Sunday, 29 March 2020

लैंग्लैंड्स प्रोग्राम यानी गणित की ग्रैंड यूनिफिकेशन थिअरी

चंद्रभूषण
इलाहाबाद यूनिवर्सिटी से जुड़े प्रो. हरिश्चंद्र के शिष्य डॉ. रॉबर्ट लैंग्लैंड्स को गणित में पिछले पचास वर्षों से ‘लैंग्लैंड्स प्रोग्राम’ के लिए जाना जाता है, जिसको कुछ लोग भौतिकी की बहुप्रतीक्षित ‘ग्रैंड यूनिफिकेशन थिअरी’ की तर्ज पर गणित की जीयूटी भी कहते हैं। गणित के बारे में ज्यादातर लोगों की राय यही रहती आई है कि दो दूनी चार अब से हजारों साल पहले भी होता रहा होगा और आज भी यह दो दूनी चार ही होता है, फिर इसमें नई खोज की गुंजाइश कहां से बनती होगी?

इससे ऊंचे स्तर वाली समझ के लोग अप्लाइड मैथमेटिक्स यानी भौतिकी के जटिल हिसाब-किताब में काम आने वाली गणित में कुछ खोजबीन की भूमिका देख पाते हैं, बाकी उन्हें सिर्फ बौद्धिक श्रम लगता है। लेकिन मजे की बात यह कि ऐसे दुराग्रह खुद उच्च गणित के दायरे में भी मौजूद हैं, जिसका शिकार प्रो. लैंग्लैंड्स को होना पड़ा। उन्हें गणित के क्षेत्र में अपने दौर का एकमात्र अंतरराष्ट्रीय पुरस्कार फील्ड्स मेडल सिर्फ इसलिए नहीं मिल सका, क्योंकि संबंधित वर्ष के निर्णायकों की नजर में उनका काम कुछ ज्यादा ही अमूर्त था!

वैसे भी फील्ड्स मेडल हर चार साल बाद 40 साल से कम उम्र वाले किसी गणितज्ञ को ही मिलता है। एक बार आप उससे चूक गए तो फिर जीवन भर के लिए चूक गए। असाधारण प्रतिभा वाले रॉबर्ट लैंग्लैंड्स ने अपना पहला महत्वपूर्ण काम यह साबित करने के रूप में किया कि घनों के योगफल के रूप में लिखी जा सकने वाली अभाज्य संख्याएं (प्राइम नंबर्स) हार्मोनिक एनालिसिस के जरिये भी निकाली जा सकती हैं। इस वक्तव्य के अटपटेपन पर हम बाद में आएंगे, पहले इसके शुरुआती हिस्से पर बात करते हैं।

रोजमर्रे के काम आने वाली गिनतियां अपने पीछे जो शाश्वत रहस्य छिपाए हुए हैं, उनका शुरुआती दरवाजा अभाज्य संख्याओं में दिखता है। यानी ऐसी संख्याएं, जिनमें खुद उनको और 1 को छोड़कर और किसी भी संख्या का भाग नहीं जाता। इनके बारे में कई प्राथमिक सिद्धांत हैं, जैसे यह कि इन्हें किसी भी प्राकृतिक संख्या के छह गुने से एक कम या ज्यादा की शक्ल में लिखा जा सकता है (जाहिर है, यह नियम 2 और 3 पर लागू नहीं होता।) इसी तरह एक तरीका प्राइम्स को दो वर्गों के जोड़ के रूप में लिखने का भी है, जैसे 41=16 (4 का वर्ग) + 25 (5 का वर्ग)।

इसी तरीके से देखें तो प्राइम्स का एक दुर्लभ समूह ऐसा भी है, जिसे तीन घनों के जोड़ के रूप में लिखा जा सकता है। जैसे, 73=1 (1 का घन) + 8 (दो का घन) + 64 (4 का घन)। अंकगणित के लिए घनों के योगफल का आम फॉर्म्युला हमेशा से एक समस्या रहा है और प्राइम नंबर्स के साथ इसका रिश्ता दोहरी मुश्किल वाला माना जाता रहा है। लेकिन रॉबर्ट लैंग्लैंड्स ने जब कहा कि इन्हें हार्मोनिक एनालिसिस के जरिये भी निकाला जा सकता है तो साठ के दशक में कई गणितज्ञों को लगा कि यह नौजवान सटक गया है।

हार्मोनिक एनालिसिस तरंगों के जोड़-घटाव के अध्ययन का गणित है और इसके साथ अंकगणित का तो तब दूर-दूर तक कोई रिश्ता ही नहीं माना जाता था। लैंग्लैंड्स प्रोग्राम दरअसल आपस में कोई रिश्ता न रखने वाली गणित की विभिन्न शाखाओं की तह में मौजूद किसी ज्यादा गहरे गणितीय सिद्धांत की तलाश का ही कार्यक्रम है, जिसके कुछ हिस्से खुद प्रो. लैंग्लैंड्स ने खोजे और बाकियों की खोज में दुनिया भर की गणितीय प्रतिभाएं लगी हुई हैं।

और तो और, उनके इस प्रस्तावित कार्यक्रम के आधार पर डॉ. ऐंड्रयू जे. वाइल्स ने तीन सौ साल से असिद्ध पड़े फर्मा के अंतिम प्रमेय को सिद्ध कर डाला, जिसके लिए उन्हें 2016 में ऐबेल प्राइज का हकदार पाया गया। यह भी दिलचस्प है कि खुद डॉ. लैंग्लैंड्स को गणित का नोबेल कहलाने वाले इस पुरस्कार से दो साल बाद, 2018 में नवाजा गया। काफी पहले से माना जाता रहा है कि लैंग्लैंड्स प्रोग्राम एक ऐसी गणितीय प्रस्थापना है, जो आने वाले दिनों में न सिर्फ गणित बल्कि भौतिकी की फ्रंटलाइन समझ का भी खाका बदल देगी।

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