विज्ञान
के क्षेत्र में महिलाओं का सफर
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वैज्ञानिक अनुसंधान के
क्षेत्र में महिलाओं की कम भागीदारी का मुद्दा वैश्विक चिंता का विषय बना है।
इसीलिए भारतीय विज्ञान कांग्रेस में एक विषय था, ‘समावेशी
नवोन्मेष के लिए विज्ञान और तकनीक में स्त्रियों की भूमिका।’ महिला वैज्ञानिकों को प्रोत्साहित करने की दृष्टि से यह एक
उत्तम विचार था। अब यह विचार और आगे बढ़ सकता है। क्योंकि प्रक्षेपास्त्र अग्नि-5 के सफल परीक्षण के बाद महिला वैज्ञानिक टेसी थॉमस की मुख्य
भूमिका उभर कर सामने आई है। मिसाइल मैन डॉ अब्दुल कलाम की प्रमुख शिष्या रहीं डॉ
थॉमस को भी इस परीक्षण के बाद ‘मिसाइल वुमन’ अथवा ‘अग्नि-पुत्री’ नामों से
संबोधित किया जाने लगा है। मिसाइल कार्यक्रम का संपूर्ण नेतृत्व संभालने वाली वे
देश की पहली महिला वैज्ञानिक बन गई हैं।
भारतीय विज्ञान
अकादमी द्वारा ‘लीलावतीज डॉटर्स द वूमेन साइंटिस्ट्स’ शीर्षक से किताब प्रकाशित की गई है। इसमें 12वीं सदी के महान खगोलविज्ञानी आर्यभट्ट् की गणितज्ञ बेटी
लीलावती का भी जिक्र है। तय है भारत में महिलाओं को विज्ञान के क्षेत्र में आगे
बढ़ाने की परंपरा प्राचीन है। परतंत्र भारत में विज्ञान शिक्षा के क्षेत्र में
पहला नाम डॉ आनंदी जोशी का आता है जिन्होंने 1886 में अमेरिका
के फिलाडेल्फिया से चिकित्सक की डिग्री हासिल की। अब से करीब 80 साल पहले एशियाटिक सोसायटी, कलकत्ता में
परास्नातक पढ़ाई के लिए कमला शोनोय ने कदम बढ़ाने की हिम्मत की थी। किंतु सीवी रमन
जैसे प्राध्यापक-वैज्ञानिक ने उन्हें प्रवेश न देकर हतोत्साहित किया। आखिर में
उन्हें असंस्थागत छात्रा के रूप में प्रवेश मिल ही गया। कठोर मेहनत और लगन से
उन्होंने प्रथम र्शेणी में परीक्षा उत्तीर्ण की। इसके बाद रमन के विचार परिवर्तित
हुए। अन्ना मनी, ललिता चंद्रशेखर और सुनिंद वै ™ानिक अनुसंधान के क्षेत्र में महिलाओं की कम
भागीदारी का मुद्दा वैश्विक चिंता का विषय बना है। इसीलिए भारतीय विज्ञान कांग्रेस
में एक विषय था, ‘समावेशी नवोन्मेष के लिए विज्ञान और तकनीक
में स्त्रियों की भूमिका।’ महिला वैज्ञानिकों को प्रोत्साहित करने की
दृष्टि से यह एक उत्तम विचार था। अब यह विचार और आगे बढ़ सकता है। क्योंकि
प्रक्षेपास्त्र अग्नि-5 के सफल परीक्षण के बाद महिला वैज्ञानिक टेसी
थॉमस की मुख्य भूमिका उभर कर सामने आई है। मिसाइल मैन डॉ अब्दुल कलाम की प्रमुख
शिष्या रहीं डॉ थॉमस को भी इस परीक्षण के बाद ‘मिसाइल वुमन’ अथवा ‘अग्नि-पुत्री’ नामों से
संबोधित किया जाने लगा है। मिसाइल कार्यक्रम का संपूर्ण नेतृत्व संभालने वाली वे
देश की पहली महिला वैज्ञानिक बन गई हैं।
भारतीय विज्ञान
अकादमी द्वारा ‘लीलावतीज डॉटर्स द वूमेन साइंटिस्ट्स’ शीर्षक से किताब प्रकाशित की गई है। इसमें 12वीं सदी के महान खगोलविज्ञानी आर्यभट्ट् की गणितज्ञ बेटी
लीलावती का भी जिक्र है। तय है भारत में महिलाओं को विज्ञान के क्षेत्र में आगे
बढ़ाने की परं वैज्ञानिक अनुसंधान के क्षेत्र में महिलाओं की कम
भागीदारी का मुद्दा वैश्विक चिंता का विषय बना है। इसीलिए भारतीय विज्ञान कांग्रेस
में एक विषय था, ‘समावेशी नवोन्मेष के लिए विज्ञान और तकनीक
में स्त्रियों की भूमिका।’ महिला वैज्ञानिकों को प्रोत्साहित करने की
दृष्टि से यह एक उत्तम विचार था। अब यह विचार और आगे बढ़ सकता है। क्योंकि
प्रक्षेपास्त्र अग्नि-5 के सफल परीक्षण के बाद महिला वैज्ञानिक टेसी
थॉमस की मुख्य भूमिका उभर कर सामने आई है। मिसाइल मैन डॉ अब्दुल कलाम की प्रमुख
शिष्या रहीं डॉ थॉमस को भी इस परीक्षण के
बाद ‘मिसाइल वुमन’ अथवा ‘अग्नि-पुत्री’ नामों से
संबोधित किया जाने लगा है। मिसाइल कार्यक्रम का संपूर्ण नेतृत्व संभालने वाली वे
देश की पहली महिला वैज्ञानिक बन गई हैं।
भारतीय विज्ञान
अकादमी द्वारा ‘लीलावतीज डॉटर्स द वूमेन साइंटिस्ट्स’ शीर्षक से किताब प्रकाशित की गई है। इसमें 12वीं सदी के महान खगोलविज्ञानी आर्यभट्ट् की गणितज्ञ बेटी
लीलावती का भी जिक्र है। तय है भारत में महिलाओं को विज्ञान के क्षेत्र में आगे
बढ़ाने की परंपरा प्राचीन है। परतंत्र भारत में विज्ञान शिक्षा के क्षेत्र में
पहला नाम डॉ आनंदी जोशी का आता है जिन्होंने 1886 में अमेरिका
के फिलाडेल्फिया से चिकित्सक की डिग्री हासिल की। अब से करीब 80 साल पहले एशियाटिक सोसायटी, कलकत्ता में
परास्नातक पढ़ाई के लिए कमला शोनोय ने कदम बढ़ाने की हिम्मत की थी। किंतु सीवी रमन
जैसे प्राध्यापक-वैज्ञानिक ने उन्हें प्रवेश न देकर हतोत्साहित किया। आखिर में
उन्हें असंस्थागत छात्रा के रूप में प्रवेश मिल ही गया। पारुल भार्गव
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