Monday 21 May 2012

ब्लैक बाक्सों का रहस्य


21 अक्तूबर 1976 का दिन था। मुम्बई में बारिश का मौसम लगभग समाप्त हो चुका था इस लिये वहां के मछुआरे बड़े उत्साह के साथ अपनी नौकाये ले कर सागर यात्रा के लिये निकल पड़े थे। इसी प्रकार मुम्बई के प्रसिद्ध जुहू तट के समीप ही कुछ मछुआरे मछली पकड़ने के उद्देश्य से सागर में अपना जाल डाल रहे थे। अचानक एक मछुआरे को अपने जाल में कुछ ठोस वस्तु फंसी नज़र आई। बाहर निकालने पर चटक नारंगी रंग का लगभग 0 किलो वजन का एक चौकोर लम्बा सा मजबूत बक्सा सा पाया गया जिस पर कुछ बटन आदि लगे थे। बस्ती के कुछ पढ़े लिखे लोगों नें उस पर लिखे विवरण को पढ़ कर बताया कि संभवत: वह किसी वायुयान का भाग था।
कुछ इनाम आदि मिलने की आशा में मछुआरा उस वस्तु को मुम्बई के सान्ताक्रूज हवाई अड्डे पर ले आया और वहां के अधिकारियों को सौंप दिया। उस बक्से को देख कर हवाई अड्डे के अधिकारी उछल से पड़े और तब मालूम पड़ा कि यह तो वही वस्तु थी जिसकी खोज में उन लोगों ने पिछले नौ दिनों से आकाश पाताल एक कर डाला था। मछुआरे के जाल में फंसी वह वस्तु वास्तव में विमान का ब्लैक बाक्स था जो नौ दिन पहले दुर्टनाग्रस्त हुये इडिंयन एयरलाइन्स के कैरावेल विमान से अलग हो कर सागर में गिर गया था।
इस के लिये मुम्बई नगर के जुहू, सान्ताक्रूज तथा विले पार्ल उपनगरों की गलियां गलियां छान मारी गईं थीं किन्तु उसका पता नहीं चल पाया था। और अब अनजाने में उस मछुआरे ने ब्लैक बाक्स को ढूंढ कर उनकी इतनी बड़ी समस्या हल कर दी थी।
इडिंयन एयरलाइन्स का यह कैरावेल विमान 12 अक्तूबर 1976 की देर रात को 95 यात्रियों तथा विमान कÆमयों को ले कर मुम्बई से चेन्नै के लिये रवाना हुआ था। दुर्भाग्यवश उड़ान के तुरन्त बाद विमान के पूंछ के पास स्थित एक इंजन में भीषण आग लग गई। विमान कप्तान के पास अधिक समय नहीं था इसलिये उसनें फौरन विमान को वापस मुम्बई हवाई अड्डे की ओर मोड़ा। तब तक आग काफी फैल चुकी थी औऱ विमान के टुकड़े टूट टूट कर आकाश से नीचे गिरने लगे।
चालक ने विमान को धावन पथ से थोड़ा पहले उतार तो लिया किन्तु तब तक आग नें सम्पूर्ण विमान को जला कर नष्ट कर दिया था तथा उस में सवार सभी व्यक्तियों की (चालक सहित) दुखद मृत्यु हो चुकी थी। चूंकि यह दुर्घटना अचानक हो गई थी तथा देर रात में घटी थी अत: उसके चश्मदीद गवाह मिलना कठिन था।
इस प्रकार विमान दुर्घटना की जांच के सिलसिले में ब्लैक बाक्सों का मिलना अत्यन्त आवश्यक समझा जा रहा था। इस प्रकार मछुआरे के जाल से निकाले जाने के बाद अब सबकी निगाहें उसी विशेष बक्से पर लगी हुईं थीं। और आश्चर्य की बात यह थी कि लगभग नौ दिनों तक सागर के जल में डूबे रहने के बाद भी उस को कुछ नुकसान नहीं पहुंचा था तथा टेप को खोलने के बाद उस पर अंकित रिकार्डिंग को भली भांति पढ़ा जा सका तथा उस के द्वारा दुर्घटना से पूर्व की अनेक छुपी हुई कड़ियों का पता लगाया जा सका। इससे यह स्पष्ट हो जाता है कि ब्लैक बाक्सों का कितना महत्व है।
