Wednesday 17 January 2018

साल 2017 में इसरो ,भावी मिशन और इसरो की चुनौतियाँ


साल 2017 इसरो के लिए कैसा रहा और आगे 2018 में उसके क्या भावी मिशन है ,भविष्य में क्या
 चुनौतियाँ है उसके लिए ,इस पर एक खास रिपोर्ट 

शशांक द्विवेदी
डिप्टी डायरेक्टर, मेवाड़ यूनिवर्सिटी ,राजस्थान 

भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन (इसरो) के लिए 2017 एक के बाद एक कई उपलब्धियों वाला साल रहा। फरवरी में उसने एक साथ 104 उपग्रहों का प्रक्षेपण कर नया इतिहास रचा तो 24 साल में पहली बार पीएसएलवी का कोई मिशन विफल रहने से कुछ चिंताएं भी उभरीं।  साल की शुरुआत धमाकेदार रही
104 उपग्रह छोड़कर बनाया विश्व कीर्तिमान
इसरो ने 15 फरवरी को एक साथ एक मिशन में और एक ही प्रक्षेपणयान से 104 उपग्रह छोड़कर विश्व कीर्तिमान बना दिया। इससे पहले उसने पिछले साल एक साथ 20 उपग्रहों का प्रक्षेपण किया था। दुनिया के किसी अन्य देश ने अब तक एक साथ 100 उपग्रह अंतरिक्ष में नहीं भेजे हैं। इसमें कार्टोसैट-2 मुख्य उपग्रह था जबकि 101 विदेशी समेत कुल 103 छोटे एवं सूक्ष्म उपग्रह थे। इस मिशन में सबसे चुनौतीपूर्ण काम था सभी उपग्रहों को इस प्रकार उनकी कक्षा में स्थापित करना कि वे एक-दूसरे से न टकराएं। इसरो ने इस काम को बखूबी अंजाम देकर यह साबित कर दिया कि उपग्रह प्रक्षेपण में उसने महारत हासिल कर ली है। इस मिशन से वैश्विक स्तर पर वाणिज्यिक प्रक्षेपण में उसकी साख और मजबूत हुई है तथा भविष्य में इस मद से देश के विदेशी मुद्रा अर्जन में तेजी आयेगी।
जीएसएलवी एमके-3 डी-1 का किया सफल प्रक्षेपण
05 जून, 2017 को इसरो ने जीएसएलवी प्रक्षेपण यान के अगले संस्करण जीएसएलवी एमके-3 डी-1 का सफल प्रक्षेपण किया। इस यान से 3,136 टन वजन वाले जीसैट-19 उपग्रह का प्रक्षेपण किया गया। इसरो द्वारा छोड़ा गया यह अब तक का सबसे भारी उपग्रह है। इस मिशन की सफलता के साथ ही भारत ने चार टन तक के वजन वाले उपग्रह को भूस्थैतिक कक्षा में स्थापित करने की दक्षता प्राप्त कर ली है। इससे पहले दो टन या इससे ज्यादा वजन के उपग्रहों के प्रक्षेपण के लिए हम विदेशों पर निर्भर थे।  इसरो ने 23 जून को एक साथ 31 उपग्रहों का प्रक्षेपण कर एक बार फिर साबित कर दिया कि वह एक साथ कई उपग्रह छोडऩे में अपना कौशल तथा अनुभव बढ़ाता जा रहा है। भारत ने अंतरिक्ष विज्ञान में अपनी सफलता के जश्न में पड़ोसी देशों को भी शामिल करते हुए 05 मई को दक्षेस देशों का साझा उपग्रह साउथ एशिया सैटेलाइट जीसैट-9 लांच किया। यह जीएसएलवी की लगातार चौथी सफल उड़ान रही। इसरो का कहना है कि अब जीएसएलवी भी लगातार सफल प्रक्षेपण करते हुए विश्वसनीय प्रक्षेपण यानों की श्रेणी में शामिल हो चुका है।
