Friday 30 November 2012

विश्व एड्स दिवस पर विशेष


क्या एड्स का इलाज संभव है?
शशांक द्विवेदी 
आज विश्व एड्स दिवस है। एड्स एक खतरनाक बीमारी है जो इंसान को जीते जी मार देती है। असुरक्षित यौन संबंधों, दोषपूर्ण रक्त बदलने या अन्य कारकों से होने वाला यह रोग आज अपने भयानक रुप में पहुंच चुका है। पिछले दिनों अमेरिका की राजधानी वाशिंगटन डीसी में संम्पन्न हुए 19वें  अंतरराष्ट्रीय एड्स सम्मेलन में बहस का मुख्य मुद्दा एड्स के इलाज पर केंद्रित था । क्योंकि यह एक ऐसी बीमारी मानी जाती है, जिससे संक्रमित होने के बाद मृत्यु सुनिश्चित है। एचआइवी एड्स के बारे में पहली बार 1981 में पता चला था, तबसे लगभग 3 करोड़ लोगों की इस बीमारी से मौत हो चुकी है। पिछले साल ही पूरी दुनिया में इससे लगभग 17 लाख लोगों की मौत हुई। हालांकि, यह आंकड़ा साल 2005 के 23 लाख की अपेक्षा कम है। ऐसी उम्मीद की जा रही है कि आने वाले समय में यह संख्या और भी कम हो सकती है। लेकिन, अभी संख्या कम होने से समाधान नहीं हो जाता। यही वजह है कि कुछ लोग एंटी रेट्रोवायरल (एआरवी) से आगे की बात कर रहे हैं। हालांकि, अभी तक एचआइवी एड्स की इलाज का कोई कारगर तरीका नहीं निकल सका है, जिससे यह बीमारी पूरी तरह ठीक हो।
फिलहाल, एड्स को रोकने के लिए एंटी रेट्रोवायरल का ही इस्तेमाल किया जाता है। इसे रेट्रो वायरस, मुख्यतौर पर एचआइवी के संक्रमण से बचाव के लिए विकसित किया गया है। जब इस तरह की कई दवाइयों को एक साथ मिला दिया जाता है, तो यह उस सक्रिय एंटी रेट्रोवायरस थेरेपी या एचएएआरटी कहलाता है। पहली बार अमेरिकी स्वास्थ्य संस्था ने एड्स के रोगियों को इस दवा के इस्तेमाल का सुझाव दिया था। एंटी रेट्रोवायरल दवाइयों के भी विभित्र प्रकार है, जो एचआइवी के विभित्र स्टेज के लिए इस्तेमाल होते हैं। अब अमेरिका वैज्ञानिकों का कहना है कि उन्होंने एड्स फैलाने वाले एचआइवी वायरस के संभावित इलाज की ओर पहला कदम उठाया है। एचआइवी वायरस कई सालों तक मरीज के शरीर में बिना कोई हरकत किये पड़ा रहता है जिससे इसका इलाज करने में मुश्किलें आती हैं। वैज्ञानिकों के मुताबिक, कैंसर के खिलाफ इस्तेमाल होने वाली दवा (वोरीनोस्टैट) के इस्तेमाल से इस सुस्त प.डे वायरस को बाहर निकाला जाता है। इन वैज्ञानिकों ने आठ मामलों में इस वायरस पर हमला कर उसे सामान्य एंटी-रेट्रोवायरल दवाओं से खत्म कर दिया। लेकिन वैज्ञानिकों की इस टीम का कहना है कि दुनिया में एचआइवी से ग्रस्त तीन करोड़ लोगों के इलाज के लिए कारगर दवा को विकसित करने के लिए कई सालों तक शोध करने की जरूरत पड़ सकती है।
एचआईवी यानी ह्यूमन इम्यूनोडिफीशिएंसी वायरस. मानव की रोग प्रतिरोधक शक्ति को कम करने वाला यह विषाणु एक रेट्रोवायरस है जो मानव की रोग प्रतिरोधक प्रणाली की कोशिकाओं (मुख्यतः सीडी 4 पॉजिटिव टी) को संक्रमित कर उनके काम करने की क्षमता को नष्ट या क्षतिग्रस्त कर देता है।
यह विषाणु मुख्यतः शरीर को बाहरी रोगों से सुरक्षा प्रदान करने वाले रक्त में मौजूद टी कोशिकाओं (सेल्स) व मस्तिष्क की कोशिकाओं को प्रभावित करता है और धीरे-धीरे उन्हें नष्ट करता रहता है. कुछ वर्षाे बाद (6 से 10 वर्ष) यह स्थिति हो जाती है कि शरीर आम रोगों के कीटाणुओं से अपना बचाव नहीं कर पाता और तरह-तरह के संक्रमण (इन्फेक्शन) से ग्रसित होने लगता है, इस अवस्था को एड्स कहते हैं।
