हिन्दी दिवस पर विशेष
पीयूष पांडे
आज की दुनिया में इंटरनेट का दखल किस तरह से बढ.
गया है, यह बात किसी से छिपी नहीं है.
अक्सर यह कहा जाता है कि वर्तमान दुनिया सूचना महामार्ग पर स्थित है. लेकिन इस
सूचना महामार्ग पर हिंदी के निशां अभी इतने गहरे नहीं हुए हैं कि उसके सहारे इस
पूरी दुनिया को नापा जा सके. हालांकि, बीतते वक्त के साथ
इंटरनेट की दुनिया से हिंदी की दोस्ती लगातार बढ.ती जा रही है, लेकिन अभी भी यह अंगरेजी तो क्या, चीनी भाषा के
मुकाबले भी इंटरनेट पर अपनी मजबूत स्थिति दर्ज करा पाने में नाकाम रही है. इंटरनेट
की दुनिया में हिंदी के हाल की पड़ताल करता यह आलेख..
इंटरनेट की दुनिया में हिंदी के विकास की बड़ी
कहानी की शुरुआत बीते साल हो गयी थी, जब इंटरनेट पर डोमेन नाम देने के लिए जिम्मेदार अंतरराष्ट्रीय संस्था
इंटरनेट कॉरपोरेशन फॉर असाइंड नेम्स एंड नंबर यानी आइसीएएनएन ने भारत सरकार की सात
क्षेत्रीय भाषाओं में वेब पते लिखे जाने से जु.डे आवेदन को मंजूरी दे थी. इसी साल
जून में आइसीएएनएन ने उच्च स्तरीय डोमेन नामों के लिए हुए आवेदनों की सूची जारी की
तो इसमें देवनागरी लिपि के तीन नाम भी शामिल थे. यूं दुनिया की अलग-अलग भाषाओं में
कुल 1930 आवेदन हुए, लेकिन देवनागरी
में सिर्फ तीन आवेदनों का होना हैरान करता है, लेकिन यह नयी
शुरुआत है. इस शुरुआत को वेब पतों पर अंगरेजी के प्रभुत्व खत्म होने की शुरुआत भी
कहा जा सकता है. उम्मीद जतायी जा रही कि 2013 के शुरुआती
महीनों में इंटरनेट पर देवनागरी में वेब पते लिखने की शुरुआत हो जायेगी. यह अपने
आप में एक ब.डे बदलाव की ओर उठाया गया पहला कदम होगा. और मानें न मानें यह इंटरनेट
की दुनिया में ब.डे बदलाव को जन्म देगा.
भारत में फिलहाल आठ करोड़ लोग इंटरनेट का इस्तेमाल करते हैं. दूरसंचार मंत्रालय की मानें तो 2015 तक यह आंकड़ा बढ.कर करीब 25 करोड़ तक पहुंच जायेगा. अब इंटरनेट का दायरा महानगरों और छोटे शहरों से निकलकर गांव-कस्बों तक पहुंच रहा है. सरकार की महात्वाकांक्षी ब्रॉडबैंड परियोजना अपने लक्ष्य में सफल रही तो इंटरनेट का विस्तार देखने लायक हो सकता है. दूसरी तरफ एक आंकड़ा यह भी है कि भारत की लगभग नब्बे फीसदी आबादी को अंगरेजी नहीं आती. यानी देश की बड़ी आबादी इंटरनेट से तभी जु.डेगी जब वह अपनी भाषा में इंटरनेट का इस्तेमाल कर सके.
अभी तक देश में इंटरनेट से दूरी की वजह सीमित पहुंच और बुनियादी सुविधाओं के साथ अंगरेजी ज्ञान की आवश्यकता भी रही है. इंटरनेट का मतलब अधिकांश लोगों के लिए आज भी ‘वेब सर्फिंग और ई-मेल चेकिंग’ से अधिक नहीं है. लेकिन, नेट से परिचय की इस शुरुआत के मूल में ही अंगरेजी जानने की दरकार होती है. देवनागरी में वेब पते स्थिति को बदल सकते हैं, क्योंकि इंटरनेट की दुनिया में प्रवेश इंटरनेट पतों से ही होता है.
