दिनेश मिश्र
कितना अच्छा होता कि हम अपने थक चुके और बेकार अंगों को पुनर्जीवन दे सकें।
हमेशा एक नई ऊर्जा के साथ जिंदगी को बेहतर तरीके से जी सकें। उम्र का हम पर कोई
फर्क नहीं पड़े। न ही हमें दिल के दौरे से बचने के लिए महंगी दवाएं खानी पड़ें।
पुराणों में एक कथा आती है- देवासुर संग्राम के दौरान देवताओं के हाथ-पैर जख्मी
होने और कटने पर दैव चिकित्सक जुड़वा भाई अश्विनी कुमारों उनके अंगों को फिर से
पहले जैसा कर देते थे। यहां तक कि भैरव देवता ने एक बार गुस्से में आकर ब्रह्माजी
का सिर काट दिया था, तब इन्हीं शल्य चिकित्सकों
ने कटे हुए सिर को धड़ से जोड़कर ब्रह्मा को जीवित कर दिया था। इन्होंने दीर्घतमा
और च्यवन ऋषि को उनके जर्जर शरीर से मुक्ति दिलाई थी। खुद भगवान शिव ने अपने पुत्र
गणेश के सिरकटे धड़ पर हाथी का सिर जोड़ दिया था। विज्ञान की दुनिया में कुछ ऐसी
ही है स्टेम सेल चिकित्सा तकनीक। मिथकों में ही सही, मगर
स्टेम सेल चिकित्सा की यह तकनीक हमारे पौराणिक धर्मग्रंथों में कहीं न कहीं मौजूद
थी, जो आधुनिक चिकित्सा के लिए आधार बन सकती है। बशर्ते,
इस पर बाकायदा सार्थक और पूर्वाग्रह रहित काम हो।
शोध विज्ञान
पत्रिका द लैंसेट में हाल ही में प्रकाशित स्टेम सेल का चमत्कारिक पहलू उजागर हुआ
है। भारतीय मूल की एक वैज्ञानिक सुचित्रा सुमित्रन की अगुआई में स्वीडन के
गोथेनबर्ग विश्वविद्यालय के वैज्ञानिकों ने एक मृत व्यक्ति की नस से उसकी कोशिकाओं
को हटाकर उसमें इस लड़की की स्टेम कोशिकाएं प्रत्यारोपित कर दीं। इस लड़की के दिल
में खून की आपूर्ति करने वाली मुख्य शिरा ठीक से काम नहीं कर रही थी। प्रत्यारोपण
के बाद से लड़की अब स्वस्थ जीवन बिता रही है। इस सफलता से उन मरीजों के लिए उम्मीद
की नई किरण जगी है, जिनमें डायलिसिस या बाइपास सर्जरी के लिए
उपयुक्त नसों की कमी होती है। प्रयोगशाला में तैयार की गई यह नई नस न सिर्फ रक्त
प्रवाह को नियमित करती है, बल्कि जिंदगी की गुणवत्ता को भी
बढ़ाती है। इसी तरह अमेरिका के वैज्ञानिकों ने एक ऐसे अणु की खोज की है, जो स्टेम कोशिका को हृदय कोशिका में परिवर्तित कर देता है। उनका दावा है
कि इस अणु की मदद से भविष्य में स्टेम कोशिकाओं को हृदय कोशिकाओं में आसानी से
बदला जा सकेगा, जिससे हृदय प्रत्यारोपण की जटिल प्रक्रिया से
गुजरने की बजाय दवाओं की मदद से ही हृदय कोशिकाओं को विकसित किया जा सकेगा। दुनिया
में हर साल लाखों लोगों की दिल के दौरे से मौत हो जाती है। वास्तव में स्टेम सेल
ऐसी मूल कोशिकाएं होती हैं, जिनमें शरीर के किसी भी अंग को
कोशिका के रूप में विकसित करने की क्षमता मिलती है। इसके साथ ही ये अन्य किसी भी
प्रकार की कोशिकाओं में बदल सकती है। वैज्ञानिकों के मुताबिक, इन कोशिकाओं को शरीर की किसी भी कोशिका की मरम्मत के लिए इस्तेमाल किया जा
सकता है। इस प्रकार यदि हृदय की कोशिकाएं खराब हो गई तो इनकी मरम्मत हृदय की
कोशिका द्वारा ही की जा सकती है। इसी तरह यदि आंख की कॉर्निया की कोशिकाएं खराब हो
जाएं तो उन्हें भी स्टेम कोशिकाओं द्वारा नया विकसित कर प्रत्यारोपित किया जा सकता
है। इंसान के लिए बेहद जरूरी तत्व विटामिन सी को बीमारियों के इलाज के उद्देश्य से
स्टेम कोशिका पैदा करने के लिए भी प्रयोग किया जा सकता है। सर्वप्रथम रक्त बनाने
वाले ऊतकों से इस चिकित्सा का विचार और प्रयोग शुरू हुआ था। अस्थि-मज्जा से
प्राप्त ये कोशिकाएं आजीवन शरीर में रक्त का उत्पादन करती हैं और कैंसर आदि रोगों
