आने वाले समय
में सरकार पॉलीथिन का प्रयोग बढ़ाने की बात करने लगे तो चौंकिएगा नहीं। क्योंकि
जल्द प्लास्टिक कचरे से पेट्रोल, डीजल और यहां तक कि घर में खाना पकाने
वाली एलपीजी गैस भी बनाई जाएगी। पौलिथिन और प्लास्टिक दुनिया के प्रदुषण के लिए
सबसे अधिक हानिकारक माना जा रहा हैं | लेकिन अब ये धारणा बदलनी होगी | क्योंकि केन्द्रीय पेट्रोलियम संसथान आई आई पी ने नयी वैज्ञानिक तकनीक इजाद की
है जिसके तहत प्लास्टिक और पोलीथिन की रिसाइकिलिंग कर पेट्रोलियम प्रदार्थ बनाया
जाएगा | वो भी बिना पर्यावर्णीय नुकसान के |
भारत सरकार का
देहरादून स्थित पेट्रोलियम शोध संस्थान आईआईपी , पिछले १५ साल से
दुनिया को न केवल पेट्रोलियम पदार्थों की कमी को दूर करने की मुहिम में जुटा है
बल्कि साथ ही वो जुटा है पोलीथिन-प्लास्टिक से होने वाले पर्यावर्णीय नुकसान को
समाप्त करने में | आज आईआईपी दुनिया को अपने इस नए अचरज से रूबरू करने जा रहा है | अब वो दिन दूर नहीं जब प्लास्टिक और पोलीथिन के कचरे से पेट्रोल, डीजल और यहां तक कि घर में खाना पकाने वाली एलपीजी गैस भी बनाई जाएगी।
भारतीय पेट्रोलियम
संस्थान के वैज्ञानिकों ने यहाँ इसके लिए बेंच रियेक्टर संयंत्र लगाया गया । इस
वैज्ञानिक तकनीक को बाजार की डिमांड के हिसाब से तैयार कर रहे हैं। आईआईपी में
बेंच स्केल रियेक्टर के माध्यम से प्लास्टिक के ईधन बनाने की तकनीक को अंतिम रूप
दिया गया जो सफल हुआ है |
इस तकनीक का
सबसे बड़ा फायदा है , पेट्रो पदार्थो की बढ़ती डिमांड भी पूरी होना | इतना ही नहीं इसकी
कीमत वर्तमान में उपलब्ध पेट्रो प्रदार्थों से बेहद कम होगा | इस तकनीक आधारित इकाई के लिए बहुत अधिक खर्च नहीं करना पड़ेगा | ५० टन के प्लांट के लिए मात्र ७२ करोड़ रूपये निवेश करने होंगे |
वैज्ञानिकों का
मत है की ये प्लांट नगर पालिका और नगर निगम जैसे संस्थान आसानी से लगा सकते है
क्योंकि उनके कन्धों पर शहर का पोलीथिन जैसा कचरा साफ़ करने की जिम्मेदारी है जिसका
इस्तेमाल वो इस रूप में कर सकते है और यदि ये योजना कारगर रही तो एक तीर से दो -
दो निशाने लगेंगे. यह तकनीक प्लास्टिक के रिसाइक्लिंग से अधिक सुरक्षित है।
क्योंकि ईधन बनाते समय कोई भी हानिकारक गैस नहीं मिलेगी। यानि दुनिया पोलीथिन और
प्लास्टिक के कभी न नष्ट होने वाले खतरे से बच सकेगी |
यदि इस प्रयोग
से होने वाले सामान्य लाभों को देखें तो १ किलो पोलीथिन से ७०० मिलीलीटर पेट्रोल
या ८५० मिलीलीटर डीज़ल या ५०० मिलीलीटर घरेलु गैस बनायीं जा सकती है | अंतिम रूप में अब प्लास्टिक से ईधन बनाने की प्रक्रिया में छह माह से एक साल
तक का समय लग जाएगा। यानि २०१२ में अब इस तकनीक के कमर्शियल प्रयोग पर विचार किया
जाएगा।
अभी से आईआईपी
के पास अनेकों कंपनियों के ऑफर आने लगे हैं | ये तकनीक इतनी कम कीमत और सरल है
कि नगर निगम आदि | तमाम सरकारी संस्थान भी इसे आसानी से अपना कर आत्मनिर्भर हो सकते हैं |