हिंदी में वेबसाइट्स और ब्लॉग ने इंटरनेट की दुनिया में अपना परचम लहराया है और आज एक लाख से ज्यादा ब्लॉग हिंदी भाषा में हैं. यह अलग बात है कि सक्रिय ब्लॉग की संख्या कम है, लेकिन हिंदी भाषा में नियमित रूप से ब्लॉग और वेबसाइट्स का बनना हिंदी के विस्तार की कहानी कहता है. निश्चित तौर पर इस मोरचे पर काफी काम किये जाने की जरूरत है. सवाल हिंदी में सॉफ्टवेयर और कंप्यूटर पर हिंदी के सहारे काम करने की सुगमता को लेकर है. यूनीकोड ने कंप्यूटर पर हिंदी के लिए शानदार काम किया है. बेशक, इसके आने के बाद हिंदी और कंप्यूटर की दोस्ती मजबूत हुई है. लेकिन, कई तरह के की-बोर्ड को लेकर अभी भी भ्रम की स्थिति कायम है. आज भी हिंदी में एक सर्वमान्य की-बोर्ड नहीं है. की-बोर्ड में एकरूपता का न होना भी बड़ी समस्या है. इस चुनौती को साध लिया जाये, तो यह बड़ी छलांग होगी. कंप्यूटर में कमांड भी अभी तक हिंदी में नहीं दी जा सकतीं. हिंदी में खास ब्राउजर नहीं हैं. ‘इपिक’ नाम का एक ब्राउजर चंद दिनों पहले आया भी था, लेकिन उसे भारत में ही लोकप्रियता नहीं मिल पायी. इन चुनौतियों से निपटा जा सके तो अंगरेजी न जानने वाले व्यक्ति के लिए भी कंप्यूटर पर काम करना आसान हो जायेगा.
ब्लॉगर और लेखक अविनाश वाचस्पति हिंदी को अंगरेजी के हौवे से आजाद कराने की बात करते हैं. अविनाश कहते हैं, सोशल मीडिया हिंदी को लेकर जागरूकता फैलाने और हिंदी प्रेमियों के लिए एक मंच के तौर पर काम कर सकता है. लेकिन, देश का बड़ा ग्रामीण इलाका अभी इस रोशनी से दूर है. ग्रामीण इलाकों में बिजली की अनुपलब्धता भी सुरसा की तरह मुंह बाये खड़ी है. लेकिन, सवाल इस समस्या का हल निकालने का है, जिसमें अभी तक हमारी सरकारें नाकाम रही हैं.
इंटरनेट की गति को लेकर भी भारत अभी काफी पिछड़ा हुआ है. गूगल का एक जीबी प्रति सेकेंड के हिसाब से इंटरनेट सेवाएं मुहैया कराने का काम शुरू हो चुका है. कोरिया में इंटरनेट की गति सात एमबी प्रति सेकेंड है, वहीं भारत में औसत स्पीड अभी भी एक एमबी प्रति सेकेंड के आसपास ही बनी हुई है. सोशल मीडिया एक उम्मीद तो जगाता है, लेकिन यहां भी हिंदी में न तो कायदे के एप्लीकेशन हैं और न ही इनबिल्ट हिंदी की-बोर्ड़ जानकारी का अभाव भी एक बड़ी वजह है, जिसके चलते सोशल मीडिया की क्षमता का पूरा दोहन नहीं हो पा रहा है.
कुछ समय पहले ऑस्ट्रेलियाई सरकार की ओर से कहा गया था कि भारत भेजे जाने वाले राजनयिकों के लिए हिंदी जानना जरूरी नहीं है. उनका ऐसा कहने के पीछे तर्क यह था कि भारत में सारा काम अंगरेजी में हो जाता है. हालांकि चीन, जापान, इंडोनेशिया, ईरान आदि देशों में जाने वाले राजनयिकों के लिए वहां की भाषा आना जरूरी बताया गया था. यह वाकया वैश्विक स्तर पर हिंदी के प्रति हमारे स्वयं के बतर्ताव की बानगी भर है. हम खुद हिंदी के प्रति कितने गंभीर है और दुनिया हमें किस नजरिए से देखती है यह बात उसकी नुमाइंदगी ही करती है.
