Wednesday 29 May 2013

गर्मी /तापमान में वृद्धि पर अखबारों में मेरे विशेष लेख

प्रभातखबर 

देश भर में गर्मी का कहर
राजधानी दिल्ली सहित उत्तर भारत के कई प्रमुख शहरों में लोग भीषण गर्मी व लू से परेशान हैं। दिन में झुलसा देने वाली धूप हो रही है, जिससे लोगों का घर से बाहर निकलना दूभर हो गया है। जगह-जगह गर्म हवाएं भी चल रही हैं।  भीषण गर्मी और बढ़ते तापमान  से जनजीवन अस्त व्यस्त हो गया है । आने वाले दिनों में पारा 47 डिग्री के पार जाने की संभावनाएं जताई जा रही है।  19 मई रविवार को नागपुर देश का सबसे गर्म शहर बन गया।यहाँ 19 मई का दिन 19 सालों में सबसे अधिक गर्म दिन रहा। इस दिन यहां पारा 48 के पार चला गया।
इतनी भीषण गर्मी पड़ने की वजह क्या है, इसकी पड़ताल करते अखबारों में(प्रभातखबर ,डेली न्यूज ,जनसंदेश टाइम्स,ट्रिब्यून,सी एक्सप्रेस ) शशांक द्विवेदी के लेख 
Daily news

