उपलब्धि
हैदराबाद के आनुवंशिकी
अनुसंधानकर्ता डॉ. राव पानेनी ने वर्षों की मेहनत के उपरांत कैंसर से जूझ रहे
करोड़ों लोगों में जीने की उम्मीद जगाई है। ऐसे लोगों के लिए अच्छी खबर है कि डॉ.
राव ने अमेरिकी वैज्ञानिकों के सहयोग से ऐसी तकनीक खोजने में सफलता हासिल की है जो
नैनो मेडिसन के जरिये कैंसर के ऊतकों का उपचार करती है।
वास्तव में यह नैनो तकनीक कई मायनों में कैंसर के उपचार हेतु रामबाण औषधि सिद्ध हो सकती है। इसके अंतर्गत ऐसी तकनीक विकसित की गई है जिसमें केवल कैंसरग्रस्त ऊतकों का उपचार किया जाता है। लेकिन इसका प्रभाव स्वस्थ ऊतकों पर नहीं पड़ता। यानी उपचार के साइड-इफेक्ट कम होते हैं या बिल्कुल नहीं होते। इसमें दवा का लक्ष्य सीधे कैंसर प्रभावित शरीर पर ही होता है। डॉ. राव और उनकी टीम की मंशा है कि पहले इस तकनीक का उपयोग प्रॉस्टेट गं्रथि के कैंसर से जूझ रहे लोगों के उपचार में किया जाये। इसके उपरांत अन्य तरीके के कैंसरों के उपचार में इस तकनीक का उपयोग किया जा सकेगा।
निश्चित रूप से डॉ. राव की इस खोज की सफलता से भारत गौरवान्वित हुआ है। उनकी इस नयी तकनीक की खोज से उम्मीद जगी है कि कैंसर के भयावह रोग पर बेहतर ढंग से काबू पाया जा सकेगा। वर्तमान में डॉ. राव केयर स्ट्रीम हेल्थ संस्थान, संयुक्त राज्य अमेरिका में मुख्य वैज्ञानिक तथा सीनियर प्रिंसिपल इनवेस्टिगेटर के रूप में कार्यरत हैं।
पिछले ही महीने कैंसर उपचार की इस तकनीक को पेटेंट कराने हेतु डॉ. राव ने आवेदन किया था जिसे पेटेंट कराने की अनुमति मिल गई है। उनके इस पेटेंट को ‘हाई कैपीसिटी नान-वायरल वेक्टर्सÓ का नाम दिया गया है। इसमें दी गई दवा कैंसरग्रस्त सूक्ष्म अवयवों पर प्रभावी होगी। इससे दवा के कारगर होने की संभावना अधिक हो गई है। अब तक उपचार के लिए दिये जाने वाले रेडिएशन की मात्रा अब कम की जा सकेगी जो इस उपचार में पडऩे वाले नकारात्मक प्रभाव को कम करेगी। इससे उपचार के स्थान को सीमित क्षेत्र में केंद्रित किया जा सकेगा जिसके अंतर्गत ट्यूमर पर नज़र रखते हुए कैंसर के ऊतकों पर प्रभावी इलाज संभव हो सकेगा।
डॉ. राव एवं उनकी टीम ग्रास नलिका के कैंसर के उपचार पर भी अनुसंधान कर रही है। इस तकनीक के जरिये प्रारंभिक अवस्था के ट्यूमर का पता लगाकर उसका उपचार भी किया जाता है जिसके लक्षण सामान्य तौर पर नज़र नहीं आते। लेकिन कालांतर में इस ट्यूमर का आकार इतना बड़ा हो जाता है कि यह ग्रास नलिका को अवरुद्ध कर देता है जिससे खाना निगलने में दिक्कत होने लगती है। उनका मानना है कि कैंसर का उपचार इस बात पर निर्भर करता है कि कैंसर किस अवस्था में है तथा रोगी का स्वास्थ्य किस तरह का है? यानी कैंसर का प्रारंभिक अवस्था में पता लगने तथा रोगी के शरीर की रोग प्रतिरोधक क्षमता अच्छी होने की स्थिति में कैंसर लाइलाज नहीं रहता। यदि कैंसर सीमित स्थान तक है और ग्रास नलिका तक नहीं पहुंचा है तो सामान्य तौर पर सर्जरी के जरिये उसका उपचार किया जा सकता है। लेकिन यदि यह अन्य अंगों को अपनी चपेट में ले लेता है तो मरीज का उपचार कीमोथैरेपी के जरिये ही किया जाता है। इसके लिए अन्य रेडिएशन का प्रयोग कैंसर के फैलाव को रोकने के लिए किया जाता है।