सवाल हमारे अपने बर्ताव को लेकर भी है. भारत सूचना क्रांति का अगुवा देश है. हमारे देश में सॉफ्टवेयर क्षेत्र की अग्रणी कंपनियां और जानकार हैं, लेकिन हिंदी को लेकर उनकी बेरुखी भी साफ नजर आती है. बेशक, हिंदी इंटरनेट की दुनिया में अपनी जगह मजबूत करती जा रही है, लेकिन अभी यहां भी उसे अभी लंबा रास्ता तय करना है. इंटरनेट के शुरुआती वक्त से ही इस पर अंगरेजी का दबदबा था. एक आंक.डे के अनुसार उस समय नेट पर अंग्रेजी 95 फीसदी से भी अधिक थी, चीनी कहीं नहीं. लेकिन, अब इंटरनेट पर चीनी भाषा का तेजी से विस्तार हो रहा है.
अभिव्यक्ति पर अंकुश के तमाम आरोपों के बीच इंटरनेट की दुनिया में चीनी भाषा अपनी गहरी पैठ बनाती जा रही है. चीन का सबसे बड़ा सर्च इंजन बायडू उनकी अपनी भाषा में है. वहां की टॉप तीन सोशल नेटवर्किं ग साइट चीनी भाषा में हैं. अंतरजाल की इस दुनिया में चीनी भाषा की मौजूदगी पैंतीस फीसदी से भी ऊपर जा पहुंची है (विश्व की आबादी में चीनी भाषी आबादी का अनुपात करीब बाईस फीसदी है).
भारत सरकार की ओर से इस दिशा में प्रयास होने चाहिए. इस संबंध में सक्रिय होना होगा. हिंदी में बात करने और काम करने को हेय दृष्टि से देखा जाता है, क्योंकि इसका आर्थिक पहलू बहुत कमजोर है. इस संबंध में भी खामियों को पहचान कर भी दूर किए जाने की जरूरत है. मोबाइल फोन पर भी इंटरनेट इस्तेमाल करने वालों की तादाद बढ.ती जा रही है, लेकिन यहां भी हिंदी कम ही नजर आती है. कुछ अपवादों को छोड़ दें तो अधिकतर अंतरराष्ट्रीय मोबाइल फोन निर्माता फोन को हिंदी में काम करने लायक बनाने को लेकर गंभीर नजर नहीं आते. इन मोबाइल फोनों में अंगरेजी के अलावा पुर्तगाली, रूसी और चीनी जैसी कई भाषाएं पहले से ही लोड होती हैं, लेकिन हिंदी यहां भी नजर नहीं आती. पाणिनी एक एप्लीकेशन है, जिसके जरिए एंड्रॉयड व अन्य कुछ मोबाइल फोन पर हिंदी की-बोर्ड इस्तेमाल किया जा सकता है. लेकिन, इसकी भी कुछ व्यवहारिक दिक्कतें हैं. वहीं दूसरी ओर जागरूकता का अभाव भी बड़ी वजह है कि मोबाइल फोन पर हिंदी नजर नहीं आती. न तो मोबाइल पर हिंदी में एप्लीकेशन हैं और न ही लोगों में हिंदी को लेकर उत्सुकता. कंपनियां तब तक ऐसा नहीं करेंगी, जब तक उन्हें इसमें बाजार नजर नहीं आएगा. हालांकि, निराश होने की जरूरत नहीं है. जानकारों का आकलन है कि करीब 70 फीसदी आबादी अपनी मातृभाषा में कंटेट पढ.ना चाहती है और ऐसे में हिंदी इंटरनेट पर तरक्की के नये आयाम छू सकती है. लेकिन, समस्या हिंदी में बेहतरीन कटेंट की कमी को लेकर भी है. आज भी इंटरनेट पर हिंदी में उच्च स्तरीय कटेंट अंगरेजी के मुकाबले बेहद कम है और इस दिशा में और काम किये जाने की जरूरत है.
