गांव में ऊर्जा की आपूर्ति नहीं है जिसके कारण
लोग रोजगार के लिए शहरों की ओर पलायन करते हैं । शहरों में बिजली की आपूर्ति के
कारण वहां उद्योग विकसित हो रहे है जिसके कारण गांव की अपेक्षा शहरों में भीड़
बढ़ती जा रही है । ऊर्जा आपूर्ति के लिए गैर नवीकरणीय ऊर्जा स्रोतों जैसे कोयला, कच्चा तेल आदि पर निर्भरता
इतनी बढ़ रही है कि इन स्रोतों का अस्तित्व खतरे में पड़ गया है । विशेषज्ञों का
कहना है कि अगले 40 वर्षों में इन स्रोतों के खत्म
होने की संभावना है । ऐसे में विश्वभर के सामने ऊर्जाआपूर्ति के लिए अक्षय ऊर्जा स्रोतों से बिजली प्राप्त करने
का विकल्प रह जाएगा । अक्षय ऊर्जा नवीकरणीय होने के साथ-साथ
पर्यावरण के अनुकूल भी है । हालांकि यह भी सत्य है कि देश की 80 प्रतिशत विद्युत आपूर्ति गैर नवीकरणीय ऊर्जा स्रोतों से पूरी हो रही है ।
जिसके लिए भारी मात्रा में कोयले का आयात किया जाता है । वर्तमान में देश की
विद्युत आपूर्ति में 64 प्रतिशत योगदान कोयले से बनाई
जाने वाली ऊर्जातापीय ऊर्जा का है । ऊर्जा आवश्यकताओं की पूर्ति और अन्य
कार्यों के लिए कच्चे तेल और पेट्रोलियम उत्पादों का भी आयात किया जाता है जिसके
कारण भारत की मुद्रा विदेशी हाथों में जाती है । आंकड़ों पर गौर किया जाए तो वर्ष 2009-10, 2008-09 में कच्चे तेल और पेट्रोलियम
उत्पादों का कुल सकल आयात क्रमशः 4,18,475 करोड़,
4,22,105 करोड़
था जबकि इसकी तुलना में निर्यात क्रमशः 1,44,037 करोड़,
1,21,086 करोड़
था । अतः आयात और निर्यात के बीच इतना बड़ा अंतर अर्थव्यवस्था को कमजोर करने वाला
है जिसे कम किए जाने की जरूरत है । यहअक्षय ऊर्जा के प्रयोग से ही संभव है ।
भारत में अक्षय ऊर्जा के कई स्रोत उपलब्ध है । सुदृढ़ नीतियों द्वारा इन
स्रोतों सेऊर्जा प्राप्त की जा सकती है ।
सौर ऊर्जा
सूरज से ऊर्जा प्राप्त करने के लिए
फोटोवोल्टेइक सेल प्रणाली का प्रयोग किया जाता है । फोटोवोल्टेइक सेल सूरज से
प्राप्त होने वाली किरणों को ऊर्जा में तब्दील कर देता है । भारत
में सौर ऊर्जा की काफी संभावनाएं हैं क्योंकि
देश के अधिकतर हिस्सों में साल में 250-300 दिन
सूरज अपनी किरणें बिखेरता है । फोटोवोल्टेइक सेल के जरिए सूरज की किरणों से ऊर्जा प्राप्त की जा सकती है । भारत
में पिछले 25-30 वर्षों से सौर ऊर्जा पर काम हो रहा है लेकिन पिछले
तीन सालों के दौरान इसमें गति आई है । सरकार ने वर्ष 2009 में सौर ऊर्जा को बढ़ावा देने के लिए
जवाहरलाल नेहरू राष्ट्रीय सौर मिशन का अनुमोदन किया जिसका उद्देश्य वर्ष 2022 तक ग्रिड विद्युत शुल्क दरों
के साथ समानता लाने के लिए देश में सौर ऊर्जा प्रौद्योगिकियों का विकास और
