अं टार्कटिक महाद्वीप मानवीय गतिविधियों और अन्य कारकों की वजह से खतरे में है. पृथ्वी के आखिरी बचे इस खूबसूरत निर्जन प्रदेशको बचाने के लिए पर्यावरण प्रबंधन की जरूरत है. टेक्सास एएंडएम विश्वविद्यालय के समुद्र विज्ञानियों की अगुवाई वाली अंतरराष्ट्रीय शोध टीम ने अपनी शोध के आधार पर यह कहा है. लगभग 25 वर्षों के अपने अध्ययन में उन्होंने कहा कि ग्लोबल वार्मिंग, समुद्री-हिम और भू-हिम में कमी, बढ.ते पर्यटन, क्षेत्र में मछली मारने की गतिविधियों में वृद्धि, आबादी आदि के कारण अंटार्कटिक को खतरा बढ.ता जा रहा है. सबसे बड़ी चिंता की बात यह है कि तेल, गैस और खनिज पदाथरें का विशाल भंडार होने के कारण अगर यहां खनन कार्य होता है, तो यह खतरा और बढ. सकता है. शोधकर्ताओं का कहना है कि अंटार्कटिक ट्रीटी सिस्टम इस महाद्वीप में लागू है, जो 1962 में अस्तित्व में आया था. फिलहाल 50 देश ही इस संधि का सर्मथन करते हैं. गौरतलब है कि अंटार्कटिक में पूरी दुनिया का लगभग 90 फीसदी पानी स्वच्छ है और यह बर्फ की चादर के नीचे दबा है. लेकिन, इस क्षेत्र में मानवीय गतिविधियां बढ.ने से समुद्र की सतह पर पड़ी बर्फ की इन चादरों के पिघलने का खतरा बढ.ता जा रहा है. गौरतलब है कि अंटार्कटिक क्षेत्रफल में अमेरिका से भी दोगुना है, लेकिन यहां न कोई शहर है, न कोई सरकार और न कोई स्थायी रिहायशी क्षेत्र. अंटार्कटिक जाने वाले चाहे वह वैज्ञानिक हों या पर्यटक सभी कम अवधि के लिए ही वहां जाते हैं. क्योंकि यह पृथ्वी पर सबसे ठंडा और सबसे तेज हवाओं वाला क्षेत्र है. यह एकमात्र ऐसा महाद्वीप है, जहां कोई टाइमजोन नहीं है. शोधकर्ताओं का कहना है कि पिछले 50 वर्षों से लागू अंटार्कटिक संधि ने बेहतर काम किया है, लेकिन अब इसकी सुरक्षा के लिए हमें और अधिक काम करने की आवश्यकता है.
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