चंद्रभूषण
एक ऐसी चीज, जिसकी परिभाषा साल-दर-साल बदलती जा रही है। लाखों चेहरों में एक चेहरा, उंगलियों के लाखों निशानों में से कोई एक निशान पहचान लेना एक समय बड़ी बुद्धिमानी का काम समझा जाता था। इंसान की बनाई जिन चीजों ने यह काम करना शुरू किया, उन्हें ‘इंटेलिजेंट मशीन’ की लकब से नवाजा गया। लेकिन जल्द ही ऐसी चीजें हर दफ्तर के गेट पर हाजिरी लगाने के काम में जुटी नजर आने लगीं और लोगों ने इन्हें बेवकूफ बनाने के तरीके भी खोज निकाले।
कुछ नामी सॉफ्टवेयर कंपनियों ने अलेक्सा, सिरी और ओके गूगल जैसी इसी तरह की सीधी-सादी ‘बुद्धिमान’ चीजें बाजार में डाल रखी हैं, जो लोगों की आवाज पहचान कर उनके कहने पर सिनेमा टिकट बुक करने, गाना-जोक-समाचार सुनाने और कुछ सवालों के जवाब देने जैसे काम करती हैं। जो जवाब उन्हें इंटरनेट सर्च में मिल जाते हैं, उन्हें शौक से देती हैं, जो नहीं मिलते, उनका जवाब ‘मुझे नहीं पता’ कहकर देती हैं
इस प्रारंभिक स्तर की कृत्रिम बुद्धि की परिभाषा ‘लिमिटेड मेमोरी’ के आधार पर कुछ चीजों की पहचान करने के रूप में दी जाती है। आने वाले दिनों में कुछ बड़े कामों की अपेक्षा इससे भी की जा रही है। हाल में छोड़ा गया ताकतवर जेम्स वेब टेलिस्कोप एक बार में दस लाख तारों पर नजर रखेगा और इसकी इसी शुरुआती मिजाज वाली कृत्रिम बुद्धि हाथ के हाथ उन तारों की छंटाई का काम करेगी, जिनके किसी ग्रह पर जीवन पाए जाने की थोड़ी-बहुत संभावना हो। उम्मीद है कि संभावित जीवन वाले ग्रहों की तादाद इसके ही बल पर अभी के 5000 से बढ़कर दस साल में एकाध लाख हो जाएगी।
कृत्रिम बुद्धि का अगला रूप पिछली गलतियों से सीखते हुए अपने आउटपुट की गुणवत्ता में लगातार सुधार करते जाने का है। इस काम के लिए कंप्यूटर साइंस में ‘मशीन लर्निंग’ नाम का एक पूरा शास्त्र सामने आया है। गूगल का चर्चित चैटबॉट ‘लैम्डा’ इसके भाषा आधारित स्वरूप का सिर्फ एक उदाहरण है। यह सोशल मीडिया को ही अपना डेटाबेस बनाता है। अगले दो-चार साल में इस उच्च स्तरीय कृत्रिम बुद्धि के दैनंदिन जीवन का हिस्सा बन जाने की उम्मीद की जा रही है।
इसके आगे की कृत्रिम बुद्धियां अभी सिर्फ अवधारणा के स्तर पर हैं और उम्मीद की जा रही है कि क्वांटम कंप्यूटर्स के कम से कम एक हजार क्यूबिट का दायरा पार कर जाने के बाद इनपर गंभीरता से कुछ काम शुरू हो पाएगा। अभी बहुत महंगे, लेकिन कामकाजी स्वरूप वाले क्वांटम कंप्यूटर सौ क्यूबिट का स्तर भी पार नहीं कर पाए हैं। उच्च स्तर की इन कृत्रिम बुद्धियों का पहला कदम इंसानों की तरह सोचने का है। यानी कई तरह के इनपुट पर एक साथ काम करना।
कोई कह सकता है कि कई तरह के इनपुट से मौसम की भविष्यवाणी जैसे काम सुपरकंप्यूटरों द्वारा आज भी किए जाते हैं। लेकिन व्यवहारतः ये लीनियर इनपुट ही हुआ करते हैं। जैसे आप अपने कैलकुलेटर पर एक बार पांच अंकों का गुणा करते हैं, फिर आउटपुट को दो अंकों के गुणनफल से भाग देते हैं। इंसान की तरह सोचना यकीनन अलग तरह की सॉफ्टवेयर डिजाइनिंग की भी मांग करेगा।
आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस का सर्वोच्च स्तर इंसान की तरह ही लेकिन उससे बेहतर तरीके से सोचने का हो सकता है। ऐसी कृत्रिम बुद्धि, जिसमें विश्लेषण के अलावा अंतर्दृष्टि और दूरदृष्टि, इनसाइट और फोरसाइट भी हो। और क्या पता, कल्पनाशीलता और रचनात्मकता भी। जाहिर है, यह बाइसवीं, तेईसवीं सदी की बात होगी और इसमें कुछ चीजें ऐसी भी शामिल होंगी, जिनसे इंसानों को डरकर रहना होगा।
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