Wednesday 24 September 2014

"मॉम " से मिला मंगल ,ऐतिहासिक कामयाबी

शशांक द्विवेदी 
भारत के लिए बुधवार की सुबह बाकी दिनों से अलग थी , सुबह 4 बजे से ही बेंगलूरू के इसरो सेंटर में वैज्ञानिकों में रोमांच और बेचैनी का आलम था ।  अंतरिक्ष की दुनिया में भारत इतिहास बनाने जा रहा था । सुबह 7 बजकर 17 मिनट पर जैसे ही मंगलयान का लिक्विड इंजन शुरू हुआ, वैज्ञानिकों का दिल जोरों से धड़कने लगे। दुनिया के ताकतवर देश अपनी पहली कोशिश में असफल रहे थे। क्या भारत कामयाब हो पाएगा, हर चेहरे पर यही सवाल और शंका थी, लेकिन जैसे ही सुबह करीब 8 बजे भारत का मंगलयान मंगल की कक्षा में पहुंचा। लोगों की खुशी का ठिकाना नहीं रहा। वैज्ञानिकों ने जमकर तालियां बजाईं और एक दूसरे को सफलता की बधाई दी।भारत ने अंतरिक्ष के क्षेत्र में इतिहास रच दिया । भारत दुनिया का पहला ऐसा देश बन गया जिसने अपनी पहली ही कोशिश में मंगल पर पहुंचने में सफलता पाई है।
जनसंदेश टाइम्स
इस  ऐतिहासिक सफलता के साक्षी इसरो सेंटर में मौजूद भारत के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने वैज्ञानिकों को उनकी सफलता पर बधाई दी। भारत ने अंतरिक्ष के क्षेत्र में इतिहास रचते हुए  अपने मंगल मिशन को सफलतापूर्वक अंजाम दिया और मार्स आर्बिटर यान को  मंगल की कक्षा में स्थापित कर दिया ।  भारत के वैज्ञानिक इतिहास की यह सबसे बड़ी कामयाबी है । ये एक ऐसा क्षण है जिस पर 125 करोड़ भारतवासी गर्व कर रहें है । इस सफलता के बाद भारत विश्व का पहला ऐसा देश बन गया है जिसने पहली ही बार में मंगल अभियान पर सफलता प्राप्त की हो । इस सफलता के साथ ही भारत विश्व के उन चार देशों में शामिल हो गया जिन्होंने मंगल पर सफलता पूर्वक अपने यान भेजे है । भारत की अंतरिक्ष एजेंसी इसरो अमरीका, रूस और और यूरोप के कुछ देश (संयुक्त रूप से) यूरोपीय यूनियन की अंतरिक्ष एजेंसी के बाद चैथी ऐसी एजेंसी बन गयी जिसने इतनी बड़ी कामयाबी हासिल की है । चीन और जापान इस कोशिश में अब तक कामयाब नहीं हो सके हैं। रूस भी अपनी कई असफल कोशिशों के बाद इस मिशन में सफल हो पाया है। अब तक मंगल को जानने के लिए शुरू किए गए दो तिहाई अभियान नाकाम साबित हुए हैं।19 अप्रैल 1975 में स्वदेश निर्मित उपग्रह आर्यभट्टके प्रक्षेपण के साथ अपने अंतरिक्ष सफर की शुरूआत  करने वाले इसरो की यह सफलता भारत की अंतरिक्ष में बढ़ते वर्चस्व की तरफ इशारा करती है ।  ये सफलता इसलिए खास है क्योंकि भारतीय प्रक्षेपण राकेटों की विकास लागत ऐसे ही विदेशी  प्रक्षेपण राकेटों की विकास लागत से बहुत कम है .
जैसे ही मंगलग्रह की कक्षा में हमारा मंगलयान स्थापित किया गया बेंगलूरू के इसरो केंद्र में तालियों की गूंज उठी और वहां मौजूद वैज्ञानिक एक दूसरे को बधाई देने लग गए। साथ ही हमारे देश के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी इस ऎतेहासिक पल के खास गवाह बने।

मंगल मिशन के सफल होने के बाद पीएम मोदी ने पूरे देश को बधाई दी। इसरो केंद्र में ही देश को संबोधित करते हुए नरेंद्र मोदी ने कहा कि आज मंगल का मॉम से मिलन हो गया। आज मंगल को मॉम मिल गई। जिस वक्त इस मिशन का नाम(शोर्ट) मॉम बन गया तो मुझे पूरा विश्वास था कि मोम कभी निराश नहीं करती है। भारत मंगलग्रह पर सफलता पूर्वक मंगल ग्रह पर पहुंच गया है। पूरे देश और इसरो को बधाई। 

लोकमत 
साथ ही उन्होंने कहा कि हमारे देश के वैज्ञानिकों पहले प्रयास में ही सफलता हासिल की है। आज हमने एक इतिहास बनाया है। अंसभव को संभव बनाने के लिए हमने दिन-रात एक कर दिए। साथ ही पीएम मोदी ने कहा कि बहुत कम साधन, अनेक मर्यादाएं के बावजूद भी इतनी बड़ी सिद्धी पाने का सारा श्रेय हमारे देश के वैज्ञानिकों को जाता है। हमारे देश के वैज्ञानिक अभिनंदन के अधिकारी हैं और मुझे उनका अभिनंदन करने का मौका मिला।

24 मिनट थे निर्णायक 
इसरो ने इस मिशन को अंजाम तक पहुंचाने के लिए अपनी तैयारी पूरी की थी और मंगलयान की प्रगति पर हर पल नजर रखी जा रही थी। मंगल अभियान का निर्णायक चरण यान को धीमा करने के साथ शुरू हुआ। मिशन की सफलता उन 24 मिनटों पर निर्भर थी जिस दौरान यान में मौजूद 440 न्यूटन वाले मुख्य तरल इंजन को फायर किया गया। सोमवार को ही इसरो 300 दिन से बंद पड़े इंजन का 4 सेकेंड तक परीक्षण किया गया था। 

गति पर नियंत्रण रखना चुनौती
इसमें इस बात की सावधानी रखनी गई कि यान इतना धीमा ना हो जाए कि वह मंगल की सतह से टकराकर चकनाचूर हो जाए या उसकी रफ्तार इतनी भी तेज न हो कि वह मंगल के गुरूत्वाकर्षण क्षेत्र से बाहर निकल गहरे अंतरिक्ष में कहीं खो जाए। 


सुबह 4.17 बजे शुरू हुई प्रक्रिया 
यान को मंगल की कक्षा में स्थापित करने की प्रक्रिया सुबह 4.17 बजे शुरू हुई और मीडियम गेन एंटीना के रूख में बदलाव किया गया। इसके बाद 6.56 बजे फारवर्ड रोटेशन शुरू किया गया। सुबह 7.17 बजे तरल एपोगी मोटर (लैम) फायर करने का काम शुरू किया जबकि सुबह 7.30 बजे मुख्य इंजन शुरू हो गया। तरल एपोगी मोटर को 24 मिनट तक फायर किया गया। यान को एक तरफ से संदेश भेजने या प्रदान करने में करीब 12 मिनट का वक्त लगा। -


