Saturday, 6 April 2019

कैसे बचें समुद्री जीव

चंद्रभूषण
अगर आप अपने इर्द-गिर्द के पर्यावरण ध्वंस से परेशान हैं तो जरा समुद्री जीवों पर आई विपत्ति के बारे में सोचकर देखें। टेक्नॉलजी ने जलजीवों के शिकार की क्षमता बहुत बढ़ा दी है और गहरे समुद्रों में जैविक सर्वनाश पर नजर रखने के लिए कोई सरकारी या गैर-सरकारी अथॉरिटी भी नहीं है। ऊपर से ग्लोबल वार्मिंग ने विशाल समुद्री इलाकों की ऑक्सीजन चूसकर उन्हें बंजर बना दिया है। समुद्री जीव वहां रहना तो दूर उधर से गुजरने में भी डरते हैं।

इन बुरी खबरों के बीच अकेली अच्छी खबर यह है कि लगातार घटती समुद्री पकड़ ने सरकारों को जता दिया है कि यह किस्सा यूं ही चलता रहा तो अगले दस-बीस वर्षों में ह्वेलिंग के अलावा समुद्रों से मछली, केकड़ा, झींगा पकड़ने के कारोबारों पर भी ताला पड़ जाएगा। इससे कई छोटी अर्थव्यवस्थाएं तबाह होंगी और मानवजाति प्रोटीन के सबसे बड़े स्रोत से वंचित हो जाएगी। पर्यावरण पर इसका क्या असर पड़ेगा, कोई नहीं जानता।

इन आशंकाओं के मद्देनजर तीन वैज्ञानिक समूहों ने ग्रीनपीस, प्यू ट्रस्ट और नेशनल ज्योग्राफिक की परियोजनाओं के तहत सारे समुद्रों का सर्वे किया और अभी अपनी रिपोर्टें संयुक्त राष्ट्र के सामने पेश करने की तैयारी में हैं। इन रिपोर्टों में समुद्री सतह के नीचे मौजूद सारे पर्वतों, गर्तों और गर्म पानी के स्रोतों के ब्यौरे शामिल हैं और यह जिक्र भी है कि किस जीवजाति के सर्वाइवल के लिए कौन सा इलाका ज्यादा महत्वपूर्ण है।

ऐसा सर्वे कुछ साल पहले तक संभव नहीं था क्योंकि इसके लिए जरूरी टेक्नॉलजी ही दुनिया में मौजूद नहीं थी। लेकिन अभी समुद्री जीवों की टैगिंग और जीपीएस के जरिये समुद्र के हरेक वर्ग किलोमीटर के साथ किसी जीव के रिश्ते को लेकर पूरी जानकारी हासिल की जा सकती है। वैज्ञानिकों का कहना है कि एक वैश्विक संधि के जरिए अगर 40 फीसदी समुद्रों में शिकार और उत्खनन पर रोक लगाई जा सके तो 30 फीसदी समुद्री जीवजातियों की निरंतरता सुनिश्चित की जा सकेगी।

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