Monday 2 July 2012

'वायरलेस मेडिसिन' से इलाज

भविष्य में डॉक्टरी इलाज 'वायरलेस मेडिसिन' से होगा। माइक्रो इलेक्ट्रॉनिक्स में हो रही प्रगति के बाद डॉक्टर अब ऐसे दिन की कल्पना करने लगे हैं, जब वे वाई-फाई, ब्लू टूथ और दूसरी वायरलेस टेक्नॉलजी का इस्तेमाल करने वाले मेडिकल इम्प्लांट्स के जरिये अपने मरीजों पर नजर रखेंगे और उनका इलाज करेंगे। वैज्ञानिकों ने ऐसे सूक्ष्म वायरलेस डिवाइस भी तैयार कर लिए हैं, जो रक्त में तैर कर डॉक्टरों का काम आसान कर देंगे। वैज्ञानिकों ने रेत के कण से भी छोटी एक ऐसी 'खाने योग्य माइक्रोचिप' भी विकसित की है, जो मरीज द्वारा ली जाने वाली दवाओं का पूरा ब्यौरा रखती है और मरीज के शरीर से ही वायरलेस ट्रांसमिशन के जरिये सारी जानकारी मरीज के रिश्तेदार या स्वास्थ्यकर्मी के मोबाइल फोन पर भेज देती है। ये उपलब्धियां चिकित्सा के क्षेत्र में हो रही व्यापक तकनीकी क्रांति का हिस्सा है, जिसमें वायरलेस उपकरणों के सूक्ष्मीकरण का भरपूर फायदा उठाया जा रहा है। इन सूक्ष्म उपकरणों को मरीजों के शरीर के भीतर प्रत्यारोपित किए जा सकने की क्षमता ने एक नई किस्म की टेलिमेडिसिन अथवा 'सुदूर चिकित्सा' का आधार तैयार कर दिया है।

एक मेडिकल चिप के जरिए मरीज के शरीर के अंदर दवाएं डिलिवर करने का सफल प्रयोग ओस्टियोपोरोसिस के रोगियों पर किया गया। इस चिप का आकार एक पेसमेकर जितना है। इसे सर्जरी के जरिये मरीज की स्किन के नीचे फिट किया जाता है। क्लिनिकल परीक्षण के दौरान इस चिप में ओस्टियोपोरोसिस की एक खास दवा की 20 खुराकों से भरी गई। यह दवा सामान्य तौर पर हर रोज इंजेक्शन के जरिये देनी पड़ती है। डेनमार्क में 65 और 70 साल के बीच की सात महिलाओं ने क्लिनिकल परीक्षण में भाग लिया। उनके शरीर में आधे घंटे की सर्जरी के जरिये माइक्रोचिप प्रत्यारोपित की गई। यह माइक्रोचिप 12 महीने तक उनके शरीर में रही। इस दौरान उनके स्वास्थ्य पर पूरी निगरानी रखी गई। माइक्रो चिप ने अपेक्षा के अनुरूप काम किया और महिलाओं में बोन फार्मेशन की प्रक्रिया में काफी सुधार दिखाई दिया।

एक बाहरी वायरलेस डिवाइस से इस चिप को निर्देश देकर यह बताया जाता है कि मरीज को दवा की सही खुराक कब-कब देनी है। इससे यह सुनिश्चित हो जाता है कि मरीज को दिन में सही समय पर सही खुराक मिल रही है। इस प्रयोग से जुड़े रिसर्चरों का कहना है कि इस इम्प्लांट से मरीज को दवा लेने का समय याद रखने की जरूरत नहीं पड़ेगी और उसे कष्टदायक इंजेक्शनों से भी निजात मिल जाएगी।

मेसाचुसेट्स इंस्टीट्यूट ऑफ टेक्नॉलजी के प्रफेसर राबर्ट लेंगर के अनुसार नई चिप एक फार्मेसी की तरह काम करेगी। आप रिमोट से दवाओं की डिलीवरी को नियंत्रित कर सकते हैं। इस विधि से एक साथ कई दवाएं मरीज के शरीर में पहुंचाई जा सकती हैं। ये दवाएं माइक्रो चिप के छिद्रों में रखी जाएंगी और इन्हें सोने की अत्यंत सूक्ष्म परत से ढका जाएगा। ऐसी दवाएं वर्षों तक सुरक्षित रह सकती हैं। इंजेक्शनों की तुलना में इस विधि से दी जाने वाली खुराक में किसी किस्म की भिन्नता की गुंजाइश भी नहीं रहेगी। अत: यह ज्यादा सुरक्षित और ज्यादा कारगर होगी। इस टेक्नॉलजी से उन मरीजों को बहुत फायदा होगा, जिन्हें दर्द निवारण के लिए नियमित रूप से अस्पताल जाना पड़ता है या हर रोज इंजेक्शन लगवाने पड़ते हैं। अनेक दवाओं के मामले में डॉक्टरी निर्देशों का कड़ाई से पालन करना जरूरी होता है, लेकिन जब मरीजों को खुद इंजेक्शन लेना पड़ता है तो कभी-कभी निर्देशों पर अमल करने में कठिनाई होती है। माइक्रो चिप से दी जाने वाली दवाएं ऐसी स्थिति नहीं उत्पन्न होने देंगी। भविष्य में इस टेक्नॉलजी के प्रयोग से दवाओं की डिलीवरी पूरी तरह से स्वचालित हो जाएगी। 'इंटेलिजेंट मेडिसिन' के युग में डॉक्टर कंप्यूटर या फोन के जरिये अपने मरीज की चिकित्सा पर निगरानी रख सकेंगे और उसमें आवश्यक फेरबदल कर सकेंगे।