पीएसएलवी के 41वें मिशन ने इसरो को दिया झटका
लगातार 24 साल तक बिना किसी विफलता के अचूक प्रक्षेपण यान के रूप में स्वयं को स्थापित कर चुके पीएसएलवी के 41वें मिशन ने इसरो के विश्वास को इस साल बड़ा झटका दिया। पीएसएलवी सी-39 ने 31 अगस्त को आंध्र प्रदेश के श्रीहरिकोटा स्थित सतीश धवन अंतरिक्ष केंद्र से उड़ान भरी। इस मिशन के जरिए नेविगेशन उपग्रह आईआरएनएसएस-1एच को उप-भू स्थैतिक कक्षा में स्थापित किया जाना था। यह प्रक्षेपण विफल रहा। इसरो ने बताया कि शाम सात बजे प्रक्षेपण यान ने उड़ान भरी थी। प्रक्षेपण पूरी तरह योजना के अनुसार रही, लेकिन इसका हीट शील्ड प्रक्षेपण यान से अलग नहीं हो सका। इस कारण अंतरिक्ष में पहुंचकर उपग्रह हीट शील्ड के अंदर ही प्रक्षेपण यान से अलग हुआ। इसरो का कहना है कि वह हीट शील्ड के अलग नहीं होने के कारणों का विस्तृत विश्लेषण कर रहा है। इस विफलता के बाद इसरो ने साल के आखिरी चार महीने में किसी भी मिशन को अंजाम नहीं दिया है। पीएसएलवी की 20 सितंबर 1993 के बाद की यह पहली विफलता है
इसरो ने इस साल दिया सात मिशन को अंजाम
इस साल इसरो ने कुल सात मिशन को अंजाम दिया जिनमें से छह सफल रहे। इसके अलावा जीसैट-17 का प्रक्षेपण एरियन-5 वीए-238 से किया गया। साल के दौरान जीसैट-17 समेत इसरो ने उसके अपने आठ और 130 विदेशी उपग्रह छोड़े। इसमें आईआरएनएसएस-1एच का प्रक्षेपण विफल रहा।  आने वाले वर्ष में इसरो ने अपने प्रक्षेपणों की सालाना संख्या बढ़ाने का लक्ष्य रखा है। साथ ही उसने चंद्रयान-2 की भी तैयारी की है जिसका प्रक्षेपण मार्च 2018 तक होने की उम्मीद है।
इसरो के भविष्य के मिशन
मंगल यान और चंद्रयान -1 की सफलता के साथ साथ  अंतरिक्ष में प्रक्षेपण का शतक लगाने के बाद इसरो  कुछ और महत्वपूर्ण मिशनों पर कार्य तेज करने जा रहा है। इनमें पहला कदम है साल 2018 की पहली तिमाही में दुसरे चन्द्र अभियान को कार्यान्वित करते हुए चंद्रमा की सतह पर एक रोवर उतारना ,दूसरा मिशन है मानवयुक्त अंतरिक्ष अभियान यानि अंतरिक्ष में मानव मिशन भेजना । और  तीसरा  मिशन सूर्य के अध्ययन के लिए आदित्य उपग्रह का प्रक्षेपण करना है। मंगल की कक्षा में सफलतापूर्वक मंगलयान के पहुंचने के बाद इसरो के वैज्ञानिक सभी भविष्य के अभियानों की सफलता को लेकर काफी आश्वस्त हैं।
दूसरें चंद्र अभियान की तैयारी में इसरो
