भारत में जो ग्रीन हाउस गैसें उत्सर्जित भी हो रही
हैं तो वे अल्पकालिक असर वाली हैं, विकसित देशों की तरह वह दीर्घकालिक दुष्प्रभावों वाली नहीं।
संयुक्त राष्ट्र विकास कार्यक्रम की एक रिपोर्ट की
निष्पक्षता पर भारत सरकार ने सवाल खड़ा किया है। वन प्लानेट टू शेयर : सस्टेनिंग
ह्यूमन प्रोगेस इन ए चेंजिंग क्लाइमेट नामक गुरुवार को प्रकाशित रिपोर्ट में
एशिया-प्रशांत क्षेत्र के देशों को बढ़ती समृद्घि और कार्बन के बढ़ते उत्सर्जन में
संतुलन बनाए रखने का सुझाव दिया गया है। रिपोर्ट का कहना है कि आर्थिक समृद्घि और
बढ़ते उत्सर्जन में संतुलन बना पाने में इन देशों की कामयाबी या नाकामी का असर
परोक्ष तौर पर दुनिया को भुगतना होगा। रिपोर्ट में कहा गया है कि करोड़ों लोगों को
गरीबी से निकालने के लिए एशिया-प्रशांत क्षेत्र के देशों को आर्थिक प्रगति करते
रहना चाहिए, लेकिन उन्हें
जलवायु में आ रहे बदलावों के प्रति भी जिम्मेदार होना होगा। इसमें कड़े शब्दों में
कहा गया है कि पहले विकास और फिर सफाई का विकल्प की अब गुंजाइश नहीं बची है। इस
रिपोर्ट में भारत के तीन बड़े शहरों मुंबई, कोलकाता और
बेंगलूर एशिया प्रशांत के दूसरे महानगरों के मुकाबले प्रदूषण स्तर को काबू में
रखने को लेकर फिसड्डी साबित हुए हैं। इस रिपोर्ट में अपने इन चमकते शहरों की
रेटिंग औसत से भी नीचे की दी गई है। रिपोर्ट में सिर्फ दिल्ली को ही
"औसत" दर्जा हासिल हुआ है। गुरुवार को प्रकाशित इस रिपोर्ट में एशिया
प्रशांत इलाके के २२ शहरों को ग्रीन रैंकिंग दी गई है। शहरों को औसत, औसत से नीचे और औसत से ऊपर की श्रेणी में रखा गया है। इस रैकिंग के लिए
शहरों से हो रहे प्रति व्यक्ति कार्बन डाई ऑक्साइड गैस के उत्सर्जन के साथ ही
ऊर्जा, परिवहन, जल, हवा की गुणवत्ता, जमीन का इस्तेमाल, इमारतें, कचरा, शौचालय सुविधा
के साथ पर्यावरणीय समस्याएँ शामिल हैं। भारत सरकार का कहना है कि पूर्वाग्रहग्रस्त
इस रिपोर्ट में कहा गया है कि पहले साफ करो और फिर विकास करो। मंत्रालय को इसी पर
आपत्ति है। मंत्रालय का कहना है कि भारत जैसे देशों में गरीबी हटाना और लोगों का
जीवन स्तर सुधारना पहली प्राथमिकता है और इसी आधार पर यहाँ आर्थिक विकास कार्यक्रम
चलाए जा रहे हैं। भारत में जो ग्रीन हाउस गैसें उत्सर्जित भी हो रही हैं, वे अल्पकालिक असर वाली हैं, विकसित देशों की तरह
दीर्घकालिक दुष्प्रभावों वाली नहीं। पर्यावरण मंत्रालय का कहना है कि इस रिपोर्ट
में संयुक्त राष्ट्र विकास कार्यक्रम ने उसकी आपत्तियों और सुझावों का ध्यान नहीं
रखा है। यह रिपोर्ट विकसित देशों के नजरिए से तैयार की गई है। संयुक्त राष्ट्र और
उससी जुड़ी पर्यावरण या मानव विकास के लिए काम कर रही संस्थाओं पर विकसित देशों के
मानदंडों पर काम करने और नीतियाँ बनाने का आरोप पहले भी लगता रहा है। वैसे हमारे
देश का खाया-अघाया तबका भी उन्हें ही सही मानता रहा है। देश में अभी भी गरीबों की
हालत बहुत बेहतर नहीं है। उनकी हालत सुधारने के लिए बहुत कुछ किया जाना जरूरी है।
चीन भी शायद इसी वजह से ऐसी रिपोर्टों को लगातार या तो नजरंदाज करता रहा है या फिर
खारिज करता रहा है। अंतरराष्ट्रीय भूमिका के चलते भारत के लिए ऐसा कर पाना संभव
नहीं है लेकिन उसे बात कहने और अपने गरीबों का हक वाजिब मौकों पर जताने का अधिकार
है।
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