Wednesday 18 September 2013

अग्नि-5-कामयाबी के साथ चुनौतियाँ भी

शशांक द्विवेदी 
दैनिक जागरण 
एक बड़ी कामयाबी हासिल करते हुए भारत ने स्वदेशी तकनीक से तैयार इंटर कांटीनेंटल बैलास्टिक मिसाइल (आईसीबीएम )अग्नि-5 का सफल परीक्षण कर लिया है । रक्षा अनुसंधान व विकास संगठन के अनुसार यह मिसाइल सभी पैमानों पर खरा उतरी है। इस परीक्षण के दौरान तीन चरणों वाली अग्नि-पांच ने निर्धारित लक्ष्य पर सटीक वार किया। अस्सी फीसद से ज्यादा स्वदेशी उपकरणों से बनी इस मिसाइल ने भारत को नाभिकीय बम के साथ सुदूर लक्ष्य पर सटीक वार करने वाली अतिजटिल तकनीक का रणनीतिक रक्षा कवच दिया है। इसके जरिए भारत अपने किसी भी हमलावर को भरोसेमंद पलटवार क्षमता के साथ मुंहतोड़ जवाब दे सकता है। वास्तव में ये भारत के इतिहास की सबसे बड़ी सामरिक उपलब्धि है क्योंकि इस कामयाबी में स्वदेशी तकनीक  के साथ साथ आत्मनिर्भरता की तरफ बढ़ते कदम की भी पुष्टि होती है । अगर सकारात्मक सोच और ठोस रणनीति के साथ हम लगातार  अपनी रक्षा जरूरतों को पूरा करने की दिशा में हम कदम बढ़ाते  रहें है तो वो दिन दूर नहीँ जब हम खुद अपने नीति नियंता बन जायेगे और हमें किसी तकनीक,हथियार और उपकरण  के लिए दूसरों पर निर्भर  नहीं रहना पड़ेगा ।
भारत के सामरिक कार्यक्रम के लिए काफी महत्वपूर्ण यह मिसाइल 5000 किलोमीटर तक मारक क्षमता के साथ पूरे एशिया, ज्यादातर अफ्रीका व आधे से अधिक यूरोप तथा अंडमान से छोड़ने पर आस्ट्रेलिया तक पहुंच सकती है। यह एक टन तक के परमाणु बम गिरा सकती है। अग्नि-पांच भारत की सबसे तेजी से विकसित मिसाइल है, जिसे महज तीन साल में तैयार किया गया है। 
अत्याधुनिक तकनीक का इस्तेमाल
रक्षा अनुसंधान व विकास संगठन (डीआरडीओ) द्वारा विकसित अग्नि 5 के सफल परीक्षण के  साथ ही भारत  आईसीबीएम क्षमता रखने वाले दुनिया के चुनिन्दा मुल्कों में शामिल हो गया है । दुनिया में अभी तक केवल अमेरिका, ब्रिटेन, रूस, फ्रांस और चीन के पास ही आईसीबीएम को संचालित करने की क्षमता है । अग्नि-5 तीन स्तरीय, पूरी तरह से ठोस ईंधन पर आधारित तथा 17.5 मीटर लंबी मिसाइल है जो विभिन्न तरह के उपकरणों को ले जाने में सक्षम है। इसमें मल्टीपल इंडीपेंडेंटली टागेटेबल रीएंट्री व्हीकल (एमआरटीआरवी) भी विकसित किया जा चुका है। यह दुनिया के कोने-कोने तक मार करने की ताकत रखता है तथा देश का पहला कैनिस्टर्ड मिसाइल है। जिससे इस मिसाइल को एक स्थान से दूसरे स्थान पर ले जाना सरल होगा ।
कल्पतरु एक्सप्रेस 
अग्नि-पांच को अचूक बनाने के लिए भारत ने माइक्रो नेवीगेशन सिस्टम, कार्बन कंपोजिट मैटेरियल से लेकर कंप्यूटर व सॉफ्टवेयर तक ज्यादातर चीजें स्वदेशी तकनीक से विकसित कीं। अग्नि-5 का प्रयोग छोटे सेटेलाइट लांच करने और दुश्मनों के सेटेलाइट नष्ट करने में भी किया जा सकता है। एक बार इसे दागने के बाद रोकना मुश्किल है। इसकी रफ्तार गोली से भी ज्यादा तेज है और यह 1.5 टन परमाणु हथियार ले जाने में सक्षम है। तीन चरणों में काम करने वाली इस मिसाइल में ठोस ईधन का इस्तेमाल किया है। पहले चरण में रॉकेट इंजन मिसाइल को 40 किमी ऊपर ले जाता है, दूसरे चरण में यह 150 किमी धकेलता है और तीसरे चरण में यह धरती से 300 किमी जाता है। अंतत यह धरती से 800 किमी की दूरी तक जाता है। इसका प्रक्षेपण प्रणाली इतना सरल है कि इसे सड़क किनारे से भी छोड़ा जा सकता है। कुछ और प्रक्षेपण के बाद इसे 2014-15 तक सेना में शामिल किया जा सकेगा। 
भारत के लिए बहुत महत्वपूर्ण
आज के इस तकनीकी युग  में हजारों किलोमीटर दूर तक मार करने वाली बैलिस्टिक मिसाइलों की बड़ी महत्वपूर्ण भूमिका होगी। क्योंकि  जिस तरह से चीन एशिया  में लगातार अपनी सैन्य ताकत को बढ़ा रहा है ऐसे में भारत को  भी अपनी सैन्य क्षमता को बढ़ाते हुए उसे अत्याधुनिक तकनीक से लैस करते जाना होगा । तभी देश बदलते समय के साथ विश्व में अपनी मजबूत सैन्य उपस्थिति दर्ज करा सकेगा ।