अंतरिक्ष तकनीक में कामयाबी की एक नई कहानी लिखने के लिए भारत तेजी से आगे बढ़ रहा है। भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन (इसरो) साल 2018 की पहली तिमाही में बड़े मानवरहित अभियान के तहत चंद्रमा पर दूसरा मिशन 'चंद्रयान-2' भेजने जा रहा है। इसरो के चेयरमैन एस किरण कुमार के अनुसार चंद्रमा की धरती पर स्पेसक्रॉफ्ट की लैंडिंग को लेकर परीक्षण चल रहा है और अगले साल 2018 तक चंद्रयान-2 अभियान लॉन्च हो जाने की उम्मीद है। इसरो इसके लिए एक विशेष इंजन विकसित करेगा जो लैंडिंग को कंट्रोल कर सके। फिलहाल इसका अभ्यास किया जा रहा है जिसके लिए चंद्रमा की सतह जैसी आकृति और वातावरण बनाकर प्रयोग जारी है। फिलहाल इस अभियान को लेकर कई तरह के परीक्षण इसरो कर रहा है और चंद्रमा के लिए जाने वाला सैटेलाइट भी तैयार है। चंद्रयान-2 नई तकनीकी से तैयार किया गया है जो चंद्रयान-1 से काफी एंडवांस है और इसको जीएसएलवी-एमके-2 के जरिए लॉन्च किया जाएगा।  गौरतलब है कि पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी ने 2003 में भारत की ओर से चंद्रयान-1 अभियान की घोषणा की थी और इसे 2008 में भेजा गया था ।  भारत की ओर से चंद्रमा के लिए यह पहला सफल अभियान था ।
भारत पिछले कई वर्षो से रूस के सहयोग से इस अभियान को अंजाम तक पहुंचाने में जुटा था, लेकिन रूस से समय सीमा के अंदर तकनीकी सहयोग नहीं मिल पाने के कारण अब इस अभियान में भारत पूरी तरह से अपनी स्वदेशी तकनीक का प्रयोग करेगा। पहले यह अभियान इसरो और रूसी अंतरिक्ष एजेंसी (रोसकोसमोस) द्वारा संयुक्त रूप से किया जाना था जिसमें तय किया गया था कि ऑर्बिटर तथा रोवर की मुख्य जिम्मेदारी इसरो की होगी तथा रोसकोसमोस लैंडर के लिए जिम्मेदार होगा। लेकिन अब यह पूरा अभियान इसरो ही संभालेगा। जिसमें आर्बिटर ,रोवर तथा लैंडर तीनों ही इसरो डिजाइन करेगा ।
इसरो का मानवयुक्त अंतरिक्ष कार्यक्रम
भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन (इसरो) इतिहास रचने के लिए एक और कदम बढ़ाने जा रहा है। 05 जून, 2017 को इसरो ने अपने सबसे भारी रॉकेट जीएसएलवी मार्क-3 को सफ़ल प्रक्षेपण कर बड़ी कामयाबी हासिल की थी  । इसरो द्वारा निर्मित यह अब तक का सबसे वजनी सेटेलाईट है, जिसका वजन 3,136 किलो है। इस सेटेलाईट की सबसे बड़ी खासियत यह है कि इसे और रॉकेट के मुख्य और सबसे बड़े क्रायोजेनिक इंजन को इसरो के वैज्ञानिकों ने भारत में ही विकसित किया है। खास बात यह है कि इसके सफल प्रक्षेपण से भारत मानवयुक्त अंतरिक्ष अभियान करनें में सक्षम हो गया है ।
जीएसएलवी मार्क-3 की सफलता के बाद इसरो का इंसान को अंतरिक्ष में भेजने का सपना कर पायेगा । अभी अमेरिका और रूस ही अपने दम पर स्पेस में इंसान को भेज पाए हैं। मार्क-3 के साथ भेजे गए क्रू मॉड्यूल के सफल टेस्ट से भारत को उम्मीदें बंधी हैं। चंद्रयान-1 और मंगल यान की कामयाबी के बाद भारत की निगाहें अब आउटर स्पेस पर हैं। इसरो ग्रहों की तलाश और उनके व्यापक अध्ययन के लिए मानव युक्त अंतरिक्ष मिशन भेजने की योजना बना रहा है। मानव स्पेसफ्लाइट कार्यक्रम का उद्देश्य