भारत के मंगल अभियान पर विशेष
सौवां मिशन पूरा करने के बाद भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन (इसरो) ने अगले वर्ष नवंबर में मंगल मिशन, मंगलयान छोड़ने की तैयारी शुरू कर दी है। यह मिशन पूरी तरह से स्वदेशी होगा। इस परियोजना पर करीब 450 करोड़ रुपए खर्च होंगे। यान के साथ 24 किलो का पेलोड भेजा जाएगा। इनमें कैमरे और सेंसर जैसे उपकरण शामिल हैं, जो मंगल के वायुमंडल और उसकी दूसरी विशिष्टताओं का अध्ययन करेंगे। मंगलयान को लाल ग्रह के निकट पहुंचने में आठ महीने लगेंगे। मंगल की कक्षा में स्थापित होने के बाद यान मंगल के बारे में महत्वपूर्ण जानकारियां हमें भेजेगा। मंगलयान का मुख्य फोकस संभावित जीवन, ग्रह की उत्पत्ति, भौगोलिक संरचनाओं और जलवायु आदि पर रहेगा। यान यह पता लगाने की भी कोशिश करेगा कि क्या लाल ग्रह के मौजूदा वातावरण में जीवन पनप सकता है। मंगल की परिक्रमा करते हुए ग्रह से उसकी न्यूनतम दूरी 500 किलोमीटर और अधिकतम दूरी 80000 किलोमीटर रहेगी। यदि किसी कारणवश इस यान को अगले साल नवंबर में रवाना नहीं किया जा सका तो हमें मंगलयान की यात्रा के लिए अनुकूल दूरी का इंतजार करना पड़ेगा। दूसरा अवसर 2016 में ही मिल पाएगा। भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान केंद्र (इसरो) के पूर्व अध्यक्ष प्रो. यू. आर. राव मंगलयान परियोजना के साथ सक्रिय रूप से जुड़े हैं।ं उनके नेतृत्व में गठित समिति ने मंगलयान द्वारा किए जाने वाले प्रयोगों का चयन किया है। प्रो. राव के अनुसार उनकी टीम ने मंगल के लिए कुछ नायाब किस्म के प्रयोग चुने हैं। एक प्रयोग के जरिए मंगलयान लाल ग्रह के मीथेन रहस्य को सुलझाने की कोशिश करेगा। मंगल के वायुमंडल में मीथेन गैस की मौजूदगी के संकेत मिले हैं। मंगलयान पता लगाने की कोशिश करेगा कि मंगल पर मीथेन उत्सर्जन का श्चोत क्या है। मंगल आज भले ही एक निष्प्राण लाल रेगिस्तान जैसा नजर आता हो, उसके बारे में कई सवाल आज भी अनुत्तरित हैं। हमारे सौरमंडल में अभी सिर्फ पृथ्वी पर जीवन है। शुक्र ग्रह पृथ्वी के बहुत नजदीक हैं, लेकिन वहां की परिस्थितियां जीवन के लिए एकदम प्रतिकूल हैं। मंगल भी पृथ्वी के बेहद करीब है, लेकिन उसका वायुमंडल बहुत पतला है, जिसमें ऑक्सीजन की मात्रा बहुत कम है। वहां कुछ चुंबकीय पदार्थ भी मौजूद हैं, लेकिन ग्रह का चुंबकीय क्षेत्र नहीं है। मंगaयान-2 की तैयारी कर रहे हैं। इस यान को 2014 में छोड़ने की योजना है। इस मिशन में एक परिक्रमा करने वाले आर्बिटर के अलावा एक रोबोटिक लैंडर और एक रोवर को शामिल किया जाएगा। लैंडर और रोवर चंद्रमा की सतह पर उतरने के बाद दक्षिणी ध्रुव के आसपास पानी और अन्य पदार्थो की खोजबीन करेंगे। रोवर अपनी एक रोबोटिक भुजा और दो उपकरणों के जरिए चंद्रमा की सतह की रासायनिक संरचना की जांच करेगी। यह चंद्र गाड़ी लैंडर के उतरने की जगह से एक किलोमीटर के दायरे में सतह पर भ्रमण करेगी। आर्बिटर और रोवर का निर्माण इसरो द्वारा किया जा रहा है, जबकि लैंडर का विकास रूस में हो रहा है। चंद्रयान-2 प्रोजेक्ट पर भारत को रूस के फैसले का इंतजार है। रूस ने चीन के साथ अपने संयुक्त अंतर-ग्रहीय मिशन के विफल होने के बाद ऐसे मिशनों की समीक्षा करने का फैसला किया है। इससे चंद्रयान-2 को भेजने में देरी हो सकती है।
bharat ka outer space me ye kadam meel ka patthar saabit hoga.......waise to mars ki orbit me module bhejne wala pahla desh america h lekin bharat bhi apni swadeshi technology k dum par orbiter bhejne wala h..........lagbhag 8 crore km ki duri tay karke mars tak pahunchege...........chandrayaan-1 ki safalta k baad sabki nigaahein ab is mission par tiki hui hai..
ReplyDelete