Wednesday 22 August 2012

पानी की बर्बादी


जल संकट के प्रति आगाह कर रहे हैं शशांक द्विवेदी 
 दैनिक जागरण (राष्ट्रीय) में 25 /07/2012 को प्रकाशित 

विकास और लालच ने हमारी जमीन को बंजर बना दिया। अधिकांश नदियों, तालाबों, झील, पोखरों का अस्तित्व मिट गया। गंगा, यमुना जैसी जीवनदायिनी नदियों को हम नालों में तब्दील कर रहे हैं। शहरों में कंक्रीट के जंगलों के बीच हम इतने बेसुध हो गए है कि हमें भविष्य के खतरे की आहट ही नहीं सुनाई पड़ रही है। वास्तव में जल ही जीवन का आधार है, जल के बिना जीवन की कल्पना ही नहीं की जा सकती। धरातल पर तीन-चौथाई पानी होने के बाद भी पीने योग्य पानी एक सीमित मात्रा में ही है। उस सीमित मात्रा के पानी का इंसान ने अंधाधुध दोहन किया है। नदी, तालाबों और झरनों को पहले ही हम कैमिकल की भेंट चढ़ा चुके हैं, जो बचा-खुचा है उसे अब अपनी अमानत समझ कर अंधाधुंध खर्च कर रहे हैं। जबकि भारतीय नारी पीने के पानी के लिए रोज ही औसतन चार मील पैदल चलती है। भारत में विश्व की लगभग 16 प्रतिशत आबादी निवास करती है, लेकिन उसके लिए मात्र तीन प्रतिशत पानी ही उपलब्य है। भारत में जल संबंधी मौजूदा समस्याओं से निपटने में वर्षा जल को भी एक सशक्त साधन समझा जाए। पानी के गंभीर संकट को देखते हुए पानी की उत्पादकता बढ़ाने की जरूरत है। चूंकि एक टन अनाज उत्पादन में एक हजार टन पानी की जरूरत होती है और पानी का 70 फीसदी हिस्सा सिंचाई में खर्च होता है, इसलिए पानी की उत्पादकता बढ़ाने के लिए जरूरी है कि सिंचाई का कौशल बढ़ाया जाए। यानी कम पानी से अधिकाधिक सिंचाई की जाए। अभी होता यह है कि बांधों से नहरों के माध्यम से पानी छोड़ा जाता है, जो किसानों के खेतों तक पहुंचता है। जल परियोजनाओं के आंकड़े बताते हैं कि छोड़ा गया पानी शत-प्रतिशत खेतों तक नहीं पहुंचता। कुछ पानी रास्ते में भाप बनकर उड़ जाता है, कुछ जमीन में रिस जाता है और कुछ बर्बाद हो जाता है। पानी का महत्व भारत के लिए कितना है यह हम इसी बात से जान सकते हैं कि हमारी भाषा में पानी के कितने अधिक मुहावरे हैं। अगर हम इसी तरह कथित विकास के कारण अपने जल संसाधनों को नष्ट करते रहे तो वह दिन दूर नहीं, जब सारा पानी हमारी आंखों के सामने से बह जाएगा और हम कुछ नहीं कर पाएंगे। पानी के बारे में एक नहीं, कई चौंकाने वाले तथ्य हैं। विश्व में और विशेष रूप से भारत में पानी किस प्रकार नष्ट होता है, इस विषय में जो तथ्य सामने आए हैं उन पर ध्यान देकर हम पानी के अपव्यय को रोक सकते हैं। अनेक तथ्य ऐसे हैं जो हमें आने वाले खतरे से तो सावधान करते ही हैं, दूसरों से प्रेरणा लेने के लिए प्रोत्साहित भी करते हैं और पानी के महत्व व इसके अनजाने श्चोतों की जानकारी भी देते हैं। दिल्ली, मुंबई और चैन्नई जैसे महानगरों में पाइप लाइनों के वॉल्व की खराबी के कारण रोज 17 से 44 प्रतिशत पानी बेकार बह जाता है। इजराइल में औसतन मात्र 10 सेंटीमीटर वर्षा होती है और इस वर्षा से ही वह इतना अनाज पैदा कर लेता है कि वह उसका निर्यात करता है। दूसरी ओर भारत में औसतन 50 सेंटीमीटर से भी अधिक वर्षा होने के बावजूद अनाज की कमी बनी रहती है। ध्यान देने की बात यह है कि यदि ब्रश करते समय नल खुला रह गया है, तो पांच मिनट में 25 से 30 लीटर पानी बरबाद होता है। जबकि विश्व में प्रति 10 व्यक्तियों में से 2 व्यक्तियों को पीने का शुद्ध पानी नहीं मिल पाता है। नदियां पानी का सबसे बड़ा श्चोत हैं। जहां एक ओर नदियों में बढ़ता प्रदूषण रोकने के लिए विशेषज्ञ उपाय खोज रहे हैं, वहीं कल-कारखानों से बहते हुए रसायन उन्हें भारी मात्रा में दूषित कर रहे हैं। ऐसी अवस्था में जब तक सख्ती नहीं बरती जाती, अधिक से अधिक लोगों को दूषित पानी पीने का समय आ सकता है। समय आ गया है जब हम वर्षा का पानी अधिक से अधिक बचाने की कोशिश करें। बारिश की एक-एक बूंद कीमती है। इन्हें सहेजना बहुत ही आवश्यक है। यदि अभी पानी नहीं सहेजा गया, तो संभव है पानी केवल हमारी आंखों में ही बच पाएगा। (लेखक स्वतंत्र टिप्पणीकार हैं) 
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