जमीन और  सीमा विवाद को लेकर जिस तरह चीन भारत को लगातार चुनौती दे रहा है और कट्टरपंथी ताकतों को बढ़ावा देकर पकिस्तान अपने सामरिक हित पूरा  कर रहा ऐसे में देश के पास लंबी दूरी की अग्नि-5 जैसी  बैलेस्टिक मिसाइलों का होना बेहद जरूरी है । देश की रक्षा जरूरतों को देखते  हुए अग्नि -5 का परीक्षण  काफी जरूरी हो गया था क्योंकि पड़ोस में चीन के पास बैलिस्टिक मिसाइलों का अंबार लगा हुआ है जिससे एक सैन्य असंतुलन पैदा हो गया था । चीन ने दो साल पहले ही 12 हजार किलोमीटर दूर तक मार करने वाली तुंगफंग-31 ए बैलिस्टिक मिसाइलों का विकास कर लिया है । लेकिन अब अग्नि 5 के सफल परिक्षण से कोई दुश्मन देश हम पर हावी नहीं हो सकेगा । 
आत्मनिर्भरता ही एक मात्र विकल्प
अग्नि-5  की सफलता ने भारत की सामरिक प्रतिरोधक क्षमता की पुष्टि कर दी है और डीआरडीओ ने अपनी ख्याति और क्षमताओं के अनुरूप ही अग्नि 5  को आधुनिक तकनीक के साथ विकसित किया है । लेकिन देश की रक्षा प्रणाली में आत्मनिर्भरता और रक्षा जरूरतों को समय पर पूरा करने की जिम्मेदारी सिर्फ डीआरडीओ की ही नहीं होनी चाहिए बल्कि ‘आत्म निर्भरता संबंधी जिम्मेदारी’  रक्षा मंत्रालय से जुड़े सभी पक्षों की होनी चाहिए। देश में स्वदेशी रक्षा प्रौद्योगिकी को बड़े पैमाने पर विकसित करने की जरुरत है और इस दिशा में जो भी समस्याएं है उन्हें सरकार द्वारा अबिलम्ब दूर करना होगा तभी सही मायनों में हम विकसित राष्ट्र का अपना सपना पूरा कर पायेगे । सरकार को यह महसूस करना चाहिए कि अत्याधुनिक आयातित प्रणाली भले ही बहुत अच्छी हो लेकिन कोई भी विदेशी प्रणाली लंबे समय तक अपनी रक्षा जरूरतों को पूरा नहीं कर सकती। सैन्य तकनीकों और हथियार उत्पादन में आत्मनिर्भरता देश की राष्ट्रीय सुरक्षा के लिए बहुत जरुरी है । इसके साथ ही  भारत को हथियारों के आयात की प्रवृत्ति पर रोक लगानी चाहिए। 
प्रभातखबर 
अगर हम एक विकसित देश बनने की इच्छा रखते हैं तो  आतंरिक और बाहरी चुनौतियों से निपटने के लिए हमें दूरगामी रणनीति बनानी पड़ेगी । क्योंकि भारत  पिछले छह दशक के दौरान अपनी अधिकांश सुरक्षा जरूरतों की पूर्ति दूसरे देशों से हथियारों को खरीदकर कर रहा है । वर्तमान में हम अपनी सैन्य जरूरतों का 70 फीसदी हार्डवेयर और सॉफ्टवेयर आयात कर रहे हैं।
रक्षा  जरूरतों के लिए भारत का दूसरों पर निर्भर रहना कई मायनों में खराब है एक तो यह कि अधिकतर दूसरे देश भारत को पुरानी रक्षा प्रौद्योगिकी ही देने को राजी है, और वह भी ऐसी शर्ताे पर जिन्हें स्वाभिमानी राष्ट्र कतई स्वीकार नहीं कर सकता। वास्तव में स्वदेशी व आत्मनिर्भरता का कोई विकल्प नहीं है। 
पिछले वर्षों में सैन्य  हथियारों ,उपकरणों की कीमत दोगुनी कर देने, पुराने विमान, हथियार व उपकरणों के उच्चीकरण के लिए मुंहमांगी कीमत वसूलने और सौदे में मूल प्रस्ताव से हट कर और कीमत मांगने के कई केस देश के सामने आ चुके है । वहीं अमेरिका “रणनीतिक रक्षा प्रौद्योगिकी में भारत को भागीदार नहीं बनाना चाहता । अमेरिका भारत को हथियार व उपकरण तो दे रहा है पर उनका हमलावर इस्तेमाल न करने व कभी भी इस्तेमाल की जांच के लिए अपने प्रतिनिधि  भेजने जैसी शर्मनाक शर्ते भी लगा रहा है। आयातित टैक्नोलाजी पर हम  ब्लैकमेल का शिकार भी हो सकते  है। वर्तमान  हालात ऐसे हैं कि हमें बहुत मजबूती के साथ आत्मनिर्भर होने की जरूरत है। वर्तमान समय में भारत दुनिया का सबसे बड़ा हथियार आयातक देश बनता जा रहा है। रक्षा मामले में आत्मनिर्भर बनने की तरफ मजबूती से कदम उठाने के अलावा और कोई विकल्प नहीं है ।
कामयाबी के साथ चुनौतियाँ भी 
अग्नि 5 के सफल परीक्षण के बाद रक्षा वैज्ञानिकों को दुश्मन मिसाइल को मार गिराने वाली इंटरसेप्टर मिसाइल और मिसाइल डिफेंस सिस्टम पर अधिक काम करने की जरुरत है । क्योंकि अमेरिका, रूस, फ्रांस, चीन जैसे देश इस सिस्टम को विकसित कर चुके हैं । मिसाइल डिफेंस सिस्टम के तहत दुश्मन देश के द्वारा दागी गई मिसाइल को हवा में ही नष्ट कर दिया जाता है । इस कामयाबी के साथ ही हमारी चुनातियाँ भी अधिक बढ़ गई है क्योंकि अब चीन और पाकिस्तान इसका जवाब देने के लिए हथियारों और उपकरणों की होड़ में शामिल हो जायेगें इसलिए हमें सतर्क रहते हुए अपने रक्षा कार्यक्रमों को मजबूत करते जाना होगा । इस कामयाबी को आगे बढ़ाते हुए हमें अपनी सैन्य क्षमताओ को स्वदेशी तकनीक से अत्याधुनिक बनाना है जिससे कोई भी दुश्मन देश हमारी तरफ देखने से पहले सौ बार सोचे ।