जैव-अवकर्षण
प्लास्टिक
जैव-निम्नीकारक
प्लास्टिक ऐसे प्लास्टिक होते हैं, जो पर्यावरण में प्राकृतिक
वायुजीवी (खाद) तथा अवायुजीवी (कचरा) के रूप में अपघटित हो जाते हैं. प्लास्टिक का
जैव-निम्नीकरण, पर्यावरण में सूक्ष्मजीवों को सक्रिय कर संपन्न किया जा सकता है, जो प्लास्टिक झिल्लियों की आण्विक संरचना के उपापचय द्वारा एक खाद सदृश मिट्टी
वाले अक्रिय पदार्थ का निर्माण करते हैं, और पर्यावरण के लिए कम हानिकारक
होते हैं. वे जैव-प्लास्टिक अथवा ऐसे प्लास्टिक से बने होते हैं, जिनके घटक नवीकरणीय कच्ची सामग्रियों, या किसी अतिरिक्त पदार्थ के मिश्रण
वाले पेट्रोलियम-आधारित प्लास्टिक से निर्मित होते हैं. फैलाव वाले कारकों के
मिश्रणयुक्त जैव-सक्रिय यौगिक के प्रयोग से यह सुनिश्चित होता है कि जब वे ताप तथा
नमी के संपर्क में आते हैं तो प्लास्टिक अणुओं की संरचना को प्रसारित कर देते हैं
और जैव-सक्रिय यौगिकों को प्लास्टिक के उपापचय तथा उदासीनीकरण के लिए प्रेरित कर
देते हैं.
जैव-निम्नीकारक
प्लास्टिक विशेष रूप से दो रूपों में निर्मित किए जाते हैं: इंजेक्शन मोल्डेड (ठोस, 3D आकार), जो इस्तेमाल के बाद फेंक दी जाने वाली खाद्य सेवा वस्तुओं में होते हैं, तथा झिल्ली (फ़िल्म),
जो विशेषकर जैविक (ऑर्गेनिक) फल पैकेजिंग तथा पत्तियां और
घास के कतरनों के लिए संग्रह करने वाले थैलों एवं अधसड़ी कृषि घास-फूसों में
इस्तेमाल होते हैं.
हालांकि,जैव-निम्नीकारक प्लास्टिक हर मर्ज़ की दवा नहीं होतीं. कुछ आलोचक मानते हैं कि
प्रमाणित जैव-निम्नीकारक प्लास्टिकों की एक संभावित पर्यावरणीय हानि यह है कि
उनमें फंसे कार्बन वायुमंडल में ग्रीनहाउस गैस के रूप में मुक्त होते हैं. हालांकि
प्राकृतिक-पदार्थों से प्राप्त जैव-निम्नीकारक प्लास्टिक, जैसे सब्जियों वाली फ़सलों से या जंतु उत्पाद से व्युत्पन्न प्लास्टिक अपनी
वृद्धि के चरण में CO2 को अलग करते हैं, इस प्रकार जब वे अपघटित हो रहे होते हैं केवल तभी CO2 मुक्त करते हैं, इसलिए कार्बन डाइऑक्साइड उत्सर्जन में कोई परिणामी वृद्धि नहीं होती.
हालांकि
प्रमाणित जैव-निम्नीकारक प्लास्टिक के जैव-निम्नीकरण के लिए नमी तथा ऑक्सीजन वाले
एक विशेष वातावरण की आवश्यकता होती है, जो व्यावसायिक रूप से संचालित खाद
निर्माण स्थलों में पाया जाता है. प्राकृतिक पदार्थों से प्राप्त जैव-निम्नीकारक
प्लास्टिकों के प्रसंस्करण में प्रयुक्त कार्बन, जीवाश्म इंधन तथा जल
के कुल प्रयोग तथा उनके मानव खाद्य आपूर्ति के लिए नकारात्मक प्रभाव को लेकर काफी
बहस चल रही है. अनवीकरणीय जीवाश्म इंधनों से बने पारंपरिक प्लास्टिक में प्लास्टिक
के प्रसंस्करण में प्रयुक्त कार्बन की मात्रा से अधिक कार्बन फंसे होते हैं.
कार्बन, प्लास्टिक के लैटिस के भीतर फंसे होते हैं तथा वे विरले ही पुनर्चक्रित किए
जाते हैं.
