Tuesday 9 October 2012

क्या दूसरे ग्रहों से पृथ्वी पर आया जीवन


मुकुल व्यास

पृथ्वी पर जीवन का बीजारोपण संभवत: दूसरे ग्रहों के जीवाणुओं ने किया था। ये जीवाणु सुदूर ग्रहों से टूट कर निकली शिलाओं में मौजूद थे, जो अंतरिक्ष में भ्रमण करती हुई पृथ्वी से टकराई थीं। यह अनुमान अमेरिकी और स्पेनी वैज्ञानिकों ने अपने नए शोध के आधार पर लगाया है। इनका कहना है कि इस बात की संभावना बहुत ज्यादा है कि सौरमंडल के शैशवकाल में जीवन अंतरिक्ष से पृथ्वी पर आया या पृथ्वी से दूसरी जगह फैला। वह ऐसा समय था, जब पृथ्वी और उसके सहयोगी ग्रह दूसरे तारों का चक्कर लगाते हुए एक दूसरे के बहुत नजदीक आ गए थे। समीप आने पर उनके बीच ठोस पदार्थ का आदान-प्रदान हुआ था।

खगोलीय जीवविज्ञान की चर्चित पत्रिका, 'एस्ट्रोबायोलॉजी' में प्रकाशित नई रिसर्च में अमेरिका के प्रिंस्टन और एराइजोना विश्वविद्यालय और स्पेन के खगोल-जीव विज्ञान केंद्र के रिसर्चरों ने 'लिथोपैनस्पर्मिया' सिद्धांत के पक्ष में प्रमाण जुटाए हैं। इस सिद्धांत के मुताबिक मूलभूत जीव-रूप पूरे ब्रह्मांड में फैले हुए हैं। उल्कापिंडों जैसे ग्रहों के टुकड़े इन जीव-रूपों को अंतरिक्ष के दूसरे ठिकानों पर ले जाते हैं। ज्वालामुखीय विस्फोटों या ग्रहों के बीच टक्कर होने से ये शिलाखंड निकलते हैं। जब ये शिलाखंड दूसरे ग्रह मंडलों के गुरुत्वाकर्षण की गिरफ्त में आते हैं तो उनकी जैविक सामग्री का भी हस्तांतरण हो जाता है। रिसर्चरों ने इस अवधारणा को सही ठहराने के लिए ग्रहों और ग्रह-पिंडों के बीच निम्न गति के आदान-प्रदान अथवा कमजोर हस्तांतरण प्रक्रिया के मॉडल का इस्तेमाल किया। इस प्रक्रिया के तहत धीरे-धीरे आगे बढ़ने वाले ग्रह-पिंड या शिलाखंड ग्रह मंडल के बाहरी छोर पर पहुंच जाते हैं, जहां गुरुत्वाकर्षण कमजोर होता है। कमजोर गुरुत्वाकर्षण की वजह से उस पिंड पर ग्रह मंडल की पकड़ ढीली हो जाती है और वह धीरे से उसके दायरे से बाहर निकल कर अंतरिक्ष में विचरने लगता है। बाद में दूसरे ग्रह मंडल इस घुमंतू शिलाखंड को लपक लेते हैं।

'लिथोपैनस्पर्मिया' सिद्धांत को परखने के लिए पहले भी अध्ययन किया जा चुका है। पिछले रिसर्च में यह निष्कर्ष निकला था कि ग्रह-पिंड जिस तेज रफ्तार से अंतरिक्ष में विचरण करते हैं, उसे देखते हुए उनके दूसरे ग्रहों द्वारा लपके जाने की संभावना बहुत कम होती है। इस तरह इस सिद्धांत को बहुत समर्थन नहीं मिल पाया, लेकिन रिसर्चरों ने इस बार खगोलीय पिंडों के बीच कमजोर आदान-प्रदान को आधार मानकर 'लिथोपैनस्पर्मिया' पर पुनविर्चार किया।
रिसर्चरों ने कंप्यूटर मॉडल के जरिए पता लगाया है कि हमारे सौर मंडल और उसके पड़ोसी नक्षत्र मंडल से छिटक कर बाहर जाने वाली 10,000 शिलाओं में से 5 से 12 शिलाएं दूसरे ग्रह मंडल द्वारा लपकी गई होंगी। रिसर्चरों के मुताबिक एक करोड़ से 9 करोड़ वर्ष की अवधि के दौरान 10 किलो से अधिक वजन की खरबों शिलाओं का हस्तांतरण हुआ होगा। पृथ्वी पर पहुंचने वाले जीवाणुओं को पृथ्वी पर पानी की मौजूदगी में स्थितियां जीवन के अनुकूल लगी होंगी। शोधकर्ताओं का कहना है कि ब्रह्मांडीय विकिरण की उच्च मात्रा के बावजूद ये जीवाणु सुप्तावस्था में अंतरिक्ष की लंबी यात्रा झेलने में सफल रहे होंगे। 'लिथोपैनस्पर्मिया' सिद्धांत यदि सही है तो इसका मतलब यह हुआ कि हमारे ब्रह्मांड में पृथ्वी जैसे जीवन की भरमार है।