Monday 22 September 2014

अंतरिक्ष के क्षेत्र में भारत इतिहास रचने के करीब

मंगल पर “विजय” की तैयारी
लिक्विड इंजन का परीक्षण सफल
शशांक द्विवेदी 
पिछले कई सालों से  यह जानने की कोशिशें चलती रही हैं कि पृथ्वी के बाहर जीवन है या नहीं । इस  दौरान कई खोजों से ये अंदेशा हुआ कि शायद मंगल ग्रह पर जीवन है । लाल ग्रह यानी मंगल पर जीवन की संभावनाओं को लेकर वैज्ञानिकों ही नहीं, आम आदमी की भी उत्सुकता लंबे अरसे से रही है । पृथ्वी से लाल रंग के दिखाई देने वाले ग्रह पर अब सभी की निगाहें टिकी हैं। आखिर मंगल की सच्चाई क्या है? ऐसे कई सारे सवाल हैं, जिनके जवाब तलाशने के लिए दूसरे देशों के  कई अभियान मंगल ग्रह पर भेजे भी गये । जिनमें लगभग एक तिहाई सफल रहें बाकी असफल रहें लेकिन इस बार लेकिन इस बार भारत का मार्स आर्बिटर मिशन अपने पहले ही मंगल अभियान पर सफलता के करीब है ।
अंतरिक्ष के क्षेत्र में भारत इतिहास रचने जा रहा है ।आगामी 24 सितंबर को भारतीय मंगलयान के लाल ग्रह की कक्षा में प्रवेश करने से पहले इसरो ने अंतरिक्ष यान के प्रमुख लिक्विड इंजन का सफलता पूर्वक  परीक्षण कर लिया . मंगलयान के इस इंजन को आज (सोमवार )2 बजकर 30 मिनट पर 4 सेकेंड के लिए टेस्ट फायर किया किया और अब 24 सितंबर को इंजन को मंगल की कक्षा में प्रवेश कराने के लिए 24 मिनट के लिए फायर किया जाएगा। इसरो ने ट्विटर के जरिए इस सफलता की जानकारी दी। 440 न्यूटन लिक्विड अपोजी मोटर (एलएएम) इंजन पिछले 300 दिनों से सुप्तावस्था (आइडल मोड) में था । इंजन का प्रायोगिक परीक्षण लगभग 0.567 किग्रा ईधन की खपत के साथ 3.968 सेकेंड के लिए 2.142 मीटर प्रति सेकेंड की गति से किया गया ।
इंजन का सफल परीक्षण इसलिए अहम है क्योंकि ये इंजन पिछले 300 दिनों से बंद है और कई तरह के रेडियेशन से गुजरा है . आर्बिटर इंजन के सफल परीक्षण से मंगल मिशन के पूरी तरह से कामयाब होने की संभावना काफी बढ़ गई है अब भारत अपनी सबसे बड़ी वैज्ञानिक कामयबी से सिर्फ कुछ घंटे ही दूर है मंगलयान के इंजन को पिछले साल 5 नवंबर को मंगल की कक्षा के लिए छोड़ा गया था। 
वैज्ञानिक आज के इस परीक्षण से इंजन की वास्तविक स्थिति का अंदाजा लगाना चाहते थे, जोकि दो दिन बाद होने वाले निर्णायक फायर के लिए बहुत जरूरी था। इसरो के चेयरमैन के. राधाकृष्णन का कहना है कि आज ये चार सेकेंड हमारे लिए बहुत बड़ी चुनौती थे ।जिसमे हम सफल रहें है , हमने इंजन पर हर तरह के परिक्षण के बाद ही इसे लॉन्च किया था। 10 महीने अंतरिक्ष में गुजार चुका इंजन इस वक्त बिल्कुल ठीक काम कर रहा है। 
24 सितंबर को मंगलयान के इंजन का असली इम्तिहान होगा. 24 सितंबर को इंजन को 24 मिनट तक फायर किया जाएगा, ताकि मार्स ऑर्बिटर मिशन(MOM) यानी मंगलयान की गति कम की जा सके.  मंगल की कक्षा में स्थापित करने के लिए गति को धीमा करना जरूरी है. यान की मौजूदा रफ्तार 22 किमी प्रति सेकंड है और मंगल की कक्षा में प्रवेश के लिए इसे घटाकर 1.6 किमी प्रति सेकंड़ करना जरूरी है।
फिलहाल मंगलयान मंगल के गुरुत्वाकर्षण क्षेत्र में प्रवेश कर चुका है और उसके मार्ग को भी सही दिशा दी जा रही है । मंगलयान को इससे पहले तीन बार सही दिशा में लाया गया है। मंगलयान जब मंगल की कक्षा में प्रवेश करेगा तो उस समय वह इस ग्रह की छाया में होगा और उसे सूर्य की रोशनी नहीं मिल पाएगी। इस कारण से उसके सौर पैनल बेकार होंगे और यान को बैटरी से मिलने वाली ऊर्जा के सहारे मंगल की कक्षा में प्रवेश करना होगा।
इससे पहले मंगलयान को मंगल की कक्षा में प्रवेश कराने के लिए कमांड अपलोड करने का काम पूरा हो गया और 24 सितंबर को इसे सूर्य की कक्षा से मंगल की कक्षा में स्थानांतरित किया जाएगा। भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन (इसरो) के वैज्ञानिक सचिव वी. कोटेश्वर राव के अनुसार मंगलयान में कमांड अपलोड करने और इन्हें जांचने में करीब 13 घंटे का समय लगा। मंगलयान को अपने गंतव्य तक पहुंचने में कुल 22.4 करोड़ किलोमीटर की यात्रा  करनी है जिसमें से वह 21.5 करोड़ किलोमीटर यानी 98 प्रतिशत दूरी तय कर चुका है।

भारत के इस मिशन की लागत 450 करोड़ रुपए है जो कि अमेरिका के मंगल मिशन से 10 गुना  कम है। पिछले दिनों ही प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने कहा था कि भारत का यह मिशन हॉलिवुड की फिल्म 'ग्रैविटी' के खर्च से भी कम में लॉन्च हुआ है। मंगल की कक्षा में स्थापित हो जाने के बाद मंगलयान इसके वायुमंडल, खनिजों और संरचना का अध्ययन करेगा। मंगल के वैज्ञानिक अध्ययन के अलावा यह मिशन इसलिए भी अहम है, क्योंकि यह भारत के लिए दूसरे ग्रहों की जांच करने के सफल अभियानों की शुरुआत करेगा।



इस मंगलयान में पांच अहम उपकरण मौजूद हैं जो मंगल ग्रह के बारे में अहम जानकारियां जुटाने का काम करेंगे।
इन उपकरणों में मंगल के वायुमंडल में जीवन की निशानी और मीथेन गैस का पता लगाने वाले सेंसर, एक रंगीन कैमरा और ग्रह की सतह और खनिज संपदा का पता लगाने वाला थर्मल इमेजिंग स्पेक्ट्रोमीटर जैसे उपकरण शामिल हैं।