निश्चित रूप से डॉ. राव और उनकी टीम ने कैंसर के उपचार के लिए जो पद्धति विकसित की है, वह कैंसर के उपचार की दिशा में एक मील का पत्थर साबित हो सकती है। आज कैंसर का दानव जिस तरह मानवता को निगलने को तैयार बैठा है, अब उसकी चुनौती का मुकाबला किसी हद तक संभव हो पायेगा। उनके अनुसार इस नैनो टेक्नोलॉजी के जरिये कैंसर-रोधक दवाइयों को कैंसरग्रस्त अंग तक सीधे प्रभावी बनाया जा सकता है। यानी कैंसरग्रस्त ऊतकों का खात्मा स्वस्थ ऊतकों को नुकसान पहुंचाये बिना ही किया जा सकता है।
डॉ. राव और उनकी टीम उन कारणों पर प्रकाश डालती है जो कैंसर के कारण बन सकते हैं। उनका मानना है कि यदि लोग सचेत रहें और परहेज बरतें तो कैंसर के खतरे को टाला जा सकता है। लोगों को धूम्रपान से बचना चाहिए एवं अन्य तम्बाकू उत्पादों से परहेज करना चाहिए। शराब का उपयोग भी सीमित मात्रा में किया जाना चाहिए। अपने भोजन में अधिक मात्रा में ताजा फलों और सब्जियों का उपयोग करना चाहिए। इसका उपयोग मांस व डेयरी उत्पादों के मुकाबले अधिक होना चाहिए। प्रयास हो कि साबुत अनाज का उपयोग हो सके। इसके साथ ही जरूरी है कि वजन को नियंत्रित करने के लिए कर्मशील रहें।(हरिहर स्वरुप )
वास्तव में यह नैनो तकनीक कई मायनों में कैंसर के उपचार हेतु रामबाण औषधि सिद्ध हो सकती है। इसके अंतर्गत ऐसी तकनीक विकसित की गई है जिसमें केवल कैंसरग्रस्त ऊतकों का उपचार किया जाता है। लेकिन इसका प्रभाव स्वस्थ ऊतकों पर नहीं पड़ता। यानी उपचार के साइड-इफेक्ट कम होते हैं या बिल्कुल नहीं होते। इसमें दवा का लक्ष्य सीधे कैंसर प्रभावित शरीर पर ही होता है। डॉ. राव और उनकी टीम की मंशा है कि पहले इस तकनीक का उपयोग प्रॉस्टेट गं्रथि के कैंसर से जूझ रहे लोगों के उपचार में किया जाये। इसके उपरांत अन्य तरीके के कैंसरों के उपचार में इस तकनीक का उपयोग किया जा सकेगा।
निश्चित रूप से डॉ. राव की इस खोज की सफलता से भारत गौरवान्वित हुआ है। उनकी इस नयी तकनीक की खोज से उम्मीद जगी है कि कैंसर के भयावह रोग पर बेहतर ढंग से काबू पाया जा सकेगा। वर्तमान में डॉ. राव केयर स्ट्रीम हेल्थ संस्थान, संयुक्त राज्य अमेरिका में मुख्य वैज्ञानिक तथा सीनियर प्रिंसिपल इनवेस्टिगेटर के रूप में कार्यरत हैं।
