नौसेना की नई शक्ति
पिछले दिनों
रूस में बनी परमाणु पनडुब्बी आइएनएस चक्र-2 को
नौ सेना में शामिल कर लिया गया। आइएनएस चक्र को शामिल करते ही भारत परमाणु क्षमता
युक्त पनडुब्बी वाला दुनिया का छठा देश बन गया है। इससे पहले यह क्षमता सिर्फ
अमेरिका, रूस, फ्रांस, ब्रिटेन और चीन के पास ही थी। मूल रूप से के-152 नेरपा
नाम से निर्मित अकुला-2 श्रेणी की इस पनडुब्बी को रूस से एक
अरब डॉलर के सौदे पर 10 साल के लिए लीज पर लिया गया है।
आइएनएस चक्र की मौजूदगी से हिंद महासागर में सामरिक स्थिरता के साथ-साथ आर्थिक
हितों की सुरक्षा भी सुनिश्चित होगी। यह देश की सुरक्षा के लिए एक सकारात्मक कदम
है, लेकिन यह सवाल लगातार बना हुआ है कि हमारा देश कब
आत्मनिर्भर होगा। अगर हम एक विकसित देश बनने की इच्छा रखते हैं तो आंतरिक और बाहरी
चुनौतियों से निपटने के लिए हमें दूरगामी रणनीति बनानी होगी, क्योंकि भारत पिछले छह दशकों में अपनी अधिकांश सुरक्षा जरूरतों की पूर्ति
हथियारों को खरीदकर करता आ रहा है। जहाजों और पनडुब्बियों के आर्डरों को देखते हुए
ऐसा लगता है कि इस प्रवृत्ति पर रोक लगाने के लिए मजबूत कदम नहीं उठाए गए तो
भविष्य में भी आयात पर निर्भरता बनी रहेगी। चीन के पास इस समय तीन परमाणु
पनडुब्बियों समेत करीब 50 से 60 पनडुब्बियां
हैं, जबकि भारत के पास 12 पनडुब्बी ही
हैं। देश की पहली परमाणु पनडुब्बी अरिहंत का भी वर्ष 2013 तक
समुद्री परीक्षण शुरू हो पाएगा। इसी तरह फ्रांस के सहयोग से बन रही छह परंपरागत
स्कार्पियन पनडुब्बियां वर्ष 2020 तक ही मिल पाएंगी। आइएनएस
चक्र के मामले में भी काफी देर हुई, क्योंकि भारत ने यह
पनडुब्बी किराए पर लेने के लिए वर्ष 2004 में रूस के साथ 90
करोड़ डॉलर का करार किया था। रक्षा सौदों में घोटालों और भ्रष्टाचार
के मामले आने के बाद सेना के लिए हथियारों तथा अन्य साधनों की खरीद, उत्पादन और उपलब्धता में कमी आई है। रक्षा बजट में हर साल बढ़ोतरी हुई,
लेकिन नौ सेना को समुचित लाभ नहीं मिल पाया, क्योंकि
नौसेना के बजट का अधिकांश हिस्सा संसाधनों के इंतजाम में खर्च हो जाता है। देश की
वर्तमान पनडुब्बियां बहुत पुरानी हैं जिन्हें आधुनिक बनाने की आवश्यकता है। अस्सी
के दशक में जर्मनी के साथ शुरू की गई एचडीडब्ल्यू पनडुब्बी निर्माण योजना को भारत
सरकार ने रद करके बहुत बड़ी गलती की थी, जबकि उस परियोजना पर
करीब 15 करोड़ डॉलर खर्च किए जा चुके थे। पनडुब्बी एक ऐसा
हथियार है जो दुश्मन की निगाह में आए बिना ही उनके जंगी जहाजों, विमानवाहक पोतों और जमीनी ठिकानों को तबाह कर सकता है। मिसाइल और विमान
दोनों ही हमला होने की सूरत में पकड़ में आ सकते हैं, लेकिन
समुद्र के अंदर रहने वाली पनडुब्बी जवाबी हमला करने में बेहद कारगर होती हैं। भारत
की नौसेना अपनी समुद्री सीमा की रक्षा करने में पूरी तरह सक्षम है, लेकिन समुद्री क्षेत्र के बढ़ते हुए महत्व के मद्देनजर इसे और सशक्त बनाए
जाने की जरूरत है। सुरक्षा मामलों में देश को आत्मनिर्भर बनाने में सरकार और
अकादमिक संस्थानों की भी बराबर की साझेदारी होनी चाहिए। स्वदेशीकरण के साथ-साथ
हमें तकनीक हस्तांतरण पर भी जोर देना चाहिए। पिछले साल करीब डेढ़ लाख करोड़ रुपये
के रक्षा बजट में से करीब 50 हजार करोड़ रुपये का खर्च
हथियारों के आयात और रख-रखाव पर किया गया। अब तक भारत के रक्षा खर्च से विदेशों को
ही फायदा होता रहा है, लेकिन अब यह फायदा भारतीय उद्योग को
मिले इसलिए इस पर स्पष्ट और दूरगामी रणनीति बनाने की बहुत आवश्यक है। 2008 में मुंबई हमलों से सबक लेते हुए भारतीय नौ सेना को देश के तटीय और
समुद्री सुरक्षा ढांचे में फेरबदल के लिए अत्याधुनिक उपकरणों की जरूरत है। विशाल
तट की रक्षा के लिए नौसेना का सशक्त होना जरूरी है। (लेखक स्वतंत्र टिप्पणीकार
हैं) आइएनएस चक्र-2 की विशेषताओं पर शशांक द्विवेदी के विचार दैनिक जागरण (राष्ट्रीय )में 29/04/2012 प्रकाशित
article link
No comments:
Post a Comment