क्या हैं ये डिब्बे
सबसे पहले तो हमें यह जान कर आश्चर्य होता है कि प्रत्येक विमान में एक नहीं बल्कि दो दो ब्लैक बाक्स होते हैं, जो क्रमश: फ्लाइट डेटा रिकार्डर (एफ.डी.आर.) तथा काकपिट वायस रिकार्डर (सी.वी.आर.) कहलाते हैं। जहां एफ.डी.आर. विमान के उड़ान सम्बन्धी आंकड़े रिकार्ड करता है वहीं सी.वी.आर. विमान के यान कक्ष में होने वाली बातचीत रिकार्ड करता है। और यह काम ब्लैक बाक्स उड़ान के दौरान निरन्तर करते रहते हैं।
एफ.डी.आर. तथा सी.वी.आर. यद्यपि ब्लैक बाक्स अथवा काले बक्से कहलाते हैं किन्तु आशा के विपरीत इनका रंग काला ना हो कर गहरा लाल अथवा नारंगी होता है। इन्हे ब्लैक बाक्स इसलिये कहा जाता है क्यों कि इन में अंकित सूचनायें तब तक ज्ञात नहीं हो सकती हैं जब तक इन डिब्बों को खोल कर टेप को बाहर ना निकाला जाये। इनका रंग गहरा लाल अथवा नारंगी रखने का मकसद यह होता है कि दुर्घटना के समय इनको आसानी से ढूंढा जा सके।
एफ.डी.आर. तथा सी.वी.आर. बाहर से देखनें पर आकार तथा भार आदि में बिल्कुल एक जैसे लगते हैं किन्तु वास्तव में ये बिल्कुल भिन्न भिन्न उपकरण हैं तथा इनकी कार्य प्रणाली एक दूसरे से बिल्कुल अलग होती है। इसके अलावा इनकी अन्दरूनी बनावट भी अलग अलग होती है।
ब्लैक बाक्सों का आकार सामान्यत: आयताकार होता है, जिनकी लम्बाई 30 से.मी., चौड़ाई 20 से.मी. तथा ऊंचाई 13 से.मी. होती है तथा इनका भार लगभग10 किलोग्राम होता है। इस प्रकार देखनें में ये किसी ब्रीफ केस से बड़े नहीं दिखते हैं। इन के ऊपरी आवरण अत्यन्त सुद्धढ़, जल निरोधक तथा ताप निरोधक होते हैं जो विमान दुर्घटना के भयंकर आघात तथा कठोर ताप को सहने में सक्षम होते हैं।
इन ब्लैक बाक्सों के माइक्रोफोन तथा अन्य रिकार्डिग यन्त्र यद्यपि विमान के यानकक्ष (काकपिट) तथा अन्य स्थानों पर लगे होते हैं, किन्तु ये बक्से प्राय विमान के पिछले हिस्से में लगाये जाते हैं। इन्हे पिछले भाग में लगाने का प्रयोजन यह है क्यों कि ऐसा समझा जाता है कि विमान दुर्घटना होने पर अधिकतर मामलों में उसकी पूंछ का हिस्सा नष्ट होने से बच जाता है।
दोनों प्रकार के ब्लैक बाक्सों में एक एक ध्वनि प्रसारक यन्त्र भी लगा रहता है जो एक विशेष प्रकार की बैटरी द्वारा संचालित होता है। इस बैटरी की विशेषता यह है कि जब यह जल के सम्पर्क में आती है तभी अपना कार्य आरम्भ करती है, अन्यथा सुप्त बनी रहती है। इस प्रकार यदि दुरर्टना के समय विमान किसी नदी, झील या सागर में गिर जाये तो यह बैटरी चालू हो जाती है तथा ध्वनि प्रसारक यन्त्र से विशेष प्रकार की बीप बीप आवाजें आने लग जाती हैं। इन ध्वनियों को सुन कर खोज कर्ता जल में डूबे ब्लैक बाक्सों को ढूंढने में सक्षम हो सकते हैं।