पिछले ही महीने कैंसर उपचार की इस तकनीक को पेटेंट कराने हेतु डॉ. राव ने आवेदन किया था जिसे पेटेंट कराने की अनुमति मिल गई है। उनके इस पेटेंट को ‘हाई कैपीसिटी नान-वायरल वेक्टर्सÓ का नाम दिया गया है। इसमें दी गई दवा कैंसरग्रस्त सूक्ष्म अवयवों पर प्रभावी होगी। इससे दवा के कारगर होने की संभावना अधिक हो गई है। अब तक उपचार के लिए दिये जाने वाले रेडिएशन की मात्रा अब कम की जा सकेगी जो इस उपचार में पडऩे वाले नकारात्मक प्रभाव को कम करेगी। इससे उपचार के स्थान को सीमित क्षेत्र में केंद्रित किया जा सकेगा जिसके अंतर्गत ट्यूमर पर नज़र रखते हुए कैंसर के ऊतकों पर प्रभावी इलाज संभव हो सकेगा।
डॉ. राव एवं उनकी टीम ग्रास नलिका के कैंसर के उपचार पर भी अनुसंधान कर रही है। इस तकनीक के जरिये प्रारंभिक अवस्था के ट्यूमर का पता लगाकर उसका उपचार भी किया जाता है जिसके लक्षण सामान्य तौर पर नज़र नहीं आते। लेकिन कालांतर में इस ट्यूमर का आकार इतना बड़ा हो जाता है कि यह ग्रास नलिका को अवरुद्ध कर देता है जिससे खाना निगलने में दिक्कत होने लगती है। उनका मानना है कि कैंसर का उपचार इस बात पर निर्भर करता है कि कैंसर किस अवस्था में है तथा रोगी का स्वास्थ्य किस तरह का है? यानी कैंसर का प्रारंभिक अवस्था में पता लगने तथा रोगी के शरीर की रोग प्रतिरोधक क्षमता अच्छी होने की स्थिति में कैंसर लाइलाज नहीं रहता। यदि कैंसर सीमित स्थान तक है और ग्रास नलिका तक नहीं पहुंचा है तो सामान्य तौर पर सर्जरी के जरिये उसका उपचार किया जा सकता है। लेकिन यदि यह अन्य अंगों को अपनी चपेट में ले लेता है तो मरीज का उपचार कीमोथैरेपी के जरिये ही किया जाता है। इसके लिए अन्य रेडिएशन का प्रयोग कैंसर के फैलाव को रोकने के लिए किया जाता है।
निश्चित रूप से डॉ. राव और उनकी टीम ने कैंसर के उपचार के लिए जो पद्धति विकसित की है, वह कैंसर के उपचार की दिशा में एक मील का पत्थर साबित हो सकती है। आज कैंसर का दानव जिस तरह मानवता को निगलने को तैयार बैठा है, अब उसकी चुनौती का मुकाबला किसी हद तक संभव हो पायेगा। उनके अनुसार इस नैनो टेक्नोलॉजी के जरिये कैंसर-रोधक दवाइयों को कैंसरग्रस्त अंग तक सीधे प्रभावी बनाया जा सकता है। यानी कैंसरग्रस्त ऊतकों का खात्मा स्वस्थ ऊतकों को नुकसान पहुंचाये बिना ही किया जा सकता है।
डॉ. राव और उनकी टीम उन कारणों पर प्रकाश डालती है जो कैंसर के कारण बन सकते हैं। उनका मानना है कि यदि लोग सचेत रहें और परहेज बरतें तो कैंसर के खतरे को टाला जा सकता है। लोगों को धूम्रपान से बचना चाहिए एवं अन्य तम्बाकू उत्पादों से परहेज करना चाहिए। शराब का उपयोग भी सीमित मात्रा में किया जाना चाहिए। अपने भोजन में अधिक मात्रा में ताजा फलों और सब्जियों का उपयोग करना चाहिए। इसका उपयोग मांस व डेयरी उत्पादों के मुकाबले अधिक होना चाहिए। प्रयास हो कि साबुत अनाज का उपयोग हो सके। इसके साथ ही जरूरी है कि वजन को नियंत्रित करने के लिए कर्मशील रहें।(हरिहर स्वरुप )
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