मंगल ग्रह की यात्रा के लिए कतार

मंगल अतीत में भले ही हरा-भरा रहा हो, लेकिन आज वह एक बंजर स्थान है और वहां की परिस्थितियां जीवन के अनुकूल नहीं हैं। घूमने-फिरने के लिहाज से उसे ऐसा आदर्श पर्यटन स्थल नहीं कहा जा सकता जहां लोग जाने को बेताब हो जाएं, लेकिन यकीन मानिए दुनिया में करीब दो लाख लोग लाल ग्रह की एकतरफा यात्र के लिए तैयार हैं जिनमे करीब 20747 लोग भारतीय हैं। मंगल पर बसने वाले पृथ्वीवासियों के पहले जत्थे में शामिल होने के लिए 140 देशों से दो लाख से अधिक लोगों ने आवेदन किया है। सबसे दिलचस्प बात यह है कि आवेदकों की सूची में भारतियों का स्थान दूसरे नंबर पर है। सबसे ज्यादा आवेदन अमेरिका से आए हैं जहां 47,000 से अधिक लोगों ने मंगल पर जाने की इच्छा व्यक्त की है। चीन से 13000 लोगों ने आवेदन भेजे हैं। मंगल मिशन का संचालन करने वाली हालैंड की कंपनी, मार्स वन का कहना है कि मंगल यात्र पर जाने के इच्छुक लोगों ने अपना शेष जीवन मंगल पर ही बिताने पर सहमति जाहिर की है। डच कंपनी अक्टूबर 2016 में मंगल पर एक सप्लाई मिशन उतारना चाहती है। इसके बाद 2018 में वहां एक सेटलमेंट रोवर उतारा जाएगा। मंगल यात्र के दो लाख आवेदकों में से 24 से लेकर 40 उम्मीदवारों का चयन किया जाएगा। इन्हें 2015 में शुरू होने वाले सात-वर्षीय प्रशिक्षण कार्यक्रम में शामिल किया जाएगा। अंतिम चयन से पहले मौजूदा आवेदकों को चयन के तीन और दौरों से गुजरना पड़ेगा। मार्स वन का कहना है कि मंगल यात्रियों के लिए सैनिक प्रशिक्षण, विमान उड़ाने के अनुभव या विज्ञान की डिग्री की जरूरत नहीं है, लेकिन प्रत्याशी की आयु कम से कम 18 वर्ष होनी होनी चाहिए।
अंतरिक्षयात्री चुनने के लिए दूसरे दौर में मार्स वन की कमेटी के सदस्यों के साथ उम्मीदवारों का साक्षात्कार होगा। तीसरे दौर में पहुंचने वाले उम्मीदवार एक-दूसरे के साथ प्रतिस्पर्धा करेंगे। तीसरे दौर में मिशन की चुनौतियों का सामना करने के लिए उम्मीदवारों को तैयार किया जाएगा और इसका टीवी तथा ऑनलाइन प्रसारण किया जाएगा। मार्स वन का मकसद मंगल पर एक दशक के अंदर मानव बस्ती बसाना है। मंगल पर बस्ती बसाने के लिए कंपनी ने 6.31 अरब डॉलर का बजट बनाया है जबकि नासा ने मंगल पर भेजे गए क्यूरिऑसिटी रोवर पर 2,84 अरब डॉलर खर्च किए थे। मार्स वन विश्वव्यापी रिएल्टी टीवी शो के जरिए मंगल मिशन के लिए धन जुटाएगी। यह शो लंबा चलेगा और दर्शक वोट देकर यह तय करेंगे कि अगले दस वर्षो में मंगल यात्र पर जाने वाले चार अंतरिक्ष यात्रियों के पहले जत्थे में कौन-कौन शामिल होगा। इन चार अंतरिक्षयात्रियों को 2023 तक लाल ग्रह पर उतारने की योजना है।इसके बाद 2033 तक मंगल की मानव बस्ती में 20 लोगों को शामिल करने का लक्ष्य है। पृथ्वी से मंगल की यात्र में करीब 200 दिन लगेंगे। आयोजकों का कहना है कि मंगल पर मानव बस्ती बसाने से हमें सौर मंडल की उत्पत्ति, जीवन की उत्पत्ति और ब्रव0161ांड में पृथ्वी की स्थिति के बारे में बेहतर जानकारी मिल सकेगी। मार्स वन की वेबसाइट के अनुसार मंगल का मिशन फिलहाल एकतरफा ही हो सकता है क्योंकि ग्रह से वापसी के लिए अभी यान उपलब्ध नहीं हैं। ऐसे यानों से मिशन की लागत काफी बढ़ जाएगी। मार्स वन का मानना है कि लाल ग्रह पर मौजूदा टेक्नोलॉजी की मदद से मानव बस्तियों का निर्माण करना संभव है। कंपनी अपने मिशन के लिए अच्छी तरह से परखे गए कलपुर्जे और सिस्टम जुटाएगी।
अनेक विशेषज्ञों ने इस प्रोजेक्ट पर आशंकाएं जाहिर की हैं। यूनिवर्सिटी ऑफ एराइजोना की प्रोफेसर डॉ. वेरोनिका ब्रे का कहना है कि यात्र के दौरान सबसे बड़ा जोखिम रेडिएशन का है। रेडिएशन के संपर्क में आने पर कैंसर का खतरा बढ़ सकता है। ऑक्सफर्ड यूनिवर्सिटी के डॉ. Rिस लिंटूट का कहना है कि मंगल की यात्र व्यवहारिक रूप से संभव है लेकिन असली समस्या धन की है। दृढ़ राजनीतिक इच्छाशक्ति और वित्तीय ताकत से ही इसे संभव बनाया जा सकता है।

सोलर एनर्जी से चलने वाले घरेलु उपकरण

नेहा जैन/ राकेश कुमार झा
सोलर एनर्जी पर विशेष
बिजली की बढ़ती कीमतों ने आम आदमी के घरेलू बजट को बिगाड़कर रख दिया है। ऐसे में सोलर एनर्जी लोगों के लिए एक अच्छा विकल्प बनकर उभरी है। इसकी मदद से न केवल बिजली का बिल कम किया जा सकता है, बल्कि ग्रिड एनर्जी से निर्भरता भी घटाई जा सकती है। यह पर्यावरण और सेहत के लिए भी अनुकूल है। सोलर एनर्जी से चलने वाले प्रॉडक्ट्स की पूरी जानकारी दे रही हैं नेहा जैन :

क्या है सोलर एनर्जी
अभी तक सूरज की गर्मी में जहां कपड़े, पापड़ आदि ही सुखाए जाते थे, वहीं अब इससे बिजली की सप्लाई भी मुमकिन हो रही है। सोलर पैनल द्वारा सोलर एनर्जी को बिजली में बदल दिया जाता है। इसके लिए पैनल को छत पर रखा जाता है, जहां उस पर सूरज की सीधी धूप आती हो। गौरतलब है कि अपने देश में लगभग 250-300 दिन सूरज निकलता है जिसके कारण यहां सोलर एनर्जी की बहुत ज्यादा संभावनाएं हैं।



सोलर एनर्जी पर चलने वाले कुछ उपकरण
सोलर एनर्जी पर आधारित प्रॉडक्ट्स सूरज के होने पर बिजली पैदा करते हैं। कड़ी धूप में ये तेजी से काम करते हैं, जबकि कम धूप होने पर इनकी कार्य क्षमता भी कम हो जाती है। बारिश के दिनों में ये काम नहीं करते, लेकिन उस स्थिति से निपटने के लिए ज्यादातर प्रॉडक्ट्स में ग्रिड से बिजली प्राप्त करने का विकल्प भी होता है यानी इन्हें बिजली से चलाया जा सकता है। यहां हम आपको सोलर एनर्जी से चलने वाले ऐसे ही कुछ प्रॉडक्ट्स की जानकारी दे रहे हैं। इनका इस्तेमाल करने से आप अपने बिजली बिल को कम करने के साथ ही पर्यावरण संरक्षण में भी योगदान दे सकते हैं।

1. गार्डन व स्ट्रीट लाइट
सोलर एनर्जी से चलने वाली तमाम तरह की गार्डन व स्ट्रीट लाइट बाजार में उपलब्ध हैं।

फायदे
अगर आपके घर के बाहर गार्डन है तो आप सोलर एनर्जी से चलने वाली गार्डन लाइट का प्रयोग कर सकते हैं, जो किफायती होने के साथ-साथ बहुत उपयोगी भी हैं। यह लाइट दिनभर चार्ज होने के बाद रात को 5-6 घंटे जलती है। इसके अलावा, बाजार में सोलर एनर्जी से चार्ज होने वाली स्ट्रीट लाइट भी उपलब्ध हैं जो दिनभर चार्ज होने के बाद शाम को जल जाती हैं और सुबह तक जलती रहती हैं। गार्डन लाइट 2 साल तक चल जाती हैं और स्ट्रीट लाइट 10 से 15 साल चलती है।

काम करने का तरीका
ये लाइट्स दिनभर सूरज की रोशनी से चार्ज होती रहती हैं और फिर रात के वक्त इस ऊर्जा का उपयोग करके जल जाती हैं।

कीमत
गार्डन लाइटः 250-350 रुपये
स्ट्रीट लाइटः 11,500-13,500 रुपये

2. सोलर कुकर
एलपीजी के बढ़ते दामों से जेब पर पड़ रहे बोझ को कम करने के लिए सोलर कुकर का इस्तेमाल किया जा सकता है। सोलर कुकर दो तरह के होते हैं: बॉक्स टाइप और डिश टाइप। अगर घर में कम मेंबर हैं मसलन तीन से चार मेंबर, तो बॉक्स टाइप कुकर का इस्तेमाल किया जा सकता है, जबकि डिश टाइप सोलर कुकर उन घरों में फायदेमंद है जहां रोजाना 12 से 15 लोगों का खाना बनता है। इसमें आप तलने का काम भी कर सकते हैं।