भारत का प्रथम मंगल अभियान
मंगलयान (मार्स ऑर्बिटर मिशन), भारत का प्रथम मंगल अभियान है और यह भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन (इसरो) की एक महत्वाकांक्षी अन्तरिक्ष परियोजना है। इस परियोजना के अन्तर्गत 5 नवम्बर 2013 को 2 बजकर 38 मिनट पर मंगल ग्रह की परिक्रमा करने वाला एक उपग्रह आंध्र प्रदेश के श्रीहरिकोटा स्थित सतीश धवन अंतरिक्ष केंद्र से ध्रुवीय उपग्रह प्रक्षेपण यान (पीएसएलवी) सी-25 द्वारा सफलतापूर्वक छोड़ा गया था। इसके साथ ही भारत भी अब उन देशों में शामिल हो गया जिन्होंने मंगल पर अपने यान भेजे हैं लेकिन अब तक मंगल को जानने के लिए शुरू किए गए एक तिहाई अभियान असफल ही रहे हैं। चीन और जापान इस कोशिश में अब तक कामयाब नहीं हो सके हैं। रूस भी अपनी कई असफल कोशिशों के बाद इस मिशन में सफल हो पाया है। किसी भी देश का प्रक्षेपित यान पहली ही बार में मंगल ग्रह पर नहीं पहुंच सका है लेकिन अगर मंगलयान ऐसा कर पाता है तो भारत दुनिया का पहला ऐसा देश होगा जिसके पहले ही यान ने मंगल ग्रह पर पहुंचने में सफलता हासिल की होगी।   यह एक प्रौद्योगिकी प्रदर्शन परियोजना है जिसका लक्ष्य अन्तरग्रहीय अन्तरिक्ष मिशनों के लिए आवश्यक डिजाइन, नियोजन, प्रबन्धन तथा क्रियान्वयन का विकास करना है। 19 अप्रैल 1975 में स्वदेश निर्मित उपग्रह आर्यभट्टके प्रक्षेपण के साथ अपने अंतरिक्ष सफर की शुरूआत  करने वाले इसरो की यह सफलता भारत की अंतरिक्ष में बढ़ते वर्चस्व की तरफ इशारा करती है ।  ये सफलता इसलिए खास है क्योंकि भारतीय प्रक्षेपण राकेटों की विकास लागत ऐसे ही विदेशी  प्रक्षेपण राकेटों की विकास लागत का एक-तिहाई है ।
स्वर्णिम सफलता का इंतजार
भारत 24 सितंबर की सुबह का इंतजार बेसब्री से कर रहा है। उस दिन भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन (इसरो) अपने मंगलयान को मंगल ग्रह की कक्षा में स्थापित करने जा रहा है। यदि ऐसा हुआ तो वह भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान के इतिहास में स्वार्णाक्षरों में लिखा जाने वाला दिन होगा। इसरो की इस सफलता के लिए देश के वैज्ञानिक समुदाय और आम भारतीय काफी उत्साहित हैं।
करीब   36 घंटे बाद मंगलयान जब मंगल ग्रह की कक्षा में प्रवेश करेगा तो भारत मिशन के बीच यान को मंगल ग्रह की कक्षा में पहुंचाने वाला पहला देश होगा। साथ ही मंगल ग्रह पर यान भेजने वाला भारत पहला एशियाई देश होगा और इसरो चौथी अंतरिक्ष एजेंसी। अमेरिका यूरोप और रूस की अंतरिक्ष एजेंसियां कई कोशिश के बाद मंगल ग्रह की कक्षा में अपने उपग्रह भेज चुकी हैं। अपने मंगल अभियान की सफलता को लेकर इसरो के वैज्ञानिक आश्वस्त हैं।
यान कैसे काम करेगा
कई शोधों से यह साबित हो चुका है कि  मंगल ग्रह ने धरती पर जीवन के क्रमिक विकास में महत्वपूर्ण भूमिका अदा की है इसलिए यह अभियान देश के लिए बेहद महत्वपूर्ण है । पृथ्वी की कक्षा को छोड़ने के बाद यान मंगल ग्रह के दीर्घवृताकार पथ में प्रवेश करेगा जो मंगल ग्रह से जुड़े रहस्यों का पता लगायेगा। मार्स आर्बिटर मिशन (एमओएम) का मुख्य ध्येय यह पता लगाना है कि लाल ग्रह पर मिथेन है या नहीं, जिसे जीवन से जुड़ा महत्वपूर्ण रसायन माना जाता है। भारत के मंगल अभियान में अंतरिक्ष यान में पांच पेलोड जुड़े हैं जिसमें से एक मिथेन सेंसर शामिल है और यह मंगल ग्रह पर मिथेन की उपलब्धता का पता लगायेगा, साथ ही अन्य प्रयोग भी करेगा।
यान के साथ 15 किलो का पेलोड भेजा गया है इनमें कैमरे और सेंसर जैसे उपकरण शामिल हैं, जो मंगल के वायुमंडल और उसकी दूसरी विशिष्टताओं का अध्ययन करेंगे। मंगल की कक्षा में स्थापित होने के बाद यान मंगल के बारे में महत्वपूर्ण जानकारियां हमें भेजेगा। मंगलयान का मुख्य फोकस संभावित जीवन, ग्रह की उत्पत्ति, भौगोलिक संरचनाओं और जलवायु आदि पर रहेगा। यान यह पता लगाने की भी कोशिश करेगा कि क्या लाल ग्रह के मौजूदा वातावरण में जीवन पनप सकता है। मंगल की परिक्रमा करते हुए ग्रह से उसकी न्यूनतम दूरी 350 किलोमीटर और अधिकतम दूरी 8000 किलोमीटर रहेगी।
मंगलयान मंगलग्रह परिक्रमा करते हुए ग्रह की जलवायु ,आन्तरिक बनावट, वहां जीवन की उपस्थिति, ग्रह की उत्पति, विकास आदि के विषय में बहुत सी जानकारी जुटा कर पृथ्वी पर भेजेगा। वैज्ञानिक जानकारी को जुटाने हेतु मंगलयान पर कैमरा, मिथेन संवेदक, उष्मा संवेदी अवरक्त वर्ण विश्लेषक, परमाणुविक हाइड्रोजन संवेदक, वायु विश्लेषक आदि पांच प्रकार के उपकरण लगाए गये हैं। इन उपकरणों का वजन लगभग 15 किलोग्राम के लगभग होगा। मेथेन की उत्पत्ति जैविक है या रसायनिक यह सूचना मंगल पर जीवन की उपस्थिति का पता लगाने में सहायक होगी। मंगलयान में ऊर्जा की आपूर्ती हेतु 760 वॉट विद्युत उत्पादन करने वाले सौर पेनेल लगे है .
इससे पहले के मंगल अभियानों में भी इस ग्रह के वायुमंडल में मीथेन का पता चला था, लेकिन इस खोज की पुष्टि की जानी अभी बाकी है। ऐसा माना जाता है कि कुछ तरह के जीवाणु अपनी पाचन प्रक्रिया के तहत मीथेन गैस मुक्त करते हैं।  लाल ग्रह यानी मंगल पर जीवन की संभावनाओं को लेकर वैज्ञानिकों ही नहीं, आम आदमी की भी उत्सुकता लंबे अरसे से रही है । इस जिज्ञासा के जवाब को तलाशने के लिए कई अभियान मंगल ग्रह पर भेजे भी गये । इसका मुख्य काम यह पता करना है कि क्या कभी मंगल ग्रह पर जीवन था । इस अभियान का उद्देश्य यह पता लगाना है कि वहां सूक्ष्म जीवों के जीवन के लिए स्थितियां हैं या नहीं और अतीत में क्या कभी यहां जीवन रहा है।
दुनियाँ  की उम्मीदें
भारत के मार्स ऑर्बिटर मिशन से दुनियाँ  को बहुत उम्मीदें है  । मंगल की कक्षा में स्थापित हो जाने के बाद मंगलयान इसके वायुमंडल, खनिजों और संरचना का गहन अध्ययन करेगा। मंगल के वैज्ञानिक अध्ययन के अलावा यह मिशन इसलिए भी अहम है, क्योंकि यह भारत के लिए दूसरे ग्रहों की जांच करने के सफल अभियानों का आगाज़ करेगा। इस मिशन में उन तकनीकों को शामिल किया गया है, जो आगे चल कर मंगल से नमूने लाने में मदद करेगी और अंतत वहां मनुष्य के मिशन को सुगम बनाएगी।

