Tuesday 19 June 2012

खतरनाक हो सकता है ‘साइबर युद्ध

कंप्यूटर का आविष्कार कामकाज को सरल बनाने के लिए किया गया था, लेकिन आज इसी कंप्यूटर के जरिए दूसरे देशों की जासूसी और गोपनीय सूचनाओं की चोरी तक की जा रही है. पिछले दिनों दुनियाभर में कई ऐसे वायरस हमलों का पता चला है, जिसने एक नये तरह की चुनौती पेशकी है. सबसे बड़ी चिंता की बात यह कि इनकी काट के तौर पर अब तक कोई एंटी वायरस विकसित नहीं किया जा सका है. इन वायरसों का खतरा इतना बढ.ता जा रहा है कि शीर्ष साइबर सुरक्षा कंपनियां भी इनका समाधान ढूंढ.ने में खुद को लाचार महसूस कर रही हैं. क्या हैं साइबर वार की चुनौतियां और इससे किस तरह के हैं खतरे, इस विषय पर खास पेशकश 
ऐ सा बहुत ही कम होता है कि कोई अपनी असफलता को स्वीकार कर लेता है. और ऐसा तो शायद ही कभी हुआ होगा कि किसी क्षेत्र या उद्योग विशेष से जुड़ी सभी कंपनियां एक साथ अपनी असफलता स्वीकार कर ले. लेकिन, ऐसी असफलता आज की कड़वी हकीकत है और साइबर क्षेत्र पर पूरी तरह लागू होती है. आज भारतीय जांच एजेंसी सीबीआइ से लेकर अमेरिकी रक्षा विभाग का मुख्यालय पेंटागन तक साइबर हमलों के शिकार रहे हैं. नये तरह के खतरनाक वायरस से ईरान के न्यूक्लिर प्रतिष्ठानों को निशाना बनाया जा रहा है और ऐसे वायरस की काट ढूंढ.ने में एंटी वायरस कंपनियां पूरी तरह असफल साबित हो रही हैं. अब तो एंटी वायरस कंपनियां भी मान रही हैं कि आज ऐसे-ऐसे वायरस विकसित हो रहे हैं, जिन्हें पकड़ पाना असंभव-सा हो रहा है. 

फ्लेम यानी साइबर जासूस की नहीं है कोई काट


यह एक स्पाइवेयर सॉफ्टवेयर है, जिसे कुछ इस तरह डिजाइन किया गया है कि यदि आप अपने कंप्यूटर के की-बोर्ड पर अंगुलियां रखते हैं तो संबंधित की की आवाज से ही यह चोरी-छिपे आपके कंप्यूटर की सारी जानकारियां रिकॉर्ड कर लेगा और उसे ट्रांसमिट भी कर देगा. फ्लेम नाम का यह वायरस जानकारी चुराता है, इसलिए इसे साइबर जासूस का नाम दिया गया है. यह ऑडियो बातचीत पर भी नजर रख सकता है. यह जिस कंप्यूटर पर हमला करता है, उसकी पूरी तरह जासूसी करता है. यह कंप्यूटर के स्क्रीनशॉट लेकर हमलावर को भेज देता है. इतना ही नहीं, यह डिवाइस का ब्लूटूथ ऑन करके आसपास रखे अन्य ब्लूटूथ डिवाइस से भी जानकारी चुराता है.

स्टक्सनट के आगे भी घुटने टेके

स्टक्सनट भी फ्लेम की ही तरह एक और वायरस है. इस वायरस के हमले की गंभीरता उस वक्त पता चली, जब 2010 में इसने ईरानी इंफ्रास्ट्रक्चर को निशाना बनाया और उसके यूरेनियम संवर्धन प्रोग्राम को बाधित किया, साथही कई जानकारियां इसके हमलावर तक पहुंचा दी. लेकिन, इस वायरस की खोज के दो साल बाद भी इसका कोई एंटी-वायरस विकसित नहीं किया जा सका है. अब तक यह भी पता नहीं चल पाया है कि स्टक्सनट वायरस को किसने लॉन्च किया.