सोलर कुकर का इस्तेमाल ज्यादा आसान और सुविधाजनक होता है। इसमें दालों, चावल, राजमा व सब्जियों आदि को उबाला जा सकता है। इसके अलावा केक आदि भी बेक किए जा सकते हैं। मूंगफली और पॉपकॉर्न आदि भी भूने जा सकते हैं। इसमें नॉनवेज भी उबाला जा सकता है। इसमें आपको कोई मेहनत नहीं करनी पड़ती। बस जो पकाना है, उसे सुबह रखकर छोड़ दीजिए, यह खुद पकता रहेगा। यह वर्किंग लोगों के लिए भी काफी कारगर है। सुबह काम पर जाने से पहले इसमें खाना रख दें। वापस आकर आपको वह गर्मागर्म मिलेगा क्योंकि पकने के बाद यह हॉटकेस का काम करता है।

कैसे काम करता है
सोलर कुकर में खाने की चीज उबालने के लिए इसे सूरज की रोशनी में रख देते हैं। इसके बाद इसमें जो भी पकाना है, उसे डाल देते हैं। 3-4 घंटे में खाना बन जाता है। इसकी खासियत यह है कि इसमें बना खाना पौष्टिक और स्वादिष्ट होता है क्योंकि वह धीरे-धीरे बनता रहता है। यह दाम में भी किफायती है। इसकी कीमत और आम कुकर की कीमत में ज्यादा फर्क नहीं है। इसकी लाइफ ज्यादा होने के कारण यह लंबे समय तक एलपीजी में बचत करता है। सोलर कुकर 20 से 25 साल चल जाता है।

कीमत
सोलर कुकरः 4000-4500 रुपये
आम कुकरः 2000-3000 रुपये

3. सोलर वॉटर हीटिंग सिस्टम
भारत में लॉन्च हुए सोलर प्रॉडक्ट्स में यह सबसे पुराना है। घर में 100-300 लीटर का सिस्टम काफी रहता है। इससे ज्यादा क्षमता वाले सिस्टम होटल, गेस्ट हाउस, हॉस्पिटल आदि में लगाए जा सकते हैं। इस सिस्टम की खासियत यह है कि इसे एक बार खरीद लेने के बाद इस पर कोई खर्च नहीं करना पड़ता। आजकल ऐसे सोलर हीटिंग सिस्टम भी आ रहे हैं जिनमें बिजली के एलिमेंट्स लगे होते हैं। ऐसे में ये सोलर एनर्जी उपलब्ध न होने पर ग्रिड एनर्जी का प्रयोग भी कर सकते हैं। दक्षिण भारत में लोग इसका खूब इस्तेमाल कर रहे हैं लेकिन उत्तर भारत में इसका प्रचलन आमतौर पर नहीं है।

इसका इस्तेमाल पानी गर्म करने के लिए किया जाता है। सोलर वॉटर हीटिंग सिस्टम से हुए गर्म पानी का इस्तेमाल नहाने, कपड़े धोने, खाना पकाने, बर्तन साफ करने जैसे कामों में किया जा सकता है। सोलर वॉटर हीटिंग सिस्टम की लाइफ सबसे ज्यादा होती है और कुछ ही साल में इसकी लागत को वसूला जा सकता है। 100 लीटर तक का वॉटर हीटिंग सिस्टम इलेक्ट्रॉनिक गीजर को रिप्लेस कर सकता है और इससे सालाना लगभग 1500 यूनिट बिजली बचाई जा सकती है। इसके अलावा यह हर साल 1.5 टन कार्बन डायऑक्साइड के उत्सर्जन को रोक सकता है। 20-25 साल तक होती है इनकी लाइफ।

कैसे काम करता है
सोलर वॉटर हीटिंग सिस्टम को छत पर लगाया जाता है। इसके अलावा, फ्लैटों में इसे छत पर या खिड़की पर भी लगाया जा सकता है। गर्म पानी सिस्टम में ही मौजूद टैंक में स्टोर होता है जो सोलर एनर्जी उपलब्ध न होने पर भी लगभग 24 घंटों तक गर्म बना रहता है। इसमें कॉपर प्लेट लगी होती है जिससे पानी तेजी से गर्म होता है।

कीमत
100 लीटर क्षमता वाले सिस्टम (दो व्यक्तियों के लिए यूजफुल): 30,000 रुपये
250 लीटर क्षमता वाले सिस्टम (5-6 व्यक्तियों के लिए यूजफुल) : 80,000 रुपये

4. सोलर गीजर
पानी गर्म करने के लिए सोलर गीजर का उपयोग किया जा सकता है। सोलर गीजर का इस्तेमाल कर बिजली के बिल में काफी कटौती की जा सकती है क्योंकि बिजली से चलने वाले गीजर में बिजली बहुत लगती है। सोलर गीजर पर सरकार की ओर से 30 फीसदी की सब्सिडी भी दी जाती है, लेकिन यह तीन महीने बाद मिलती है। सब्सिडी के लिए सोलर गीजर खरीदते समय अप्लाई किया जाता है जिसके तीन महीने बाद सरकार से चेक मिल जाता है।

इसमें एक ट्यूबलाइट लगी होती है जो पानी गर्म करती है। सोलर वॉटर हीटिंग सिस्टम और इसमें इस ट्यूबलाइट का ही अंतर है। सोलर गीजर में पानी वॉटर हीटिंग सिस्टम की अपेक्षा धीरे गर्म होता है लेकिन यह उससे सस्ता पड़ता है। 5-6 लोगों के घर के लिए लगभग 250 लीटर का गीजर ठीक रहता है। इसमें एक अतिरिक्त बैकअप रॉड भी आती है जो टैंक में पानी 2-3 दिन तक गर्म रख सकती है। इसकी लाइफ 15-20 साल तक होती है।

कीमत
100 लीटर क्षमता वाला गीजर (दो व्यक्तियों के लिए) : 14,500 रुपये
250 लीटर क्षमता वाला गीजर (5-6 व्यक्तियों के लिए) : 40,000 रुपये
बैकअप रॉड : 2000 रुपये

5. सोलर इन्वर्टर
भारत में बिजली जाने की समस्या आम है। सोलर इन्वर्टर ऐसे क्षेत्रों के लिए बहुत उपयोगी हैं। सोलर इन्वर्टर के जरिये ग्रिड से चलने वाले इन्वर्टर से आने वाले बिल से बचा जा सकता है। इनका इस्तेमाल रोजाना भी किया जा सकता है जिससे बिजली का बिल बच सके।

आमतौर पर घरों में लगभग 1 किलोवॉट के इन्वर्टर का इस्तेमाल किया जा सकता है जिससे 6 लाइट, 4 पंखे, 1 कंप्यूटर और 1 टीवी को 8 घंटों तक चलाया जा सकता है। इससे कम क्षमता का इन्वर्टर प्रयोग करना है तो 650 वॉट के इन्वर्टर का प्रयोग किया जा सकता है जिसमें 2 पंखे, 2 सीएफएल व 1 टीवी सेट चलाया जा सकता है। सोलर इन्वर्टर के सोलर मॉड्यूल की लाइफ तो लम्बी होती है लेकिन इसकी बैटरी को 4-5 साल में बदला जाता है। आजकल सोलर इन्वर्टर ग्रिड समर्थित भी आते हैं जिन्हें सोलर एनर्जी न मिलने पर ग्रिड एनर्जी से भी चार्ज किया जा सकता है। वैसे सोलर एनर्जी से चार्ज करने पर यह लंबे समय तक चलते हैं। सोलर मॉड्यूल की लाइफ 20-25 साल होती है।