चिंता यह है कि
जब वास्तविक जैव-निम्नीकारक प्लास्टिक समेत जैव-निम्नीकारक पदार्थ किसी अवायुजीवी
(कचरा) वातावरण में अपघटित होता है तो अन्य ग्रीन हाउस गैस, मीथेन, मुक्त हो सकती है. इन विशेष कचरा-स्थलों वाले वातावरण से निर्मित मीथेन विशेष
रूप से एकत्र किया जाता है और वातावरण में मुक्त होने से बचाने के लिए उन्हें जला
दिया जाता है. स्वच्छ सस्ती ऊर्जा के प्रयोग के लिए आजकल कुछ कचरा स्थल (लैंडफ़िल)
मीथेन बायोगैस एकत्र करते हैं. निश्चित रूप से अजैव-निम्नीकारक प्लास्टिक को जलाने
से काबर्न डाइ ऑक्साइड भी मुक्त होता है. अवायुजीवी (लैंडफ़िल) वातावरण के
प्राकृतिक जैव-निम्नीकारक से निर्मित प्लास्टिक के जमाव के कारण प्लास्टिक सैकड़ों
सालों तक मौजूद रहते हैं.
यूएस ईपीए (US EPA) ने कचरा स्थल डिजायन तथा निर्माण के लिए कड़े मानक लागू किए हैं ताकि प्रमुख
रूप से कचरा स्थलों में जैव-निम्नीकरण को रोका जा सके. इसलिए कचरा स्थल से मिथैन
का उद्देश्यपूर्ण उत्पादन एक विरल उदाहरण है और अधिकतर शहरी ठोस अपशिष्ट के लिए
नियम नहीं है.
यह भी संभव है
कि अंततः जीवाणु में प्लास्टिकों के निम्नीकरण की क्षमता विकसित हो जाएगी. यह तो
नायलॉन के साथ पहले ही हो चुका है: वर्ष 1975 में दो प्रकार के नायलॉन भक्षी
जीवाणुओं, फ्लैवोबैक्टीरिया (Flavobacteria)
तथास्युडोमोनास (Pseudomona) की खोज की गई, जिनमें ऐसा एंजाइम (नायलोनेज) पाया गया, जो नायलोन को अपघटित करने में
सक्षम होता है. जबकि निपटान के लिए कोई समाधान नहीं है, तो ऐसे में यह संभव है कि जीवाणुओं में अन्य संश्लेषित प्लास्टिकों के उपयोग
की भी क्षमता विकसित कर ले. वर्ष 2008 में 16 वर्ष के एक लड़के ने कथित रूप से प्लास्टिक खाने वाले दो जीवाणुओं का पता
लगाया.[8]
वास्तव में बाद
वाली संभावना सायबरमेन (Cybermen)
के निर्माताओं किट पेड्लर तथा गेरी डेविस (पटकथा-लेखक)
द्वारा लिखित एक चेतावनीपूर्ण उपन्यास का विषय थी, जहां उन्होंने अपनी
डूमवाच (Doomwatch) श्रृंखला के पहले धारावाहिक के कथानक का पुनरुपयोग किया था. वर्ष 1971 में लिखित उपन्यास म्युटैंट 59: द प्लास्टिक ईटर (Mutant 59:The plastic Eater) , एक ऐसी कहानी है, जिसमें प्लास्टिक के भक्षण के लिए उत्पन्न होने वाले या कृत्रिम रूप से
निर्मित किए जीवाणु को एक बड़े शहर में छोड़ दिया जाता है.
पर्यावरण से
जुड़ी चिंताएं; लाभ
‘सोसाइटी ऑफ प्लास्टिक इंजीनियर्स’ (Society of Plastics Engineers) के अनुसार हर वर्ष दुनियाभर में लगभग 200 मिलियन टन प्लास्टिक का निर्माण
किया जाता है.[9][unreliable
source?] उन 200 मिलियन टनों में से, 26 मिलियन टन का उत्पादन अमेरिका में होता है. वर्ष 2003 में ईपीए (EPA) ने सूचना दी कि उन 26 मिलियन टन प्लास्टिक कचरों का केवल 5.8% ही पुनर्चक्रित किया जाता है, हालांकि यह तेजी से बढ़ रहा है.
प्लास्टिक के
पुनर्चक्रण के लक्ष्यों को निराश करने वाला प्रमुख कारण यह है कि पारंपरिक
प्लास्टिक को प्रायः जैविक अपशिष्टों (खाद्य कूड़े, गीले कागज तथा द्रव)
के साथ मिला दिया जाता है,
जिससे इसके भीतर स्थित बहुलक को महंगी स्वच्छता तथा सफाई
विधियों के बिना पुनर्चक्रित करना कठिन तथा अव्यावहारिक हो जाता है.