The Seaexpress

Jansandeshtimes

For nicely read pls click on Article link

Monday 20 May 2013

नवाचार या आविष्कार में क्यों पीछे है भारत


विश्व मोहन तिवारी 
उत्कृष्ट मानव वही है जो समस्याओं का हल निकाले।आज के विज्ञान युग के जीवन की अधिकांश समस्याओं के हल निकालने में वैज्ञानिक शायद सर्वाधिक उपयुक्त हैं। मानव समाज की समस्याओं के निवारक होते हैं नवाचारी; संसार में नवाचारी ही करते हैं सफ़ल प्रगति; नवाचारी मानव के कष्ट और दुख निवारक होते हैं, और सुख सुविधा बढ़ाते हैं ; जैव विकास का मूल है नवाचार; और यह बहुत महत्वपूर्ण बात है कि देश को सुदृढ़ करवाते हैं नवाचार।
मैं चर्चा करना चाहता हूं एक ऐसे नवाचारी की जिसने भारत में क्रान्ति ला दी; जिसने 'हम भी दौड़े' के स्थान पर ला दिया हमें 'सफ़ल धावकों में' - ए. पी. जे. अब्दुल कलाम की। उऩ्होंने अपनी पहली ही प्रायोजना में भारत में प्रथमत: होवरक्राफ़्ट का सफ़ल निर्माण किया था; जिसे देखकर रायल सोसायटी इंग्लैंड के एक अधिकारी सर माइकैल लिटिल हिल ने कहा था कि संक्रियात्मक होवरक्राफ़्ट के इस कठिन नवाचार में इंग्लैंड के बाद भारत के द्वितीय स्थान बनने की संभावना है। किन्तु इस देश में राजनीति इतनी गंदी है कि इस पूर्णत: स्वदेशी नवाचार का सम्मान ही नहीं किया गया वरन इसे कचड़े की टोकरी में‌ डाल दिया गया।
जब भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन के द्वारा 'एस एल वी ३' का सफ़ल प्रमोचन हुआ, तब दुनियां में कहा गया कि हम लोगों का विश्व में अंतरिक्ष प्रमोचन यान की प्रौद्योगिकी में चौथा स्थान है। जब 'पी एस एल वी' का प्रमोचन किया गया तब फ़िर कहा गया कि हमारा इस क्षेत्र में चौथा स्थान है। और जब भाभा परमाणु केन्द्र ने परमाणु बम का विस्फ़ोट किया, तब कहा गया कि विश्व में‌ हमारा इस अणु आयुध निर्माण प्रौद्योगिकी में पाँचवां स्थान है। जब 'सैन्टर फ़ार डिवैलपमैन्ट आफ़ एडवास्न्स्ड कम्प्यूटर', पुणे ने 'सुपरकम्पूटार' का निर्माण किया, तब फ़िर कहा गया कि विश्व में हमारा स्थान चौथा है। रक्षा अनुसंधान में कार्य करते समय कलाम साहब के नेतृत्व में प्रक्षेपास्त्रों के क्षेत्र में हमने अनेक क्रान्तिकारी कार्य किये, किन्तु उस चौथे के चक्कर को तोड़ नही पाए थे । हम अभी भी विकसित देशों की श्रेणी में नहीं आते । कलाम साहब का सपना है कि २०२० तक हम विकसित देशों की श्रॆणी में पहुँचें।
कलाम साहब कहते हैं कि हमें इस चौथे पाँचवें के चक्कर को तोड़कर आगे बढ़ना है। इसके लिये हमें भारी संख्या में आत्मविश्वासपूर्ण रचनाशील युवा मन चाहिये जो दृढ़ संकल्प के साथ नवाचार और रचनाशीलता से आगे बढ़कर इस चौथे के चक्कर को तोडें। कोई पूछ सकता है कि भारी संख्या में ऐसे नवाचारी युवा क्यों नहीं‌ मिल रहे हैं ?
क्या बात है कि इस विशाल देश में जहां अंग्रेज़ी में विज्ञान में शिक्षित विश्व में शायद सर्वाधिक संख्या में युवा हैं, वहां भी नवाचार नहीं के बराबर है; हम होमी भाभा, विक्रम साराभाई, ए. पी. जे. अब्दुल कलाम के अतिरिक्त शायद ही कोई ऐसा नाम ले सकते हैं जिसने हमें नवाचार में विश्व की अग्रिम पंक्ति में‌ खड़ा किया हो । एक तो अंग्रेज़ी माध्यम में शिक्षा विद्यार्थियों को विज्ञान के ज्ञान को आत्मसात करने में‌ मदद नहीं करती। और बिना आत्मसात हुए विज्ञान का ज्ञान नवाचार या अनुसंधान में मदद नहीं करता। दूसरे, अंग्रेज़ी में हमारी शिक्षा हमारे युवाओं में अंग्रेज़ों (अमैरिकी भी) की ओर देखने का आदी बना देती है। समस्या आने पर वे कहते हैं,' अरे भाई देखो इस समस्या का हल जो 'उऩ्होंने' निकाला है उसी की मदद ले लो।' विदेशी‌ माध्यम में शिक्षा हमारा आत्मविश्वास कम करती है और हमारी अनुसंधान की प्रवृत्ति को भी पंगु बनाती है। इज़राएल, जापान, कोरिया ऐसे छोटे देश भी‌विज्ञान में हम से आगे हैं और वे शिक्षा अपनी भाषाओं में दे रहे हैं, अंग्रेज़ी में‌ नहीं, यद्यपि अंग्रेज़ी‌ भी वहां पढ़ाई जाती है, किन्तु एक विदेशी‌ भाषा की तरह।

