Saturday, 21 July 2012

चीन और भारत -तकनीकी शिक्षा

२ 1वीं स‌दी ज्ञान की स‌दी होगी,इसमें शायद ही कोई अलग राय रखता हो. ज्ञान की इस स‌दी में यह बेहद अहम है कि हम अपनी शिक्षा प्रणाली और ज्ञान के ढांचे में योजनाबद्ध परिवर्तन लाएं ताकि भविष्य की चुनौतियों का स‌ामना करने के लिए ऎसी शिक्षा प्रणाली विकसित हो जिससे नवीनता और उद्यमिता को 


दरअस‌ल भारत में उच्चतर शिक्षा का मौजूदा स्तर बहुत उम्मीद जगाने वाला नहीं है। उच्च शिक्षा में स‌ाधारण स‌कल दाखिला अनुपात और देश में शोध की गुणवता व स्तर में आयी गिरावट हमारी शिक्षा प्रणाली में स‌ुधार की प्रक्रिया और रफ्तार पर स‌वालिया निशान लगा देती है। उच्च शिक्षा में भारत का स‌कल दाखिला अनुपात महज 11 फीसदी है, जो विकसित देशों की तुलना में काफी कम है।


हालांकि कोरिया(91 फीस‌दी स‌कल दाखिला अनुपात) और अमरीका(83 फीसदी स‌कल दाखिला अनुपात) जैसे देशों स‌े भारत की तुलना करना थोड़ी ज्यादती होगी। मगर हम अपने निकट प्रतिद्वंद्वी चीन स‌े भी शिक्षा क्षेत्र में पिछड़ गए हैं। चीन ने उच्च शिक्षा स‌े जुड़े लगभग हर मामले में हमसे बेहतर और तेजी स‌े प्रगति की है। चीन ने रिसर्च के क्षेत्र में हमसे आगे निकलने के स‌ाथ-साथ उच्चतर शिक्षा में दाखिला लेने वाले छात्रों की स‌ंख्या में हमें पीछे छोड़ दिया है। अगर हम थॉमस रायटर के विभिन्न देशों द्वारा शोध के क्षेत्र में किए गए कामों के अध्ययन पर गौर करें तो भारत की स्थिति ज्यादा डांवाडोल नजर आती है।
उनके अध्ययन के अनुसार शोध के क्षेत्र में 1988-93 के दौरान चीन की हिस्सेदारी 1.5 फीसदी थी। इसके बाद आंकड़ों के मुताबिक उसने एक बड़ी छलांग लगाकर अपनी हिस्सेदारी 1999-2008 में 6.2 फीसदी तक पहुंचा दी। वहीं भारत 1988-1993 में 2.5 फीसदी की हिस्सेदारी के साथ चीन स‌े बेहतर स्थिति में था। मगर इसके बाद भारत की रफ्तार निराशाजनक रुप स‌े धीमी हो गई। 1999-2008 में भारत ने अपनी हिस्सेदारी में मामूली इजाफा करके आंकड़ा 2.6 फीसदी तक पहुंचाया।


इससे देश में शोध की एक मजबूत पारिस्थितिकी प्रणाली का अभाव स‌ाफ झलकता है। हम स‌मय की जरुरतों के लिहाज स‌े अपनी शिक्षा प्रणाली में स‌ुधार करने व शैक्षिक स‌ंस्थानों को वैश्विक स्तर का बनाने में असफल रहे हैं। आज देश में बहुत कम स‌ंस्थान गुणवता और शोध के लिए स‌ुविधाएं उपलब्ध करवाने में स‌क्षम हैं। नतीजतन भारतीय मेदा विदेशों में मिल रहे अवसरों और स‌ुविधाओं के चलते देश स‌े पलायन कर रही है।

अभी हाल ही में अमरीकी राष्ट्रपति बराक ओबामा ने भारतीय मेधा की तारीफ की थी। फिर कुछ लोग ऎसी प्रतिक्रियाएं भी देते दिखे गोया ओबामा ने भारतीय इंटेलिजेंसी स‌र्टिफिकेट पर जुबानी मुहर लगा कर बरसों की हमारी तपस्या के वांछित अनुदान की बकाया किश्त रिलीज कर दी हो। मगर इस आत्ममुग्धता स‌े हमारी शिक्षा प्रणाल के स‌मक्ष मुंह बाये खड़ी स‌मस्याओं का हल नहीं निकलेगा। हमें ध्यान देना होगा कि हमारी शिक्षा प्रणाली की ढांचागत खामियों के चलते भारतीय युवाओं की रुचि उच्च शिक्षा व शोध में कम हो रही है। दरअसल उच्च शिक्षा प्रणाली की बुनियादी खामियों के कारण हम शिक्षित होने और बाजार के अनुरुप कुशल होने के अंतर को नहीं पाट पा रहे हैं। इसका मतलब है कि हमारी शिक्षा प्रणाली 25 स‌ाल स‌े कम उम्र के 55 करोड़ नवयुवकों की उम्मीदों पर खरी नहीं उतरी है।



हमें यह स‌मझना होगा कि गलाकाट प्रतिस्पर्धा के इस दौर में उच्च शिक्षा का उद्देश्य शिक्षित करने के स‌ाथ-साथ कुशल व काम के लिए तैयार मानवशक्ति का पुल बनाना है। मगर मौजूदा शिक्षा प्रणाली इसमें चूक गयी है। नतीजतन रोजगार खोजनेवालों के स्तर और बाजार की कौशल की जरुरतों में कोई मेल नहीं बैठता। इस कमी के चलते हम अपने शिक्षित युवाओं के स‌ामर्थ्य का पूरा-पूरा उपयोग नहीं पा रहे हैं। इसके स‌ाथ-साथ शिक्षा का लगातार महंगा होता जाना भी इसे आम तबके की पहुंच से दूर कर रहा है। हमें भारत में उच्च शिक्षा के लगातार गिरते क्रम को पलटना होगा। हमें यह पहल करनी होगी जिससे भारतीय प्रतिभाओं को देश में फलने-फूलने का वातावरण मिले और हिन्दुस्तानी दिमाग की उर्वरता का पूरा-पूरा उपयोग किया जा स‌के।

भारत में उच्च शिक्षा प्रणाली की मौजूदा हालत चिंताजनक है और हम इसमें क्रांतिकारी परिवर्तन लाने स‌े कतरा रहे हैं। मगर भारत को वैश्विक ज्ञान की अर्थव्यवस्था में तब्दील करने के लिए हमें अपनी शिक्षा प्रणाली में द्रुतगति स‌े स‌ुधार करने होंगे। लेखक-सचिन स‌ंगर

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