पिछले कई दशकों से वैज्ञानिक ऐसे सूक्ष्म उपकरण का सपना देख रहे हैं, जो शरीर के अंदर रक्त में तैर सकें। स्टेनफर्ड यूनिवर्सिटी की इलेक्ट्रिकल इंजिनियर एडा पून ने एक ऐसे ही सूक्ष्म मेडिकल डिवाइस का प्रदर्शन किया है, जो रक्त की धारा में अपने आप आगे बढ़ सकता है। इन उपकरणों को मनुष्य के शरीर में प्रत्यारोपित या इंजेक्ट किया जा सकता है और विद्युत चुंबकीय रेडियो तरंगों की ऊर्जा से संचालित किया जा सकता है। इनके लिए तो बैटरी की जरूरत है और ही तारों की। पून का दावा है कि इन उपकरणों से मेडिकल टेक्नॉलजी का स्वरूप ही बदल जाएगा। ये उपकरण रोग निदान के अलावा सर्जरी में भी काम आएंगे। हृदय की जांच के उपकरण, पेसमेकर, कानों के इम्प्लांट और ड्रग पंप जैसे डिवाइस शरीर के अंदर ही रहेंगे, जबकि दूसरे वायरलेस उपकरण रक्तधारा में तैर कर दवाओं की डिलीवरी करेंगे, खून के थक्के दूर करेंगे या रक्त धमनियों में जमा परत को हटाएंगे।

माइक्रो चिप को विकसित करने के पीछे असली मकसद ऐसी 'इंटेलिजेंट मेडिसिन' विकसित करना है, जो मरीज को दिन में सही वक्त पर सही दवा लेने में मदद देगी। इससे मरीज के रिश्तेदार को भी यह जानकारी रहेगी कि मरीज ने सभी दवाएं ठीक से ली हैं या नहीं। मरीजों को कई तरह की दवाएं लेनी पड़ती हैं और कभी-कभी वे कुछ दवाएं लेना भूल जाते हैं। विश्व स्वास्थ्य संगठन के मुताबिक दुनिया में आधे मरीज अपनी दवाएं सही ढंग से नहीं लेते। इससे उन्हें इलाज का पूरा फायदा नहीं मिल पाता। कुछ मरीजों को नुकसानदायक साइड इफेक्ट्स का सामना करना पड़ता है। डिजिटल दवाओं से यह सुनिश्चित किया जा सकता है कि मरीजों को दी जाने वाली दवाएं शरीर में कारगर तरीके से काम करें। गंभीर रूप से बीमार व्यक्तियों को दी जाने वाली जरूरी दवाओं को भी डिजिटल करने की योजना है। यह चिप खाद्य वस्तुओं में पाए जाने वाले तत्वों से बनाई गई है।

न्यूयॉर्क प्रेसबाइटेरियन हॉस्पिटल और कोलंबिया यूनिवर्सिटी मेडिकल सेंटर के डॉक्टर सर्जरी के लिए नन्हे सर्पाकार रोबॉट अथवा स्नेकबॉट का इस्तेमाल कर रहे हैं। इन रोबॉट्स में कैमरे, फोरसेप और दूसरे औजार लगे हुए हैं। मानव-नियंत्रित स्नेकबॉट शरीर में ऐसे स्थानों पर पहुंच सकते हैं, जहां सर्जन के हाथ नहीं पहुंच सकते। अगला लक्ष्य अति सूक्ष्म नेनोबॉट बनाने का है, जिन्हें शरीर में इंजेक्ट किया जा सकेगा। ये नेनोबॉट शरीर में गश्त लगाएंगे और हर तरह की बीमारी का इलाज करने में सक्षम होंगे। फिलहाल स्नेकबॉट दिल के रोगों, प्रोस्ट्रेट कैंसर और अन्य रुग्ण अंगों के इलाज में मदद कर रहे हैं

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