मंगल अभियान की सफलता से इसरो के लॉन्च व्हीकल पीएसएलवी और जीएसएलवी की साख बढ़ेगी और कम लागत पर अपने उपग्रहों को अंतरिक्ष में स्थापित करने के लिए अन्य देशों में इनकी लोकप्रियता बढ़ेगी। मंगल ग्रह की कक्षा में उपग्रह भेजने के इसरो के इस अभियान की लागत 7.4 करोड़ डॉलर है जो अमेरिकी अंतरिक्ष एजेंसी नासा के मंगल अभियान मावेन की लागत का दसवां हिस्सा है। जाने माने वैज्ञानिक प्रो. यशपाल इसे प्रौद्योगिकी क्षमता की दृष्टि से देश के लिए महत्वपूर्ण पहल मानते हैं। प्रो.  यशपाल ने कहा, ‘‘मंगलयान देश में अंतरिक्ष प्रौद्योगिकी के विकास के लिहाज से महत्वपूर्ण पहल है। अभी तक हमने एक ही ग्रह पृथ्वी को देखा है। सभी लोगों की इच्छा होती है कि नये नये विषयों के बारे में जाने समझे। हमें एक मौका मिला कि हम मंगल ग्रह को जाने।’’

Thursday 18 September 2014

शशांक को सर्वश्रेष्ठ ब्लॉगर का सम्मान

जनसंदेश टाइम्स


 देश के विभिन्न अखबारों में शशांक द्विवेदी को सर्वश्रेष्ठ ब्लाँगर सम्मान दिए जाने पर ख़बरें प्रकाशित हुई

दैनिक जागरण 
अमर उजाला आगरा से अपने एक कॉलम “साइबर बाइट्स “ से तकनीकी लेखन की शुरुआत करने वाले शशांक द्विवेदी को हिन्दी दिवस पर नई दिल्ली में एबीपी न्यूज  के एक खास कार्यक्रम में विज्ञान और तकनीकी लेखन के क्षेत्र में उनकी प्रसिद्ध वेबसाइट विज्ञानपीडिया के लिए के लिए सर्वश्रेष्ठ ब्लॉगर का पुरस्कार दिया गया . शशांक द्विवेदी सेंट मार्गरेट इंजीनियरिंग कॉलेज,नीमराना में प्रोफ़ेसर और प्रसिद्ध वेबसाइट विज्ञानपीडिया डॉट कॉम के संपादक है .एबीपी न्यूज़ ने एक भव्य कार्यक्रम में देश भर के चुनिंदा 10 ब्लॉगरों को  सम्मानित किया. पुरस्कार के लिए ब्लॉगरों का चयन प्रसिद्ध साहित्यकार और आलोचक सुधीश पचौरी, कवि डॉ. कुमार विश्वास, गीतकार प्रसून जोशी और नीलेश मिश्र ने किया.
दैनिक जागरण ,चित्रकूट 
राजस्थान पत्रिका 
विज्ञानपीडिया डॉट कॉम (विज्ञान और तकनीक की दुनियाँ ) आम आदमी ,छात्रों और प्रोफेशनल्स को हिंदी में विज्ञान और तकनीक से सम्बंधित नवीनतम जानकारी ,खोज ,लेख उपलब्ध कराती है .इस वेबसाईट के संपादक शशांक द्विवेदी के अनुसार आम आदमी और छात्रों की विज्ञान में रूचि बढानें के उद्देश्य से दो साल पहले इसकी शुरुवात की गई थी जो काफी सफल रही .हिंदी में विज्ञान और तकनीक से सम्बंधित गुणवत्तापूर्ण कंटेंट की काफी कमी है .जबकि ग्रामीण इलाकों के बच्चों को उनकी  भाषा में ही विज्ञान कंटेंट देकर उनकी रूचि बढ़ाई जा सकती है .इस समस्या को ध्यान में रखते हुए ही विज्ञानपीडिया .कॉम जैसा प्रयोग किया गया ,जिसको आशातीत सफलता मिल रही है .
द सी एक्सप्रेस 
द सी एक्सप्रेस 
दुनियाँ के कई देशों से इस साईट को देखा जा रहा है और इसकी सामग्री पर हजारों हिट्स मिल रहें है ,वर्ड वाइड अब तक वेबसाईट के 64200 पेज व्यू हो चुके है. विज्ञानपीडिया अपनी विशिष्ट सामग्री  की वजह  से  युवाओं के बीच तेजी से लोकप्रिय हो रही है. इसमें अंतरिक्ष उर्जा संकट ,जल संकट ,ग्लोबल वार्मिग ,उच्च शिक्षा ,तकनीकी शिक्षा ,मंगल अभियान पर कई विशेष लेख है . वेबसाइट के संपादक शशांक द्विवेदी देश के प्रमुख हिन्दी अख़बारों के लिए विज्ञान और तकनीकी विषयों पर नियमित स्तंभ लिखते है . विज्ञान संचार  से जुडी   देश की कई संस्थाओं द्वारा उन्हें राष्ट्रीय स्तर पर सम्मानित किया जा चुका है . अख़बारों में उनके प्रकाशितअधिकांश लेख आपको यहीं मिल जायेंगे .इस वेबसाइट का उद्देश्य आम आदमी को विज्ञान और तकनीक से जोड़ना है .इस वेबसाइट पर विज्ञान और तकनीक से सम्बंधित अच्छी से अच्छी जानकारी  उपलब्ध है .नियमित अपडेट होने से यह पाठकों को नई जानकारी उपलब्ध कराती है.