मुझे याद आता है ब्रिटैन की रायल वायु सेनाअध्यक्ष के वैज्ञानिक सलाहकार (१९७९) से मैने पूछा था कि उनके यहां अनुसंधानों की सफ़लता का क्या प्रतिशत है। तब उनके उत्तर से मुझे आश्चर्य हुआ था - उऩ्होंने कहा कि तीन प्रतिशत अनुसंधान ही सफ़ल हो पाते हैं, क्योंकि अनुसंधान समय की अग्रणी समस्याओं से जूझते हैं जहां जानी मानी विधियां शायद ही कार्य कर पाती‌ हैं, वहां तो नवाचार कल्पना, बुद्धि और रचनाशीलता ही कार्य कर सकती है, और उसके बाद भी सफ़लता की कोई गारंटी नहीं।
इस ९७ % असफ़लता से निराश होने की कोई बात नहीं, क्योंकि अनुसंधान ही ऐसा क्षेत्र है जहां असफ़लता भी सफ़लता की ओर बेहतर मार्ग दर्शाती है। ऐसा नहीं है कि एस एल वी ३ या पी एस एल वी आदि क्षेत्र में हमें सफ़लता बिना असफ़लताओं के मिली हो। और इन सफ़लताओं ने हमारे देश की रक्षा को सुदृढ़ किया है, सम्पदा को भी‌ बढ़ाया है और हमारा गौरव बढ़ाया है ।
किन्तु नवाचारों की सफ़लता का प्रतिशत अनुसंधानों की सफ़लता से कहीं कहीं अधिक है। क्योंकि वहां आप जाने माने रास्ते से आगे बढ़ सकते हैं। जैसे वक्र सतहों पर लेबल मुद्रण करने वाली मशीन का आयात पहले विदेशों से होता था। उसे श्री लक्ष्मण प्रसाद ने उसे इस देश में नवाचार और अपनी रचनाशीलता तथा कर्मठता से बना दिया।
नवाचारों की आवश्यकता हर समय हर स्थान पर होती है। कोई काम करने में कठिनाई हो रही‌ है, उसे सरल करने के लिये नवाचार करिये, सफ़लता मिलेगी। कभी कभी नकल करना भी नवाचार कि ओर पहला कदम हो सकता है, क्योंकि तब आप उसमें नवाचार कर उससे बेहतर वस्तु का निर्माण कर सकते हैं।
नकल करने वाला तो स्पष्ट है कि पिछड़ा ही रहेगा, दूसरों की दया पर निर्भर करेगा, वह स्वाधीन नहीं हो सकेगा; भारत दुर्भाग्य से इसी दिशा में जा रहा है। अपनी‌ श्रेष्ठ भाषाओं में शिक्षा प्राप्त करिये, और नवाचार और अनुसंधान करिये और स्वाधीन बनिये । स्वाधीनता के बिना जीवन ही क्या !

Friday 17 May 2013

पर्यावरण हितैषी हो उर्जा स्रोत


राष्ट्रीय सहारा के संपादकीय पेज पर शशांक द्विवेदी का विशेष लेख 
राष्ट्रीय सहारा 