कीमत
650 वॉट सोलर इन्वर्टर : 30,000 रुपये
1 किलोवॉट सोलर इन्वर्टर: 60,000 रुपये

कुछ और प्रॉडक्ट्स

होम लाइट सिस्टम
होम लाइट सिस्टम में 2 बल्ब, 1 पंखा, मोबाइल चार्जर व सोलर पैनल होता है। इसके साथ ही एक सिस्टम आता है, जो सोलर पैनल से मिलने वाली ऊर्जा को स्टोर करता है। दिनभर चार्ज होने के बाद बल्ब और पंखे 5-6 घंटे चल जाते हैं। होम लाइट सिस्टम का शहरों में कम इस्तेमाल होता है, लेकिन गांवों में इसकी बहुत मांग है। इसकी कीमत 4200-11000 रुपये है, जो पंखे के साइज व पैनल की क्षमता पर निर्भर है।

सोलर लालटेन
बाजार में कई तरह की सोलर लालटेन उपलब्ध हैं जो दिनभर सोलर एजर्जी से चार्ज होने पर 5-6 घंटे तक का बैटरी बैकअप देती हैं। आजकल सोलर लालटेन के साथ मोबाइल चार्जर का भी विकल्प है। बाजार में उपलब्ध सोलर एनर्जी के साथ ही ग्रिड से चार्ज होने वाली सोलर लालटेन भी उपलब्ध हैं। ये डेढ़ से दो साल चल जाती हैं। इसकी कीमत 2000 रुपये है।

सोलर टॉर्च
सोलर एनर्जी से चलने वाली टॉर्च में रेडियो, ब्लिंकर व मोबाइल चार्जर भी अटैच मिलता है। इसकी कीमत लगभग 1400 रुपये है और यह डेढ़ से दो साल चल जाती है।

मोबाइल चार्जर
सोलर एनर्जी से चलने वाले मोबाइल चार्जर भी बाजार में उपलब्ध हैं। इनके साथ मोबाइल के कनेक्टर भी मिलते हैं। बाजार में इसके दो विकल्प हैं: एक बैटरी के साथ और एक बिना बैटरी का चार्जर। बैटरी वाले चार्जर से किसी भी समय कहीं भी मोबाइल चार्ज कर सकते हैं, जबकि बिना बैटरी वाले चार्जर से मोबाइल चार्ज करने के लिए धूप का होना जरूरी है। रोजमर्रा की जिंदगी के अलावा सफर करते समय इन चार्जरों का इस्तेमाल किया जा सकता है। बैटरी वाले चार्जर की कीमत 950 रुपये और बिना बैटरी के चार्जर की कीमत 550 रुपये है। ये पांच साल तक चल जाते हैं।

कहां से खरीदें
आपके शहर के इलेक्ट्रॉनिक मार्केट में सोलर प्रॉडक्टस की तमाम दुकानें हैं। इसके अलावा तमाम सोलर प्रॉडक्ट्स के डीलर ऑनलाइन भी सामान बुक कर रहे हैं। इसमें सामान को आपके घर पर ही डिलिवर कर दिया जाता है। सोलर एनर्जी से चलने वाले एयरकंडिशनर, टीवी, फ्रिज आदि का निर्माण भी किया जा चुका है, लेकिन वे अभी यहां उपलब्ध नहीं हैं। इस दिशा में जल्दी काम होने की उम्मीद है और इससे बिजली के बिल से और ज्यादा राहत मिलेगी। सोलर प्रॉडक्ट्स के विक्रेता राजू ने बताया कि इन उत्पादों की ग्रामीण क्षेत्रों में बहुत मांग है क्योंकि वहां बिजली आपूर्ति नहीं है। धीरे-धीरे शहरों में भी इनकी मांग बढ़ रही हैं और जितनी तेजी से बिजली के दाम बढ़ रहे हैं, आने वाले दिनों में लोग सोलर प्रॉडक्ट्स जरूर अपनाएंगे।

आसानी से मिलें ऐसे प्रॉडक्ट्स
घरेलू स्तर पर सोलर प्रॉडक्ट्स को अपनाकर बिजली की काफी बचत की जा सकती है, लेकिन इस बारे में लोगों को ज्यादा जानकारी न होने के कारण इनका प्रयोग बहुत कम हो रहा है। सोलर एनर्जी से चलने वाले प्रॉडक्ट्स की बाजार में बहुत कम दुकानें हैं। इन प्रॉडक्ट्स को बाजार में आसानी से उपलब्ध कराया जाना चाहिए। दक्षिण भारत में आसानी से उपलब्ध होने के कारण सोलर प्रॉडक्ट्स का खूब इस्तेमाल हो रहा है।
- अमित कुमार, निदेशक (ऊर्जा-पर्यावरण तकनीकी विकास विभाग) द एनर्जी एंड रिसोर्सेज इंस्टिट्यूट

बिजली न गिरे, इसलिए करें बचत
बिजली से चलने वाले तमाम उपकरणों का हम इस्तेमाल करते हैं। ऐसे में बिजली का बिल भी बेतहाशा बढ़ता जा रहा है। लेकिन ऐसे कुछ टिप्स हैं जिनके जरिए आप न बिजली की बचत कर अपना बिल कम कर सकते हैं। पूरी जानकारी दे रहे हैं राकेश कुमार झा

एसी
- एसी चलाने के लिए थर्मोस्टेट का ख्याल रखें। थर्मोस्टेट टेंपरेचर कंट्रोल करता है। इसे रिमोट से सेट किया जाता है। एसी के साथ पंखे का इस्तेमाल करें। ऐसे में आप उसका थर्मोस्टेट 20 से 25 के बीच सेट कर बिजली बचा सकते हैं।
- टेंपरेचर सेट करने के बाद जैसे ही कमरा ठंडा हो जाता है, वैसे ही एसी में ऑटो कट लग जाता है।
- एयर फिल्टर की सफाई जरूरी है। सफाई हर 15 दिन में करते रहें। इससे कूलिंग बेहतर तरीके से होती है।
- कमरा एयर टाइट होना चाहिए। अगर कमरा गर्म है, तो पहले दरवाजे, विंडो खोलकर पंखा चलाएं, फिर एसी ऑन करें। इससे काफी मात्रा में बिल की बचत की जा सकती है।
- एसी चलाने के बाद बार-बार दरवाजा न खोलें। अगर कुछ देर के लिए कमरे से बाहर जाना हो तो एसी को बंद न करें। बार-बार ऑन करने से भी बिजली ज्यादा खर्च होती है।
- तड़के 4 से 5 के बीच एसी बंद कर दें। सिर्फ पंखे से आपका काम चल जाएगा। कोशिश करें कि रिमोट से टाइमर सेट कर दें, ऐसे में आपको एसी बंद करने के लिए उठना नहीं पड़ेगा।