संस्थापन करना है । सरकार की इस भागीदारी से लोग सौर ऊर्जा को समझने लगे हैं । हालांकि सौर ऊर्जा का विकास बहुत धीमी गति से हो
रहा है । ग्याहरवी पंचवर्षीय योजना के दौरान सौर ऊर्जा से 50 मेगावॉट बिजली प्राप्त करने का लक्ष्य रखा गया था लेकिन
सितम्बर 2010 तक केवल 8 मेगावॉट बिजली ही उत्पादित की
जा सकी । सौर ऊर्जा में प्रतिवर्ष लगभग 5 हजार खरब यूनिट बिजली बनाने की
संभावना मौजूद है जिसके लिए इस दिशा में तीव्र गति से कार्य किए जाने की आवश्यकता
है ।
देश के टेलीकॉम टॉवर प्रतिवर्ष
लगभग 5 हजार करोड़ का तेल जला रहे हैं
। यदि वह अपनी आवश्यकता सौर ऊर्जा से प्राप्त करते हैं तो बड़ी
मात्रा में डीजल बचाया जा सकता है । सौर ऊर्जा को बढ़ावा देने के लिए लोगों
को इसकी ओर आकर्षित करना जरूरी है । लोग इसको समझने तो लगे हैं लेकिन इसका प्रयोग
करने से कतराते हैं । छोटे स्तर पर सोलर कूकर, सोलर बैटरी, सौर ऊर्जा से चलने वाले वाहन, मोबाइल फोन आदि का प्रयोग
देखने को मिल रहा है लेकिन ज्यादा नहीं । विद्युत के लिए सौर ऊर्जा का प्रयोग करने से लोग अभी भी
बचते हैं जिसका कारण सौर ऊर्जा का किफायती न होना है । सौर ऊर्जा अभी महंगी है और इसके प्रति
आकर्षण बढ़ाने के लिए जागरूकता जरूरी है । साथ ही यदि इसे स्टेटस सिंबल बना दिया
जाए तो लोग आकर्षित होंगे । समाज के कुछ जागरूक लोगों को इकट्ठा करके पहले उन्हें
इसकी ओर आकर्षित किया जाए तो धीरे-धीरे और लोग भी इसका महत्व समझने लगेंगे ।
सौर ऊर्जा के क्षेत्र में सेल्को नाम की
कंपनी ने अच्छा कार्य किया है । सेल्को के मालिक डॉ. हरीश हांदे ने पिछले 20-25 सालों में कंपनी को आगे बढ़ाया
है । कर्नाटक के लगभग एक हजार गांवों में सौर ऊर्जा का कार्य चल रहा है । वहां अगर
सभी गांवों का सौर ऊर्जा के प्रति विश्वास बढ़ा है तो
उसका श्रेय सेल्को को जाता है।
सौर ऊर्जा को विकसित करने में जर्मनी ने
सराहनीय कार्य किया है । जर्मनी पहले अपनी ऊर्जा आवश्यकताओं की पूर्ति के लिए
आयात पर निर्भर था । उसने अपनी अर्थव्यवस्था सुदृढ़ करने और ऊर्जा आवश्यकताओं को पूरा करने के
लिएसौर ऊर्जा को विकसित किया । लगभग 10 लाख घरों में छत पर
फोटोवोल्विक सेल लगाए गए जो सफल हुए । आज जर्मनी के लाखों लोगों का रोजगार अक्षय ऊर्जा से जुड़ा हुआ है ।
पवन ऊर्जा
भारत में पवन ऊर्जा की अपार क्षमताएं हैं । नवीन
और अक्षय ऊर्जा मंत्रालय के अनुसार भारत में
वायु द्वारा 48,500 मेगावॉट तक बिजली उत्पादन की
क्षमता है । लेकिन पवन ऊर्जा का विकास अभी धीमी गति से हो
रहा है । भारत में केवल 12,800 मेगावॉट की क्षमता ही स्थापित
की जा सकी है । वायु की तीव्र गति से वायु टरबाइन के घूमने से ऊर्जाप्राप्त होती है, लेकिन यह ऊर्जा वायु की गति पर निर्भर है ।
टरबाइन के घूमने के लिए 5.5 मीटर/सेकन्ड की रफ्तार से वायु