पृथ्वी की निचली कक्षा के लिए दो में से एक चालक दल को ले जाने और पृथ्वी पर एक पूर्व निर्धारित गंतव्य के लिए सुरक्षित रूप से उन्हें वापस जाने के लिए एक मानव अंतरिक्ष मिशन शुरू करने की है कार्यक्रम इसरो द्वारा तय चरणों में लागू करने का प्रस्ताव है वर्तमान में, पूर्व परियोजना गतिविधियों क्रू मॉड्यूल ,पर्यावरण नियंत्रण और लाइफ सपोर्ट सिस्टम, क्रू एस्केप सिस्टम, आदि महत्वपूर्ण प्रौद्योगिकियों के विकास पर इसरो काम कर रहा हैयोजना के अनुसार अंतरिक्ष में जाने वाली इसरो की पहली मानव फ्लाईट में दो यात्री होंगे। फ़िलहाल यह फ्लाईट अंतरिक्ष में सौ से नौ सौ किलोमीटर ऊपर तक ले जाने की योजना है  ।


इसरो का 'आदित्य'
मार्स मिशन के बाद सन मिशन
मंगल अभियान और चंद्रयान 1 की सफ़लता के बाद इसरो के वैज्ञानिको अब सन मिशन की तैयारी कर रहें है सूर्य कॅरोना का अध्ययन एवं धरती पर इलेक्ट्रॉनिक संचार में व्यवधान पैदा करने वाली सौर-लपटों की जानकारी हासिल करने के लिए भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन (इसरो) आदित्य-1 उपग्रह छोड़ेगा। इसका प्रक्षेपण वर्ष 2012-13 में होना था मगर अब इसरो ने इसका नया प्रक्षेपण कार्यक्रम तैयार किया है।.
आदित्य-1 उपग्रह  सोलर ' कॅरोनोग्राफ’ यन्त्र की मदद से सूर्य के सबसे भारी भाग का अध्यन करेगा। इससे कॉस्मिक किरणों, सौर आंधी, और विकिरण के अध्यन में मदद मिलेगी। 
 अभी तक वैज्ञानिक सूर्य के
कॅरोना का अध्यन केवल सूर्यग्रहण के समय में ही कर पाते थे। इस मिशन की मदद से सौर वालाओं और सौर हवाओं के अध्ययन में जानकारी मिलेगी कि ये किस तरह से धरती पर इलेक्ट्रिक प्रणालियों और संचार नेटवर्क पर असर डालती है। इससे सूर्य के कॅरोना से धरती के भू चुम्बकीय क्षेत्र में होने वाले बदलावों के बारे में घटनाओं को समझा जा सकेगा। इस सोलर मिशन की मदद से तीव्र और मानव निर्मित उपग्रहों और अन्तरिक्षयानों को बचाने के उपायों के बारे में पता लगाया जा सकेगा। इस उपग्रह का वजन 200  किग्रा होगा । ये उपग्रह सूर्य कॅरोना का अध्ययन कृत्रिम ग्रहण द्वारा करेगा। इसका अध्ययन काल 10 वर्ष रहेगा। ये नासा द्वारा सन 1995 में प्रक्षेपित 'सोहो' के बाद सूर्य के अध्ययन में सबसे उन्नत उपग्रह होगा
शुक्र ग्रह पर भी है नजर 
मंगल के अलावा इसरो के वैज्ञानिकों की नजर शुक्र ग्रह पर भी टिकी है. विशेषज्ञ शुक्र ग्रह पर स्पेस मिशन को खासा अहम मानते हैं क्योंकि धरती के बेहद करीब होने के बावजूद इस ग्रह के बारे में बेहद कम जानकारी उपलब्ध है. हालांकि शुक्र ग्रह का मिशन महज ऑर्बिटर भेजने तक सीमित हो सकता है. अब तक सिर्फ अमेरिका, रूस, यूरोपीय स्पेस एजेंसी और जापान ही शुक्र ग्रह तक कामयाब मिशन लॉन्च कर पाए हैं. 