अंतरिक्ष से पृथ्वी पर जीवन के आगमन का विचार काफी समय से चल रहा है। प्रसिद्ध ब्रिटिश खगोल वैज्ञानिक सर फेड होयल और उनके शिष्य चंद्र विक्रमसिंघे के 'पैनस्पर्मिया' सिद्धांत को मानें तो उल्कापिंडों, क्षुद्रग्रहों और लघु खगोलीय पिंडों ने अंतरिक्ष में जीवन का वितरण किया है। इसके पक्ष में अभी कोई प्रमाण नहीं मिला है, लेकिन अंतरिक्ष में कई ठिकानों में जीवन निर्माण सामग्री की मौजूदगी के पर्याप्त सबूत वैज्ञानिकों द्वारा जुटाए जा चुके हैं, जो बताते हैं कि पृथ्वी पर जीवन की उत्पत्ति का संबंध कहीं न कहीं अंतरिक्ष से है। कुछ समय पहले नासा के वैज्ञानिकों ने पता लगाया था कि अनेक क्षुद्रग्रह ऐसे एमिनो ऐसिड बनाने में सक्षम थे, जिनका इस्तेमाल पृथ्वी पर जीवन द्वारा किया जाता है। इससे इस विचार को बल मिला है कि उल्का पिंडों और क्षुद्रग्रहों ने पृथ्वी पर जीवन की उत्पत्ति के समय एमिनो ऐसिड के लिए प्राथमिकता तय करने में महत्वपूर्ण भूमिका अदा की होगी।

एमिनो ऐसिड का इस्तेमाल प्रोटीन निर्माण के लिए किया जाता है। एमिनो ऐसिड दो रूपों में पाए जाते हैं। ये दोनों रूप हमारे दोनों हाथों की तरह एक दूसरे की दर्पण-छवि (मिरर इमेज) होते हैं। पृथ्वी पर जीवन सिर्फ बाएं-हत्थे एमिनो ऐसिड का प्रयोग करता है। वैज्ञानिक यह पता लगाने में जुटे हैं कि पृथ्वी-आधारित जीवन बाएं-हत्थे एमिनो ऐसिड को ही तरजीह क्यों देता है, जबकि दाएं-हत्थे एमिनो ऐसिड के आधार पर भी जीवन चल सकता है।

नासा के गोडार्ड स्पेस फ्लाइट सेंटर के रिसर्चरों ने मार्च 2009 में कुछ उल्कापिंडों के नमूनों से आइसोवेलीन एमिनो ऐसिड के बाएं-हत्थे रूप के बहुतायत में मौजूद होने की जानकारी दी थी। ये उल्का पिंड कार्बन-प्रधान क्षुद्रग्रह से आए थे। इससे पता चला कि बाएं-हत्थे जीवन की बुनियाद अंतरिक्ष में पड़ी थी, जहां क्षुद्रग्रहों में परिस्थितियां बाएं-हत्थे एमिनो ऐसिड के निर्माण के लिए अनुकूल थीं। पृथ्वी से टकराने वाले उल्कापिंडों ने बाएं-हत्था मॉलिक्युल्स अथवा अणु-समूहों से संपन्न पदार्थ को धरती पर पहुंचाया होगा। पृथ्वी पर नवोदित जीवन में इस पदार्थ के इस्तेमाल के साथ बाएं-हत्थेपन के प्रति एक कुदरती पूर्वाग्रह का जन्म हुआ, जिसने बाद में स्थायी रूप ले लिया।

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