Wednesday 4 July 2012

गॉर्ड पार्टिकल मिलने का दावा

सुलझेगा ब्रह्मंड का रहस्य!
कैसे बना यह ब्रह्मंड? विज्ञान लगातार इस गुत्थी को सुलझाने में लगा है. वैज्ञानिक शोध में जुटे हैं, जो उन्हें पदाथरें में द्रव्यमान की पहेली को सुलझा सके. इन्हीं कोशिशों के बीच वे इस नतीजे पर पहुंचे कि पदाथरें में द्रव्यमान हिग्स बोसोन यानी गॉड पार्टिकल के कारण होता है. इसके बाद शुरू हुई इस गॉड पार्टिकल तक पहुंचने की मुहिम. बीते ढाई साल से दुनियाभर के वैज्ञानिकों की साझा कोशिश इस एक कण तक पहुंचने की रही है. ऐसा माना जा रहा है कि वैज्ञानिक इस गॉड पार्टिकल तक पहुंच गये हैं. अगर यह सच है तो ब्रह्मंड की उत्पत्ति से जु.डे कई अनुत्तरित सवालों का जवाब हमारे सामने होगा. उम्मीद की जा रही है कि इस खोज में जुटी सर्न (द यूरोपियन ऑर्गनाइजेशन ऑफ न्यूक्लियर रिसर्च) आज जिनेवा में गॉड पार्टिकल के मिलने की घोषणा कर सकती है.
इं सान शुरू से खोजी प्रवृत्ति का रहा है. यही वजह है कि जीवन के विकास से लेकर नये-नये ग्रहों की खोज हमारे सामने हैं. लेकिन, आज भी कई ऐसे सवाल हैं, जिससे इंसान जूझ रहा है. इन्हीं सवालों में एक है ब्रह्मंड की उत्पत्ति या निर्माण का सवाल. ब्रह्मंड की उत्पत्ति से जु.डे कई ऐसे रहस्य हैं, जिनपर आज भी परदा पड़ा हुआ है. इस रहस्य की गुत्थी सुलझाने के लिए दुनियाभर के कई वैज्ञानिक फ्रांस और स्विट्जरलैंड की सीमा से सटे क्षेत्र में द यूरोपियन ऑर्गनाइजेशन ऑफ न्यूक्लियर रिसर्च (सीइआरएन-सर्न) में काफी समय से प्रयोग कर रहे थे. अब उन्होंने गॉड पार्टिकल यानी हिग्स बोसोन का पता लगाने का दावा किया है. उनका मानना है कि इस महत्वपूर्ण कण की खोज के प्रति वे 99.99995 प्रतिशत आश्‍वस्त हैं. सर्न के वैज्ञानिक इस पार्टिकल के प्राप्ति संबंधी घोषणा बुधवार को करेंगे. इसके लिए उन्होंने दुनिया के शीर्ष पांच सैद्धांतिक भौतिकविदों को आमंत्रित किया है.

ब्रह्मंड की उत्पत्ति का खुलेगा राज

गौरतलब है कि ब्रह्मंड की उत्पत्ति को समझने की कोशिश वर्षों से चली आ रही है. इस कड़ी में हुई खोजों में सबसे महत्वपूर्ण रही हिग्स बोसोन यानी गॉड पार्टिकल को लेकर किया गया प्रयोग. इसे गॉड पार्टिकल इसलिए कहा जा रहा है, क्योंकि यही वह अदृश्य तत्व है जिसकी वजह से ब्रह्मंड की रचना संभव हो सकी. इस परियोजना पर अभी तक अरबों डॉलर खर्च किये जा चुके हैं और लगभग आठ हजार वैज्ञानिक पिछले ढाई वर्षों से लगातार काम कर रहे हैं.

हिग्स बोसोन या गॉड पार्टिकल

जब हमारा ब्रह्मंड अस्तित्व में आया तो उससे पहले सबकुछ हवा में तैर रहा था. किसी चीज का तय आकार या वजन नहीं था. जब हिग्स बोसोन भारी ऊर्जा लेकर आया तो सभी तत्व उसकी वजह से आपस में जुड़ने लगे और उनमें द्रव्यमान पैदा हुआ. इसे लेकर लगभग पांच दशकों से वैज्ञानिक प्रयोग में लगे हुए थे और इसका नाम ब्रिटिश वैज्ञानिक पीटर हिग्स और भारत के सत्येंद्रनाथ बोस के नाम पर हिग्स बोसोन रखा गया है. यह भौतिकी के मूलकण परमाणु संरचना के तथाकथित स्टैंडर्ड मॉडल को पूर्णता प्रदान करता है.