फ्लेम के बाद यह दूसरा ऐसा वायरस है, जिसके लिए हम एंटी वायरस विकसित करने में अब तक असफल रहे हैं. यह खतरे की घंटी की तरह है. यदि आपके न्यूक्लियर प्रोग्राम पर किसी अप्रत्यक्ष डिजिटल हमले का खतरा मंडरा रहा है और पुलिस भी कोई कार्रवाई करने में लाचार और बेबस है, तो ऐसी में स्थिति की गंभीरता को समझा जा सकता है. हालात यहां तक पहुंच चुके हैं कि मौजूदा वैश्‍विक परिप्रेक्ष्य में साइबर हमलों की क्षमता को भी सामरिक क्षमता का एक अंग माना जाने लगा है. एक हालिया रिपोर्ट के मुताबिक सिर्फ ईरान ने ही हाल के महीनों में अपनी साइबर क्षमताओं की सुरक्षा और अन्य देशों पर साइबर हमलों की क्षमता विकसित करने के लिए करोड़ों डॉलर खर्च किये 

पांच सबसे बडे साइबर खतरे

वायरस किसी भी कंप्यूटर के लिए सबसे बड़ी समस्या के तौर पर जाना जाता है. पिछले कुछ वर्षों में यह समस्या काफी जटिल हो गयी है. रूसी कंप्यूटर सुरक्षा फर्म कास्पर्सकी के मुताबिक, आने वाले समय में इनसे ये पांच सबसे ब.डे खतरे हो सकते हैं-

कंप्लीट डार्कनेस : पिछले दिनों ईरानी कंप्यूटर सिस्टम में वायरस के हमले के कारण उसके प्रमुख तेल संस्थानों के कंप्यूटर अचानक ही ऑफलाइन हो गये. आने वाले समय में ऐसा हमला और भी व्यापक स्तर पर हो सकता है. इससे पूरा बिजली संयंत्र ही प्रभावित हो सकता है और हमारे पास इस समस्या का कोई तात्कालिक समाधान नहीं होगा. यदि ऐसा होता है तो हम कंप्लीट डार्कनेस के साथ दो सौ साल पहले की स्थिति यानी पूर्व विद्युत युग में पहुंच जाएंगे.

सोच पर हमला : सोशल नेटवर्किंग सिस्टम के माध्यम से लोगों के सोच को ब.डे पैमाने पर प्रभावित किया जा सकता है. कंप्यूटर सुरक्षा फर्म कास्पर्सकी के प्रमुख इजीन कास्पर्सकी का कहना है कि द्वितीय विश्‍व युद्धके दौरान हवाई जहाजों से शत्रु देशों में अपने प्रोपेगेंडा के प्रचार-प्रसार के लिए पर्चे गिराये जाते थे. आज यही काम सोशल नेटवर्किंग साइटों के जरिए हो रहा है. पिछले महीने चीन में ब्लॉग पर यह खबर तेजी से फैली कि देशमें विद्रोह हो गया है और सेना की टैंक सड़कों पर तैनात हैं. बाद में यह खबर झूठी निकली. अरब क्रांति के दौरान सोशल साइटों ने प्रदर्शन को सफल बनाने में अहम भूमिका निभाई.

वेब किड्स : तीसरा सबसे बड़ा खतरा यह हो सकता है कि इंटरनेट पीढ.ी इसी के साथ व्यस्त हो जायेगी. आज के बो डिजिटल वर्ल्ड में ब.डे हो रहे हैं. कुछसमय बाद वे ब.डे हो जाएंगे और उन्हें वोट भी देना होगा. अगर ऑनलाइन वोटिंग सिस्टम की सुविधा नहीं होगी, तो वे वोट देने ही नहीं जाएंगे. इस तरह तो पूरी लोकतांत्रिक प्रक्रिया ही बिगड़ जायेगी. इसके अलावा बो और अभिभावक के बीच की खाई भी बढ.ती जायेगी.