Monday 15 September 2014

सम्मानित हुए देश के 10 ब्लॉगर

हिन्दी दिवस पर ABP NEWS के खास कार्यक्रम में सम्मानित हुए देश के 10 ब्लॉगर
शशांक द्विवेदी सम्मान प्राप्त करते हुए 
पूरा देश आज हिन्दी दिवस मना रहा है. इस मौके पर एबीपी न्यूज़ ने एक खास कार्यक्रम का आयोजन किया जिसमें देश भर के चुनिंदा 10 ब्लॉगरों का सम्मानित किया गया. पुरस्कार के लिए ब्लॉगरों का चयन हमारे चार खास मेहमान सुधीश पचौरी, डॉ. कुमार विश्वास, गीतकार प्रसून जोशी और नीलेश मिश्र ने किया.
दिल्ली के पंकज चतुर्वेदी को पर्यावरण के मुद्दों पर लिखने के लिए सम्मानित किया गया. पंकज पर्यावरण से जुड़े मुद्दे पर लगातार लिखते रहे हैं
http://pankajbooks.blogspot.in  पर आप इनके ब्लॉग को देख सकते हैं. 
# दिल्ली के पंकज तिवारी को राजनीतिक मुद्दों पर लिखने के लिए सम्मानित किया गया.
सेंट मार्ग्रेट इंजीनियरिंग कॉलेज ,नीमराना ,अलवर राजस्थान के शशांक द्विवेदी को विज्ञान के मुद्दे पर लिखने के लिए सम्मानित किया गया. इनके लेख  http://www.vigyanpedia.com  वेबसाइट  पर पढ़े जा सकते हैं

# दिल्ली की रचना को महिलाओं के मुद्दे पर लिखने के लिए सम्मानित किया गया. इनके ब्लॉग http://indianwomanhasarrived.blogspot.in

पर पढ़े जा सकते हैं.
मुंबई के अजय ब्रह्मात्मज को सिनेमा और लाइफ स्टाइल पर लिखने के लिए सम्मानित किया गया. इनके ब्लॉग http://chavannichap.blogspot.in
पर पढ़े जा सकते हैं.
इंदौर के प्रकाश हिंदुस्तानी को समसामयिकी विषयों पर लेखन के लिए सम्मानित किया गया. इनके ब्लॉगhttp://prkashhindustani.blogspot.in पर पढ़े जा सकते हैं
लंदन की शिखा वार्ष्णेय को महिला और घरेलू विषयों पर लेखन के लिए सम्मानित किया गया. इनके ब्लॉगhttp://www.shikhavarshney.com
 पर पढ़े जा सकते हैं.
फतेहपुर (यूपी) के प्रवीण त्रिवेदी को स्कूली शिक्षा और बच्चों के मुद्दों पर लेखन के लिए सम्मानित किया गया. इनके ब्लॉग http://blog.primarykamaster.com
पर पढे जा सकते हैं
दिल्ली के प्रभात रंजन को हिंदी साहित्य और समाज पर लेखन के लिए सम्मानित किया गया. इनके ब्लॉग को http://www.jankipul.com
पर पढ़ सकते हैं

दिल्ली की फिरदौस खान को साहित्य के मुद्दों पर लेखन के लिए सम्मानित किया गया. इनके ब्लॉगhttp://firdausdairy.blogspot.in

शशांक द्विवेदी को सर्वश्रेष्ठ ब्लॉगर का सम्मान

ABP News द्वारा सम्मान  




कभी सोचा नहीं था कि ब्लाँगिंग /वेबसाइट के लिए मुझे कोई पुरस्कार मिलेगा .लेकिन कल जब ABP News ने इसके लिए सम्मानित किया तो बहुत खुशी हुई .दो साल पहले जब ब्लागिंग शुरू की तो इसके बारे में कुछ खास नहीं पता था आज भी ज्यादा कुछ नहीं पता है ...मेरा ब्लाँग/ वेबसाइट अतिसाधारण है लेकिन मुझे विज्ञान लेखन से प्यार है और इसे मैंने इसी उद्देश्य से बनाया कि रोज कुछ न कुछ अच्छी जानकारी इसमें अपडेट करके आप लोगों से शेयर कर सकू ..आम आदमी को विज्ञान और तकनीक के बारे में जानकारी उसकी अपनी भाषा में दे सकू .. हिंदी में विज्ञान और तकनीक से सम्बंधित गुणवत्तापूर्ण कंटेंट की काफी कमी है .जबकि ग्रामीण इलाकों के बच्चों को उनकी  भाषा में ही विज्ञान कंटेंट देकर उनकी रूचि बढ़ाई जा सकती है .इस समस्या को ध्यान में रखते हुए ही विज्ञानपीडिया .कॉम जैसा प्रयोग किया गया ,जिसको आशातीत सफलता मिल भी रही है .आगे भी इसे और अच्छा बनाने की कोशिश करूँगा जिसमें आप लोगों का भी सहयोग अपेक्षित है .अगर आप मित्रों के पास विज्ञान /तकनीक से जुड़ी कोई खबर ,लेख हो तो वो आप मेरी वेबसाइट के लिए सहर्ष भेज सकते है .मेरे इस पुरस्कार में आप सभी मित्रों/पाठकों का भी  ही बहुत योगदान है क्योंकि आप लोगों के प्रोत्साहन ,तारीफ़ और आलोचना की वजह से ही मै कुछ अच्छा कर पा रहा हूँ इसलिए आप सभी के सहयोग और प्यार के लिए मै सदैव आपका आभारी रहूँगा .


Wednesday 10 September 2014

अभी सिर्फ सपना है डिजिटल इंडिया

शशांक द्विवेदी, असिस्टेंट प्रोफेसर, सेंट मार्गरेट इंजीनियरिंग कॉलेज
" हिंदुस्तान " के संपादकीय पेज पर  लेख 
Hindustan
सरकार ने एक लाख करोड़ रुपये लागत की विभिन्न परियोजनाओं वाले डिजिटल इंडिया कार्यक्रम को मंजूरी दे दी है। लक्ष्य है, देश के हर गांव को इंटरनेट से जोड़ना, ऐसी व्यवस्था करना कि सारे सरकारी काम इंटरनेट पर ही हो जाएं, और यह सुनिश्चित करना है कि सरकारी सेवाएं नागरिकों को इलेक्ट्रॉनिक माध्यम से उपलब्ध हों। यह 19वीं सदी की पुरानी प्रशासन प्रणाली को आधुनिक बनाने की दिशा में पहला बड़ा कदम साबित हो सकता है। इसके पीछे यह धारणा है कि पुराने डिलिवरी सिस्टम से देश को नई गति नहीं दी जा सकती। 80 के दशक में हमने पहली पीढ़ी की संचार क्रांति के बीज बोए थे, जब सिर्फ 20 लाख फोन थे और लोगों को लैंडलाइन कनेक्शन पाने के लिए कई-कई साल इंतजार करना पड़ता था।

इस समय देश में 90 करोड़ मोबाइल फोन हैं और लगभग 20 करोड़ से अधिक लोग इंटरनेट से जुड़े हैं। हालांकि आबादी के घनत्व के हिसाब से देखें, तो यह संख्या काफी कम है। अब भी देश के बहुत बड़े हिस्से, खासकर गांवों में इंटरनेट के लिए कोई आधारभूत ढांचा नहीं बना है। शिक्षा के क्षेत्र में आधुनिक तकनीक अभी नहीं पहुंची है। देश के अधिकांश ग्रामीण व सरकारी स्कूलों में पिछली सदी की बुनियादी सुविधाएं भी नहीं हैं। स्कूल अभी क्लास रूम, ब्लैक बोर्ड और अध्यापकों की कमी से जूझ रहे हैं, उनसे ई-शिक्षा की उम्मीद नहीं की जा सकती। सवाल इंटरनेट के इन्फ्रास्ट्रक्चर से आगे जाकर लोगों की माली हालत से जुड़ता है। यह सब तब हो सकता है, जब अधिक से अधिक लोगों के पास कंप्यूटर हों, उन्हें चलाने के लिए बिजली हो, इंटरनेट कनेक्शन के लिए जरूरी धन हो और इंटरनेट के इस्तेमाल के लिए जरूरी जागरूकता हो और सचमुच में ऐसी व्यवस्थाएं ऑनलाइन उपलब्ध हों कि इंटरनेट का इस्तेमाल उन्हें फायदे का सौदा लगे। बेशक, भारत में प्रति व्यक्ति आय तेजी से बढ़ रही है और पिछले एक दशक में वह लगभग ढाई गुना हो चुकी है। कंप्यूटर रखने वाले लोगों की संख्या भी काफी बढ़ी है, लेकिन इसे सब तक पहुंचाने की मंजिल अभी बहुत दूर है। गांव-कस्बे तो दूर, अभी बड़े शहरों में भी सबकी पहुंच कंप्यूटर तक नहीं है। भारत को पूरी दुनिया में आईटी ताकत के रूप में देखा जाता है, लेकिन इस ताकत का वास्तविक आधार बहुत विस्तृत नहीं है।

