साइंस ब्लॉगिंग यानि कि विज्ञान
चिट्ठाकारिता विज्ञान को हर विद्यार्थी, शिक्षक और जन सामान्य तक पहुँचाने का
एक नया तरीका है। साइंस ब्लॉगिंग ने विज्ञान प्रचार के वैश्विक प्रयासों में एक
नयी स्फूर्ति भर दी है। वैसे अंग्रेज़ी भाषा में तो विज्ञान के लिए बहुत कुछ है
परन्तु अंतर्जाल की दुनिया में हिन्दी व अन्य क्षेत्रीय भाषा में अभी हाल ही में
इस नवाचारी तकनीक का पदार्पण हुआ है। इस तकनीक का इस्तेमाल कुछ ही विज्ञान लेखक कर
रहे हैं। निसंदेह विज्ञान शिक्षण-अधिगम और विज्ञान संचार के क्षेत्र में यह अभिनव
प्रयास अंतर्जाल (इंटरनेट) के जरिये ही संभव हुआ है। आज का युग इंटरनेट का युग है।
संचार के समस्त साधनों में अति उन्नत तकनीक है ये अंतर्जाल का महाजाल जिसका फैलाव
विश्वव्यापी है। इंटरनेट की पहुँच आज जन सामान्य तक हो चुकी है और दुनिया में इसके
उपयोगकर्ता बहुत तेजी से बढ़ रहें हैं। आज कोई यदि ज्ञान की खोज में निकलता है तो
वो पुस्तकालय के साथ साथ इंटरनेट को भी प्राथमिकता देने लगा है। तो फिर ऐसे में
विज्ञान शिक्षा क्यूँकर पीछे रहे आज हर घर हर विद्यालय में शिक्षक और शिक्षार्थी
दोनों अंतर्जाल के माध्यम से विज्ञान शिक्षण-अधिगम की बुलंदियों को छू सकते हैं।
इंटरनेट ने तो पिछले एक दशक से भी कम
समय में विज्ञान संचार के तरीके में क्रान्ति ला दी है परन्तु हिन्दी विज्ञान
चिट्ठाकारिता 2007-08 से ही प्रकाश में आई और आते ही द्रुतगति से फैली। आज हिन्दी
में विज्ञान चिट्ठाकारिता के अच्छे-खासे लेखक और पाठक हैं। हिन्दी माध्यम के साथ
साथ अंग्रेज़ी और क्षेत्रीय भाषाओं के भी पाठक विज्ञान चिट्ठों पर अपना ज्ञान
बढ़ाते हैं। आजकल विज्ञान शोध, कोचिंग, मार्गदर्शन
(व्यवसायिक व शैक्षणिक) जैसे कार्य अंतर्जाल पर किये जा रहे हैं। शोधकर्ता अपने
शोधपत्र और संदर्भ सूची भी खुली चर्चा के लिए ऑनलाइन रखते हैं। अंतर्जाल पर लिखी
गई वैयक्तिक डायरियाँ ही ब्लॉग (हिन्दी नाम चिट्ठा) कहलाती हैं। इन चिट्ठों का
लेखन, सम्पादन, प्रकाशन का कार्य खुद लेखक (चिट्ठाकार) द्वारा
ही होता है। इस तकनीक की खास बात यह है कि इस में कम्प्यूटर का अधिक ज्ञान आवश्यक
नहीं है। मात्र 5-6 दिनों के प्रशिक्षण के बाद कोई भी शिक्षित व्यक्ति चिट्ठाकारी
शुरू कर सकता है। हिन्दी में टाइप ना जानते हुए भी आजकल सॉफ्टवेयर की मदद से रोमन
स्टाइल में हिन्दी लिखी जा सकती है।
विज्ञान शिक्षण के क्षेत्र में नित नई
चुनौतियों के मद्देनजर विज्ञान संचार के लिये यह आवश्यक हो जाता है कि विज्ञान
संचारक, संचार के प्रत्येक उस उन्नत व नवाचार माध्यम को चुने जिसके जरिये वो
विज्ञान के प्रत्येक ज्ञानपिपासु और जनसामान्य तक पहुँच सके। इन्फॉर्मेशन
टैक्नोलोजी (I.T.) के द्वारा आज इस मकसद में कामयाबी प्राप्त हो
चुकी है। जब कोई हिन्दी माध्यम में शिक्षा ग्रहण करने वाला पूर्व माध्यमिक या
माद्यमिक स्तर का छात्र किसी विज्ञान जानकारी और विज्ञान प्रदर्शनी के लिए मॉडल
बनाने के लिए अंतर्जाल तक पहुँचता है तो उसे विभिन्न वेबसाइटों पर सम्बन्धित ज्ञान का भण्डार मिलता
है परन्तु सब कुछ अंग्रेजी में, ऐसी स्तिथि में उसे भाषा माध्यम की
दिक्कत पेश आती है।
No comments:
Post a Comment