आवश्यक है । भारत में तमिलनाडु, महाराष्ट्र, गुजरात, कर्नाटक और राजस्थान में पवन ऊर्जा का कार्य चल रहा है । भारत में
पवन ऊर्जा की काफी संभावनाएं हैं । विशेषज्ञों द्वारा उम्मीद जताई जा रही है कि
अगले 10-12 वर्षों मेंपवन ऊर्जा की दिशा में कार्य को प्रगति
मिलेगी ।
जल ऊर्जा
नदियों का बहता पानी और समुद्र
से उत्पन्न ज्वारभाटा व जल तरंगें ऊर्जा का प्रमुख स्रोत बन सकते हैं
और इससे बड़ी मात्रा में बिजली उत्पादित की जा सकती है । वर्ष 2005 में देश की विद्युत आपूर्ति
में जल ऊर्जा का योगदान 26 प्रतिशत था । देश में इससे 15 हजार मेगावॉट बिजली प्राप्त
करने की संभावना है । विदित है कि जल का आवेग वायु के आवेग से भारी होता है, अतः छोटे से झरने से भी काफी
बिजली बनाई जा सकती है । जल से बिजली प्राप्त करने का सबसे पुराना तरीका पन बिजली
संयंत्र है जो बांध पर निर्भर होते हैं । इसके तहत नदी के पानी को बांध में
एकत्रित कर लिया जाता है । इसके बाद बांध का द्वार खोल दिया जाता है और पानी तीव्र
गति से पाइप में गिरता है और टरबाइन पर लगते ही टरबाइन चलने लगता है और बिजली का
उत्पादन होता है । इसके अलावा छोटे-छोटे झरनों पर
भी टरबाइन लगाकर बिजली बनाई जा सकती है ।
समुद्र में उत्पन्न होने वाले
ज्वार-भाटे व लहरों से भी बिजली प्राप्त की जा सकती है । इससे ऊर्जा प्राप्त करने के लिए समुद्र के
कोल पर बैराज बना दिया जाता है और उसके अंदर टरबाइन लगे होते हैं । जब ज्वार तीव्र
गति से इसके अंदर प्रवेश करती है तो टरबाइन चलता है और बिजली उत्पन्न होती है ।
इसी तरह जब पानी वापिस बाहर आता है तब भी बिजली पैदा होती है । इसके अलावा समुद्र
तट से परे पानी के भीतर चक्कियां लगाने से भी बिजली प्राप्त की जा सकती है । ये
चक्कियां ज्वार-भाटे से चलती है । समुद्र में उत्पन्न होने वाली लहरों से भी बिजली
प्राप्त की जा सकती है । भारत की सीमाएं तीन तरफ से समुद्र से घिरी हैं जिसके चलते
भारत ऊर्जा उत्पादन में इसका विशेष लाभ
उठा सकता है ।
भू-तापीय ऊर्जा
भू-तापीय ऊर्जा पृथ्वी से प्राप्त होने वाली ऊर्जा है । पृथ्वी के भीतर गर्म चट्टानें
पानी को गर्म करती है और इससे भाप उत्पन्न होती है । ऊर्जा प्राप्त करने के लिए पृथ्वी के
गर्म क्षेत्र तक एक सुरंग खोदी जाती है और इसके जरिए भाप कोऊर्जा संयंत्र तक लाया जाता है जिसके
पश्चात टरबाइन घूमने लगते है । एक अनुमान के अनुसार भारत में भू-तापीय ऊर्जा के लिए 113 तंत्रों के संकेत मिले हैं
जिससे लगभग 10 हजार मेगावॉट बिजली उत्पादन की
संभावना है । भू-तापीय ऊर्जा के लिए लगभग 3 किमी. गहराई तक जमींन के भीतर
खुदाई करके जांच करनी होगी लेकिन भारत के पास संसाधनों की कमी के कारण ऐसा नहीं हो