एक बार चालू हो जाने के बाद यह बैटरी 30 दिन तक कार्य करती है और तब तक इन्हे ढूंढा जा सकता है। इसी कारण एयर इन्डिया के कनिष्क विमान की दुर्घटना के समय लगभग दो कि.मी. की गहराई वाली सागर की तलहटी से इन छोटे छोटे बक्सों को निकाला जा सका था। यह कार्य कुछ कुछ भूसे के ढेरी से सुई ढूंढना जैसा था। (प्रारम्भ के दिनों में ब्लैक बाक्सों में इस प्रकार के ध्वनि प्रसारक यन्त्रों की व्यवस्था नहीं थी। इसी लिये 12 अक्तूबर 1976 को मुम्बई के निकट सागर में गिरा हुआ ब्लैक बाक्स शीघ्र खोजा नहीं जा सका था।)
ब्लैक बाक्स कितने मजबूत होते हैं इसका अनुमान नीचे लिखे विवरणों से लगाया जा सकता है।
पहली जनवरी 1978 को नव वर्ष के अवसर पर मुम्बई के निकट एयर इन्डिया का सम्राट अशोक नामक जम्बो जेट दुर्घटना ग्रस्त हो गया तथा सम्पूर्ण विमान 213 सवारों के साथ सागर की तलहटी में धंस गया। लगभग तीन दिनों के बाद विमान का मलवा खोज जा सका तथा ब्लैक बाक्सों कों निकाला गया। इतने भयंकर झटकों तथा सागर के खारे जल के सम्पर्क के बावजूद भी ब्लैक बाक्स बिल्कुल सही तथा कार्य करने वाले पाये गये।

इसी प्रकार 4 अगस्त 1979 को इन्डियन एयरलाइन्स का एक एवरो (एच.एस. 748) विमान मुम्बई के निकट पहाड़ियों से टकरा कर नष्ट हो गया और उसमें सवार सभी 45 व्यक्तियों की मृत्यु हो गई। विमान आघात तथा आग लग जाने के कारण पूरी तरह से नष्ट हो गया तथा केवल उसके कुछ जले हुये टुकड़े ही पाये गये। इस विमान के ब्लैक बाक्सों के ऊपरी कवच भी काफी हद तक जल गये थे किन्तु अन्दरूनी हिस्से बिल्कुल सही सलामत पाये गये। उनके अन्दर के टेप को निकाल कर जब पढ़ा गया तो पता चला कि वे बिल्कुल सही हालत में थे। और फिर उन्ही की सहायता से दुर्घटना के कारणों का पता चल पाया।
इसी प्रकार अनेकों ऐसे उदाहरण मिलेंगें जब ब्लैक बाक्सों की शीत, गर्मी, बारिश, आघात आदि को झेल सकने की क्षमता सिद्ध हो चुकी है।
इन बाक्सों के इतने परिचय के बाद अब सी.वी.आर. तथा एफ.डी.आर को अलग अलग जानने की बारी आती है।
दुर्घटना ग्रस्त विमान का क्षतिग्रस्त ब्लैक बाक्स। किन्तु इसका टेप सही सलामत मिलेगा
काकपिट वायस रिकार्डर-आवाज की नकल
काकपिट वायस रिकार्डर अथवा सी.वी.आर. विमान के यानकक्ष (काकपिट) में कर्मी दल के सदस्यों की आपस की बातचीत तथा रेडियो पर किये गये वार्तालाप को रिकार्ड करता है। सी.वी.आर. द्वारा केवल मानवीय आवाज ही नहीं बल्कि अन्य ध्वनियां भी जैसे यानकक्ष में बजने वाली घंटी, बजर, चेतावनी के संकेत, स्विचों की आवाजें, विमान के इंजनों का शोर आदि भी रिकार्ड किये जाते हैं।