भारत बड़े पैमानें पर  ऊर्जा की कमी से जूझ रहा है। उर्जा की माँग और आपूर्ति का अंतर दिन प्रतिदिन बढ़ता ही जा रहा है । देश के एक चैथाई लोग आज भी बिना बिजली के रहने को मजबूर है। देश के 28 में से 9 राज्यों  आंध्र प्रदेश, गुजरात, कर्नाटक, गोवा, दिल्ली, हरियाणा, केरल, पंजाब और तमिलनाडु  का ही पूरी तरह विद्युतीकरण हो पाया है । बाकी 19 राज्यों में तो पूर्ण विद्युतीकरण भी नहीं हुआ है । विद्युतीकरण के बावजूद इन 9 राज्यों में भी बिजली कटौती आम बात है। अंतरराष्ट्रीय ऊर्जा एजेंसी (आइईए) के अनुसार अगले 20 सालों में भी भारत में ऊर्जा की समस्या बनी रहेगी। कुलमिलाकर उर्जा की यह समस्या देश के विकास और भविष्य को सीधा सीधा प्रभावित  करती है जिसके लिए हमें अभी से ठोस कदम उठाने होंगे । किसी भी देश क लिए ऊर्जा सुरक्षा के मायने यह हैं कि वत्र्तमान और भविष्य की ऊर्जा आवश्यकता की पूर्ति इस तरीके से हो कि सभी लोग ऊर्जा से लाभान्वित हो सकें, पर्यावरण पर कोई कु-प्रभाव न पड़े, और यह तरीका स्थायी हो, न कि लघुकालीन । इस तरह की ऊर्जा नीति अनेकों वैकल्पिक ऊर्जा का मिश्रण हो सकती है जैसे कि, सूर्य ऊर्जा, पवन ऊर्जा, छोटे पानी के बाँध , गोबर गैस इत्यादि। भारत में इसके लिए पर्याप्त  संसाधन उपलब्ध हैं, और वैकल्पिक ऊर्जा के तरीके ग्राम स्वराज्य या स्थानीय स्तर पर स्वावलंबन के सपने से भी अनुकूल हैं, इसलिए देश में इन्हे बड़े पैमाने पर अपनाने की जरूरत है । जिससे देश में उर्जा के क्षेत्र में बढती  मांग और आपूर्ति के बीच के अंतर को कम किया जा सके । हमें न केवल वैकल्पिक ऊर्जा बनाने के लिए पर्याप्त इंतजाम करना होगा, बल्कि उर्जा संरक्षण के लिए सांस्थानिक परिवर्तन भी करना होगा जिससे कि लोगों के लिए स्थायी और स्थानीय ऊर्जा के संसाधनों से स्थानीय ऊर्जा की जरुरत पूरी हो सके।
पिछले दिनों दिल्ली में वैश्विक स्वच्छ ऊर्जा आधारित अर्थव्यवस्था की ओर तेजी से बदलाव पर र्चचा के लिए दुनिया के 20 अग्रणी देशों के ऊर्जा मंत्रियों के सम्मेलन में प्रधानमंत्री डॉ. मनमोहन सिंह ने कहा की पर्यावरण की कीमत पर उर्जा सुरक्षा सुनिश्चित न हो । इसके लिए सभी देशों को गैर परंपरागत स्वच्छ ऊर्जा स्रेतों के दोहन के लिए पर्याप्त कदम उठा उठाने होंगे । भारत सौर ऊर्जा और पवन ऊर्जा जैसे गैर परंपरागत स्वच्छ ऊर्जा स्रेतों के दोहन के लिए पर्याप्त कदम उठा रहा है। भारत का लक्ष्य अपनी अक्षय ऊर्जा क्षमता को मौजूदा 25000 मेगावाट से बढ़ाकर वर्ष 2017 तक दोगुना से भी ज्यादा यानी 55000 मेटावाट करने का है।

