रहस्य पर आधारित हैं, का अभी व्यावहारिक पक्ष उभरकर सामने आना बाकी है। इन कम्प्यूटरों का सैद्धान्तिक पक्ष ही उजागर हुआ है। लेकिन भविष्य की संभावनाओं को देखते हुए इन लगभग अस्तित्वहीन मशीनों के लिए शोधकर्ताओं ने प्रोग्रामों को लिखने की कोशिश आरंभ कर दी है। वैज्ञानिकों का विश्वास है कि क्वांटम कम्प्यूटरों के लिए प्रोग्राम लिख जाने से ऐसा कम्प्यूटर तैयार करने में आसानी होगी जो काफी उपयोगी हो। इस विषय में फ्रांस की सबाटियर यूनीवर्सिटी के स्टेफनो बेट्टेली के एक शोधपत्र को यूरोपियन फिजिक्स जर्नल द्वारा स्वीकार कर लिया गया है। 
वर्तमान कम्प्यूटरों की गणना का आधार द्विआधारी अंक (binary digit) अथवा 'बिट' है, जिसका 0 अथवा 1 मूल्य हो सकता है। क्वांटम कम्प्यूटर में बिट्स का स्थान 'क्यूबिट्स' ले लेती हैं, जो अध्यारोपण (superimposition) की अवस्थाओं में होती हैं- आंशिक 0 और आंशिक 1। इसी अध्यारोपण की वजह से गणना का समान्तर में होना संभव होता है। एक क्यूबिट के मूल्य का मापन करने से अंतोगत्वा इसे दो द्विआधारी अंकों 0 अथवा 1 में ही परिवर्तित करना होगा। किसी भी सुसंगठित क्वांटम गणना में ऐसा होना आवश्यक नहीं होना चाहिए।

कम से कम यही सिद्धान्त है। लेकिन इसे व्यावहारिक रूप देना काफी कठिन है। डा. बेट्टïेल्ली और उनके सहयोगियों ने फिर भी इसे व्यावहारिक बनाने का प्रयास किया है। उनकी लैंग्वेज के मुख्य तत्व 'क्वांटम रजिस्टर्स' (Quantum Registers) और 'क्वांटम ऑपरेटर्स' (Quantum operators) हैं। क्वांटम रजिस्टर्स प्रोग्राम के लिए वह मार्ग हैं जिनसे वे किसी क्यूबिट विशेष से परस्पर क्रिया करते हैं। वह मशीन के अंदर क्यूबिट्स के स्थान के लिए 'प्वाइंटर्स' (Pointers) का कार्य करते हैं। इस तरह से उन क्यूबिट्स में प्रोग्राम के द्वारा फेरबदल किया जा सकता है।

यह फेरबदल 'क्वांटम ऑपरेटर्स' के द्वारा किया जाता है। ये लॉजिकल ऑपरेटर्स (Logical Operators) के समतुल्य होते हैं, जैसे कि ''एंड",''नॉट" और ''अथवा", जो कि परंपरागत् प्रोग्रामिंग का आधार हैं (जिसमें एक निर्देश कह सकता है कि ''जब A अथवा B और C सत्य नहीं हैं "D" करें) । क्वांटम ऑपरेटर्स यूनीटरी ट्राँसफॉर्मेशन" (unitary  transformation) पर निर्भर करते हैं। (नाम की उत्पत्ति बीजगणित के व्यूहों में दबा रहता है)। यहाँ पर यह आवश्यक है कि युक्तिपूर्ण तरीके से प्रोग्राम को रेखांकित करने वाले यूनीटरी ट्रांसफॉर्मेशंस की व्याख्या इस तरह की जाए कि वह कम्प्यूटर वैज्ञानिकों के लिए उपयोगी हो। डा. बेट्टïेल्ली ने ऑब्जेक्ट ओरिएण्टेड प्रोग्रामिंग का प्रयोग करते हुए इस कार्य में सफलता प्राप्त की है।

ऑब्जेक्ट ओरिएण्टेड प्रोग्रामिंग कमांड और डाटा दोनों को, इंडिविजुअल बंडल्स जिन्हें ऑब्जेक्ट कहते हैं, को संयुक्त करके कार्य करती है। ये ऑब्जेक्ट पारम्परिक और क्वांटम कम्प्यूटरों के बीच की दूरी को मिटाने में प्रयोग किए जा सकते हैं। ऐसी संभावना है कि कार्यशील क्वांटम कम्प्यूटर बड़े परम्परागत कम्प्यूटर का एक विशेष हिस्सा होगा, इसलिए किसी भी सफल लैंग्वेज़ को रजिस्टर्स और ऑपरेटर्स को इस तरह से संभालना होगा कि वे परम्परागत् संगणना के साथ एकीकृत की जा सके।

क्वांटम कम्प्यूटर
की ओर एक कदम अमेरिकी वैज्ञानिकों ने क्वांटम कम्प्यूटर को बनाने की दिशा में एक कदम बढ़ाया है। अभी तक वैज्ञानिकों ने अपना ध्यान उन मूलभूत तत्वों के विकास पर लगाया है जो क्वांटम बिट्स अथवा क्यूबिट्स कहलाने वाली सूचनाओं को स्टोर करने में सक्षम हों। विज्ञान पत्रिका 'नेचरÓ में प्रकाशित लेखों के अनुसार शोधकर्ताओं ने ऐसा तरीका ढूंढ लिया है जिससे यह क्यूबिट्स आपस में सम्प्रेषण (Communicate) कर सकें। उदाहरण के लिए एक कम्प्यूटर चिप के आरपार। अभी तक क्यूबिट्स केवल अपनी पड़ोसी क्यूबिट्स से ही संप्रेषण करने में सक्षम थे। लेकिन अब येल यूनीवर्सिटी के शोधकर्ताओं ने ऐसी तकनीक का विकास कर लिया है जिससे एक ही चिप में एक स्टेशनरी क्वांटम बिट से सूचना दूसरी स्टेशनरी क्वांटम बिट तक सम्प्रेषित की जा सकती है। इसके लिए माइक्रोवेब फोटॉन को माध्यम बनाया जाता है। यह तकनीक क्वांटम कम्प्यूटर बनाने की दिशा में प्रारम्भिक, किंतु एक महत्वपूर्ण कदम है। इसी तरह के प्रयास दुनिया के कई हिस्सों में किए जा रहे हैं।