इस मॉडल के मुताबिक, हिग्स-बोसोन ही वह चीज है, जो पदार्थ यानी परमाणु की संरचना में शामिल अब तक ज्ञात सभी 12 मूलकणों को उनका द्रव्यमान प्रदान करती है. यानी जिस तरह हम मानते हैं कि भगवान शरीर में प्राण फूंककर उसे जीवंत बनाता है, उसी प्रकार वैज्ञानिकों का मानना है कि हिग्स-बोसोन ही परमाणु के सभी मूल संघटकों में द्रव्यमान डालकर परमाणु को पदार्थ की इकाई का रूप देते हैं.

पदाथरें में द्रव्यमान की वजह

ब्रह्मंड की हर चीज मैटर यानी पदार्थ से बनी है. मैटर अणु और परमाणुओं से बना है और द्रव्यमान वह भौतिकीय विशेषता है, जिससे इन कणों को ठोस रूप मिलता है. अगर द्रव्यमान न हो तो वह कण रोशनी की रफ्तार से भागता रहेगा और कभी दूसरे कणों से मिलकर किसी ठोस आकार में नहीं बदल सकेगा. यानी गॉड पार्टिकल के कारण ही पदाथरें में द्रव्यमान होता है.

99.99 प्रतिशत तक वैज्ञानिक इस बात के प्रति आश्‍वस्त हैं कि उन्होंने इस महत्वपूर्ण कण की खोज कर ली है.1965 में ब्रिटिश वैज्ञानिक पीटर हिग्स ने हिग्स बोसोन या गॉड पार्टिकल का आइडिया पेश किया था.1993 में नोबेल पुरस्कार विजेता भौतिकविद लियोन लेडरमैन ने द गॉड पार्टिकल नामक किताब लिखी थी.


कैसे हुई खोज

वैज्ञानिक जब मैटर के भीतर शोध करते गये तो कणों के नीचे कण मिलते गये, लेकिन सिद्धांत तब तक पूरी नहीं हो सकती थी, जब तक यह पता नहीं चलता कि मास आता कहां से है. भौतिकी में जब इन तमाम कणों को एक सिस्टम में रखने की (स्टैंडर्ड मॉडल ऑफ पार्टिकल्स) कोशिश की गयी तो फॉर्मूले में गैप दिखने लगा. इस गैप को भरने और मास की वजह बताने के लिए 1965 में पीटर हिग्स ने हिग्स बोसोन या गॉड पार्टिकल का आइडिया पेश किया.

उस सिद्धांत में बोसोन ऐसा मूल कण था, जिसका एक फील्ड था, जो ब्रह्मंड में हर जगह मौजूद था. जब कोई दूसरा कण इस क्षेत्र से गुजरता है तो रेजिस्टेंस या रुकावट का सामना करता है. जैसे कि कोई भी चीज पानी या हवा से गुजरते हुए करती है. जितना ज्यादा विरोध उतना अधिक मास. स्टैंडर्ड मॉडल हिग्स बोसोन से मजबूत हो जाता था, लेकिन उसके होने का प्रायोगिक सबूत नहीं मिल पाया था. लेकिन अब इसके अस्तित्व की घोषणा बुधवार को हो सकती है. गौरतलब है कि हिग्स बोसोन की गति लगभग रोशनी की गति के बराबर होती है. उसे पकड़ पाना या देख पाना बेहद मुश्किल है. उसे नजर में लाने के लिए इतनी ऊर्जा की जरूरत होती है, जितनी अरबों बरस पहले ब्रह्मंड के जन्म के आसपास कभी रही होगी.

कब और कैसे हुआ प्रयोग

वर्ष 2000 से पहले : लार्ज इलेक्ट्रॉन-पोसिट्रॉन कोलाइडर से प्रयोग. इस प्रयोग में नहीं मिली कोई खास सफलता.

जुलाई 2010 : फर्मीलैब और टेवाट्रॉन से प्राप्त आंकड़ों के आधार पर प्रयोग. नहीं मिली कोई विशेष सफलता.

24 अप्रैल 2011 : गॉड पार्टिकल के मिलने की अफवाह सामने आयी. बाद में खंडन.

24 जुलाई 2011 : लार्ज हैड्रोन कोलाइड (एलएचएस) ने इस कण के होने के संकेत दिये, हालांकि यह भी बताया गया कि इसका भार बहुत कम है.

22 अगस्त 2011 : एलएचएस ने बताया, 145 से 466 इलेक्ट्रॉनवोल्ट (ऊर्जा की इकाई) के बीच हिग्स बोसन को देखना असंभव.

13 दिसंबर 2011 : वैज्ञानिकों ने कहा कि 116 से 130 इलेक्ट्रॉनवोल्ट के बीच यदि इसका भार सीमित किया जाये तो हिग्स बोसोन को देखना संभव हो सकता है.