हमारे सामने कुलजमा चुनौतियां दो तरह की हैं। एक तो जो वर्ग कंप्यूटर तक पहुंच रखता है, उसके लिए इंटरनेट आदि को उपयोगी बनाना। उसके इन्फ्रास्ट्रक्चर का लगातार विकास करना। इंटरनेट स्पीड के मामले में आईटी सुपरपावर कहलाने वाला यह देश कई विकासशील देशों से भी पीछे है। दूसरी चुनौती तेज आर्थिक विकास की है, जिससे ज्यादा लोगों को रोजगार और ऐसी माली हालत दी जा सके कि वे अपना आर्थिक स्तर बढ़ाते हुए कंप्यूटर और इंटरनेट इस्तेमाल करने वाले वर्ग में शामिल हो सकें।
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गॉड पार्टिकल पर हॉकिंग की नई चेतावनी

गॉड पार्टिकल की खोज के बाद सृष्टि का सबसे बुनियादी रहस्य जानने को लेकर पैदा हुई आशा चर्चित ब्रिटिश साइंटिस्ट स्टीफन हॉकिंग की ओर से आई चेतावनी के बाद आशंका में बदल सकती है। हॉकिंग ने जल्द ही प्रकाशित होने जा रही किताब 'स्टारमस' की भूमिका में कहा है कि गॉड पार्टिकल को लेकर जो प्रयोग किए जा रहे हैं, उनमें पूरे ब्रह्मांड को नष्ट कर देने की क्षमता है।

हॉकिंग के मुताबिक गॉड पार्टिकल को अगर हाई टेंशन पर रखा जाए तो कैटस्ट्रॉफिक वैक्यूम डिके (अनर्थकारी शून्य ह्रास) पैदा हो सकता है। यानी इससे कुछ ऐसे बुलबुले तैयार हो सकते हैं, जिनके लपेटे में आकर पूरा ब्रह्मांड ही शून्य बन जाए। हॉकिंग की इस चेतावनी को फिलहाल सिद्धांत रूप में ही लिया जा रहा है, और इसको इसी तरह लिया भी जाना चाहिए। हॉकिंग ने भी कहा है कि जिस स्थिति की चेतावनी उन्होंने दी है, उसके निकट भविष्य में घटित होने के कोई आसार नहीं हैं। इन स्थितियों के लिए गॉड पार्टिकल को ऊर्जा के जिस स्तर पर रखना होगा, उसके लिए पृथ्वी से भी बड़े ऐक्सीलरेटर की जरूरत पड़ेगी। जाहिर है, मौजूदा हालात में स्टीफन के बताए खतरों से घबराने की जरूरत नहीं है। मगर, गॉड पार्टिकल की खोज के वक्त हम देख चुके हैं कि कैसे मीडिया का एक हिस्सा इसे ईश्वर की खोज बताने पर आमादा था। ऐसे में यह नामुमकिन नहीं कि हॉकिंग की चेतावनी का इस्तेमाल कुछ विज्ञान विरोधी ताकतें लोगों को बरगलाने में करने लगें। जब भी विज्ञान किसी बेहद महत्वपूर्ण खोज की दहलीज पर पहुंचता है, समाज का एक हिस्सा प्रकृति से छेड़छाड़ के कथित खतरों और नैतिकता के गढ़े हुए मानकों के सहारे उस पर अंकुश लगाने की कोशिश करता है। बहरहाल, हॉकिंग की यह एक महान उपलब्धि रही है कि उन्होंने भौतिकी की सीमावर्ती खोजों को आम लोगों के बीच लोकप्रिय बनाया है। उनकी 'अ ब्रीफ हिस्ट्री ऑफ टाइम' की गिनती दुनिया की सबसे ज्यादा बिकने वाली नॉन फिक्शन पुस्तकों में होती है। उम्मीद करें कि उनकी लिखी प्रस्तावना के साथ आ रही यह किताब क्वांटम मेकेनिक्स में जारी नवीनतम काम को लोकप्रिय विमर्श का हिस्सा बनाएगी।
चेतावनीः हमें तबाह न कर दें गॉड पार्टिकल्स

भौतिकी और ब्रह्मांड विज्ञान के मशहूर प्रफेसर स्टीफन हॉकिंग ने दुनिया को चेतावनी दी है कि जिस 'गॉड पार्टिकल्स' ने सृष्टि को स्वरूप और आकार दिया है, उसमें पूरी दुनिया को खत्म करने की भी क्षमता है। प्रफेसर हॉकिंग की संडे टाइम्स को दी इस रिपोर्ट ने विज्ञान जगत में खलबली मचा दी है। वैज्ञानिक इस विषय को लेकर काफी रोमांचित हैं।

हॉकिंग का कहना है कि अगर वैज्ञानिक गॉड पार्टिकल्स को हाई टेंशन (उच्च तनाव) पर रखेंगे तो इनसे 'कैटास्ट्रॉफिक वैक्यूम' तैयार होगा। यानी इससे बुलबुलानुमा गैप तैयार होंगे। इससे ब्रह्मांड में गतिमान कण टूट-टूटकर उड़ने लगेंगे और आपस में टकराकर चूर-चूर हो जाएंगे। हालांकि भौतिकविदों ने इस मसले को आपदा की आशंका मानकर किसी तरह का प्रयोग नहीं किया है। लेकिन प्रफेसर हॉकिंग ने दुनिया के वैज्ञानिकों को सचेत जरूर किया है। सैद्धांतिक भौतिकीविदों ने हिग्स बॉसन के बारे में लिखा है कि उनकी नई किताब स्टारमस में नील आर्मस्ट्रॉन्ग, बज़ एलड्रीन, क्वीन गिटारिस्ट ब्रायन मे आदि के लेक्चर्स का चयन है। इसी साल नवंबर में यह किताब आने वाली है। इसमें भी गॉड पार्टिकल्स से जुड़ी जानकारियां होंगी।यूनिवर्स की हर चीज (तारे, ग्रह और हम भी) मैटर यानी पदार्थ से बनी है। मैटर अणु और परमाणुओं से बना है और मास वह फिजिकल प्रॉपर्टी है, जिससे इन कणों को ठोस रूप मिलता है। मास जब ग्रैविटी से गुजरता है, तो वह भार की शक्ल में भी मापा जा सकता है, लेकिन भार अपने आप में मास नहीं होता, क्योंकि ग्रैविटी कम-ज्यादा होने से वह बदल जाता है। मास आता कहां से आता है, इसे बताने के लिए फिजिक्स में जब इन तमाम कणों को एक सिस्टम में रखने की कोशिश की गई तो फॉर्म्युले में गैप दिखने लगे। इस गैप को भरने और मास की वजह बताने के लिए 1965 में पीटर हिग्स ने हिग्स बोसोन या गॉड पार्टिकल का आइडिया पेश किया।