अकाउंट हैकिंग : किसी भी कंप्यूटर यूजर के लिए साइबर अपराध वर्षों से चिंता की बात रही है. कोई भी कंप्यूटर वायरस से सुरक्षित नहीं है. साइबर अपराधी प्रतिदिन पूरी दुनिया में हैकिंग के वायरस फैला रहे हैं. हाल में यह खतरा स्मार्टफोन तक फैल गया है. 

निजता (प्राइवेसी) का खतरा : आजकल प्राइवेसी खत्म-सी हो रही है. गूगल स्ट्रीट व्यू, सीसीटीवी कैमरा और कृत्रिम उपग्रह के जरिएसभी की नजर हम पर होती है. इमेल, सोशल वेबसाइट आदि के इस्तेमाल में भी निजी सूचनाओं का आदान-प्रदान होता है, जिसके सार्वजनिक होने का खतरा रहता है. वायरस के जरिए इन सूचनाओं के साथ छेड़छाड़ भी की जा सकती है.

खतरे की घंटी

फ्लेम नामक वायरस का सबसे पहले पता लगाने वाली कंपनी रूस की कास्पर्सकी का कहना है कि सभी देशों को इस तरह के हमलों की विभीषिका को समझते हुएउन पर रोक के लिए प्रयास करना चाहिए. जिस तरह से फ्लेम जैसे वायरस का हमला बढ.ा है और एंटी वायरस कंपनियां उसका काट ढूंढने में अब तक नाकाम रही हैं, उससे खतरा और बढ.ता जा रहा है. सबसे बड़ी चिंता तो इस बात की है कि हैकर समूह के अलावा कई देश भी इस तरह के साइबर हमले करने लगे हैं, लेकिन कोई भी देश या समूह ऐसे हमलों की जिम्मेदारी नहीं लेता. 

साइबर जासूसी का यह हथियार पारंपरिक हथियारों की तरह नहीं है. यदि एक बार ने इन्हें छोड़ दिया गया तो यह नियंत्रण से बाहर हो जाता है और अपने लक्षित उद्देश्यों के साथ-साथ अन्य चीजों को भी निशाना बना सकते हैं. उसमें बदलाव करके उसे दोबारा भी छोड़ा जा सकता है. ये वायरस भस्मासुर की तरह हैं, जो बाद में इन्हें छोड़ने वाले को भी नुकसान पहुंचा सकते हैं.
ईरान बनाम इजरायल और अमेरिका
फ्लेम नामक वायरस बाजार में मौजूद किसी भी एंटीवायरस की नजर से बच कर हमला कर सकता है. यह पिछले दो साल से इंटरनेट स्पेस में था, लेकिन कोई भी अभी तक इसे नहीं पकड़ पाया था. इस वायरस की खोज पिछले महीने ही की गयी है. पूर्व कंप्यूटर हैकर केविन मिटनिक के मुताबिक, यह अब तक का सबसे खतरनाक साइबर हथियार है, जिसके विकास में काफी वक्त और पैसा लगाया गया है. हो सकता है कि इस वायरस के पीछे कोई देश भी हो, क्योंकि इसके अब तक सबसे ज्यादा हमले ईरान में हुए हैं. इससे अंदाजा लगाया जा सकता है कि इसके पीछे इजराइल या अमेरिका भी हो सकते हैं. पिछले दिनों इजरायल ने ईरान के परमाणु कार्यक्रम के खतरे का हवाला देते हुए इस तरह के कदम को सही ठहराने की कोशिश की. इससे भी यह बात पुख्ता होती है. हालांकि, इस वायरस का हमला ईरान के अलावा सऊदी अरब, मिस्र, सूडान, सीरिया, लेबनान जैसे पश्‍चिम एशिया के कई देशों में हुआ है.साइबर युद्ध की शब्दावली