22 जून 2012 : यह प्रयोग करने वाली प्रयोगशाला सर्न ने घोषणा की कि वह चार जुलाई को इस विषय पर प्रेस कॉन्फ्रेंस करेगी.


कहां हुआ यह प्रयोग

भौतिकी का सबसे बड़ा प्रयोग यूरोपीय नाभिकीय अनुसंधान संगठन यानी सर्न में किया गया. यह दुनिया की सबसे बड़ी प्रयोगशाला है. यह फ्रांस और स्विट्जरलैंड की सीमा पर जिनेवा के उत्तर-पश्‍चिमी उपनगरीय क्षेत्र में है. इस बड़ी प्रयोगशाला में बीस यूरोपीय देश मिलकर काम कर रहे हैं. इसमें कई अन्य देश भी उनकी मदद कर रहे हैं. भारत भी इसका एक पर्यवेक्षक देश है. इसका मुख्य उद्देश्य उच्च ऊर्जा भौतिकी से संबंधित अनुसंधान करने के लिए विभित्र प्रकार के कण त्वरकों (पार्टिकल एक्सलेरेटर्स) का विकास करना है. अगर यहां काम करने वाले वैज्ञानिकों की बात करें तो फिलहाल लगभग 2600 स्थायी कर्मचारी और दुनिया भर के 500 विश्‍वविद्यालयों एवं 80 देशों के करीब 7,930 वैज्ञानिक एवं इंजीनियर काम कर रहे हैं.

किस तरह हुआ प्रयोग

गॉड पार्टिकल का पता लगाना कोई मामूली काम नहीं है. इसके लिए एलएचसी यानी लार्ज हेड्रोन कोलाइडर से अणुओं को प्रकाश की गति से टकराया गया है. इससे ठीक वैसी ही स्थिति उत्पत्र हुई, जैसी दुनिया की उत्पत्ति से बिल्कुल पहले बिग बैंग की घटना के समय थी. इसके लिए प्रयोगशाला के 27 किलोमीटर लंबी सुरंग में अति आधुनिक उपकरण लगाये गये हैं. प्रयोग के लिए प्रोटोनों को इस सुरंग में दो विपरीत दिशाओं से प्रकाश की गति से दौड़ाया गया. वैज्ञानिकों के मुताबिक, प्रोटोन कणों ने एक सेकंड में 27 किलोमीटर लंबी सुरंग के 11 हजार से भी अधिक चक्कर काटे. इसी प्रक्रिया के दौरान प्रोटोन विशेष स्थानों पर आपस में टकराये, जिससे ऊर्जा पैदा हुई. एक सेकंड में प्रोटोनों के आपस में टकराने की 60 करोड़ से भी ज्यादा घटनाएं हुईं. इस टकराव से जु.डे वैज्ञानिक विवरण का विश्लेषण किया जा रहा है. गौरतलब है कि इस प्रयोग के दौरान प्रति सेकंड सौ मेगाबाइट से भी ज्यादा आंक.डे इकट्ठा किये गये हैं. अब इस बात को लेकर शोध जारी है कि जब प्रोटोन आपस में टकराये तो क्या कोई तीसरा तत्व मौजूद था, जिससे प्रोटोन और न्यूट्रॉन आपस में जुड़ जाते हैं. इसी जुड़ाव से मास या आयतन की रचना होती है.

पुष्टि से किस तरह के होंगे बदलाव

प्रकृति और विज्ञान के बीच संबंधों के विभित्र पहलुओं को साबित किया जा चुका है. इस कड़ी में यदि कोई अधूरी कड़ी है तो वह है- ब्रह्मंड का निर्माण. सृष्टि का निर्माण किस तरह हुआ, इस सिद्धांत की पुष्टि अभी तक नहीं हो पायी है. यही अधूरी कड़ी है, हिग्स बोसोन. इसी का पता लगाने की जद्दोजहद वैज्ञानिक कर रहे थे. अगर गॉड पार्टिकल के मिलने का दावा सही साबित होता है, तो यह साबित हो जायेगा कि भौतिक विज्ञान सही दिशा में काम कर रहा है. इससे भौतिकी के स्टैंडर्ड मॉडल की भी पुष्टि हो जायेगी और यह भी साबित हो जायेगा कि हर चीज ठोस क्यों होती है.

क्योंकि यदि हिग्स बोसोन यानी गॉड पार्टिकल का पता नहीं चलता तो स्टैंडर्ड मॉडल फेल हो जाता और हर चीज के ठोस होने की वजहों का भी पता नहीं चल पाता. विज्ञान के लिए यह बड़ा झटका होता. और तब गणित पर भी सवाल उठने लगता.(चंदन मिश्रा)

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