पा रहा है । भारत के पास इतनी गहराई तक भेदन क्षमता वाली मशीन नहीं है, अतः ऐसी मशीनों का आयात कर इस
स्रोत का लाभ उठाया जा सकता है ।
बायोमास एवं जैव ईंधन
भारत में जैव ईंधन की वर्तमान
उपलब्धता सालाना 120-150
मिलियन
मीट्रिक टन है । कृषि और वानिकी अवशेषों का प्रयोग ऊर्जा प्राप्त करने के लिए किया जाता
है । जैविक पदार्थों से लगभग 16 हजार मेगावॉट बिजली उत्पादित
की जा सकती है । भारत की लगभग 90 प्रतिशत ग्रामीण जनसंख्या जैव
पदार्थों का प्रयोग खाना बनाने, ऊष्णता प्राप्त करने में करती
हैं । इसके अलावा कृषि से निकलने वाले व्यर्थ पदार्थ जैसे खाली भुट्टे, फसलों के डंठल, भूसी आदि और शहरों व उद्योगों
के ठोस कचरे से भी बिजली बनाई जा सकती है । भारत में इससे लगभग प्रतिवर्ष 23,700 मेगावॉट बिजली प्राप्त की जा
सकती है लेकिन अभी केवल 2,500 मेगावॉट का ही उत्पादन हो रहा
है ।
गैर पारंपरिक स्रोतों से प्राप्त
होने वाली ऊर्जा में लचीलापन होता है अर्थात
कोयले से ऊर्जा प्राप्त करने के लिए 2 हजार मेगावॉट या इससे ज्यादा
का प्लांट लगाना पड़ता है जबकि गैर परंपरागत स्रोतों से ऊर्जा प्राप्त करने के लिए एक छोटी
सी इमारत में भी 15-20 मेगावॉट का प्लांट लगाया जा
सकता है । इन स्रोतों को चलाने के लिए ज्यादा प्रशिक्षण की भी आवश्यकता नहीं है ।
कोई भी व्यक्ति इसे आसानी से चला सकता है
।
किसी भी देश की अर्थव्यवस्था
उसकी ऊर्जा आवश्यकता और पूर्ति पर निर्भर
है और हमारा देश ऊर्जा आवश्यकताओं के लिए आयात पर
निर्भर है । इस समय तो परमाणु ऊर्जा के लिए विदेशों के साथ हाथ
मिलाया जा रहा है । जापान की त्रासदी देखने के बाद भी सरकार को यह समझ नहीं आ रहा
है कि परमाणु ऊर्जा देश के लिए कितनी खतरनांक है ।
परमाणु ऊर्जा के लिए सरकार विदेशों के साथ
समझौते कर रही हैं जिसकी एवज में भारतीय मुद्रा विदेशी हाथों में पहुंच रही है
जबकि अपने पास अक्षय ऊर्जा के इतने सारे संसाधन मौजूद
होने के बावजूद सरकार इसके प्रति ढुलमुल रवैया अपना रही है । भविष्य में जब गैर
नवीकरणीय स्रोत खत्म होने की कगार पर होंगे तो नवीकरणीय ऊर्जा का वर्चस्व बढ़ेगा । आज भारत
सॉफ्टवेयर के क्षेत्र में आगे बढ़ रहा है जिसके पीछे कई वर्षों की मेहनत है । 90 के दशक में एनआईआईटी जैसे
प्रशिक्षण केन्द्रों ने सॉफ्टवेयर इंजीनियरिंग का प्रशिक्षण देना शुरू किया जिसमें
युवाओं ने बढ़-चढ़ कर भाग लिया और अब भी ले रहे हैं । इसी तरह अक्षय ऊर्जा के क्षेत्र में भी प्रशिक्षण
देकर कुछ लोगों का दल बनाना होगा जो इस दिशा में कार्य करें । आज भारत अपनी अक्षय ऊर्जा की क्षमताओं को पहचान लेगा तो
कल पूरे विश्व के लिए आदर्श बनेगा ।
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