बल्ब
- सबसे बड़ा एनर्जी सेविंग डिवाइस घर या ऑफिस में लगे बल्ब होते हैं।
- पुराने बल्ब की जगह नया सीएफएल या एलईडी का प्रयोग करें, जो काम 60 वॉट वाला बल्ब करेगा, वही काम 15 वॉट का सीएफएल करेगा।
- इससे भी ज्यादा किफायती एलईडी लाइट है। हालांकि यह काफी महंगा है। अच्छी बात यह है कि इसकी लाइफ लंबी होती है और बिजली की खपत भी काफी कम मात्रा में होती है।
- 15 वॉट के नाइट लैंप की जगह अगर एलईडी लाइट का इस्तेमाल करें।
- डिस्पोजल के वक्त सीएफएल लाइट में मरकरी ज्यादा होती है, एलईडी लाइट में इसकी मात्रा कम होती है। ऐसे में डिस्पोजल के वक्त पल्यूशन भी कम होगा।
- सीएफएल लाइटों की सफाई जरूरी होती है, जिससे रोशनी पूरी मिलती रहे।
- घर का रंग-रोगन हल्के कलर से कराएं, इससे लाइट का रिफ्लेक्शन होता है और कम ऊर्जा खपत में भी घर काफी रौशन दिखता है।

फ्रिज
- गर्म चीजों को सीधे फ्रिज में रखने से बचें। पहले उन्हें रूम टेंपरेचर पर आने दें।
- फ्रिज के रेग्युलेटर को कभी भी हाई पर अजस्ट करके न रखें, इससे भी बिजली की खपत ज्यादा मात्रा में होती है।
- फ्रिज में ठूंस-ठूंसकर सामान न भरें।
- फ्रिज का दरवाजा बार-बार न खोलें और कम-से-कम देर के लिए खुला रखें।
- ऑटो डीफ्रॉस्ट वाले फ्रिज में एनर्जी की ज्यादा खपत होती है। वक्त-वक्त पर मैनुअल डीफ्रॉस्ट करने से बिजली की खपत कम होती है और फ्रिज भी बेहतर काम करता है।

मिक्सर-ग्राइंडर
- मिक्सर-ग्राइंडर को पूरी तरह भरकर न चलाएं।
- थोड़ा-थोड़ा करके पीसें।
- एक ही साथ काफी वक्त तक चलाने से बचें, इससे मोटर जलने का भी खतरा रहता है।
- बुश आदि की सफाई और उसकी चेकिंग करते रहें।

वॉशिंग मशीन
- कपड़े धोने के लिए गर्म पानी का इस्तेमाल न करें।
- आजकल के वॉशिंग पाउडरों के लिए गर्म पानी होना जरूरी नहीं।
- कपड़े वॉशिंग मशीन के ड्रायर में न सुखा कर खुली हवा में सुखाएं।

टीवी
- पुराने टीवी की जगह नई एलसीडी या एलईडी खरीदें।
- इससे न केवल बेहतर क्वॉलिटी का पिक्चर मिलेगा, बल्कि बिजली बिल में भी बड़ी बचत होगी।
- आमतौर पर यदि पुराने टीवी का बिल 100 रुपये आता है, तो नई एलसीडी या एलईडी का बिल 40 से 60 रुपये ही आएगा।
- टीवी को रिमोट से बंद करके स्टैंड बाय में न छोड़ें। उसे स्विच से बंद कर दें। ऐसा न करने से लगातार टीवी में बिजली का खर्च होता रहता है। छोटी-सी सावधानी बरत कर आप बड़ी बचत कर सकते हैं।

क्या है स्टार रेटिंग का मतलब
- ब्यूरो ऑफ एनर्जी एफिशंसी की ओर से स्टार रेटिंग दी जाती है।
- 1 से लेकर 5 तक स्टार दिया जाता है। एनर्जी खपत के हिसाब से इसको कैटगराइज किया गया है।
- स्टार लेबलिंग रेफ्रिजरेटर, एसी और ट्यूबलर फ्लॉरसेंट लाइट और ट्रांसफॉर्मर के लिए जरूरी होता है।
- एक अनुमान के हिसाब से 5 स्टार वाले एसी में सबसे कम बिजली कन्ज्यूम होती है।
- भारत में स्टार रेटिंग 1 से शुरू होकर 5 तक है।

इसे यूं समझें :
1 स्टार वाला एसी, फ्रिज या टीवी ज्यादा बिजली की खपत करता है।
2 स्टार में इससे कम
3 स्टार में इससे भी कम
4 स्टार वाले में स्टार 3 से भी कम और
5 स्टार वाले में सबसे कम बिजली की खपत होती है।

मिसाल के तौर पर यदि 1 स्टार वाला एसी अगर एक दिन में 10 यूनिट बिजली कन्ज्यूम करता है, तो 5 स्टार वाला मशीन 3.5 से 4 यूनिट बिजली ही खपत करता है। अगर एक स्टार वाले एसी का बिल 100 रुपये आता है, तो 5 स्टार वाले में सिर्फ 69 रुपये का आता है। जाहिर है स्टार रेटिंग वाला उपकरण आपकी जेब को ढीली नहीं होने देता। भारत में औसतन एक एसी आठ घंटे तक चलता है। साल में औसतन 150 से 200 दिन लोग ऐसी का इस्तेमाल करते हैं।

कुछ कॉमन टिप्स
एनर्जी सेविंग एक्सपर्ट रविंदर वत्स के मुताबिक :
-घर और ऑफिस में जरूरत न होने पर बिजली के तमाम उपकरण बंद कर दें।
- टीवी, कंप्यूटर और एसी को रिमोट से बंद करने के बाद उसके स्विच से भी बंद करना न भूलें।
- सिर्फ रिमोट से बंद करने के बाद भी टीवी का पिक्चर ट्यूब ऑन ही रहता है। ऐसे में बिजली की सप्लाई लगातार होती ही रहती है।
- स्टैंड बाय मोड से बंद करने से बचें।
- स्टार रेटिंग वाला उपकरण खरीदने से बिजली की काफी बचत होती है।
- लैपटॉप, सेलफोन और डिजिटल कैमरों की बैटरी का चार्जर भी बोर्ड से स्विच ऑफ करें। इससे बड़ी मात्रा में पावर को सेव किया जा सकता है।
- घर के दरवाजे और खिड़कियों को खुला रखने से रौशनी अंदर आती है, तब आप फालतू ट्यूब और बल्ब बंद कर सकते हैं।
- एसी, कूलर के आगे कोई भी फर्नीचर न रखें।
- जब सब एकसाथ बैठे हों तो दूसरी जगहों की लाइट, पंखे और एसी बंद कर दें। एकसाथ बैठकर ही टीवी आदि का लुत्फ उठाएं।