Monday 8 September 2014

प्रकृति का अद्वितीय सृजन

विज्ञान और ज्ञान के अन्य क्षेत्रों में तरक्की के बावजूद प्रकृति का ज्यादातर कामकाज अब भी हमारे लिए रहस्यमय है। मसलन, वैज्ञानिकों ने यह पाया है कि मानवीय डीएनए का लगभग आठ प्रतिशत हिस्सा ही उपयोगी है, शेष बचा हुआ 92 प्रतिशत निष्क्रिय रहता है। पहले यह माना जाता था कि लगभग 80 प्रतिशत डीएनए किसी न किसी रूप में उपयोगी है, लेकिन ऑक्सफोर्ड के शोधकर्ताओं का कहना है कि अगर लगभग 90 प्रतिशत डीएनए न हो, तब भी जीवन का कामकाज चलता रहेगा। यह 90 या 92 प्रतिशत डीएनए वह है, जो करोड़ों साल की विकास यात्रा में कभी काम आया होगा, लेकिन अब नहीं है। इस नतीजे पर पहुंचने के लिए वैज्ञानिकों  ने अन्य जीवों के डीएनए के साथ मानव डीएनए का तुलनात्मक अध्ययन किया और उन जीन्स को पहचाना, जो जैव विकास यात्रा के दौरान साझा थे और अभी तक मौजूद हैं। उनकी मौजूदगी का मतलब है कि वे उपयोगी हैं, तभी प्रकृति ने उन्हें बचाकर रखा है। कुछ वैज्ञानिकों ने निष्क्रिय जीन्स को ‘जंक जीन्स’ यानी कूड़ा कहा है, जो विकास यात्रा के दौरान इकट्ठा हो  गया है। लेकिन क्या यह सचमुच कूड़ा है? हमें अक्सर आश्चर्य होता है कि प्रकृति इतनी फिजूलखर्ची क्यों करती है? जब कुछ ही पौधे उगाने हैं, तो पेड़ इतने सारे बीज क्यों बिखेरते हैं? एक संतान पैदा करने के लिए अरबों शुक्राणु क्यों बनते हैं? लोगों को इस बात पर भी ऐतराज होता है कि नदियों का मीठा पानी समुद्र में जाकर व्यर्थ हो जाता है।

इसी तरह यह भी एक सवाल है कि इतने सारे व्यर्थ के निष्क्रिय डीएनए क्यों हर मानव कोशिका के अंदर मौजूद हैं? उपयोगितावादी नजरिये से प्रकृति की इस फिजूलखर्ची को रोककर ज्यादा से ज्यादा फायदा उठाने की कोशिश इंसान खास तौर पर आधुनिक समय में कर रहा है। हम फैक्टरी की तरह के मुर्गी फॉर्मो में मुर्गियों को पैदा कर रहे हैं। नदियों का पानी समुद्र में न जाए, इसलिए बांध बना रहे हैं। पौधों से ज्यादा से ज्यादा उत्पादन हासिल करने के लिए उन्हें रसायन और कृत्रिम रोशनी दे रहे हैं। लेकिन इस नजरिये के नुकसान भी हैं, और ऐसा लगता है कि यह नजरिया प्रकृति के स्वभाव को न समझने की वजह से है। प्रकृति का मूल स्वभाव उत्पादन नहीं, सृजन है। उत्पादन का अर्थ है एक जैसी कई सारी चीजें पैदा करना, जबकि सृजन का अर्थ है कि अब तक जो नहीं हुआ, उसकी रचना करना।

प्रकृति का हर सृजन इसीलिए अद्वितीय होता है। कहते हैं कि दो सूक्ष्मजीवी भी बिल्कुल एक जैसे नहीं होते। यह विविधता प्रकृति के बने रहने के लिए जरूरी है। अगर सारे जीव एक जैसे होंगे, तो किसी एक संकट या एक बीमारी से सब मारे जाएंगे, विविधता बचे रहने की गारंटी है। सृजन के लिए विविधता का होना जरूरी है, तभी अलग-अलग तत्वों के मेल से नए-नए रूप बनेंगे। जो चीज प्रकृति में हमें व्यर्थ लगती है, वह हो सकता है कि उसके लिए काम की हो। कुछ वैज्ञानिक यह मानते हैं कि 92 प्रतिशत डीएनए बेकार नहीं हैं, उन्हें प्रकृति ने इसलिए बचाकर रखा है कि उसकी कभी जरूरत पड़ सकती है। वह हमारी संचित निधि है, कूड़ा नहीं है। अब मनुष्य प्रकृति के तर्क को फिर से समझने की कोशिश कर रहा है और यह देखा जा रहा है कि जो चीजें पहले बेकार या प्रकृति की फिजूलखर्ची लगती थीं, उनका कुछ उपयोग है और उन्हें नष्ट करने से प्रकृति का संतुलन बिगड़ गया और कई दिक्कतें पैदा हो गईं। जीवन की विकास यात्रा का जो इतिहास हम मनुष्यों की कोशिकाओं में दबा पड़ा है, भविष्य में कभी हम उसे पढ़ पाएंगे और वह न जाने किस दौर में हमारी मानवता के काम आ जाए।

