Friday 11 May 2012

कब जागेंगे हम ?


यूनाइटेड स्टेट्स फ्रेमवर्क कन्वेंशन ऑन क्लाइमेट चेंज की ताजा  रिपोर्ट

हर व्यक्ति के लिए पानी की उपलब्धता १६५४ क्यूबिक मीटर है। २०५० तक ११४० क्यूबिक मीटर रह जाएगी। १९५१ में भारतीयों के पास प्रति व्यक्ति ५१७७ क्यूबिक मीटर पानी की उपलब्धता थी। यहाँ पानी की कमी महज ६५ साल में करीब एक तिहाई हो गई है।एक शोध की रिपोर्ट ने करवट लेते मौसम और उससे उपजी चिंताओं की तरफ दुनिया का ध्यान दिलाने की कोशिश की है। यूनाइटेड स्टेट्स फ्रेमवर्क कन्वेंशन ऑन क्लाइमेट चेंज की रिपोर्ट में कहा गया है कि अगर कार्बन उत्सर्जन मौजूदा दर से ही जारी रहा तो २०३० तक भारत के तापमान में १.५ डिग्री सेल्सियस से लेकर २.० डिग्री सेल्सियस तक की बढ़ोतरी हो सकती है। इससे मिट्टी की नमी में कमी तो आएगी ही, धरती पर मौजूदा जल की उपलब्धता में भी कमी आएगी। इस शोध में शामिल सार्वजनिक क्षेत्र के १७ संस्थानों के २०० वैज्ञानिकों की राय है कि इससे खेती की पैदावार में कमी आएगी और इसका सबसे ज्यादा असर मौसमी सब्जियों और फलों पर पड़ेगा। हमारे देश में पानी की उपलब्धता के चलते ही आलू, प्याज के साथ ही मौसमी सब्जियों का खासा उत्पादन होता है। सूखे की स्थिति में इनके उत्पादन में भारी कमी आती रही है। इस साल भी कर्नाटक और महाराष्ट्र जैसे राज्यों के कुछ हिस्सों में सूखे की वजह से प्याज की पैदावार में गिरावट आई है। अगर रिपोर्ट के आकलन के मुताबिक ही मौसम में बदलाव आता है तो आशंका ये है कि आलू, प्याज और टमाटर के उत्पादन में सबसे ज्यादा गिरावट आएगी। 

इस रिपोर्ट का मानना है कि अगर हालात ऐसे ही बिगड़ते रहे और मौसम में बदलाव आता रहा तो भारत की पहचान रहे आम जैसे फल के उत्पादन में भी कमी आ सकती है। अंगूर और सेब का उत्पादन भी कम हो सकता है। इस रिपोर्ट के मुताबिक जहाँ आज देश में हर व्यक्ति के लिए पानी की उपलब्धता १६५४ क्यूबिक मीटर है। वह २०५० तक ११४० क्यूबिक मीटर ही रह जाएगी। १९५१ में भारतीयों के पास प्रति व्यक्ति ५१७७ क्यूबिक मीटर पानी की उपलब्धता थी। जाहिर है कि हमारे यहाँ पानी की कमी महज पैंसठ साल में करीब एक तिहाई हो गई है।

देश के एक ५९ फीसद जिले कम बारिश की समस्या से जूझ रहे हैं। ऐसे में गौर करने की बात यह है कि भविष्य में आज के मुकाबले ना सिर्फ अनाज बल्कि फल और सब्जियों की ज्यादा जरूरत पड़ेगी। लिहाजा तब उत्पादन बढ़ाना होगा लेकिन मौसम की मार की वजह से ये घटता ही नजर आ रहा है। हम वक्त रहते ही चेत जाएँं तो अच्छा। देश की जनसंख्या का बड़ा हिस्सा अब भी सब्जियों और फलों की कमी से जूझ रहा है। २०३० में जब जनसंख्या में आज की तुलना में बीस से तीस करोड़ का इजाफा होगा और पानी की उपलब्धता कम होगी तो निश्चित है कि संकट बड़े होंगे। प्राचीन भारतीय मनीषा की अगर दुनिया में आज साख है तो उसकी वजह यही है कि उसे अपनी भावी पीढ़ियों और समाज की चिंता थी और उसे बचाने के लिए उसने पहले ही उपाय कर रखे थे। बेहतर होगा कि हम आज ही कड़े कदम उठाएँ, नहीं तो हमारी भावी पीढ़ियों के साथ जो गुजरेगा, उसके लिए वे हमें कभी माफ नहीं कर पाएँगी।

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