तकनीकी शिक्षा के मौजूदा सत्र में इस बार पूरे देश में काफी सीटें खाली रह गई। एक तरफ, सरकार उच्च शिक्षा के बाजारीकरण पर जुटी है, दूसरी तरफ, इसे गुणवत्तापूर्ण बनाने के लिए सरकार प्रतिबद्ध नहीं है। देश की उन्नति के लिए तकनीकी शिक्षा का ढांचा और मजबूत होना चाहिए, लेकिन सरकार इसे सिर्फ व्यावसायिक बनाने में जुटी हुई है।
राजस्थान पत्रिका लेख |
गांधी जी ने कहा था कि देश की समग्र उन्नति और आर्थिक विकास के लिए तकनीकी शिक्षा का गुणवत्तापूर्ण होना बहुत जरूरी है, उन्होंने इसको प्रभावी बनाने के लिए कहा था कि कॉलेज में हॉफ-हॉफ सिस्टम होना चाहिए, मतलब आधे समय में किताबी ज्ञान दिया जाए और आधे समय में उसी ज्ञान का व्यावहारिक पक्ष बताकर उसका प्रयोग सामान्य जिन्दगी में कराया जाए। भारत में तो गांधी जी की बातें ज्यादा सुनी नहीं गई, पर चीन ने उनके इस प्रयोग को पूरी तरह से अपनाया और उसे लाभ मिला। वास्तव में हम अपने ज्ञान को बहुत व्यावहारिक नहीं बना पाए हैं।
आज देश में हजारों की संख्या में इंजीनियरिंग कॉलेज खुल गए हैं और लगातार खुल रहे हैं, लेकिन क्या इन संस्थानों में गुणवत्तापूर्ण शिक्षा की गारंटी दी जा सकती है? यही वजह है आज लोगों का रूझान तकनीकी की तरफ कम होने लगा है और इन कॉलेज में सीटें खाली रहने लगी हैं, जबकि देश के विकास के लिए हमें अधिक से अधिक योग्य इंजीनियर चाहिए ,आज चीन और जर्मनी में 80-80, कोरिया में 95, ऑस्ट्रेलिया में 70, ब्रिटेन में 60 फीसदी युवक तकनीकी शिक्षा से लैस हैं, जबकि भारत में तकनीकी शिक्षा पाने वाले नौजवानों का प्रतिशत महज 4.8 फीसदी है। देश की आबादी में प्रतिवर्ष 2.8 करोड़ युवा जुड़ जाते हैं तथा 1.28 करोड़ युवक श्रम शक्ति शामिल होते हैं, लेकिन इनमें से सिर्फ 25 लाख प्रशिक्षित होते हैं, जबकि मौजूदा अर्थव्यवस्था में जो रोजगार पैदा हो रहे हैं, उनमें 90 फीसदी ऎसे रोजगार हैं, जिनमें तकनीकी शिक्षा की जरूरत है।
सरकार तकनीकी शिक्षा प्रणाली में बदलाव के लिए जो कदम उठा रही है। मसलन, प्रवेश परीक्षाओं से लेकर पाठयक्रम तक में जो बदलाव किए जा रहे हैं, इन सबका एक ही मकसद है कि कैसे भारत में दुनिया के बाजार के लिए पेशेवर लोगों की फौज तैयार की जाए। इंजीनियरिंग और मेडिकल के असली ज्ञान का विकास हमारे नौजवान नहीं कर पाएंगे। हमारे नौजवान सिर्फ तकनीकी डिग्रियां हासिल कर वैश्विक बाजार में दोयम दर्जे की नौकरी कर रहे होंगे। इससे सिर्फ विदेशी कंपनियों को फायदा होगा, क्योंकि उन्हें सस्ते में भारतीय पेशेवर मिलेंगे।
आज जरूरत है ऎसे तकनीकी ज्ञान की, जो वास्तविकता के धरातल पर हो, देश और समाज की जरूरत के हिसाब से हो। साथ ही, व्यावहारिक भी हो, जिससे हम उसे अपने देश की परिस्थितियों के हिसाब से प्रयोग कर सकें।
आज जरूरत है ऎसे तकनीकी ज्ञान की, जो वास्तविकता के धरातल पर हो, देश और समाज की जरूरत के हिसाब से हो। साथ ही, व्यावहारिक भी हो, जिससे हम उसे अपने देश की परिस्थितियों के हिसाब से प्रयोग कर सकें।
शशांक द्विवेदी
इंजीनियरिंग शिक्षा से जुड़े स्वतंत्र टिप्पणीकार
http://www.patrika.com/print/emailarticle.aspx?id=29115
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