वास्तव में सी.वी.आर. काफी कुछ एक घरेलू टेप रिकार्डर जैसा ही होता है। बस अन्तर सिर्फ यह होता है कि यह अत्यन्त सुद्धढ़ ढांचे में सुरक्षित होता है तथा घरेलू टेप रिकार्डर के विपरीत इसमें एक के बजाय चार ट्रैक होते हैं। सी.वी.आर. के टेप की अवधि आधे घन्टे की होती है। आधे घन्टे के बाद पुराने टेप की रिकार्डिंग मिटती जाती है तथा नई रिकार्डिंग स्वत: होती जाती है। इस प्रकार किसी भी समय सी.वी.आर. को खोला जाये तो उसमें केवल पिछले आधे घन्टे की रिकार्डिंग मौजूद मिलेगी। सी.वी.आर. विमान के इंजनों चलने की शक्ति प्राप्त करता है और इंजनों के बन्द हो जाने के बाद कार्य करना बन्द कर देता है।
सी.वी.आर. के प्रथम तीन चैनेलों पर क्रमश: विमान के कप्तान तथा उपकप्तान द्वारा रेडियो पर प्रसारित किये गये तथा प्राप्त किये गये सन्देश, एयर होस्टेस द्वारा यात्रियों के लिये किया गया प्रसारण रिकार्ड होता जाता है। इसके चौथा चैनेल एरिया माइक कहलाता है जिस पर विमान के यान कक्ष में आने वाली विभिन्न ध्वनियां जैसे कर्मीदल के सदस्यों द्वारा आपस में की जाने वाली बातचीत, इंजनों का शोर, स्विचों की आवाजें, चेतावनी की घंन्टियां तथा बजर की आवाजे, यान कक्ष के द्वार के खुलने बन्द होने की आवाजें, तथा अन्य प्रकार का शोर शराबा निरन्तर रिकार्ड होता रहता है। विमान दुर्घटना अन्वेषक के लिये चौथा चैनेल अर्थात एरिया माइक अत्यन्त महत्वपूर्ण माना है क्यों कि इसकी सहायता से उन्हे दुर्घटना की जांच सम्बन्धी अनेक महत्वपूर्ण सूत्र प्राप्त हो जाते हैं।
विमान दुर्घटना जांच के दौरान सी.वी.आर. के टेप को निकाला जाता है, तथा उसके आधार पर टेप में रिकार्ड किये गये वार्तालाप तथा ध्वनियों आदि के लिखित विवरण तैयार किये जाते हैं। यह काम काफी कठिन होता है क्यों कि अनेक प्रकार की मिली जुली ध्वनियां तथा वार्तालाप बहुत धीमें तथा क्षीण होते हैं जिनको समझना काफी कठिन होता है। किन्तु अनुभवी विमान दुर्घटना अन्वेषक यह कार्य कर लेते हैं। तत्पश्चात विमान चालकों की ध्वनियों से परिचित लोगों की सहायता से उन वार्तालाप को बोलने वालों की पहचान की जाती है। इस प्रकार अब यह पता चल जाता है कि दुर्घटना से पूर्व कर्मीदल के किस सदस्य नें किस मौके पर क्या वाक्य कहा था। इन सब के आधार पर सी.वी.आर. की रिपोर्ट तैयार हो जाती है।
सी.वी.आर. पर रिकार्ड की गई जानकारी दुर्घटना की जांच में बहुत महत्वपूर्ण सिद्ध होती है। जैसे इनकी सहायता से (यानकक्ष में कर्मीदल के सदस्यों की आपसी बातचीत से) यह मालूम पड़ सकता है कि दुर्घटना के समय यान कक्ष में वातावरण सामान्य था या चालक दल को किसी प्रकार की कठिनाईं का सामना करना पड़ रहा था। यह भी पता चल जाता है कि यन्त्रों के उपयोग सही ढंग से किये गये थे या नहीं, तथा क्या विमान के सभी यन्त्र सही ढंग से कार्य कर रहे थे अथवा क्या किसी यन्त्र से खतरे या चेतावनी की घन्टी या अलार्म आया था। यदि दुर्घटना किसी अपहरणकर्ता अथवा बाहरी व्यक्ति के कारण हुई हो उसकी आवाज भी रिकार्ड हो जाती है। इन सूत्रों के आधार पर विमान दुर्घटना से सम्बन्धित अनेक गुत्थियां सुलझाई जा सकती हैं।