हिंदी प्रेमी सेलेब्रिटी इंटरनेट पर हिंदी की स्थिति बेहतर बनाने में बड़ा योगदान दे सकते हैं. दिक्कत यही है कि अभी तक ऐसा दिखा नहीं है. अमिताभ बच्चन, प्रियंका चोपड़ा और शाहरुख खान जैसे सेलेब्रिटी के माइक्रोब्लॉगिंग साइट ट्विटर पर लाखों फॉलोअर्स हैं और उनका एक संदेश बार-बार री-ट्वीट होते हुए करोड़ों लोगों तक पहुंचता है. हिंदी सिनेमा के इन दिग्गजों का हिंदी के प्रचार-प्रसार में बड़ी भूमिका हो सकती है, लेकिन अभी तक इनकी तरफ से कोई ऐसी पहल नहीं दिखी.
भारत में फिलहाल आठ करोड़ लोग इंटरनेट का इस्तेमाल करते हैं. दूरसंचार मंत्रालय की मानें तो 2015 तक यह आंकड़ा बढ.कर करीब 25 करोड़ तक पहुंच जायेगा. अब इंटरनेट का दायरा महानगरों और छोटे शहरों से निकलकर गांव-कस्बों तक पहुंच रहा है. सरकार की महात्वाकांक्षी ब्रॉडबैंड परियोजना अपने लक्ष्य में सफल रही तो इंटरनेट का विस्तार देखने लायक हो सकता है. दूसरी तरफ एक आंकड़ा यह भी है कि भारत की लगभग नब्बे फीसदी आबादी को अंगरेजी नहीं आती. यानी देश की बड़ी आबादी इंटरनेट से तभी जु.डेगी जब वह अपनी भाषा में इंटरनेट का इस्तेमाल कर सके.
अभी तक देश में इंटरनेट से दूरी की वजह सीमित पहुंच और बुनियादी सुविधाओं के साथ अंगरेजी ज्ञान की आवश्यकता भी रही है. इंटरनेट का मतलब अधिकांश लोगों के लिए आज भी ‘वेब सर्फिंग और ई-मेल चेकिंग’ से अधिक नहीं है. लेकिन, नेट से परिचय की इस शुरुआत के मूल में ही अंगरेजी जानने की दरकार होती है. देवनागरी में वेब पते स्थिति को बदल सकते हैं, क्योंकि इंटरनेट की दुनिया में प्रवेश इंटरनेट पतों से ही होता है.
हिंदी में वेबसाइट्स और ब्लॉग ने इंटरनेट की दुनिया में अपना परचम लहराया है और आज एक लाख से ज्यादा ब्लॉग हिंदी भाषा में हैं. यह अलग बात है कि सक्रिय ब्लॉग की संख्या कम है, लेकिन हिंदी भाषा में नियमित रूप से ब्लॉग और वेबसाइट्स का बनना हिंदी के विस्तार की कहानी कहता है. निश्चित तौर पर इस मोरचे पर काफी काम किये जाने की जरूरत है. सवाल हिंदी में सॉफ्टवेयर और कंप्यूटर पर हिंदी के सहारे काम करने की सुगमता को लेकर है. यूनीकोड ने कंप्यूटर पर हिंदी के लिए शानदार काम किया है. बेशक, इसके आने के बाद हिंदी और कंप्यूटर की दोस्ती मजबूत हुई है. लेकिन, कई तरह के की-बोर्ड को लेकर अभी भी भ्रम की स्थिति कायम है. आज भी हिंदी में एक सर्वमान्य की-बोर्ड नहीं है. की-बोर्ड में एकरूपता का न होना भी बड़ी समस्या है. इस चुनौती को साध लिया जाये, तो यह बड़ी छलांग होगी. कंप्यूटर में कमांड भी अभी तक हिंदी में नहीं दी जा सकतीं. हिंदी में खास ब्राउजर नहीं हैं. ‘इपिक’ नाम का एक ब्राउजर चंद दिनों पहले आया भी था, लेकिन उसे भारत में ही लोकप्रियता नहीं मिल पायी. इन चुनौतियों से निपटा जा सके तो अंगरेजी न जानने वाले व्यक्ति के लिए भी कंप्यूटर पर काम करना आसान हो जायेगा.