एचआइवी वायरस को खत्म करने के शोध में जुटे शोधकर्ताओं का कहना है कि एचआइवी का इलाज दशकों से शोधकर्ताओं को परेशान करता रहा है । दरअसल, एचआइवी हमारे जींस में जुड़ जाता है और कैंसर कोशिका जैसी प्रतिरक्षा प्रणाली यानी इम्यून सिस्टम से छिपा रहता है और इसका इलाज नहीं हो पाता है। उसके बाद जब एचआइवी वायरस सक्रिय नहीं होता तो अब तक उपलब्ध कोई भी इलाज इसके खिलाफ काम नहीं कर पाता। लेकिन जब यह सक्रिय होता है तो इस पर नियंत्रण ही नहीं हो पाता है। यह पहला मौका है जब हम सुस्त प.डे एचआइवी वायरस पर ही नियंत्रण पाने की ओर कदम उठा पायेंगे, जिससे इलाज का रास्ता खुलेगा।
30 सालों की लंबी लड़ाई के बाद पिछले दिनों अमेरिका ने एड्स की इस दवा त्रुवदा को मंजूरी दी। यह दवा एड्स को पनपने नहीं देती। वैज्ञानिकों का कहना है कि इसके इस्तेमाल से एड्स से बचाव हर हाल में किया जा सकता है। यह दवा उन हालातों में कारगर है, जहां व्यक्ति को एड्स होने का खतरा रहता है। सबसे बड़ी बात कि यह एड्स के लिए बनी पहली ऐसी दवा है जो उन लोगों को भी दी जा सकती है जो एड्स जैसी जानलेवा बीमारी से बचाव चाहते हैं, यानी जिन्हें एड्स नहीं है।
एड्स हो जाने के बाद इससे छुटकारा पाने की दुनिया में अभी कोई दवा नहीं बन पायी है। अभी तक जो भी दवाएं बनी हैं, वे सिर्फ बीमारी की रफ्तार कम करती हैं, उसे खत्म नहीं करतीं एचआइवी के लक्षणों का इलाज तो हो सकता है, लेकिन इस इलाज से भी यह बीमारी पूरी तरह खत्म नहीं होती है। एजेडटी, एजीकोथाइमीडीन, जाइडोव्यूजडीन, ड्राइडानोसीन स्टाव्यूडीन जैसी कुछ दवाइयां हैं, जो इसके प्रभाव के रफ्तार को कम करती हैं। लेकिन, ये इतनी महंगी हैं कि आम आदमी की पहुंच से बाहर हैं। अगर हम सिर्फ एजेडटी दवा की ही बात करें तो यदि एचआइवी से संक्रमित व्यक्ति इसका एक साल तक सेवन करता है, तो उसे साल भर के कोर्स के लिए एक से डेढ. लाखरुपये तक देना होगा। इन दवाओं के अलावा न्यूमोसिस्टीस कारनाई, साइटोमेगालो वायरस माइकोबैक्टीरियम, टोसोप्लाज्मा दवा उपलब्ध है। अब इम्यूनोमोडुलेटर प्रक्रिया का भी इस्तेमाल किया जाने लगा है। साथ ही, चिकित्सा वैज्ञानिक एड्स के वैक्सीन को विकसित करने पर काम कर रहे हैं। हालांकि, यह अभी प्रयोग के दौर से गुजर रहा है और इसे बाजार में आने में कई वर्ष लग जाएंगे। यह वैक्सीन भी इतना सस्ता नहीं होगा कि यह सभी के पहुंच में हो।
पूरी दुनिया में सभी स्थानीय सरकारें एचआईवी एड्स से बचे रहने के बारे में जागरूकता अभियान छेड़े हुए हैं। सभी सरकारें, स्वयंसेवी संस्थाए, सामाजिक कार्यकर्ता और स्वयंसेवक आम लोगों को यह बताने में अपनी पूरी ताकत लगा रहे हैं कि यह बीमारी छुआछूत से नहीं फैलती और इससे पीड़ितों के साथ सद्भावना से पेश आना चाहिए। लेकिन इसके ठीक उलट लोग एड्स से पीड़ित व्यक्ति को घृणा से देखते हैं और उससे दूरी बना लेते हैं। एचआईवी से संक्रमित व्यक्ति का राज खुलने पर उसके माथे पर कलंक का टीका लग जाता है। यह कलंक इस बीमारी से भी बड़ा होता है और पीड़ित को घोर निराशा का जीवन जीते हुए अपने मूलभूत अधिकारों और मौत के अंतिम क्षण तक एक अच्छी जिंदगी जीने से वंचित होना पड़ता है। बीमारी से दूरी, बीमार से नहीं दि कोलीशन फॉर इलिमिनेसन ऑफ एड्स रिलेटेड स्टिग्मा (सीईएएस) का कहना है कि अब वक्त आ गया है कि हम सभी एचआईवी एड्स को कलंक के रूप में प्रचारित करने की अपनी सोच और आचरण में बदलाव लाने के लिए चर्चा सत्र शुरू करें। हमें एचआईवी एड्स से जुडी हर चर्चा, प्रतिबंधात्मक उपाय और शोध का कार्य करते रहने के दौरान इससे जुड़े कलंक को खत्म करने के मुद्दे को भी शामिल करना चाहिए।

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