फ्लाइट डेटा रिकार्डर-उड़ान का आंखों देखा हाल
फ्लाइट डेटा रिकार्डर अथवा एफ.डी.आर. विमान की उड़ान सम्बन्धी सूचनायें जैसे विमान की ऊंचाईं, गति, दिशा, विमान के ऊपर अथवा नीचे जाने की गति, समय तथा गुरुत्व बल आदि निरन्तर रिकार्ड करता है। इसका टेप धातु की पतली पट्टी जैसा होता है जिस पर सुई द्वारा ये सारी सूचनायें अंकित हो जाती हैं (ग्रामोफोन की तरह)। यह रिकार्डिंग स्थाई होती है अर्थात सुई द्वारा अंकित निशान मिटायें नहीं जा सकते हैं। फ्लाइट डेटा रिकार्डर का टेप 25 उड़ान घन्टे तक चलता है। तत्पश्चात नया टेप लगाया जाता है तथा पुराना टेप निकाल दिया जाता है। रिकार्ड की गई जानकारी विशेष यन्त्रों द्वारा पढ़ी जाती है तथा उसका ग्राफ बनाया जाता है।
एफ.डी.आर. द्वारा रिकार्ड की गई सूचनाओं के आधार पर विमान दुर्घटना की जांच से सम्बन्धी महत्वपूर्ण जानकारी प्राप्त हो जाती है, जिससे विमान दुर्घटना का कारण जानने में सहायता मिलती। जैसे टेप पर अंकित समय द्वारा यह ज्ञात हो सकता है कि दुर्घटना किस समय घटित हुई थी तथा उसके पूर्व यदि कोई उल्लेखनीय घटना घटी थी तो उसके तथा दुर्घटना के बीच समयान्तर क्या था। दिशा के आधार पर विमान के उड़ान पथ में किसी असामान्य परिवर्तन का पता लग सकता है। इसी प्रकार अंकित की गई गति के आधार पर यह पता चल सकता है कि दुर्घटना से पूर्व विमान सामान्य गति से उड़ान भर रहा था या उसकी गति में असामयिक रूप से तेजी या कमी आई थी। गुरुत्व बल के आधार पर यह पता चल सकता है कि विमान कितनी शक्ति से नीचे आया था अथवा  भूमि से टकराया था। इन्ही सूत्रों के आधार पर जांचकर्ता अपनी रिपोर्ट तैयार करते हैं।
वैसे धातु की पट्टी वाले एफ.डी.आर. अधिकतर पुराने टाइप के विमानों जैसे एवरो, फाकर फ्रेन्डशिप आदि ही में लगाये जाते हैं। आधुनिक विमानों जैसे बोइंग-747, एयरबस, 320 आदि में कम्प्यूटर युक्त फ्लाइट डेटा रिकार्डर लगाये जाते हैं जिन्हें डिजिटल फ्लाइट डेटा रिकार्डर अथवा डी.एफ.डी.आर. कहा जाता हैं। इन में धात्वीय टेप के स्थान पर चुम्बकीय टेप का उपयोग किया जाता है तथा ये कम्प्यूटर की सहायता से रिकार्डिंग करते हैं। डी.एफ.डी.आर. का टेप 200 उड़ान घन्टों तक चलता है और उसके बाद यह टेप बदल दिया जाता है। डी.एफ.डी.आर. की रिकार्डिंग को पढ़ने के लिये भी कम्प्यूटर का प्रयोग किया जाता है।
