Monday 22 April 2013

पृथ्वी दिवस- धरती के अस्तित्व को बचाने के लिए


आज पृथ्वी दिवस है। धरती के अस्तित्व को बचाने के लिए चालीस साल से अधिक समय से हम इस दिवस को मनाते चले आ रहे हैं। यह बात और है हमारे ग्रह का स्वरूप और बिगड़ता चला जा रहा है। समुद्र तल बढ़ रहा है। प्राकृतिक आपदाओं की संख्या बढ़ रही है। जीव-जंतु और पौधे विलुप्त होते चले जा रहे हैं। आबोहवा दूषित होती जा रही है। बर्फ से लदे ध्रुव और ग्लेशियर पिघल रहे हैं। जल, जंगल और जमीन सिकुड़ते जा रहे हैं। ये सब जलवायु परिवर्तन के चेहरे हैं। इसीलिए इन चेहरों की भयावहता की पहचान करने और उसके अनुसार कदम उठाने की अपेक्षा के साथ इस बार पृथ्वी दिवस की थीम 'जलवायु परिवर्तन के चेहरे' तय की गई है।

ग्लोबल वार्मिग:
पिछली सदी से धरती के वायुमंडलीय और समुद्री तापमान में धीरे-धीरे लेकिन लगातार वृद्धि हुई है। पेड़ काटने या वाहन के इस्तेमाल जैसी हर एक इंसानी गतिविधि इस प्रक्रिया में योगदान करती है।
जलवायु परिवर्तन:
पृथ्वी की मौसम प्रणाली पर पड़ने वाले ग्लोबल वार्मिग के असर को जलवायु परिवर्तन कहते हैं। जैसे-जैसे हवा और पानी गर्म होते जा रहे हैं, धरती के जलवायु चक्र में अप्रत्याशित बदलाव दिख रहा है। जिसका दुष्प्रभाव आज दुनिया के लिए बड़ी समस्या बन चुका है।
गर्म का मर्म: ग्रीन हाउस प्रभाव
-सौर ऊर्जा के रूप में सूर्य की किरणें वायुमंडल से गुजरकर धरती तक पहुंचती हैं।
-एक तिहाई ऊर्जा अंतरिक्ष को लौटती है।
-बाकी धरती द्वारा अवशोषित कर ली जाती है।
-उत्सर्जित ऊर्जा का कुछ भाग विकिरण माध्यम से अंतरिक्ष में चला जाता है, जबकि ऊर्जा के बड़े हिस्से को वातावरण में मौजूद कार्बनडाई आक्साइड, नाइट्रस आक्साइड, मीथेन और जलवाष्प जैसी गैसों के अणुओं द्वारा बनी एक परत द्वारा अंतरिक्ष जाने से रोक लिया जाता है। जिससे उत्तरोत्तर धरती गर्म होती जा रही है।
परिवर्तन का प्रभाव:
जलवायु परिवर्तन के चलते पूरी दुनिया में एक अरब लोगों के प्रभावित होने का अंदेशा है। यह बदलाव आर्थिक हालात पर भी नकारात्मक प्रभाव डालेगा।
मौसम प्रणाली में बदलाव:
दुनिया के मौसम में परिवर्तन की प्रक्रिया तेज हो जाएगी। कभी गर्मी की अधिकता रहेगी तो कभी बाढ़ और सूखा के हालात पैदा होंगे। आंधी-तूफान, चक्रवात और हिमस्खलन तेजी से होने लगेंगे।
समुद्री जलस्तर :
गर्मी बढ़ने से बर्फीली चत्रनों का पिघलना तेज हो गया है। समुद्र की जल सतह में वृद्धि हो रही है। एक अध्ययन के मुताबिक, पिछले दो दशकों में वैश्विक समुद्री जलस्तर में औसतन आठ सेमी की वृद्धि हुई है। अनुमान है कि इस सदी के अंत तक इसमें 10 से 90 सेमी की वृद्धि हो सकती है। ऐसे हालात में तटवर्ती इलाकों के डूबने का खतरा पैदा हो जाएगा।
पेय जल और खाद्य संकट:
दुनिया में 1 से 2 अरब लोग पानी की समस्या से जूझ रहे हैं। जलवायु परिवर्तन के फलस्वरूप बढ़ते सूखे और कटते जंगल इस समस्या को विकराल बना सकते हैं। ग्लेशियरों के पिघलने से दुनिया की एक बड़ी आबादी के प्रभावित होने का खतरा मंडरा रहा है। अत्यधिक गर्मी और सूखे की वजह से कृषि उत्पादन प्रभावित हो सकता है, जिससे दुनिया की खाद्य सुरक्षा को संकट खड़ा होगा।
बीमारियां और स्वास्थ्य संकट: जलवायु परिवर्तन से संक्रामक रोगों का भौगोलिक वितरण और खतरा व्यापक हो सकता है। विश्व स्वास्थ्य संगठन के एक आकलन के अनुसार, जलवायु परिवर्तन के चलते 2000 में मरने वालों की संख्या में 1.5 लाख की वृद्धि हुई। भविष्य में इसमें गुणात्मक वृद्धि का अंदेशा है।
पारिस्थितिकी तंत्र से छेड़छाड़: मानवीय विकास प्रक्रिया से होने वाले जल, वायु प्रदूषण और आवास के खात्मे के असर को जलवायु परिवर्तन और गहरा कर सकती है। ग्लेशियर, कोरल रीफ, मैंग्रोव, उष्ण कटिबंधीय जंगल, पोलर और अल्पाइन पारिस्थितिकी तंत्र जैसे कई प्राकृतिक तंत्रों को गंभीर नुकसान पहुंच सकता है।
प्रजातियों पर संकट:
जलवायु परिवर्तन से वर्ष 2050 तक हर जगह जैव विविधता में कमी सहजता से देखी जा सकेगी। जो प्रजातियां लुप्त होने के कगार पर हैं, उनके लिए खतरा बढ़ जाएगा।
क्या होगा यदि वैश्विक तापमान में:
0-1 डिग्री वृद्धि-
ऊंचाई पर स्थित विकसित देशों में फसल पैदावार में बढ़ोत्तरी, दुनिया के छोटे ग्लेशियरों का खात्मा, कई इलाकों में पेयजल संकट, समुद्री कोरल रीफ को खतरा।
1-2 डिग्री वृद्धि-
फसल पैदावार में गिरावट, भुखमरी से पीड़ित लोगों करी संख्या में इजाफे का खतरा, अफ्रीका और पश्चिमी एशिया में सर्वाधिक, जल उपलब्धता में अमूलचूल बदलाव, अमेजन के बरसाती जंगलों के खात्मे का खतरा, बड़ी संख्या में पारिस्थितिकी तंत्र के मौजूद स्वरूप को बचाने की चुनौती, बाढ़, सूखा, तूफान और लू की तीव्रता में वृद्धि।
2-3 डिग्री वृद्धि-
जीवों की कई प्रजातियां विलुप्त हो सकती हैं, हरीकेन से अमेरिका में दोगुना नुकसान।
3-4 डिग्री वृद्धि-
शक्तिशाली कार्बन उर्वरीकरण के बावजूद कई विकसित क्षेत्रों में फसल पैदावार कम।
4-5 डिग्री वृद्धि-
फसल पैदावार में अप्रत्याशित गिरावट, समुद्र जल स्तर बढ़ने से मुंबई, कोलकाता, लंदन, शंघाई, न्यूयार्क, टोकियो और हांगकांग को खतरा।
आग का गोला:
सदियों से कार्बन डाईआक्साइड वातावरण में जमा हो रही है। औद्योगिकीकरण से इसमें तेजी आई। अब तक कुल जमा हुई इस गैस का 70 फीसद उत्सर्जन विकसित देशों द्वारा किया गया है।
1731 से प्रमुख देशों द्वारा उत्सर्जित गैस की मात्रा सभी देशों के उत्सर्जन का फीसद।
अमेरिका, 29.9, ईयू, 26.6, रूस, 8.1, चीन, 7.6, जर्मनी, 7.3, ब्रिटेन, 6.3, जापान, 4.1, फ्रांस, 2.9, भारत, 2.2।

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