ऊर्जा आपूर्ति के लिए गैर नवीकरणीय ऊर्जा स्रोतों जैसे कोयला, कच्चा तेल आदि पर निर्भरता इतनी बढ़ रही है कि इन स्रोतों का अस्तित्व खतरे में पड़ गया है । विशेषज्ञों का कहना है कि अगले 40 वर्षों में इन स्रोतों के खत्म होने की संभावना है । ऐसे में विश्वभर के सामने ऊर्जा आपूर्ति के लिए अक्षय ऊर्जा स्रोतों से बिजली प्राप्त करने का विकल्प रह जाएगा । अक्षय ऊर्जा नवीकरणीय होने के साथ-साथ पर्यावरण के अनुकूल भी है । हालांकि यह भी सत्य है कि देश की 80 प्रतिशत विद्युत आपूर्ति गैर नवीकरणीय ऊर्जा स्रोतों से पूरी हो रही है । जिसके लिए भारी मात्रा में कोयले का आयात किया जाता है । वर्तमान में देश की विद्युत आपूर्ति में 64 प्रतिशत योगदान कोयले से बनाई जाने वाली ऊर्जातापीय ऊर्जा का है ।  विकास का जो माडल हम अपनाते जा रहे हैं उस दृष्टि से अगली प्रत्येक पंचवर्षीय योजना में हमें ऊर्जा उत्पादन को लगभग दुगना करते जाना होगा । हमारी ऊर्जा खपत बढ़ती जा रही है। इस प्रकार ऊर्जा की मांग व पूर्ति में जो अंतर है वह कभी  कम होगा ऐसा संभव प्रतीत नहीं होता।
सूरज से ऊर्जा प्राप्त करने के लिए फोटोवोल्टेइक सेल प्रणाली का प्रयोग किया जाता है । फोटोवोल्टेइक सेल सूरज से प्राप्त होने वाली किरणों को ऊर्जा में तब्दील कर देता है । भारत में सौर ऊर्जा की काफी संभावनाएं हैं क्योंकि देश के अधिकतर हिस्सों में साल में 300दिन सूरज अपनी किरणें बिखेरता है । फोटोवोल्टेइक सेल के जरिए सूरज की किरणों से ऊर्जा प्राप्त की जा सकती है । भारत में पिछले 30 वर्षों से सौर ऊर्जा पर काम हो रहा है लेकिन पिछले तीन सालों के दौरान इसमें गति आई है । सरकार ने वर्ष 2009 में सौर ऊर्जा को बढ़ावा देने के लिए जवाहरलाल नेहरू राष्ट्रीय सौर मिशन का अनुमोदन किया जिसका उद्देश्य वर्ष 2022 तक ग्रिड विद्युत शुल्क दरों के साथ समानता लाने के लिए देश में सौर ऊर्जा प्रौद्योगिकियों का विकास और संस्थापन करना है । हालांकि सौर ऊर्जा का विकास बहुत धीमी गति से हो रहा है । सौर ऊर्जा में प्रतिवर्ष लगभग 5 हजार खरब यूनिट बिजली बनाने की संभावना मौजूद है जिसके लिए इस दिशा में तीव्र गति से कार्य किए जाने की आवश्यकता है ।
लगता है बिजली की कमी से जूझ रहे भारत गणराज्य में अब बिजली की बचत के लिए केंद्र सरकार संजीदा हो रही  है। पिछले  दिनों केंद्रीय नवीन एवं नवीनीकरण उर्जा मंत्रालय ने देश के हर राज्य को कहा है कि सरकारी कार्यालय में जल्द ही सोलर सिस्टम लगाकर बिजली की बचत सुनिश्चित की जाए। नवीनीकरण उर्जा विकास विभाग के माध्यम से राज्यों में कराए जाने वाले इस काम के लिए केंद्र सरकार द्वारा तीस से नब्बे फीसदी तक का अनुदान दिया जाएगा । इस योजना के तहत देश के हर प्रदेश में सरकारी कार्यालयों में जवाहर लाल नेहरू राष्ट्रीय सोलर मिशन के तहत सोलर सिस्टम लगाया जाएगा। इस सिस्टम से सूर्य की रोशनी से दिन रात कार्यालय रोशन रह सकेंगे। मंत्रालय का उद्देश्य बिजली की कमी से जूझते देश को इससे निजात दिलाना है। इसके लिए अरबोँ रूपए के बजट प्रावधान का प्रस्ताव है जो जल्द ही योजना आयोग को प्रेषित कर दिया जाएगा। अब सवाल इन सरकारी घोषणाओं का नहीं बल्कि इनके क्रियान्वन का है । उर्जा मंत्रालय द्वारा इन योजनाओ को कब तक अमलीजामा पहनाया जायेगा ये तो आगे आने वाला वक्त ही बताएगा ।
देश के टेलीकॉम टॉवर प्रतिवर्ष लगभग 5 हजार करोड़ का तेल जला रहे हैं । यदि वह अपनी आवश्यकता सौर ऊर्जा से प्राप्त करते हैं तो बड़ी मात्रा में डीजल बचाया जा सकता है । सौर ऊर्जा को बढ़ावा देने के लिए लोगों को इसकी ओर आकर्षित करना जरूरी है । लोग इसको समझने तो लगे हैं लेकिन इसका प्रयोग करने से कतराते हैं । छोटे स्तर पर सोलर कूकर,सोलर बैटरी, सौर ऊर्जा से चलने वाले वाहन, मोबाइल फोन आदि का प्रयोग देखने को मिल रहा है लेकिन ज्यादा नहीं । विद्युत के लिए सौर ऊर्जा का प्रयोग करने से लोग अभी भी बचते हैं जिसका कारण सौर ऊर्जा का किफायती न होना है । सौर ऊर्जा अभी महंगी है और इसके प्रति आकर्षण बढ़ाने के लिए जागरूकता जरूरी है । साथ ही यदि इसे स्टेटस सिंबल बना दिया जाए तो लोग आकर्षित होंगे । अक्षय ऊर्जा पर्यावरण के अनुकूल भी है। हमें घरेलू, औद्योगिक और कृषि क्षेत्र में जरूरी ऊर्जा की मांग को पूरा करने के लिए दूसरे वैकल्पिक उपायों पर भी विचार करने की आवश्यकता है। भारत में अक्षय ऊर्जा के कई स्रोत उपलब्ध हैं। सुदृढ़ नीतियों द्वारा इन स्रोतों से ऊर्जा प्राप्त की जा सकती है।
Article link