डी.एफ.डी.आर. द्वारा विमान तथा उसके इंजनों से सम्बन्धित 50 से लेकर सगभग 200 से भी अधिक सूचनायें रिकार्ड की जाती हैं। उदाहरण के लिये इसमें सामान्य सूचनाओं के अतिरिक्त इंजनों की शक्ति, गति, तेल तथा ईंधन का तापमान व दबाव, नियन्त्रण सतहों की स्थित, यात्री कक्ष का तापमान, रेडियो सम्पर्क का समय, अवतरण गियर (लैडिंग गियर) की स्थित, आदि रिकार्ड होती रहती है।
इस प्रकार डी.एफ.डी.आर. की सहायता से विमान की दुर्घटना से पूर्व की उड़ान का विस्तृत विवरण प्राप्त किया जा सकता है, जो कि सामान्य एफ.डी.आर द्वारा सम्भव नहीं है।
प्रत्यक्षदर्शी
जैसा कि पहले ही बताया जा चुका है कि इन ब्लैक बाक्सों की सहायता से जांच कर्ता विमान की दुर्घटना से पूर्व की उड़ान का पूरा लेखा जोखा तैयार कर पाने में सक्षम होते हैं। इस प्रकार जहां एफ.डी.आर. (अथवा डी.एफ.डी.आर.) विमान के उड़ान सम्बन्धी चित्रण प्रदान करते हैं वहीं सी.वी.आर. उन दृश्यों में आवाज भर देते हैं। यदि हम इसकी तुलना क्रिकेट कमेन्ट्री से करें तो यह कह सकते हैं कि जहां सी.वी.आर. उड़ान का रेडियो जैसा आंखो देखा हाल सुनाता है, वहीं डी.एफ.डी.आर. उन दृश्यों को एक बिना आवाज वाले टेलीविजन पर दर्शाता है। यदि दोनों को मिला कर देखा जाये तो पूरा दृश्य सामने आ जाता है।
ऐसे अनेको उदाहरण हैं जब ब्लैक बाक्सों के कारण ही विमान दुर्घटना का वास्तविक कारण जानना सम्भव हो सका है। जैसे वर्ष 1974 में नैरोबी में लुफ्तहसां (जर्मन एयरलाइन्स) का एक जम्बो जेट (बोइंग 747) विमान दुर्घटनाग्रस्त हो गया था। जांच के समय जब सी.वी.आर. टेप को सुना गया तो पता चला कि विमान चालक उड़ान से पूर्व चेक लिस्ट पढ़ते समय विमान की वायुयीय प्रणाली (न्यूमैटिक सिस्टम) को चालू करना भूल गया था। इस कारण उड़ान के समय विमान के लींडग एज फ्लैप (विमान नियन्त्रण के साधन) चालू नहीं हुये थे तथा समुचित उत्थापक बल प्राप्त ना हो पाने के कारण विमान नीचे गिर गया था।
इसी प्रकार पहली जनवरी 1978 को हुये एयर इन्डिया के जम्बो जेट की दुर्घटना, जिस का विवरण पहले दिया जा चुका है, के जांच के दौरान पता चला कि उस दौरान विमान का अट्टीटयूड डायरेक्टर इन्डीकेटर (ए.डी.आई.) नामक यन्त्र काम नहीं कर रहा था। ऐसा इस लिये मालूम चल पाया था क्यों कि सी.वी.आर. टेप में विमान का कप्तान अपने सहचालक से कहता हुआ पाया गया था माई इन्स्ट्रूमेन्ट्स आर टापल्ड अर्थात मेरे यन्त्र पलट गयें हैं। और उस विमान में ए.डी.आई. ही एक ऐसा यन्त्र है जो पलट सकता है। अब यदि सी.वी.आर. से सहायता ना मिलती तो सम्भवत दुर्घटना के कारणों का पता ना चल पाता।
इस प्रकार यह देखा जा सकता है कि ब्लैक बाक्स विमानो के लिये कितने जरूरी होते हैं। इन्ही सब कारणों से भारत के यात्री विमानों में महानिदेशक नागर विमानन द्वारा नियमानुसार ब्लैक बाक्सों का लगाया जाना अनिवार्य कर दिया गया है।

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