Saturday 7 September 2013

अब 3डी प्रिंटर से निकलेंगे मानव-अंग

ब्रिटेन के वैानिकों ने ऐसा 3डी प्रिंटर बनाने में कामयाबी हासिल की है, जो सिर्फ एक बटन दबाते ही प्रत्यारोपण के लिए मानव अंग तैयार कर देगा। प्रिंटर के एक सिरे में बस जरूरी कोशिकाएं व अन्य चीजें डालनी होंगी और यह उन्हें व्यवस्थित कर मानव अंग में तब्दील कर देगा। वैानिकों के अनुसार, प्रिंटर का नोकदार सिरा (नोजल हेड) इस काम को अंजाम देगा। इस नोजल हेड को विस्टा 3डी नाम दिया गया है। यह नोजल हेड पतली से पतली चीजों को एक-दूसरे से पूरी सटीकता से जोड़ देगा। इससे खिलौने, मेडिकल उपकरण, हवाई जहाज के पुर्जे और इंसान के शरीर में प्रत्यारोपण के लिए अंग तैयार किए जा सकेंगे। मेलबर्न टीटीपी कंपनी के प्रबंध निदेशक सैम हाइड ने इस आविष्कार को उत्साहजनक करार दिया। कैम्ब्रिज न्यूज से बातचीत के दौरान हाइड ने बताया कि पांच से 10 वर्षो में प्रिंटर से मानव शरीर के लिए अंग तैयार होने लगेंगे। उन्होंने बताया कि प्रिंटर में जरूरी कोशिकाएं डालने के बाद उन्हें सही अवस्था में रखने की जरूरत होती है ताकि उन्हें किसी तरह का नुकसान न पहुंचे। इस काम को बहुत बारीकी से अंजाम देना होता है। 3डी प्रिंटर यही काम करेगा। हाइड ने बताया कि शुरुआत में प्रिंटर से आसान ढांचे वाले अंग तैयार किए जाएंगे और फिर धीरे-धीरे इससे जटिल अंग बनाए जाएंगे। कैम्ब्रिज विश्वविद्यालय में चिकित्सा उपकरणों के विशेषा डा. सीन चेंग ने कहा कि इस प्रिंटर के सहारे मानव अंगों के बनने से हर साल लाखों लोगों की जिंदगी बचाई जा सकेगी। हालांकि इस तकनीक के इस्तेमाल से पहले अभी कुछ जरूरी चरण पूरे होने बाकी हैं। नोजल को फिलहाल एक 2डी प्रिंटर से जोड़ा गया है। इसे 3डी प्रिंटर से जोड़ने में अभी दो साल का वक्त लग सकता है।लंदन, प्रेट्र : ब्रिटेन के वैानिकों ने ऐसा 3डी प्रिंटर बनाने में कामयाबी हासिल की है, जो सिर्फ एक बटन दबाते ही प्रत्यारोपण के लिए मानव अंग तैयार कर देगा। प्रिंटर के एक सिरे में बस जरूरी कोशिकाएं व अन्य चीजें डालनी होंगी और यह उन्हें व्यवस्थित कर मानव अंग में तब्दील कर देगा। वैानिकों के अनुसार, प्रिंटर का नोकदार सिरा (नोजल हेड) इस काम को अंजाम देगा। इस नोजल हेड को विस्टा 3डी नाम दिया गया है। यह नोजल हेड पतली से पतली चीजों को एक-दूसरे से पूरी सटीकता से जोड़ देगा। इससे खिलौने, मेडिकल उपकरण, हवाई जहाज के पुर्जे और इंसान के शरीर में प्रत्यारोपण के लिए अंग तैयार किए जा सकेंगे। मेलबर्न टीटीपी कंपनी के प्रबंध निदेशक सैम हाइड ने इस आविष्कार को उत्साहजनक करार दिया। कैम्ब्रिज न्यूज से बातचीत के दौरान हाइड ने बताया कि पांच से 10 वर्षो में प्रिंटर से मानव शरीर के लिए अंग तैयार होने लगेंगे। उन्होंने बताया कि प्रिंटर में जरूरी कोशिकाएं डालने के बाद उन्हें सही अवस्था में रखने की जरूरत होती है ताकि उन्हें किसी तरह का नुकसान न पहुंचे। इस काम को बहुत बारीकी से अंजाम देना होता है। 3डी प्रिंटर यही काम करेगा। हाइड ने बताया कि शुरुआत में प्रिंटर से आसान ढांचे वाले अंग तैयार किए जाएंगे और फिर धीरे-धीरे इससे जटिल अंग बनाए जाएंगे। कैम्ब्रिज विश्वविद्यालय में चिकित्सा उपकरणों के विशेषा डा. सीन चेंग ने कहा कि इस प्रिंटर के सहारे मानव अंगों के बनने से हर साल लाखों लोगों की जिंदगी बचाई जा सकेगी। हालांकि इस तकनीक के इस्तेमाल से पहले अभी कुछ जरूरी चरण पूरे होने बाकी हैं। नोजल को फिलहाल एक 2डी प्रिंटर से जोड़ा गया है। इसे 3डी प्रिंटर से जोड़ने में अभी दो साल का वक्त लग सकता है।