सैटेलाईट लॉन्च सिस्टम की क्रांति  
फिलहाल इसरो छोटे सैटेलाईट लॉन्च वीइकल को तैयार करने में जुटा है, जिसे सिर्फ तीन दिनों में असेंबल किया गया जा सकेगा। पीएसएलवी जैसे रॉकेट्स को तैयार करने में आमतौर पर 30 से 40 दिन लग जाते हैं, ऐसे में इसरो का यह प्रयास सैटलाइट लॉन्चिंग की दिशा में बड़ी क्रांति जैसा होगा। यही नहीं इस रॉकेट को तैयार करने में पीएसएलवी की तुलना में 10 फीसदी राशि ही खर्च होगी।
दुनिया भर में लॉन्च वीकल की मैन्युफैक्चरिंग कॉस्ट फिलहाल 150 से 500 करोड़ रुपये तक होती है। यह 2018 के अंत या फिर 2019 की शुरुआत तक तैयार हो सकता है। इस वीइकल की कीमत पीएसएलवी के मुकाबले 10 फीसदी ही होगा। हालांकि यह रॉकेट 500 से 700 किलो तक के सैटलाइट्स को ही लॉन्च कर सकेगा।'

ज्यादा उपग्रह प्रक्षेपित करनें का लक्ष्य
अभी भी हमारे पास संचार प्रणाली के मद्देनजर कम सैटेलाइट हैं, इसलिए इसरो सैटेलाइट लॉन्च करने की प्रकिया को दोगुना करने के प्रयास में है। अभी हम एक साल में 8 से 10 सेटेलाइट लॉन्च करते हैं। 2018 तक ये 20 के करीब होगा। हमारा टारगेट अगले 5 साल में 60 सैटेलाइट लॉन्च करने का है।
रेल दुर्घटनाओं से सुरक्षित करेगा इसरो 
मानवरहित रेल फाटकों पर हर साल कई हादसे होते हैं। इन हादसों में कई जानें भी जाती हैं लेकिन अभी तक इसके लिए रेलवे कोई ठोस कदम नहीं उठा पाया है। रेलवे अब इन फाटकों को सुरक्षित करने के लिए भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन यानी इसरो के साथ काम कर रहा है।

इसरो कि चुनौतियाँ 
अब समय आ गया है जब इसरो व्यावसायिक सफ़लता के साथ साथ अमेरिकी अंतरिक्ष एजेंसी नासा और चीन की तरह अंतरिक्ष अन्वेषण पर भी ज्यादा ध्यान दे । इसरो को अंतरिक्ष अन्वेषण और शोध के लिए दीर्घकालिक रणनीति बनानी होगी । क्योकि जैसे जैसे अंतरिक्ष के क्षेत्र में प्रतिस्पर्धा बढेगी अंतरिक्ष अन्वेषण बेहद महत्वपूर्ण होता जाएगा । इस काम इसके लिए सरकार को इसरो का सालाना बजट भी बढ़ाना पड़ेगा जो फिलहाल अमेरिका और चीन के मुकाबले काफ़ी कम है। भारी विदेशी उपग्रहों को अधिक संख्या में प्रक्षेपित करने के लिए अब हमें पीएसएलवी के साथ साथ जीएसएलवी रॉकेट का भी उपयोग करना होगा। पीएसएलवी अपनी सटीकता के लिए दुनियाँ भर में प्रसिद्द है लेकिन ज्यादा भारी उपग्रहों के लिए जीएसएलवी का प्रयोग करना होगा।

महत्वपूर्ण तथ्य 
इसरो का कामयाबी भरा सफ़र
Ø  आज से लगभग 42 साल पहले उपग्रहों का साइकिल और बैलगाड़ी से शुरू हुआ इसरो का सफर आज उस मक़ाम पर पहुँच गया है जहाँ भारत अंतरिक्ष के क्षेत्र में दुनियाँ के सबसे शक्तिशाली पांच देशों में से एक है .