दूसरी ओर, इन मिश्रित जैविक पदार्थों (खाद्य कूड़े, बगीचों के कचरे तथा गीले, अपुनर्चक्रण वाले कागज) से खाद का निर्माण करना (composting) अपशिष्टों की एक बड़ी मात्रा का निपटारा करने और सामुदायिक पुनर्चक्रण
लक्ष्यों में नाटकीय रूप से वृद्धि करने की एक संभावित रणनीति होती है. खाद्य
कूड़े, तथा गीले, अपुनर्चक्रण वाले कागजों में शामिल हैं 50 मिलियन टन ठोस शहरी कचरे.[10]. इन अपशिष्ट वर्गों में जैव-निम्नीकारक प्लास्टिक अनिम्नीकरणीय प्लास्टिकों को
विस्थापित सकते हैं, जिससे शहरी कचरे का खाद निर्माण, कचरा स्थलों से अप्राप्य अपशिष्टों
की बड़ी मात्रा को दूसरे काम में लगाने का एक प्रमुख कारण बन जाता है.
भले ही
पारंपरिक प्लास्टिकों की थोड़ी मात्रा ही जैविक पदार्थों में मिलाई जाए पर
प्लास्टिक के नन्हे टुकड़ों के कारण जैविक अपशिष्टों का पूरा समूह ही “संदूषित” हो जाता है, जो अच्छी गुणवत्ता वाले खाद पदार्थ को बरबाद कर देता है. इसलिए खाद निर्माता
तब तक मिश्रित जैविक अपशिष्ट वर्गों को स्वीकार नहीं करेंगे, जब तक कि वे पूरी तरह से अनिम्नीकरणीय प्लास्टिकों से रहित न हो जाएं. इसलिए
अनिम्नीकरणीय प्लास्टिकों की अपेक्षाकृत छोटी मात्रा से भी एक महत्वपूर्ण अपशिष्ट
निपटान रणनीति बाधित हो जाती है.
हालांकि
जैव-निम्नीकारक प्लास्टिकों के समर्थक यह दलील पेश करते हैं[कौन?] कि ये पदार्थ इस समस्या का समाधान प्रस्तुत करते हैं. प्रामाणित
जैव-निम्नीकारक प्लास्टिकों के खाद निर्माण संयंत्र में पूर्ण रूप से
जैव-निम्नीकरणीय क्षमता के साथ ही उनकी उपयोगिता (हल्कापन, प्रतिरोधी, अपेक्षाकृत सस्ता होना) जुड़ी होती है. अपेक्षाकृत कम मात्रा में मिश्रित
प्लास्टिकों को पुनर्चक्रित करने के बारे में चिंतित होने की बजाए ये समर्थक यह
मानते हैं कि प्रामाणित जैव-निम्नीकारक प्लास्टिकों को अन्य जैविक अपशिष्टों के
साथ शीघ्र मिश्रित किया जा सकता है, जिससे अप्राप्य ठोस अपशिष्ट की
बड़ी मात्रा में खाद-निर्माण संभव हो पाता है. सभी मिश्रित जैविक पदार्थों का
व्यावसायिक खाद-निर्माण तब व्यावसायिक रूप से साध्य तथा आर्थिक रूप से टिकाऊ हो जाता
है. अधिक संख्या में नगर-निकाय अधिक बोझ वाले कचरा स्थलों से उल्लेखनीय मात्रा में
अपशिष्टों का दिशा-परिवर्तन कर सकते हैं, क्योंकि संपूर्ण अपशिष्ट वर्ग अब
जैव-निम्नीकारक हो जाते हैं और इसलिए उनका प्रसंस्करण आसान हो जाता है.
अतः
जैव-निम्नीकारक प्लास्टिकों के उपयोग को बड़ी मात्रा में शहरी ठोस कचरों (वायुजीवी
खाद-निर्माण के द्वारा) की पूर्ण प्राप्ति के एक प्रेरक के रूप में देखा जाता है, जो कचरा-स्थल या जला कर राख करने के अलावा अन्य माध्यमों में अप्राप्य होता.