ट्रोजन हॉर्स : यह एक तरह का वायरस है, जो कंप्यूटर की फाइल को नुकसान पहुंचा सकता है या उन्हें डिलीट कर सकता है. यह कंप्यूटर में एंटी-वायरस के तौर पर भी सामने आ जाता है और जब इसे एक्टीवेट किया जाता है तो यह कंप्यूटर के सिस्टम, फाइल और फोल्डर में आसानी से घुसपैठ कर लेता है. यह सिस्टम में एक बैकडोर तैयार कर लेता है और आपकी निजी सूचनाओं को दूसरी जगह पर भेजता है.

बोटनेट : वायरस ग्रसित कंप्यूटर्स की सूचनाओं को विभित्र जगहों तक भेजना, जिसे उसके मालिक की जानकारी बिना भी संचालित किया जा सकता है. इसका इस्तेमाल दूसरे कंप्यूटर नेटवर्क को निशाना बनाने के लिए भी किया जा सकता है.

स्काडा : यह ऐसा कंप्यूटर सिस्टम है, जो फैक्टरियों के कामकाज को नियंत्रित करता है और मशीनों के परफॉर्मेंस की जानकारी इकट्ठा करता है.

वायरस : ऐसा कंप्यूटर प्रोग्राम, जिसे कंप्यूटर या नेटवर्क को खराब करने के लिए या उसकी जानकारी लेने के लिए बनाया जाता है.

वर्म : यह एक प्रकार का वायरस है, जो अपनी प्रतिकृति खुद बना सकता है. यह कंप्यूटर की मेमोरी या हार्ड डिस्क को नष्ट कर देता है.
2000 में 5 मई को आइ लव यू नामक वायरस सामने आया. इससे 55 लाख डॉलर का नुकसान हुआ.

1999 में मेलिस्सा नामक वायरस की खोज हुई. यह वर्ड प्रोसेसर के जरिये फैलता है.


1993 में बैरोट्स नामक वायरस का पता चला. यह हार्ड डिस्क के मास्टर बूट रिकॉर्ड को ओवरराइट कर देता है.
साइबर जंग में फिसड्डी है भारत
भारत को सूचना तकनीक के क्षेत्र का सुपर पावर माना जाता है. लेकिन, यह जानकर आपको आश्‍चर्य होगा कि हम साइबर युद्ध के मामले में काफी पीछे यानी फिसड्डी हैं. आज अमेरिका, चीन, रूस और इजरायल जैसे देशों ने साइबर युद्ध में आक्रामक क्षमता हासिल कर ली है. किसी भी देश की नेट प्रणाली के मूल कोड को जानने के लिए दुनिया के 120 देशों ने साइबर जासूसी का जाल फैला दिया है. इसके जरिए किसी भी देश की आर्थिक और युद्धक क्षमता को पंगु बनाया जा सकता है. यदि भारतीय वायुसेना के नेटवर्क के मूल कोड चीन या पाकिस्तान को मिल जाएं तो वे वायुसेना की संचार-प्रणाली में सेंध लगाने में सफल हो सकते हैं. एंटी-वायरस विकसित करने वाली कंपनी मेक्कफी की रिपोर्ट के मुताबिक, आने वाले समय राष्ट्रीय सुरक्षा के लिए सबसे बड़ा खतरा साइबर जासूसी ही होगा. युद्ध के दौरान दुश्मन की कोशिश होगी कि साइबर हमले के माध्यम से बिजली, गैस पाइपलाइन, विमान यातायात कंट्रोल, वित्तीय बाजार और सरकारी नेटवर्क को पूरी तरह निष्प्रभावी बना दिया जाये. एक तरह से देखा जाये तो यह किसी भी मायने में परमाणु हमले से कमतर नहीं होगा.(चन्दन मिश्रा)

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