Friday 6 September 2013

शिक्षक दिवस -रस्म अदायगी से आगे सोचना होगा


दैनिक जागरण 

शशांक द्विवेदी
हर साल हम सिर्फ रस्म  अदायगी के लिए 5 सितंबर को शिक्षक दिवस मनाते हैं और पूर्व राष्ट्रपति सर्वपल्ली डॉ राधा कृष्णन को याद करते हैं। आधुनिक दौर में शिक्षा के वास्तविक उद्देश्य से हम दिनोदिन दूर होतें जा रहें है । आर्थिक उदारीकरण के दौर में आज हर एक को आगे बढने की होड लगी है। समय के साथ हम विज्ञान और तकनीक के क्षेत्र में नित नयी कामयाबियाँ हासिल कर रहें है , आदमी चाँद के बाद मंगल तक पहुँचने का सपना पूरा कर रहा है । समय की मांग के अनुसार साइंस, टेक्नोलॉजी, प्रॅफेशनल व जॉब-ओरिएंटेड कोर्स आदि की लोकप्रियता दिन-प्रतिदिन बढती जा रही है। मगर नैतिकता और मानवता के स्तर  पर हम दिनोंदिन नीचे होते जा रहें है । इतनी सफलता के बाद भी हम शिक्षा के वास्तविक उद्देश्य से दूर हो रहें है । लेकिन सवाल यह उठता है कि शिक्षा क्यों जरूरी है और इसका उद्देश्य क्या है? यहां यह समझना जरूरी है कि डिग्री हासिल करना व शिक्षा प्राप्त करने में अंतर है। शिक्षा अधिक व्यापक चीज है, समाज को आगे ले जाने में सबसे अहम भूमिका शिक्षा की ही होती है।
 वास्तव में पूंजीवादी विश्व के बदलते स्वरुप और परिवेश में शिक्षा का पूरा तंत्र एक बड़ा व्यवसाय बन गया है ? हम शिक्षा के सही उद्देश्य को ही नहीं समझ पा रहे है । सही बात तो यह है की शिक्षा का सवाल जितना मानव की मुक्ति से संबद्ध है उतना किसी अन्य विषय या विचार से नहीं है । देश के पूर्व राष्ट्रपति डॉ  सर्वपल्ली राधाकृष्णन ने ब्रिटेन के एडिनबरा विश्वविधायालय मे भाषण देते हुए कहा था कि शिक्षा और  मानव इतिहास का संपूर्ण लक्ष्य मानव जाति की मुक्ति है। पर आज  जब मुक्ति का अर्थ ही बेमानी हो जाय, उसका लक्ष्य ‘सर्वजन हिताय’ की परिधि से हटकर घोर व्यैक्तिक दायरे में सिमट जाय तो क्या किया जा सकता है ।
इन दिनों जब शिक्षा की गुणात्मकता का तीव्रतर ह्रास होता जा रहा है, समाज में सहिष्णुता की भावना कमजोर पड़ने से गुरु-शिष्य संबंधों की पवित्रता को  भी ग्रहण लगता जा रहा है। मानव-श्रम की अवहेलना ने शिक्षक और शिक्षार्थी, दोनों को पूँजी और बाजार का पिछलग्गू और उसका हिमायती बना दिया है। शिक्षा की दिशा में हमारा सोच अब इतना व्यावसायिक और संकीर्ण हो गया है कि हम सिर्फ उसी शिक्षा की मूल्यवत्ता पर भरोसा करते हैं और महत्व देते हैं जो हमारे सुख-सुविधा का साधन जुटाने में हमारी मदद कर सके, बाकी चिंतन को हम ताक पर रखकर चलने लगें है।
द सी एक्सप्रेस
प्राथमिक शिक्षा के स्तर पर सरकार ने  शिक्षकों को रोबोट समझ लिया है । बच्चों को पढानें के साथ साथ उसे  सभी तरह के चुनाव, जनगणना, पशुगणना, गरीबी रेखा का सर्वेक्षण, अन्य सर्वेक्षण, पल्स पोलियो, मध्यान्ह भोजन, निर्माण का्र्य , दफ्तरी काम आदि  करने पड़ते है । सरकारी स्कूलों के शिक्षक सरकारी नौकर बनने को विवश है और निजी क्षेत्र  में   वहाँ के प्रबंधन के  वेतनभोगी सेवक। आंकड़ों के अनुसार प्राथमिक स्तर पर ही आज भी देश में 9503 स्कूल बिना शिक्षक के हैं,122355  से अधिक विद्यालयों में पांच कक्षाओं पर एक शिक्षक है,,लगभग 42 हजार स्कूल भवन विहीन हैं और एक लाख से अधिक स्कूलों में भवन के नाम पर एक कमरा है। सरकार के शिक्षा अभियानों  के बावजूद प्राथमिक शिक्षा की गुणवत्ता पर कोई प्रभाव नहीं पड़ा है ।आज कोई भी मध्यम वर्गीय व्यक्ति अपने बच्चों को सरकारी स्कूल में नहीं पढाना चाहता । प्राथमिक शिक्षा के अभियानों में भ्रष्टाचार अपने चरम पर पहुच चुका है ।
देश में उच्च और तकनीकी शिक्षा एक बड़े व्यवसाय में तब्दील हो चुकी है । जहाँ छात्र उपभोक्ता की हैसियत में आ गया है ,उच्च शिक्षित होने के बाद वह बाजार में एक उत्पाद की तरह पेश हो जाता है ।यहाँ पर शिक्षक और शिक्षार्थी दोनों के बीच गरिमामय  सम्बन्ध कमजोर पड़ने लगते है । सोशल नेटवर्किंग साइटस की आभासी दुनियाँ में शिक्षक और छात्र दोनों एक धरातल पर मित्र बन जाते है ।जहाँ रिश्ता पूरी तरह प्रोफेशनल होता है । यहाँ नैतिक मूल्य बहुत पीछे छूट जाते है । दोनों के बीच इस दूरी के घटने और सिमटने का व्यावसायिक,आर्थिक  फायदा तो है लेकिन  अधिकांशतया  मानवीय मूल्यों को चोट पहुँचती है ।
जनसंदेश टाइम्स
देश की नई पीढ़ी की समझ और सूचना का संसार बहुत व्यापक है। उसके पास ज्ञान और सूचना के अनेक साधन हैं जिसने परंपरागत शिक्षकों और उनके शिक्षण के सामने चुनौती खड़ी कर दी है। नई पीढ़ी बहुत जल्दी और ज्यादा पाने की होड़ में है। उसके सामने एक अध्यापक की भूमिका बहुत सीमित हो गयी है। अर्थ के युग में इसे शिक्षा का बाजारीकरण कहे या आधुनिक होते चले जा रहे समाज की विसंगतियों का असर बढ़ती प्रतियोगिता, आगे बढ़ने का दबाव, सूचनाओं की बाढ़ से लैस रहने की कवायद और हर हाल में अपने लक्ष्यों को पाने का जुनून विद्यार्थियों में कुछ इस तरह की बेचैनी भर रहा है, जिसमें उन्हें शिक्षक एक वेतनभोगी कर्मचारी से अधिक नहीं लगता, जिसका काम उन्हें अपने लक्ष्यों की पूर्ति वैधानिक या नियम-विरूद्ध करने में मदद करना भर है। नए जमाने ने श्रद्धाभाव भी कम किया है। उसके अनेक नकारात्मक प्रसंग हमें दिखाई और सुनाई देते हैं। गुरू-शिष्य रिश्तों में मर्यादाएं टूट रही हैं, वर्जनाएं टूट रही हैं, अनुशासन भी भंग होता दिखता है। नए जमाने के शिक्षक भी विद्यार्थियों में अपनी लोकप्रियता के लिए कुछ ऐसे काम कर बैठते हैं जो उन्हें लांछित ही करते हैं। सीखने की प्रक्रिया का मर्यादित होना भी जरूरी है। परिसरों में संवाद, बहसें और विषयों पर विमर्श की धारा लगभग सूख रही है। परीक्षा को पास करना और एक नौकरी पाना इस दौर की सबसे बड़ी प्राथमिकता बन गयी है। ऐसे में शिक्षकों के सामने सबसे बड़ी चुनौती इस पीढ़ी की आकांक्षाओं की पूर्ति करने की है। साथ ही उनमें विषयों की गंभीर समझ पैदा करना भी जरूरी है। शिक्षा के साथ कौशल और मूल्यबोध का समावेश न हो तो वह व्यर्थ हो जाती है। इसलिए स्किल के साथ मूल्यों की शिक्षा बहुत जरूरी है। कारपोरेट के लिए पुरजे और रोबोट तैयार करने के बजाए अगर हम उन्हें मनुष्यता,ईमानदारी और प्रामणिकता की शिक्षा दे पाएं और स्वयं भी खुद को एक रोलमाडल के प्रस्तुत कर पाएं तो यह बड़ी बात होगी। 
वास्तव में सिर्फ जानकारियाँ देना ही  शिक्षा नहीं है । आधुनिक युग में तकनीक की जानकारी महत्वपूर्ण महत्वपूर्ण होते हुए भी व्यक्ति के बौद्धिक झुकाव और उसकी लोकतांत्रिक भावना का भी बड़ा महत्व है । ये बातें व्यक्ति को एक उत्तरदायी नागरिक बनाती हैं । शिक्षा का वास्तविक उद्देश्य सम्पूर्ण मानवता के प्रति समग्र द्रष्टिकोण रखने के साथ साथ ज्ञान के प्रति समर्पण की भावना और निरंतर सीखते रहने की प्रवृत्ति है । शिक्षा बाजार नहीं अपितु मानव मन को तैयार करने का महत्वपूर्ण साधन है। जितनी जल्दी हम इस तथ्य को समझेंगे उतना ही शिक्षा का भला होगा। तभी हम शिक्षक दिवस को सच्चे अर्थो में सार्थक कर सकते है और डॉ सर्वपल्ली राधाकृष्णन के महान सपनो को पूरा कर सकते है।
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