Saturday 17 February 2018

अंतरिक्ष में निजी क्षेत्र

अंतरिक्ष उद्योग देश में सेवाओं, निर्माण तथा रोजगार में नए सिरे से दम भरने के लिए अगली क्रांति साबित हो सकता है

धरती के अलावा किसी दूसरे ग्रहों पर इंसानों के बसने की संभावनाओं का पता लगाने के काम में छह फरवरी को उस वक्त एक नया मोड़ आया जब प्राइवेट कंपनी स्पेस एक्स के फाल्कन हैवी राकेट को सफलतापूर्वक अंतरिक्ष में भेज दिया गया। स्पेस एक्स का काम यह पता लगाना है कि अंतरिक्ष के दूसरे ग्रहों पर इंसानों को बसाया जा सकता है या नहीं, खासतौर पर मंगल ग्रह पर। इसके अलावा इसका मकसद अंतरिक्ष की खोज और स्पेस ट्रेवल के कम लागत मगर प्रभावी तौर तरीकों का पता लगाना है। फाल्कन हैवी ने मनुष्यों की इस पुरानी ख्वाहिश को एक कदम और आगे ला दिया है।1जब से अंतरिक्ष के बारे में पता लगाने के काम की शुरुआत हुई है उसके बाद से, केवल संयुक्त राज्य अमेरिका की नेशनल एरोनॉटिक्स एंड स्पेस एडमिनिस्ट्रेशन (नासा) जैसी सरकारी एजेंसियों का ही इसमें बोलबाला रहा है। फाल्कन हैवी का लांच बहुत ही अहम है, क्योंकि यह अंतरिक्ष में निजी क्षेत्र की अगुआई वाली कोशिशों के लिए भविष्य दिखाने वाले चिराग की तरह है। अंतरिक्ष ही वास्तव में वह जगह रह गई है जहां खोज के काम अभी बाकी है। भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन (इसरो) नासा के बाद ग्यारह साल बाद बना, लेकिन देश की वित्तीय सीमाओं के चलते हम नासा जैसा प्रदर्शन हासिल नहीं कर सके। फिर भी उन बहुत कम सीमाओं के कारण हम मजबूर हुए कि प्रतिस्पर्धा में बने रहने के लिए हम कम लागत वाले तरीकों को खोजें। मार्स ऑर्बिटर मिशन से इस बात को समझा जा सकता है। तकनीकी कमियों पर काबू पाने और रिकॉर्ड कम बजट पर काम करने के लिए इसरो ने होमैन स्थानांतरण कक्षा के तरीके का इस्तेमाल किया, जिसे स्लिंगशॉट विधि के रूप में जाना जाता है। इसके लिए मंगलयान को मंगल की तरफ भेजने में जरूरी स्पीड हासिल करने के लिए पहले धरती के चारों ओर कक्षा में छह बार चक्कर लगाने पड़े। मुङो इसकी कोई वजह नहीं लगती कि भारत में स्पेस एक्स जैसी कंपनियों को खड़ा नहीं किया जा सकता। इसकी मदद से देश को रिसर्च हब के रूप में ढाला जा सकता है। स्पेस एक्स केवल शुरुआत है। हम अगले कुछ दशकों में अंतरिक्ष में खोज के लिए बड़े पैमाने पर उद्योगों को आगे आता देख सकते हैं। हम देखेंगे कि किस तरह ग्रहों को उपनिवेश बनाने से लेकर क्षुद्रग्रहों पर डिलिंग का काम होने लगा है। अब वक्त आ गया है कि भारत इन कुछ इनोवेंशस की अगुआई करके अंतरिक्ष उद्योग में अहम खिलाड़ी बन कर उभरे। हमारे एयरोनॉटिकल और एयरोस्पेस इंजीनियरों और वैज्ञानिकों की प्रतिभावान टीम में इनोवेंशस को बढ़ावा देने की क्षमता है। 1इस बढ़ते बाजार का लाभ लेने के लिए कुछ पहल भारत में हो चुकी हैं। इसरो एक बेहतरीन अंतरिक्ष कार्यक्रम चला रहा है। कई भारतीय स्टार्ट-अप इस बाजार में प्रवेश करने की कोशिश कर रहे हैं। और पहली बार निजी क्षेत्र स्पेस में खोज और स्पेस ट्रेवल के काम में आगे आने को तैयार हैं। अब कोडर्स और आइटी के लोगों की जगह धीरे-धीरे आर्टिफिशियल इंटेलीजेंस ले रही है। ऐसे में अंतरिक्ष उद्योग देश में सेवाओं, निर्माण और रोजगार में नए सिरे से दम भरने के लिए अगली क्रांति साबित हो सकता है।

1 comment:

  1. आपकी इस पोस्ट को आज की बुलेटिन नलिनी जयवंत और ब्लॉग बुलेटिन में शामिल किया गया है। कृपया एक बार आकर हमारा मान ज़रूर बढ़ाएं,,, सादर .... आभार।।

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