ब्लॉगर और लेखक अविनाश वाचस्पति हिंदी को अंगरेजी के हौवे से आजाद कराने की बात करते हैं. अविनाश कहते हैं, सोशल मीडिया हिंदी को लेकर जागरूकता फैलाने और हिंदी प्रेमियों के लिए एक मंच के तौर पर काम कर सकता है. लेकिन, देश का बड़ा ग्रामीण इलाका अभी इस रोशनी से दूर है. ग्रामीण इलाकों में बिजली की अनुपलब्धता भी सुरसा की तरह मुंह बाये खड़ी है. लेकिन, सवाल इस समस्या का हल निकालने का है, जिसमें अभी तक हमारी सरकारें नाकाम रही हैं.
इंटरनेट की गति को लेकर भी भारत अभी काफी पिछड़ा हुआ है. गूगल का एक जीबी प्रति सेकेंड के हिसाब से इंटरनेट सेवाएं मुहैया कराने का काम शुरू हो चुका है. कोरिया में इंटरनेट की गति सात एमबी प्रति सेकेंड है, वहीं भारत में औसत स्पीड अभी भी एक एमबी प्रति सेकेंड के आसपास ही बनी हुई है. सोशल मीडिया एक उम्मीद तो जगाता है, लेकिन यहां भी हिंदी में न तो कायदे के एप्लीकेशन हैं और न ही इनबिल्ट हिंदी की-बोर्ड़ जानकारी का अभाव भी एक बड़ी वजह है, जिसके चलते सोशल मीडिया की क्षमता का पूरा दोहन नहीं हो पा रहा है.
कुछ समय पहले ऑस्ट्रेलियाई सरकार की ओर से कहा गया था कि भारत भेजे जाने वाले राजनयिकों के लिए हिंदी जानना जरूरी नहीं है. उनका ऐसा कहने के पीछे तर्क यह था कि भारत में सारा काम अंगरेजी में हो जाता है. हालांकि चीन, जापान, इंडोनेशिया, ईरान आदि देशों में जाने वाले राजनयिकों के लिए वहां की भाषा आना जरूरी बताया गया था. यह वाकया वैश्विक स्तर पर हिंदी के प्रति हमारे स्वयं के बतर्ताव की बानगी भर है. हम खुद हिंदी के प्रति कितने गंभीर है और दुनिया हमें किस नजरिए से देखती है यह बात उसकी नुमाइंदगी ही करती है.
सवाल हमारे अपने बर्ताव को लेकर भी है. भारत सूचना क्रांति का अगुवा देश है. हमारे देश में सॉफ्टवेयर क्षेत्र की अग्रणी कंपनियां और जानकार हैं, लेकिन हिंदी को लेकर उनकी बेरुखी भी साफ नजर आती है. बेशक, हिंदी इंटरनेट की दुनिया में अपनी जगह मजबूत करती जा रही है, लेकिन अभी यहां भी उसे अभी लंबा रास्ता तय करना है. इंटरनेट के शुरुआती वक्त से ही इस पर अंगरेजी का दबदबा था. एक आंक.डे के अनुसार उस समय नेट पर अंग्रेजी 95 फीसदी से भी अधिक थी, चीनी कहीं नहीं. लेकिन, अब इंटरनेट पर चीनी भाषा का तेजी से विस्तार हो रहा है.
अभिव्यक्ति पर अंकुश के तमाम आरोपों के बीच इंटरनेट की दुनिया में चीनी भाषा अपनी गहरी पैठ बनाती जा रही है. चीन का सबसे बड़ा सर्च इंजन बायडू उनकी अपनी भाषा में है. वहां की टॉप तीन सोशल नेटवर्किं ग साइट चीनी भाषा में हैं. अंतरजाल की इस दुनिया में चीनी भाषा की मौजूदगी पैंतीस फीसदी से भी ऊपर जा पहुंची है (विश्व की आबादी में चीनी भाषी आबादी का अनुपात करीब बाईस फीसदी है).
