रक्षा अनुसंधान एवं विकास संगठन (डीआरडीओ) द्वारा विकसित की गई बैलिस्टिक
मिसाइल रक्षा (बीएमडी) प्रणाली की तैनाती के लिए नई दिल्ली व मुंबई का चयन
किया गया है। मिसाइल सुरक्षा कवच के नाम से विख्यात यह प्रणाली बहुत ही कम
समय में तैनात की जा सकती है। रक्षा मामलों की संसदीय समिति से मंजूरी लेने
के लिए पूरी परियोजना के विस्तृत विश्लेषण के बाद सरकार के समक्ष यह
प्रस्ताव रखा जाने वाला है। शत्रु की मिसाइल का पता लगाने के लिए राडार
लगाने के स्थलों और जवाबी हमला करने वाली इस प्रणाली के बारे में योजना के
स्तर पर कुछ दिनों में फैसला ले लिया जाएगा।
उपर्युक्त दोनों शहरों में दुश्मन के हवाई हमलों से सुरक्षा निश्चित करने
के लिए रक्षा अनुसंधान एवं विकास संगठन ऐसा मिसाइल सुरक्षा कवच तैनात करेगा
जो शत्रु की मिसाइलों को पृथ्वी के वायुमंडल इससे बाहर मार गिराने में
सक्षम होगा। यह मिसाइल सुरक्षा कवच प्रणाली पूरी तरह से स्वचालित है और
इसमें थोड़े से मानवीय हस्तक्षेप की आवश्यकता है। नई दिल्ली और मुंबई में
सफल तैनाती के बाद इसे अन्य महत्वपूर्ण शहरों में तैनात किया जाएगा।
डीआरडीओ की योजना है कि सन 2016 तक इस प्रणाली की क्षमता 5000 किलोमीटर की
दूरी तक कर ली जाए।
बीएमडी सिस्टम की एक बैटरी से 200 वर्ग किलोमीटर के आसमान की सुरक्षा संभव
हो सकेगी। इतना बड़ा इलाका राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र के बराबर होगा। इस
प्रणाली का सुरक्षा राडार एक साथ 200 लक्ष्यों को सरलता से पकड़ने में
सक्षम है। बीएमडी सिस्टम अत्याधुनिक होने के कारण अमेरिका की पैट्रियाट
पैक-3 मिसाइल सिस्टम से काफी बेहतर है। इसलिए ये बैलिस्टिक मिसाइलें
पाकिस्तान की हत्फ श्रेणी की मिसाइलों तथा चीन की डोंगफोंग व जुलेंग
मिसाइलों को नष्ट करने की क्षमता रखती हैं। अत्याधुनिक मिसाइल सिस्टम ताकत
के मामले में 10 फरवरी, 2012 का दिन ऐतिहासिक रहा। इस दिन वैज्ञानिकों ने
मिसाइल रोधी सुरक्षा प्रणाली को और अधिक सक्षम बनाते हुए इसका शानदार सफल
परीक्षण किया। इस इंटरसेप्टर मिसाइल ने समुद्र से तकरीबन 15 किलोमीटर की
ऊंचाई पर पृथ्वी मिसाइल का रास्ता रोका और चंद सेकेंड में उसे ध्वस्त कर
दिया।
शत्रु की किसी भी हमलावर मिसाइल को जमीन पर गिरने से पहले उड़ान के दौरान
आसमान में ही उसे नष्ट कर देने वाली मिसाइल को इंटरसेप्टर मिसाइल कहा जाता
है। दुश्मन की आक्रामक मिसाइलों के खतरे से निपटने के लिए अभेद्य कवच
विकसित करने के प्रयास सन 1999 में प्रारंभ कर दिए गए थे। इसका परिणाम सन
2006 में तब सामने आया जब 27 नवंबर को इसका प्रथम सफल परीक्षण किया गया।
इसके बाद 6 दिसंबर, 2007 एवं 6 मार्च, 2009 को इसके सफल परीक्षण हुए। अगला
परीक्षण 14 मार्च, 2010 को व्हीलर द्वीप से किया जाना था, लेकिन मिसाइल की
उपप्रणाली की तकनीकी खामियों के कारण इसे टाल दिया गया था। 15 मार्च, 2010
को परीक्षण के समय पृथ्वी मिसाइल अपने पूर्व निर्धारित पथ से भटक गई जिससे
वैज्ञानिकों को अंतिम समय में परीक्षण टालना पड़ा। 26 जुलाई, 2010 एवं 6
मार्च, 2011 के पांचवे व छठे परीक्षण सफल रहे थे।
इंटरसेप्टर मिसाइल का अपना राडार व हमलावर मिसाइल का पता लगाने के लिए
डाटा लिंक, आंतरिक संचालन प्रणाली तथा सिक्योर डाटा लिंक हैं। यह सटीक
निशाना लगाती है। इंटरसेप्टर मिसाइल शत्रु द्वारा दागी गई किसी भी विध्वसंक
मिसाइल की गति, दिशा व समय आदि की गणना करके उसे अति शीघ्र हवा में नष्ट
करने की क्षमता रखती है। इसके इंफ्रारेड सेंसर व संवेदनशील कैमरे आसमान की
गतिविधियों की सूचना शीघ्र देते हैं। इससे उसे निशाने में लेना आसान हो
जाता है। चूंकि इसे मोबाइल लांचर से भी छोड़ा जा सकता है इसलिए युद्धकाल
में इस मिसाइल की क्षमता और भी बढ़ जाती है। डॉ. लक्ष्मीशंकर यादव
No comments:
Post a Comment