Friday 5 September 2014

व्यवस्था के लिए मिसाल बनें शिक्षक

5 सितंबर शिक्षक दिवस पर विशेष 
प्रोफेसर यशपाल, प्रसिद्ध शिक्षाविद् और वैज्ञानिक
वे आजादी के दिन थे। मुल्क का बंटवारा हो चुका था। हम पाकिस्तान वाले हिस्से से रिफ्यूजी बनकर हिन्दुस्तान पहुंचे। जख्म हरे थे, पर सपने नए थे। हालांकि, हमारे पास पढ़ने का कोई साधन नहीं था। तब डीएस कोठारी दिल्ली विश्वविद्यालय में भौतिकी के विभागाध्यक्ष हुआ करते थे। यह वही कोठारी साहब थे, जो बाद में विश्वविद्यालय अनुदान आयोग के अध्यक्ष हुए, इससे पहले रक्षा मंत्रालय में वैज्ञानिक सलाहकार के पद पर भी रहे। ढेरों सम्मान और काम उनके नाम हैं। स्टेटिस्टिकल थर्मोडायनेमिक्स पर उनके किए काम को अंतरराष्ट्रीय पहचान प्राप्त है। आजादी से पहले उनसे कुछ मुलाकातें हुई थीं। एक बार वह लाहौर गए थे लेक्चर देने के लिए। बेहद प्रभावशाली भाषण था उनका और हम छात्रों ने उनसे काफी कुछ सीखा। उनकी एक खासियत यह भी थी कि वह जिस जगह जाते, वहां छात्रों से सीधे मुखातिब होते, उनसे बात और सवाल-जवाब करते। कुछ भी रटा-रटाया नहीं, सब समझ के आधार पर होता। इस तरह, छात्रों से उनका एक अनकहा रिश्ता बन जाता। मेरे साथ उनका रिश्ता इसलिए भी खास था कि मैं उनसे हर मुलाकात में ढेरों सवाल करता था।हम कुछ लोग सीधे कोठारी साहब से मिलने पहुंचे। आज की तरह कोई पहरेदारी नहीं थी, सब एक-दूसरे के लिए सुलभ होते थे। हमने कहा, ‘कोठारी साहब, हमारी यूनिवर्सिटी बनी नहीं है। शायद यह बनेगी, ईस्ट पंजाब यूनिवर्सिटी, सब यही तो कह रहे हैं। और हम फिजिक्स ऑनर्स के स्टूडेंट हैं। अगर आप हमें अपनी कक्षाओं में शामिल कर लें? ..हमारे शिक्षक भी यहां आकर पढ़ा देंगे। हमारी भी एक लैबोरेटरी यहीं बन जाए, तो..।उन्होंने कहा, ओके। इस तरह से हमारी अधूरी पढ़ाई फिर शुरू हो पाई। दिल्ली विश्वविद्यालय की मदद से हमारा इम्तिहान हुआ, रहने को हॉस्टल मिला। और हम तरक्की कर सके। गुरु के साथ यह रिश्ता, यह बातचीत और हम इतना कुछ कर पाए, कैसे? मैं दोहराना चाहूंगा- क्योंकि, वे आजादी के दिन थे। आजाद ख्याल, कुछ करने की ललक, गुरु का दर्जा सबसे ऊपर- यह तब का हिन्दुस्तान था। गुरु रौबदार दिखते थे, पर ज्ञान से भरे होते थे। वे फैसले ले सकते थे, आज की तरह कमेटियों के चक्कर नहीं काटने पड़ते थे।
उसी दिल्ली विश्वविद्यालय में आज दाखिले का बड़ा झमेला है। कोई प्रक्रिया इसलिए बनती है कि उसके जरिये छात्रों की परेशानी दूर हो, उनके लिए रास्ते खुलें, लेकिन इन प्रक्रियाओं ने और पेचीदगियां पैदा की हैं। पहले गुरु के कहने पर बच्चे का दाखिला हो जाता था, अब यह लाओ, वह लाओ और न जाने क्या-क्या लाओ। किसे इसका दोष दें? सब जगह और सबमें मूल्यों का ह्रास हुआ है। चार साल के स्नातक की पढ़ाई पर दिल्ली विश्वविद्यालय में काफी बवाल मचा। इसका मुख्य कारण मुझे मालूम नहीं, लेकिन मेरे अनुसार, यह नया प्रयोग है और शिक्षकों को लगता है कि इससे छात्रों पर बोझ और बढ़ेगा। यह थोड़ा ठीक भी है। शायद शिक्षक इसका भी विरोध करें  कि जो मनमाफिक चीजें पढ़ना चाहें, उन्हें पढ़ने दें। मैंने सरकार को जो सुझाव भेजा था, वह यही था कि आप ज्ञान को विषय-अनुशासन में मत बांधो और जिसे जो पढ़ना है, पढ़े। दरअसल, हमारे दौर में शिक्षक परंपरा के पोषक होते थे, लेकिन वे लकीर के फकीर नहीं थे। आज सब कुछ घालमेल हो गया है, न गुरु-शिष्य परंपरा रही और लकीर के फकीर तो बहुतेरे हो गए हैं।
इन दिनों अपने यहां एक जुमला चल निकला है कि हम उस दौर में हैं, जहा नॉलेज सोसायटी की जरूरत है।लेकिन इसके लिए तो सबसे पहले उस स्तर के शिक्षक बनाने होंगे। वे शिक्षक, जो नॉलेज और इन्फॉरमेशन के बीच के फर्क को स्पष्ट कर सकें। हकीकत यह है कि आज समाज में सूचनाओं की अधिकता हो गई है, ज्ञान की नहीं। और शिक्षक इस समाज से अलग तो नहीं हैं। वे रटने की बात करते हैं, सीखने की नहीं। कितने शिक्षक कक्षा में जाने से पहले पढ़ाई करते हैं? अपनी तैयारी दुरुस्त रखते हैं और किताबी ज्ञान से अलग व्यावहारिक नजरिया अपनाते हैं? कहने के लिए तो आज हमारे शिक्षक कई किताबें लिख रहे हैं। पर ये किताबें कालजयी नहीं, बल्कि मालजयी हैं। खुद को गुरु कहलाने का आधुनिकतम तरीका है- कॉपीइंग, एडीटिंग, बुक-बाइंडिंग, पब्लिशिंग और डिस्ट्रीब्यूटिंग। बस थीसिस पर थीसिस और प्रोजेक्ट पर प्रोजेक्ट। लेकिन इन सबकी आड़ में सोच-समझ की शक्ति खोती जा रही है, इसकी जिम्मेदारी कौन लेगा? यह भयावह स्थिति है। पुराने तरीकों में इसकी पहचान गुरुओं को थी कि सूचनाओं का संबंध सोचने से हो, तभी वह ज्ञान है। लेकिन आज गुरु यह कहते हैं कि किताब में न्यूटन का सिद्धांत लिखा है, तो हम वही पढ़ाएंगे, यह क्यों बताएं कि पेड़ से फल नीचे क्यों गिरता है? यह तरीका अच्छे शिष्य नहीं बनाता और गुरु की प्रतिष्ठा दोयम दर्जे की हो जाती है, क्योंकि वे छात्रों की जिज्ञासा शांत करना अपना दायित्व नहीं समझते। उनका जवाब होता है: यह तो सिलेबस में नहीं। हकीकत यह है कि वे बच्चों के साथ खुद सीखना नहीं चाहते।
जब मैं एक अखबार के लिए कॉलम लिखता था, तो मेरे पास बच्चों की ढेरों चिट्ठियां आती थीं, सवालों से भरी हुईं। ये चिट्ठियां प्रमाण थीं कि बच्चे जानना चाहते हैं और उनके जवाब घर-परिवार और स्कूल में नहीं मिल रहे हैं। एक बच्चे ने लिखा था, ‘यशपाल अंकल, सब कहते हैं कि इसने इसकी खोज की और उसने उसकी। फिर ब्रह्मांड की खोज किसने की?’ बड़ा बेहतरीन सवाल था। शायद यह बच्चे की जिज्ञासा क्षमता का चरम रहा होगा। इसका जवाब मेरे पास भी नहीं था। लेकिन अगर उस बच्चे की नजर से देखें, तो जवाब मिलता है कि जब बच्चा जन्म लेता और चिहूं, चिहूं करता हुआ दुनिया देखता है, तो वह ब्रह्मांड की खोज करता है। यह एक सतत प्रक्रिया है। इसलिए हर इंसान ब्रह्मांड की खोज करता है। झारखंड की एक बच्ची का सवाल था, ‘हवा दिखता क्यों नहीं?’ मुझे मालूम है कि इसका जवाब न देकर शिक्षक उसे लिंग-दोष के लिए डांट पिला रहे होंगे। मैंने उस बच्ची को किसी चीज के दिखने और नहीं दिखने का बुनियादी और वैज्ञानिक कारण उसी की भाषा में बताया था। बच्चों की जिज्ञासा-शक्ति आज भी उतनी है, जरूरत है, तो बस उसे शांत करने की। और यह तब तक नामुमकिन है, जब तक गुरु और शिष्य के बीच दूरी बनी रहेगी। पहल गुरुओं को ही करनी है। गुरु व्यवस्था का हिस्सा न बनकर व्यवस्था के लिए मिसाल बनें।