उत्पादन के लिए
ऊर्जा लागत
कई
अनुसंधानकर्ताओं ने जैव-निम्नीकारक बहुलकों के गहन जीवन चक्र का मूल्यांकन किया है, ताकि यह पता लगाया जा सके कि क्या ये पदार्थ पारंपरिक जीवाश्म इंधन-आधारित
साधनों की अपेक्षा अधिक ऊर्जा दक्ष है अथवा नहीं. गर्नग्रॉस व अन्य (Gerngross, et al.) ने आकलन किया कि एक किलोग्राम पॉलीहाइड्रोक्सीऐल्केनोएट (पीएचए) के निर्माण
में प्रयुक्त जीवाश्म इंधन ऊर्जा की 50.4 MJ/kg मात्रा ख़पत होती है,[13][14] जो ऐकियामा व अन्य (Akiyama,
et al.)[15] के एक अन्य आकलन के समान था, जिसने यह मान 50-59
MJ/kg के बीच बताया. इस सूचना में फीडस्टॉक (feedstock) ऊर्जा पर विचार नहीं किया गया था, जो गैर-जीवाश्म आधारित विधियों से
प्राप्त होती है. पॉलीएक्टाइड (PLA) के लिए दो स्रोतों से मिलने वाली
जीवाश्म ऊर्जा लागत 54-56.7 मानी जाती है,[16][17]
पर ‘नेचर वर्क्स’ द्वारा PLA के व्यावसायिक उत्पादन में हाल में हुई प्रगति ने वायु ऊर्जा की आपूर्ति
द्वारा तथा बायोमास-चालित रणनीतियों से जीवाश्म इंधन आधारित ऊर्जा पर निर्भरता कुछ
कम दी है. उन्होंने एक किलोग्राम पीएलए (PLA) के लिए केवल 27.2 एमजे (MJ) जीवाश्म इंधन-आधारित ऊर्जा लागत की सूचना दी और यह अनुमान लगाया कि अगली पीढ़ी
के संयंत्रों में यह संख्या गिरकर 16.6 MJ/kg पर चली जाएगी. इसके
विपरीपॉलीप्रोपीलीन (polypropylene)
तथा उच्च घनत्व वाले पॉलीएथिलीन (polyethylene) के लिए क्रमशः 85.9 तथा 73.7 MJ/kg की आवश्यकता होती है,
पर इन मानों में सन्निहित फीडस्टॉक ऊर्जा शामिल है, क्योंकि यह जीवाश्म इंधन पर आधारित है.[18]
गर्नग्रॉस ने
एक किलोग्राम पीएचए (PHA)
के लिए कुल 2.65 जीवाश्म इंधन ऊर्जा को समतुल्य
बताया, जबकि पॉलीप्रोपलीन के लिए केवल 2.2 किग्रा एफएफई (FFE) की आवश्यकता होती है.[19]
गर्नग्रॉस ने मूल्यांकन किया कि किसी भी जैव-निम्नीकारक
बहुलक विकल्प को अपनाने के लिए ऊर्जा, पर्यावरण तथा आर्थिक लागत को लेकर
समाज की प्राथमिकताओं को ध्यान में रखना होगा.
इसके अलावा
वैकल्पिक तकनीकों की नवीनता को पहचानना भी अहम है. उदाहरण के लिए पीएचए (PHA) के उत्पादन की प्रौद्योगिकी आज भी विकास के चरण में है,[20] तथा किण्वन चरण को हटाकर या फीडस्टॉक के रूप में खाद्य अपशिष्टों का प्रयोग कर
ऊर्जा की ख़पत को और भी कम किया जा सकता है.[21] मक्के के अलावा अन्य वैकल्पिक
फ़सलों, जैसे ब्राज़ील के गन्ने से कम ऊर्जा ख़पत की अपेक्षा की जाती है- ब्राज़ील में
किण्वन द्वारा पीएचए (PHAs)
का निर्माण अनुकूल ऊर्जा ख़पत योजना पर आधारित होता है, जहां नवीकरण ऊर्जा के स्रोत के रूप में बैगेसी (bagasse) का प्रयोग किया जाता है.[22]
कई
जैव-निम्नीकारक बहुलक भी,
जो नवीकरणीय स्रोत (जैसे मंड-आधारित,पीएचए (PHA), पीएलए (PLA)) से उत्पन्न होते हैं,
खाद्य उत्पादन से प्रतिस्पर्धा करते हैं, क्योंकि प्राथमिक फीडस्टॉक मक्का है. अमेरिका में बीपी (BPs) के साथ इसके मौजूदा प्लास्टिक निर्माण की उत्पादकता के लिए इसे उत्पादित
मात्रा के 1.62 वर्ग मीटर प्रति किलोग्राम की आवश्यकता होगी.[23] भले ही यह स्थान
आवश्यकता उपयुक्त हो सकती है, पर इस बड़े पैमाने के उत्पादन से खाद्य
कीमतों तथा इस विधि में वैकल्पिक विधि की तुलना में भूमि के उपयोग की लागत पर
कितना प्रभाव पड़ा होगा, यह भी देखना अहम होगा.
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