Tuesday 4 September 2012

चीन में उच्च शिक्षा की समस्याएं

अनिल आजाद पांडेय
टेक ग्रेजुएट्स का टोटा चीन के युवा यहां के एजुकेशन सिस्टम से नाखुश हैं और वे अक्सर पश्चिमी देशों से अपनी तुलना करते हैं। युवाओं की शिकायत में सच्चाई भी है। अगर व्यावसायिक शिक्षा की बात करें तो चीन में तकनीशियनों की कमी महसूस की जा रही है। जिस तेजी से चीन विकास कर रहा है, उसके साथ शैक्षिक जगत तालमेल नहीं बिठा पा रहा है। विशेषज्ञों का कहना है कि चीन को बड़ी संख्या में पास होकर आ रहे ग्रेजुएट्स के बजाय तकनीकी ज्ञान रखने वाले युवाओं की जरूरत है। वैसे, पिछले कुछ वर्र्षो से चीन में उच्च शिक्षा पर विशेष फोकस रखा गया है, जिसके चलते ग्रेजुएट्स की संख्या में काफी इजाफा हुआ है। ऐसे में अधिकतर छात्र कॉलेज जाना चाहते हैं, पर वे वोकेशनल स्कूलों की तरफ आकर्षित नहीं होते। चीन में कई विश्वविद्यालय सैद्धांतिक ज्ञान पर जोर देते हैं, लेकिन छात्रों को उपयोगी कौशल सिखाने के लिए कुछ खास नहीं किया जा रहा। ऐसे में ये छात्र भी तकनीकी क्षेत्र में नौकरी के बजाय व्हाइट कॉलर जॉब करने की ख्वाहिश रखते हैं और ब्लू कॉलर जॉब के बारे में सोचते तक नहीं। हाल ही में मध्य चीन के हनान प्रांत की राजधानी चंगचो में आयोजित एक जॉब फेयर में 70 हजार यूनिवर्सिटी ग्रेजुएट्स में से 15 हजार ही नौकरी हासिल कर पाए, जबकि सीटें 90 हजार थीं। कई छात्रों ने तकनीकी क्षेत्र से जुड़ी अच्छे वेतन वाली नौकरी करने में भी रुचि नहीं दिखाई, उनका ध्यान कम वेतन वाले व्हाइट कॉलर जॉब्स पर था। तकनीकी क्षेत्र में शुरुआती मासिक वेतन 25 हजार रुपये है, जबकि विश्वविद्यालयों से ग्रेजुएट छात्रों का लगभग 15 हजार रुपये। बता दें कि चीन में युवाओं के लिए उनकी योग्यता के हिसाब से नौकरी हासिल करना मुश्किल होता जा रहा है। इस साल विश्वविद्यालयों से और 2 लाख छात्र ग्रेजुएट हो जाएंगे। यह कहना गलत नहीं होगा कि ऐसे में वे अमेरिका, ऑस्ट्रेलिया, कनाडा वगैरह जाने की कोशिश करते हैं। कारण कि चीन की तुलना में उन्हें दूसरे देशों की राह आसान नजर आती है। वोकेशनल स्किल डवलपमेंट के निदेशक ताउ ह्वेइ कहते हैं कि एजुकेशन सिस्टम को अर्थव्यवस्था के विकास के साथ श्रम बाजार की मांग से मेल खाना चाहिए। वहीं, दूसरे अधिकारियों के मुताबिक वर्तमान शिक्षा तंत्र से श्रम संसाधनों की बर्बादी हो रही है। ऐसे में युवाओं को तकनीकी क्षेत्र की ओर आकर्षित करने के लिए विशेष जोर देना होगा। इसके लिए अधिक अनुकूल नीतियां तैयार करने के अलावा छात्रों को प्रोत्साहित करने की जरूरत है, ताकि वे तकनीकी काम को अपने करियर के तौर पर अपना सकें। वैसे सरकार इस बाबत चिंतित है और उसने वोकेशनल स्कूलों के विकास पर ध्यान देने के लिए अधिक वित्तीय मदद करने का ऐलान किया है। शिक्षा मंत्रालय ने 2015 तक मॉडर्न वोकेशनल एजुकेशन सिस्टम स्थापित करने का लक्ष्य निर्धारित किया है। करोड़ों का पेट केयर उद्योग चीन में लोगों की आर्थिक स्थिति मजबूत होने के अनुपात में ही पेट्स का चलन भी बढ़ रहा है। आप सुबह-शाम पाक या सड़क पर घूमने निकल जाइए, ये पशु प्रेमी महंगे और विदेशी नस्ल के कुत्तों को टहलाते हुए दिख जाते हैं। डॉग लवर्स की संख्या में लगातार इजाफा हो रहा है, वे न केवल इनके साथ समय बिताते हैं, बल्कि उनकी सेहत का भी खास खयाल रखते हैं। अब तो पेट केयर ने उद्योग का रूप ले लिया है। इस साल के अंत तक चीन का पेट केयर बाजार 1.2 अरब डॉलर तक पहुंचने का अनुमान है। अनुमान है कि 2017 तक इस उद्योग में 64 फीसद तक की बढ़ोतरी होगी। बीजिंग में एक पशु अस्पताल के निदेशक कहते हैं कि चीन में तमाम घरों में पेट्स परिवार के सदस्य की तरह रहते हैं। वर्ष 2000 के बाद चीन में पेट्स रखने वालों की संख्या 35 प्रतिशत बढ़ी है, जबकि 2007 के बाद इसमें 46 फीसद का उछाल आया है। एक कंपनी के मुताबिक अभी चीन के 3.3 करोड़ घरों में एक पेट जरूर है। अमीर परिवार इन पर खर्च भी काफी करते हैं। मिसाल के तौर पर दक्षिण चीन के शंचन शहर में एक कारोबारी चाव चंग हर महीने 20 हजार रुपये से ज्यादा अपने एक घोड़े की केयर पर खर्च करते हैं। इसके अलावा लगभग 5000 रुपये उसके विशेष भोजन के लिए भी तय हैं। घोड़े की देखभाल के लिए रखे व्यक्ति को 14 हजार रुपये माहवार मिलता है। हालांकि उन्होंने दो बिल्लियां भी पाली हुई हैं और उन पर भी हर महीने करीब 40 हजार रुपये का खर्च आता है। दूसरे अमीर भी ऐसा कर रहे हैं। (लेखक चाइना रेडियो, बीजिंग से जुड़े हैं)

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