Thursday 26 April 2012

मानव अंतरिक्ष अभियान


 मानव अंतरिक्ष अभियान की तैयारी में भारत

वह दिन अधिक दूर नहीं है जब दो भारतीय पहली बार स्वदेशी रॉकेट और स्पेस कैप्सुल में बैठकर अंतरिक्ष में जाएंगे. ऐसा होने पर भारत दुनिया का चौथा ऐसा देश बन जाएगा जिसने अपनी तकनीक के माध्यम से अपने अंतरिक्षयात्रियों को अंतरिक्ष में भेजा हो. अमेरिका, रूस और चीन के पास पहले से ही यह तकनीक है. 

भारत ने भी अब अपने मानव अंतरिक्ष अभियान पर काम शुरू कर दिया है और अब इसकी रूपरेखा भी तैयार कर ली गई है. इस बारे में अधिक जानकारी देते हुए इसरो अध्यक्ष एस. राधाकृष्णन तथा इस अभियान से जुड़े अन्य महत्वपूर्ण वैज्ञानिकों ने बताया कि मानव अंतरिक्ष अभियान के सभी चरणों की रूप रेखा तैयार कर ली गई है और इस पर काम भी शुरू हो चुका है. 

कार्यक्रम:

इसरो की योजना अपने दो अंतरिक्षयात्रियों को पृथ्वी की नजदीकी ध्रुवीय कक्षा तक ले जाने की है. ये अंतरिक्षयात्री वहाँ 7 दिन तक रहेंगे और फिर पृथ्वी पर लौट आएंगे. इसके लिए इसरो एक नया लॉंच पैड बनाएगा जहाँ से पीएसएलवी के सम्पादित रॉकेट के माध्य्म से स्पेस कैप्सूल को अंतरिक्ष तक ले जाया जाएगा. इस नए लॉंच पैड पर ही नई असेम्बली यूनिट भी स्थापित की जाएगी.

चरण:
मानव अंतरिक्ष अभियान के तीन चरण होंगे. पहले चरण में जटिल तकनीकों को विकसित किया जाना है जैसे कि आपातकालीन निकास व्यवस्था, लॉंच पैड से आपातकालीन निकास व्यवस्था, स्पेस कैप्सूल को वापस धरती पर लाने की तकनीक विकसित करना आदि. दूसरे चरण में ह्यूमन रेटेड रॉकेट तैयार करने का कार्य होगा. यह वह रॉकेट होता है जो मानव को अंतरिक्ष में ले जाने के उपयुक्त होता है और हर लिहाज से सुरक्षित और काफी भरोसेमंद भी होता है. तीसरे चरण में अंतरिक्षयात्रियों की पहचान कर उन्हें ट्रेनिंग देने का कार्य होगा. सम्भावित अंतरिक्षयात्रियों को ट्रेनिंग देने में कम से कम तीन वर्ष का समय लगता है. 

स्पेस कैप्सूल: 

भारत ने अपने स्पेस कैप्सूल की डिजाइन तैयार कर ली है. यह कैप्सूल रूस के सहयोग से बनाया जाना है. इस कैप्सूल में दो अंतरिक्षयात्रियों के बैठने की जगह उपलब्ध होगी. इसके अलावा भारत ने लाइफ सपोर्ट सिस्टम, थर्मल प्रूफिंग और क्रु एस्केप सिस्टम की रूप रेखा भी तैयार कर ली है. यदि लॉंचपैड पर ही कोई गडबडी सामने आ जाए और अंतरिक्षयात्रियों को तुरंत रॉकेट से बाहर निकालना हो तो इस तरह के लॉंच पैड इमरजेंसी एस्केप सिस्टम को भी विकसित किया जाना है. भारत 2013 में पीएसएलवी रॉकेट के माध्यम से इस तरह के स्पेस कैप्सूल को अंतरिक्ष में स्थापित करेगा. परंतु उसमें कोई अंतरिक्षयात्री नहीं होंगे. दरअसल यह इसरो के लिए परीक्षण का एक दौर होगा. जैसा कि इसरो अध्यक्ष राधाकृष्णन बताते हैं कि - इससे हमें जरूरी आत्मबल मिलेगा.

भारत का स्पेस कैप्सुल रूस के सोयूज़ स्पेस कैप्सुल पर आधारित होगा ऐसी खबर है. इसरो सोयूज़ को अपने तरीके से फिर से डिजाइन करेगा. इसके अलावा इसे ले जाने वाले रॉकेट पीएसएलवी के पहले चरण में बदलाव किए जाएंगे. 

नया लॉंचपैड: 
श्रीहरिकोटा में एक तीसरा लॉंच पैड बनाया जाना है और इसकी जगह तय हो गई है. इस लॉंच पैड को बनाने तथा नई एसेम्बली यूनिट स्थापित करने का अनुमानित खर्च 1000 करोड़ रूपए आंका गया है. इस लॉंच पैड से ही मानव अंतरिक्ष अभियान पर कार्य किया जाएगा. यहाँ बनने वाले नए असेम्बली यूनिट में अंतरिक्षयात्रियों को ले जाने वाले पीएसएलवी रॉकेट के संवर्धित प्रारूप को तैयार किया जाएगा. 

अंतरिक्षयात्रियों को ट्रेनिंग:
प्राथमिक जानकारियों के अनुसार इसरो ने अपने अंतरिक्ष अभियान पर जाने वाले अंतरिक्षयात्रियों की पहचान का कार्य शुरू कर दिया है. बहुत सम्भावना है कि अंतरिक्षयात्री वायुसेना से चुने जाएँ क्योंकि उनको उडान का अनुभव पहले से ही होता है. सुत्रों के अनुसार चार सम्भावित अंतरिक्षयात्रियों का चयन किया जाना है जिन्हें बंगालुरू में बनने वाले अंतरिक्षयात्री ट्रेनिंग संस्थान में प्रक्षिशित किया जाएगा. इन चार अंतरिक्षयात्रियों में कोई 2 अंतरिक्षयात्री अंतरिक्ष में जाएंगे. ये दो अंतरिक्षयात्री कौन होंगे यह गुप्त रखा जाएगा. 

तैयारी:
इसरो ने अपने अंतरिक्ष अभियान पर काफी पहले से काम शुरू कर दिया था. पीएसएलवी के माध्यम से एक स्पेस रिकवरी एक्स्पेरिमेंट मोड्यूल को अंतरिक्ष में भेजा गया था जहाँ से वह वापस धरती पर सकुशल आ गया और बंगाल की खाड़ी में गिरा. यहाँ से नौसेना के जहाज ने इसे बरामद किया. जाँच से पता चला कि इस मोड्यूल ने ठीक ढंग से काम किया था. इससे इसरो ने साबित किया कि वह स्पेस मोड्यूल को अंतरिक्ष में भेज कर वापस सकुशल धरती पर ला सकता है. अब 2013 में वास्तविक स्पेस कैप्सूल के प्रारूप को अंतरिक्ष में भेजकर वापस धरती पर लाने का प्रयास किया जाएगा. इसमें सफलता मिलने पर इसरो की आगे की राह थोड़ी आसान हो जाएगी.

मानव अंतरिक्ष अभियान एक जटिल और जोखिम भरा अभियान है, परंतु भविष्य के लिए यह आवश्यक भी है

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