में इनका प्रत्यारोपण कर पूरी रक्त प्रणाली को पुनर्जीवित किया जा सकता है। इन
कोशिकाओं का इस्तेमाल स्वस्थ कोशिकाओं को विकसित करने में किया जाता है।
वर्ष 1960
में कनाडा के वैज्ञानिकों अर्नेस्ट मुकलॉक और जेम्स टिल की खोज के
बाद स्टेम कोशिका के इस्तेमाल को बढ़ावा मिला। स्टेम कोशिका को वैज्ञानिक प्रयोग
के लिए स्त्रोत के आधार पर भ्रूण, वयस्क तथा कॉर्डब्लड में
बांटा जाता है। अधिकांशत: स्टेम कोशिकाएं भ्रूण से प्राप्त होती हैं। इन्हें जन्म
के समय ही सुरक्षित रखना होता है। हालांकि बाद में हुए किसी छोटे भाई या बहन के
जन्म के समय सुरक्षित रखी कोशिकाएं भी सहायक सिद्ध हो सकती हैं। यह तकनीक भी
सवालों से परे नहीं है। इन मौलिक कोशिकाओं के अनुसंधान को लेकर काफी विवाद है।
इसमें इस्तेमाल होने वाली कोशिकाओं को विकास के प्रारंभिक चरण में मानव भ्रूण से
लिया जाता है। कोशिकाओं को हासिल करने की तकनीकों के इस्तेमाल के दौरान भ्रूण नष्ट
हो जाता है। इसीलिए नैतिकता के आधार पर इस तरह के अनुसंधानों का जोरदार विरोध होता
रहा है, मगर मौजूदा दौर में इसके वैकल्पिक स्त्रोतों की तलाश
कर ली गई है। इसमें भ्रूण को नष्ट करने की कोई जरूरत नहीं है। इसके बजाय गर्भनाल,
रक्त, दूध, दांत,
अस्थि मज्जा और यहां तक कि महिलाओं के मासिक धर्म से भी स्टेम
कोशिका प्राप्त की जा सकती है। प्रकृति से प्राप्त हर चीज का इंसान की बेहतरी के
लिए इस्तेमाल करना ही विज्ञान का धर्म होता है। इस चिकित्सा के फायदे अनगिनत हैं।
इससे डायबिटीज, पर्किसन और अल्जाइमर जैसे रोगों का प्रभावी
तौर पर उपचार संभव हो सकेगा। जापान के वैज्ञानिकों ने तो प्रयोगशाला में बनाई गई
स्टेम सेल से निकट भविष्य में ब्लड कैंसर का उपचार करने का दावा किया है।
प्लास्टिक एनीमिया (लाल रक्त कणिकाओं की कमी) और थैलेसीमिया (हीमोग्लोबीन के गलत
संश्लेषण से उत्पन्न होने वाला एनीमिया) जैसे ब्लड कैंसर का उपचार भी किया जा सकता
है। ऐसे मरीजों को बार-बार रक्त की जरूरत पड़ती है, लेकिन ऐसे
दाता मिलने मुश्किल होते हैं, जिनका ब्लड ग्रुप मरीजों से
मेल खाए। ऐसे में यह तकनीक बेहद कारगर साबित हो सकती है।
अमेरिका ने तो स्टेम सेल
से जुड़े प्रयोगों को इंसान पर आजमाने की मंजूरी दे दी है। इस घोषणा से दुर्घटनाओं
की वजह से चलने में लाचार लाखों लोगों के लिए उम्मीद जगी है। यही नहीं, लकवाग्रस्त और किसी चोट से निष्कि्रय अंग वाले पशुओं का इलाज करने में
भारतीय वैज्ञानिकों को सफलता मिली है। दुनिया में सबसे ज्यादा पशुधन भारत में होने
के नाते यह काफी मायने रखता है कि हम अपने पशुओं की बेहतरी के लिए भी काम करें। आघात
या मस्तिष्क में चोट के चलते नष्ट हो चुकी कोशिकाओं की मरम्मत भी स्टेम सेल तकनीक
के जरिये की जा सकती है। बांझपन का इलाज कर मां बनने की इच्छुक महिलाओं के सपने को
साकार किया जा सकता है। वास्तव में ये कोशिकाएं शरीर को बुढ़ापे से मुक्त करने में
सक्षम हैं। भले ही ये अभी प्रयोग के स्तर पर हैं, मगर भविष्य
में इस प्रकार की चिकित्सा का चलन बढ़ जाएगा। वजह है बीमारी की दशा में ढेर सारी
दवाओं से मुक्ति, दीर्घकालीन आराम से फुरसत और शरीर में
दोबारा युवाओं जैसी फुर्ती। इन कोशिकाओं ने उम्मीद तो जगाई ही है, साथ ही अनुसंधान के नए और इंसान की बेहतरी के लिए कल्याणकारी रास्ते भी
खोले हैं। हालांकि अभी कई सवालों के जवाब तलाशे जाने बाकी हैं।
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