Ø  वर्ष 1969 में प्रसिद्ध वैज्ञानिक विक्रम साराभाई के निर्देशन में राष्ट्रीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन का गठन हुआ था. 
Ø  19 अप्रैल, 1975 को इसरो द्वारा  स्वदेश निर्मित उपग्रह आर्यभट्ट का सफल प्रक्षेपण 
Ø  15 फरवरी, 2017 को इसरो ने एक साथ 104 सैटेलाईट लाँच करके अंतरिक्ष की दुनियाँ में इतिहास रच दिया था . पीएसएलवी की 39वीं उड़ान में इसरो ने एक मिशन में सबसे ज़्यादा 104 सैटेलाइट भेजने का विश्व रिकॉर्ड बनाया  .
Ø  व्यावसायिक उपग्रह प्रक्षेपण का सारा काम इसरो की  कममर्शियल विंग ' एंट्रिक्स कॉरपोरेशन' संचालित करती है . इस सफ़लता से उसे और प्रोजेक्ट  मिलने की उम्मी‍द है.
Ø  भारत में सैटेलाइट्स की कमर्शियल लॉन्चिंग दुनियाँ में सबसे सस्ती पड़ती है। भारत के जरिए सैटेलाइट लॉन्च करना अमेरिका, चीन, जापान और यूरोप से कई गुना तक सस्ता पड़ता है।
Ø  विशेषज्ञों के अनुसार इस सफलता के बाद दुनियाँ भर में छोटी सैटेलाइट लॉन्च  कराने के मामले में इसरो पहली पसंद बन जाएगा, जिससे देश को आर्थिक तौर पर फायदा होगा. विदेशी सैटेलाइट इतनी कम कीमत में लॉन्च करने के कारण अमेरिकी प्राइवेट लॉन्च इंडस्ट्री के लिए इसरो सीधा प्रतिद्वंदी बन गया है.
Ø  लगभग 200 अरब ड़ालर का है ग्लोबल सैटेलाइट मार्केट  फ़िलहाल  इसमें अमेरिका की हिस्सेदारी 41% की है। जबकि भारत की हिस्सेदारी 4% से भी कम है। जो अब लगातार साल दर साल बढ़ रही है ।
Ø  भारत जल्द ही शुक्र और मंगल ग्रहों पर उतरने की तैयारी कर रहा है। इस मिशन को बजट-2017 में जगह दी गई है। इसरो का फंड भी 23% बढ़ाया है।
Ø  इसरो अमेरिकी अंतरिक्ष एजेंसी नासा की जेट प्रोपल्सन लेबोरेटरी के साथ संयुक्त रूप से दोहरी फ्रिक्वेंसी (एल एंड एस बैंड) वाली सिंथेटिक एपर्चर रडार (एसएआर) इमेजिंग सैटेलाइट 'नासा-इसरो सिंथेटिक एपर्चर सैटेलाइट' (निसार) के निर्माण पर काम कर रही है, जिसके 2021 तक पूरा होने की उम्मीद है.
Ø  इसरो ने स्वदेश निर्मित जीएसएलवी सीरीज के 2 से 2.5 टन वहन कैपेसिटी वाले एक और रॉकेट 'जीएसएलवी मार्क 2' को ग्लोबल मार्केट में बिक्री के लिए पेश किया. इसके अलावा स्वनिर्मित पीएसएलवी में खुद डेवलप किए गए मल्टीपल बर्न तकनीक का कमर्शियल इस्तेमाल किया.
Ø  इसरो ने दो नेविगेशन सैटेलाइटों की डिजाइन तैयार करने के लिए अल्फा डिजायन टेक्नोलॉजी लिमिटेड के साथ एक अनुबंध करने के साथ सेटेलाइट उत्पादन के नए फेज की शुरुआत की.


(लेखक शशांक द्विवेदी राजस्थान के मेवाड़ विश्वविद्यालय में उपनिदेशक हैं और  टेक्निकल टूडे पत्रिका के संपादक हैं)

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