भारत सरकार की ओर से इस दिशा में प्रयास होने चाहिए. इस संबंध में सक्रिय होना होगा. हिंदी में बात करने और काम करने को हेय दृष्टि से देखा जाता है, क्योंकि इसका आर्थिक पहलू बहुत कमजोर है. इस संबंध में भी खामियों को पहचान कर भी दूर किए जाने की जरूरत है. मोबाइल फोन पर भी इंटरनेट इस्तेमाल करने वालों की तादाद बढ.ती जा रही है, लेकिन यहां भी हिंदी कम ही नजर आती है. कुछ अपवादों को छोड़ दें तो अधिकतर अंतरराष्ट्रीय मोबाइल फोन निर्माता फोन को हिंदी में काम करने लायक बनाने को लेकर गंभीर नजर नहीं आते. इन मोबाइल फोनों में अंगरेजी के अलावा पुर्तगाली, रूसी और चीनी जैसी कई भाषाएं पहले से ही लोड होती हैं, लेकिन हिंदी यहां भी नजर नहीं आती. पाणिनी एक एप्लीकेशन है, जिसके जरिए एंड्रॉयड व अन्य कुछ मोबाइल फोन पर हिंदी की-बोर्ड इस्तेमाल किया जा सकता है. लेकिन, इसकी भी कुछ व्यवहारिक दिक्कतें हैं. वहीं दूसरी ओर जागरूकता का अभाव भी बड़ी वजह है कि मोबाइल फोन पर हिंदी नजर नहीं आती. न तो मोबाइल पर हिंदी में एप्लीकेशन हैं और न ही लोगों में हिंदी को लेकर उत्सुकता. कंपनियां तब तक ऐसा नहीं करेंगी, जब तक उन्हें इसमें बाजार नजर नहीं आएगा. हालांकि, निराश होने की जरूरत नहीं है. जानकारों का आकलन है कि करीब 70 फीसदी आबादी अपनी मातृभाषा में कंटेट पढ.ना चाहती है और ऐसे में हिंदी इंटरनेट पर तरक्की के नये आयाम छू सकती है. लेकिन, समस्या हिंदी में बेहतरीन कटेंट की कमी को लेकर भी है. आज भी इंटरनेट पर हिंदी में उच्च स्तरीय कटेंट अंगरेजी के मुकाबले बेहद कम है और इस दिशा में और काम किये जाने की जरूरत है.
हिंदी प्रेमी सेलेब्रिटी इंटरनेट पर हिंदी की स्थिति बेहतर बनाने में बड़ा योगदान दे सकते हैं. दिक्कत यही है कि अभी तक ऐसा दिखा नहीं है. अमिताभ बच्चन, प्रियंका चोपड़ा और शाहरुख खान जैसे सेलेब्रिटी के माइक्रोब्लॉगिंग साइट ट्विटर पर लाखों फॉलोअर्स हैं और उनका एक संदेश बार-बार री-ट्वीट होते हुए करोड़ों लोगों तक पहुंचता है. हिंदी सिनेमा के इन दिग्गजों का हिंदी के प्रचार-प्रसार में बड़ी भूमिका हो सकती है, लेकिन अभी तक इनकी तरफ से कोई ऐसी पहल नहीं दिखी.
2003 में हिंदी का पहला ब्लॉग बना.
आज इंटरनेट पर हिंदी ब्लॉग्स की संख्या एक लाख से भी अधिक है, जिसमें 15 से 20 हजार सक्रिय
और 5 से 6 हजार ब्लॉग्स अतिसक्रिय की
श्रेणी में आते हैं.14 सितंबर 2011 को
हिंदी दिवस के दिन माइक्रोब्लॉगिंग सोशल वेबसाइट ट्विटर को हिंदी भाषा में जारी
किया गया था.32 फीसदी प्रयोक्ता भारत में हिंदी भाषा
इस्तेमाल करते हैं इंटरनेट पर. इंटरनेट पर हिंदी प्रयोक्ताओं का स्थान अंगरेजी के
बाद दूसरा है.15 डोमेन नाम इंटरनेट के लिए भारत की ओर से जून
2012 तक आवेदन किये गये. इनमें से तीन डोमेन नाम देवनागरी
लिपि के थे.
२०१३ ,अगस्त में गूगल हिंदी प्रतियोगिता की लिंक क्या है ,मैं भी इस प्रितियोगिता में भाग लेना चाहता हु
ReplyDelete